जयपुर न्यूज़ डेस्क !!! राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली के तत्वावधान में साल 2024 की तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन हुआ। राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देशन में शनिवार को राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ के नए भवन में जस्टिस अनूप कुमार ढंढ ने लोक अदालत का शुभारंभ किया।
राज्यभर की अदालतों में 514 खंडपीठों का गठनउच्च न्यायालय जोधपुर मुख्यपीठ, जयपुर खंडपीठ एवं राज्य की अधीनस्थ अदालतों में 514 खंडपीठों का गठन किया गया है। जिनमें से 4 लाख 29 हजार 28 मामले न्यायालयों में लंबित हैं तथा 5 लाख 67 हजार 025 प्री-लिटिगेशन, कुल 9 लाख 96 हजार 53 मामले सुनवाई हेतु चिन्हित किये गये हैं। लोक अदालत का उद्देश्य आम आदमी को सस्ता, आसान और त्वरित न्याय दिलाना है। उच्च न्यायालय जयपुर पीठ के सभी न्यायाधीश, सेवानिवृत्त न्यायाधीश, रजिस्ट्री अधिकारी, उच्च न्यायालय बार एसो. रालसा के पदाधिकारी व अधिवक्ता मौजूद थे.
जस्टिस अनुप ने कहा- लोक अदालत का मतलब है लोगों की अदालतइस मौके पर जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा- राष्ट्रीय लोक अदालत का मतलब जनता की अदालत है। जिसका उद्देश्य यह है कि मुकदमों का निपटारा बिना कोर्ट गए राजीनामा से किया जा सके। आज हमने पूरे राज्य में 514 बेंच गठित की हैं और लगभग 50 लाख मामले भेजे हैं। मुख्यपीठ जोधपुर में 03 एवं जयपुर खंडपीठ में 04 खंडपीठों का गठन किया गया है, जिनमें लगभग 5000 प्रकरण रैफर किये गये हैं।
राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रहलाद शर्मा ने कहा कि देश में जो कानून और कानून की प्रक्रिया बनती है वह आम जनता के हित में बनाई जाती है, शर्त सिर्फ इतनी है कि उन प्रक्रियाओं को लागू करने वाले लोग अच्छे हों और सभी इसमें एक साथ भाग लें. राष्ट्रीय लोक अदालत कई वर्षों से लगातार आयोजित की जा रही है, जिसमें लाखों मामलों का निपटारा भी किया गया है। लेकिन राज्य के विधिक सेवा प्राधिकरण, जिसका दायित्व वास्तविक मामलों का निपटारा करना है, में अधिवक्ताओं की सक्रिय भागीदारी के अभाव के कारण जनता को वह न्याय नहीं मिल पा रहा है, जो मिलना चाहिए। हमने अधिवक्ताओं की सक्रिय भागीदारी के लिए उच्च न्यायालय प्रशासन और राज्य सरकार स्तर पर प्रयास किये। उन्होंने कहा कि यदि अधिवक्ताओं की सक्रिय भागीदारी से राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जाये तो आम आदमी को अच्छा न्याय मिलेगा। किसी भी राष्ट्रीय लोक अदालत को तब तक वास्तविक सफलता नहीं माना जा सकता जब तक इसमें अधिवक्ताओं की सक्रिय भागीदारी न हो।
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