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Jodhpur की मथानिया मिर्च के जीआई टैग के लिए कवायद किसानों से ली जानकारी

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जोधपुर न्यूज़ डेस्क, देश-दुनिया में पसंद की जाने वाली जोधपुर की मथानिया मिर्च के जीआई टैग के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों से महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई। इस मिर्च के जीआई टैग के लिए लंबे समय से प्रयास जारी है। कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के दल ने तिंवरी, मथानिया क्षेत्र में किसानों के खेतों का भ्रमण किया और किसानों से बात की।जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने कहा- मारवाड़ की विशेष आबोहवा में पैदा होने वाली इस मिर्च की खास मांग रहती है। मारवाड़ की प्रतिष्ठा व कृषक हित में मथानिया मिर्च को जीआई टैग मिलना आवश्यक है। ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर ने अब इसके जीआई टैगिंग प्रोजेक्ट पर काम शुरु किया है। जीआई टैगिंग प्रोजेक्ट के मुख्य वैज्ञानिक सदस्यों में डॉ.मिथिलेश कुमार, डॉ. राहुल भारद्वाज, डॉ. हरदयाल चौधरी, डॉ. दिनेश कुमार, डॉ अंकुर त्रिपाठी व डॉ दान सिंह जाखड़ शामिल हैं।

वैज्ञानिकों का विशेष दल गठित

प्रोजेक्ट के समन्वयक व वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम एम सुंदरिया ने बताया- इस प्रोजेक्ट के लिए कृषि विश्वविद्यालय में 10 वरिष्ठ वैज्ञानिकों का विशेष दल गठित किया गया है। वैज्ञानिकों की टीम ने 18 नवंबर को मथानिया क्षेत्र के आस-पास के खेतों में मिर्च उत्पादक किसानों से मिलकर मिर्च की ऐतिहासिक जानकारी और अन्य जानकारी जुटाई है। टीम ने मिर्च के सैंपल लिए और अब विश्वविद्यालय की लैब में इसके रंग, स्वाद, तीखापन सहित विभिन्न प्रारूपों पर अध्ययन किया जा रहा है। इसके बाद जल्द ही प्रकिया अनुसार जीआई टैगिंग के लिए आवेदन किया जाएगा।

जीआई टैगिंग कई मायनों में महत्वपूर्ण

प्रोजेक्ट के सह समन्वयक डॉ. चंदन राय बताते हैं कि मथानिया की मिर्च को जीआई टैग दिलवाना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इस मिर्च को जीआई टैग मिलने से न केवल इस मिर्च की मांग विश्व स्तर पर बढ़ेगी बल्कि क्षेत्र के किसानों को भी व्यापारिक रूप से विशेष फायदा होगा।जीआई टैगिंग से उत्पाद को विशेष कानूनी सुरक्षा मिलती है। उत्पाद की बौद्धिक संपदा की रक्षा होती है साथ ही उत्पाद के नाम का दुरुपयोग भी नहीं किया जा सकता। जीआई टैगिंग से प्रमाणिकता सहित उत्पाद को बाजार में उतारने में मदद मिलती है। आय और विश्व स्तर पर क्षेत्र की प्रतिष्ठा में भी बढ़ोतरी होती है।

क्या है जीआई टैगिंग

उत्पाद के नाम को 'भौगोलिक संकेत' (जीआई) दिया जा सकता है। यदि उनका उस स्थान से कोई विशिष्ट संबंध हो, जहां वे बने हैं या जहां पर पैदा किए जाते हैं । भौगोलिक संकेत, किसी उत्पाद की पहचान किसी खास जगह पर पैदा होने से करता है। यह किसी उत्पाद की विशेषताओं को प्रमाणिकता देता है, जो उसके भौगोलिक मूल के कारण होते हैं। उदाहरण के लिए अल्फ़ांसो आम, पश्मीना शॉल, नागपुर संतरा, बीकानेरी भुजिया जीआई टैग युक्त है।

मारवाड़ और कृषक हित में जीआई टैग

कृषि विश्वविद्यालय कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने कहा- मारवाड़ क्षेत्र की मथानिया मिर्च को जीआई टैग मिलना अत्यंत आवश्यक है। कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर में इस प्रोजेक्ट के लिए वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम गठित की गई है। वैज्ञानिक त्वरित गति से काम कर रहे हैं। मथानिया क्षेत्र व कृषक हित में जल्द ही इसके सुखद परिणाम प्राप्त होंगे।

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