उत्पाद देश-विदेश में किए जा रहे पसंद
दोनों टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में उत्पादन के बाद कटा-फटा, डिफेक्टिव वेस्ट, कतरनों जैसे वेस्ट मैटेरियल को री-साइकिल कर खिलौने, बैग्स, लैपटॉप कवर, फाइल फोल्डर, की-चैन, आसन, बैडशीट व कुशन कवर, डोरमेट, कैंडल्स, स्टेशनरी, फैंसी पाउच, पेंसिल बॉक्स, जूट के बैग्स समेत अन्य कलाकृतियां तैयार कर रही हैं। इनकी डिमांड महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, बेंगलूरु समेत विभिन्न स्थानों तक है। हाल ही तैयार किए गए कलात्मक की-चेन के लिए जापान से भी डिमांड आई है। फड, मधुबनी, वारली व गोंड आर्ट जैसी कलाओं का भी अपने उत्पादों में उपयोग कर रही हैं।
महिलाओं को रोजगार
प्रियंका बताती हैं कि स्वयं सहायता समूह के माध्यम से उनसे 150 के करीब महिलाएं जुड़ी हुई हैं। इन महिलाओं को प्रशिक्षण देकर सहयोग लिया जाता है। इससे इनको भी कार्य के अनुरूप आर्थिक रूप से संबल मिल जाता है।
इसलिए चुना कार्य
वह बताती हैं कि बचपन में मां को सिलाई करते देखती थी तो कपड़ों में कुछ नया करने की रुचि जगी। टेक्सटाइल व डिजाइन में पॉलिटेक्निक कॉलेज से डिप्लोमा किया। तीनों साल टॉपर रही। फिर बूटिक का काम शुरू कर दिया। तीन वर्ष पहले यह कार्य शुरू किया। काफी संघर्ष करना पड़ा। महिलाएं काफी मुश्किल से आती थी। वह तीन उद्देश्य स्वच्छता व पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तीकरण व लुप्त होती हस्त कलाओं को लेकर कार्य कर रही हैं। अनुपयोगी वस्तुओं को किस तरह से उपयोगी बना सकते हैं, आज के दौर में यह सोचना बेहद जरूरी है। जिस तरह से महिलाओं को जोड़कर ये महिलाएं कार्य कर रही हैं, यह महिला सशक्तीकरण के साथ पर्यावरण हितैषी भी है। इंडस्ट्रीयल वेस्ट मैटेरियल को री-साइकिल कर उपयोगी बनाना सराहनीय है। जब एक महिला स्वरोजगार शुरू करती है तो अन्य के लिए रास्ता बनाती है। सरकार भी लोकल फॉर वोकल को बढ़ावा दे रही है।
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