Top News
Next Story
NewsPoint

डॉ हरीश: विश्व की राजधानी बनेगा भारत, खुद के साथ देश को रखना होगा फिजिकली फिट

Send Push
image

देहरादून। देश की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस) के सह क्षेत्रीय संपर्क प्रमुख डॉ हरीश ने बताया कि भारत जब अपनी आजादी का 100 वीं वर्ष मना रहा होगा, तब भारत विश्व की राजधानी बनेगा। इसके लिए खुद के साथ देश को फिजिकली फिट रखना होगा।

भारत की विश्व गुरु की विशेषता रही है। भारत दुनिया के हर क्षेत्र में अग्रणी होगा। भारत केवल विद्या के क्षेत्र में ही नहीं, विज्ञान एवं चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में भी विश्व में सबसे आगे है। मानवता के लिए नेत्रदान, अंगदान, देहदान को संकल्पित दधीचि देहदान समिति (रजि.) देहरादून उत्तराखंड ने रविवार को प्रिंस चौक त्यागी रोड स्थित एक सभागार में तृतीय दधीचि यज्ञ एवं देहदानियों का उत्सव मनाया।

इस मौके पर देहदान, अंगदान और नेत्रदान करने वाले दिवंगत के परिजनों को सम्मानित किया गया। समारोह के मुख्य वक्ता आरएसएस के सह क्षेत्रीय संपर्क प्रमुख डॉ हरीश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संघ का संकल्प है कि 2047 में 30 ट्रिलियन डॉलर के साथ भारत विकसित राष्ट्र होगा।

इसके लिए हर क्षेत्र में अच्छी इकोनॉमी के साथ आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि एकमात्र भारत ही ऐसा देश है जो विश्व का मार्गदर्शन कर सकता है। यह तभी हो पाएगा जब भारत हर क्षेत्र में उत्तम स्थिति में खड़ा होगा।

डॉ हरीश ने कहा कि देश में जब मुगल काल आया। उसके बाद जब अंग्रेज आए तो उन्होंने देखा कि भारत देश को 700-800 वर्षों तक युद्ध करते करते मुगल इनकी संस्कृति, विचार और चिंतन को खत्म नहीं कर पाएं तो हम कैसे कर पाएंगे। फिर उन्होंने 1760 से लेकर 1920 तक भारत की सभी विशेषताओं का अध्ययन किया और भारत के विरुद्ध एक विमर्श खड़ा कर दिया, जिसके ढांचे में हम अभी तक चलते आ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि अंगदान के विषय में दुनिया का सर्वप्रथम उदाहरण महिर्षी दधीचि के साथ राजा ययाति एवं शुक्राचार्य की पुत्री के विवाह की कथा के रूप में मिलता है। दुनिया के पहले नेत्र दान का उदाहरण विष्णु भगवान के नेत्र दान की कथा से देखने को मिलता है। नेत्र, अंग एवं देहदान से भावी पीढ़ियों का ही भला होगा, इसलिए सभी को इस प्रकार के दान का संकल्प लेना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जिस सनातन संस्कृति के पूर्वज इस प्रकार के मानवता हित के दान के जन्मदाता रहे उन्हीं की वर्तमान पीढ़ी आज दुनिया के कई देशों से पीछे है। आधुनिक चिकित्सा जगत में बिना मृत शरीर के अध्यन कर पाना संभव नहीं है और मृत शरीर बिना सामाजिक सहयोग के मिल पाना असंभव है।

मानवता हित में दधीचि देहदान समिति जिस प्रकार से आधुनिक चिकित्सा जगत की कंडेवर (शव) की कमी को पूरा कर रही है, वह प्रशंसनीय है। उन्होंने दधीचि देहदान समिति के कार्यों को बढ़ाने पर जोर दिया।

Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now