सवाईमाधोपुर न्यूज़ डेस्क, बाघों की अठखेलियों के लिए विश्व पटल पर चर्चित प्रदेश के सबसे बड़े रणथंभौर टाइगर रिजर्व के कई इलाकों में आज भी अवैध पत्थर खनन जारी है. जिसके चलते रणथंभौर के बाघों पर खतरा मंडरा रहा है. इस इलाके में चल रहे अवैध खनन को रोकने में वन विभाग नाकाम साबित हो रहा है. रणथंभौर में सर्विलांस सिस्टम लगे होने के बावजूद वन विभाग अवैध खनन को नहीं रोक पा रहा है. ऐसे में रणथंभौर में बाघों की सुरक्षा को खतरा बढ़ता जा रहा है.
अवैध खनन से बाघों पर छाया जान का खतरा
रणथंभौर टाइगर रिजर्व में अवैध पत्थर खनन लगातार बढ़ता जा रहा है. उलियाना, नैपुर, तलावड़ा, फरिया, बहरावंडा समेत कई इलाके ऐसे हैं जहां अवैध खनन अभी भी जोरों पर चल रहा है, जिससे रणथंभौर के बाघों पर लगातार खतरा मंडरा रहा है. जानकारों के मुताबिक रणथंभौर के 30 फीसदी बाघ खनन वाले इलाकों में विचरण करते हैं, इन इलाकों में पिछले सालों के मुकाबले अवैध खनन तीन गुना बढ़ गया है, लेकिन वन विभाग इस अवैध खनन पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रहा है.अवैध खनन की जानकारी होने के बाद भी वन विभाग और स्थानीय जिला और पुलिस प्रशासन ने चुप्पी साध रखी है. हालांकि वन विभाग कभी-कभार अवैध पत्थरों से भरी ट्रैक्टर ट्रॉली जब्त कर लेता है और उनके खिलाफ कार्रवाई कर अपना पीछा छुड़ा लेता है. इससे खनन माफियाओं का मनोबल बढ़ता जा रहा है, जिससे यहां के बाघों की जान खतरे में पड़ रही है.
टेरिटरी छोड़ बाहर जाने की कोशिश कर रहे है बाघ
बढ़ते अवैध खनन के कारण बाघों को मौज-मस्ती के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पा रही है. उनके प्राकृतिक आवास न केवल नष्ट हो रहे हैं बल्कि बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप के कारण वे रणथंभौर से बाहर जाने की कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में रणथंभौर के वन क्षेत्र में बाघ टी-86 का शव मिला था. एक ग्रामीण की मौत के बाद ग्रामीणों ने उसे मार डाला था, बाघ टी-86 के घावों पर खनन में इस्तेमाल होने वाले बारूद के निशान भी पाए गए थे. लेकिन अब तक उसकी मौत का रहस्य अनसुलझा ही बना हुआ है.
वन विभाग कार्रवाई में साबित हो रहे नाकामयाब
अवैध खनन को रोकने में रणथंभौर के वन विभाग वन अधिकारी नाकामयाब साबित हो रहे है.वह खनन वाले इलाकों में जाते ही नहीं है ,जिसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जिस इलाके में यह अवैध खनन हो रहा होता है उन इलाकों का समूचा गांव इसमें शामिल होता है,जब कभी वन विभाग कार्रवाई करने की सोचता भी है तो पूरा गांव वनकर्मियों के विरोध में उतर जाता है जिससे उन्हें पीछे हटना पड़ता है.इसलिए ज्यदातर मामले वन विभाग और पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन कार्रवाई करने से बचते है.
यहां अवैध खनन ,अवैध कटाई ,अवैध चराई ओर शिकार रोकने के लिए लाखों की लागत से सर्विलांस सिस्टम लगाया गया लेकिन इनमें से 12 टावरों में से 11 थर्मल कैमरे खराब पड़े हुए है.वन अधिकारियों के जरिए जरिए इन थर्मल कैमरों को ठीक करने के लिए डिओआईटी को कई बार लैटर लिखे गए पर कोई सुनवाई नहीं हुई ,जिसके चलते रणथंभौर में लगे थर्मल कैमरे चीन से आयात हुए है.इनके कलपुर्जे मंगाने ओर ठीक कराने में कई तरह की परेशानियां आ रही है.इस वजह से आज तक यह ठीक नहीं हो पाये ,ऐसे में रणथंभौर में बाघों की सुरक्षा भगवान भरोसे ही है.
बढ़ने लगा है मानवीय दखल
बढ़ते मानवीय दखल के कारण बाघ औऱ इंसानों के बीच संघर्ष जैसी घटनाओं में भी इजाफा होते देखा गया है.क्योंकि करीब 30 फीसदी बाघों का मूवमेंट रहता है.इसी वजह से अवैध खनन को रोकने के लिए कुछ समय पहले वन विभाग ने स्पेशल टास्क फोर्स मांगी थी लेकिन अब तक वो भी नहीं मिली.इलाके के आस पास बन रहे होटल्स और आवासों के चलते पत्थरों की डिमांड हमेशा बनी रहती है ,ऐसे में रणथंभौर में अवैध पत्थर खनन का कारोबार भी धड़ल्ले से जारी है, क्योंकी यहां वैध लीज करीब 30 से 40 किलोमीटर दूर है ,जहां से पत्थर मंगाना महंगा पड़ता है ,जिसका फायदा खनन माफिया उठा रहे है. और वन विभाग कुछ नहीं कर पा रहा है.यह अवैध खनन तब तक बंद नहीं हो सकता जब तक कि कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती.
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