उदयपुर न्यूज़ डेस्क, राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र और सिसोदिया शासकों की राजधानी रहा उदयपुर शहर अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ बहुत ही शानदार और राजस्थान के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक है। उदयपुर के चारों तरफ फैली हुई पर्वतमाला इस शहर को सदियों तक बाहरी आक्रमणों से बचाती रही है। अरावली पर्वतमाला इस शहर को प्राकृतिक रूप से समृद्ध और खूबसूरत भी बनाती है।
पूरे विश्व में उदयपुर एक बहुत ही प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है और इस शहर के आसपास मौजूद कृत्रिम और प्राकृतिक झीलों और तालाबों की वजह से इस शहर को झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन उदयपुर सिर्फ यहाँ स्थित झीलों और प्राकृतिक वातावरण की वजह से ही प्रसिद्ध नहीं है।
यहाँ के सिसोदिया राजपुत वंश के शासकों और यहाँ सदियों से रहने वाले भील, मीणा, पटेल और राजपूत जाती के लोगो द्वारा मेवाड़ की रक्षा हेतु दिए गए बलिदानों की वजह से भी यह शहर बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। महाराणा उदयसिंह द्वितीय द्वारा 1559 में स्थापित उदयपुर शहर के सभी शासकों का अधिकतम समय मुगल आक्रमणकारियों से मेवाड़ की रक्षा हेतु युद्ध करने में ही बिता है।
उदयपुर के सभी शासकों में सबसे प्रमुख नाम महाराणा प्रताप का नाम लिया जाता है। उदयपुर के अधिकांश महलों और भवनों के निर्माण में कई वर्ष लग गए लेकिन कभी भी एक बार में निर्माण कार्य किसी भी शासक द्वारा पूरा नहीं करवाया गया। मुगलकाल में उदयपुर के राजा अपना अधिकांश समय युद्ध में व्यस्त होने की वजह से उदयपुर में कभी भी निर्माण कार्य एक साथ नहीं चल पाये, उदयपुर में जैसे-जैसे शासक आते गए वैसे-वैसे निर्माण कार्य चलता रहा।
उदयपुर का सिटी पैलेस जिसके निर्माण की नीवं खुद महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने रखी थी लेकिन सिटी पैलेस निर्माण कार्य को पूरा होने में भी लगभग 400 वर्ष लग गए। लेकिन आज सिटी पैलेस भारत और राजस्थान के सबसे बड़े महलों में से एक है और पर्यटकों द्वारा सबसे ज्यादा देखे जाने वाले महलों में से भी एक है। तो चलिये आज आप को उदयपुर के सबसे प्रमुख पर्यटक स्थल सिटी पैलेस की पूरी जानकारी उपलब्ध करवाई जाये।
सिटी पैलेस उदयपुर का इतिहास
उदयपुर में स्थित सिटी पैलेस राजस्थान के सबसे बड़े महलों में से एक है, यह महल जितना बड़ा है उससे भी कहीँ ज्यादा समय इस महल के निर्माण कार्य में लगा है। सिटी पैलेस के आकार का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है इस महल की लंबाई 244 मीटर है और चौड़ाई 30 मीटर के आसपास है।
1559 में महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने सिटी पैलेस के निर्माण की नीवं रखी। महाराणा उदयसिंह के समय सिटी पैलेस को “राय आंगन” के नाम से जाना जाता था। सिटी पैलेस के निर्माण और उदयपुर के इतिहास को समझने के लिए हमें उदयपुर से 30 किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर नागदा के इतिहास को जानना पड़ेगा।
बप्पा रावल द्वारा मेवाड़ की स्थापना से पहले लगभग छठवीं शताब्दी के आसपास नागदा पर गुहिल वंश के शासक राज किया करते थे। कुछ समय के बाद बप्पा रावल ने भी नागदा को मेवाड़ की सबसे पहली राजधानी घोषित किया।
लगभग 800 वर्षों के एक लम्बे अंतराल के बाद महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने लगातार मुगलों के आक्रमणों से परेशान हो कर नागदा के पास आयड़ नदी के किनारे अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ और प्राकृतिक रूप से सुरक्षित इस क्षेत्र में उदयपुर की स्थापना की। कुछ इतिहासकारों के अनुसार सिटी पैलेस के निर्माण से पहले महाराणा उदयसिंह ने 1553 में इस स्थान के पास एक ऊंची चोटी पर मोतीमहल का निर्माण करवाया।
मोतीमहल के निर्माण के कुछ वर्षों बाद उन्होंने 1559 में सिटी पैलेस का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया गया। महाराणा उदयसिंह के बाद उनके पुत्र महाराणा प्रताप के पास मेवाड़ की सत्ता हाथ में आई। महाराणा प्रताप के जीवन का अधिकांश समय मुगलों के हाथों मेवाड़ स्वंतंत्र करवाने में बीत गया था।
अपनी मृत्यु से पहले महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के अधिकांश भू-भाग पर वापस अधिकार कर लिया था। महाराणा उदयसिंह द्वितीय के बाद उदयपुर में जितने भी सिसोदिया वंश के राजा आये उन्होंने अपने-अपने तरीके से सिटी पैलेस में निर्माण कार्य जारी रखे। समय-समय पर चलते रहे निर्माण कार्यों की वजह से आज सिटी पैलेस में कुल 11 के आसपास छोटे और बड़े महल बने हुए है।
सिसोदिया वंश के राजाओं की पीढियां आती रही और पीढियां जाती रही और सिटी पैलेस का निर्माण कार्य भी चलता रहा। इस प्रकार कुल सिसोदिया राजपूत वंश की 22 पीढ़ियों के सहयोग से सिटी पैलेस के निर्माण को पूरा करने में 400 वर्ष का समय लग गया।
सिटी पैलेस उदयपुर की वास्तुकला
हिन्दू और राजपूत वास्तुशैली में निर्मित उदयपुर का सिटी पैलेस भारत के सबसे सुंदर महलों में से एक है। सिटी पैलेस के निर्माण कार्य में लगभग 400 वर्षों का एक बहुत ही लंबा समय लगने के कारण इस महल में अलग-अलग समय से जूड़ी हुई वास्तुकला देखने को मिलती है। सिटी पैलेस के निर्माण में मुख्य रूप से संगमरमर और ग्रेनाइट का उपयोग किया गया है। महल के अंदर निर्मित कक्षों में काँच के टुकड़ो का बहुत सुंदर तरीके से उपयोग किया गया है।
इसके अलावा महल के अंदरूनी हिस्सों को खूबसूरत बनाने के लिये दीवारों पर बहुत ही सुंदर भित्ति चित्र उकेरे गए है। महल में कई स्थानों को खूबसूरत दिखाने के लिए चांदी का भी उपयोग किया गया है। उस समय सिटी पैलेस में आयोजित किया जाने वाले कार्यक्रमो को देखने के लिए में महल से बाहर की तरफ कई बालकनी भी बनाई गई है।
इन बालकनी से आज भी उदयपुर शहर के बहुत विहंगम दृश्य दिखाई देते है। सुरक्षा की दृष्टि से और दुश्मनों के आक्रमणों से बचने के लिए महल के गलियारों में बहुत सारी भूल-भुलैया भी बनी हुई है। एक बहुत लंबे समय तक चले निर्माण कार्य की वजह से सिटी पैलेस में कुल 11 छोटे और बड़े महल बने हुए है।
वर्तमान में सिटी पैलेस के कुछ हिस्से पर्यटकों के लिए खुले हुए है और कुछ हिस्सों को होटल में तब्दील कर दिया गया है। सिसोदिया राजपरिवार के महाराणा अरविन्द सिंह जी मेवाड़ और उनका परिवार आज भी सिटी पैलेस में ही निवास करते है।
सिटी पैलेस उदयपुर की सम्पूर्ण ट्रेवल गाइड
सिटी पैलेस उदयपुर का प्रवेश द्वार
वर्तमान में सभी पर्यटक बड़ी पोल से सिटी पैलेस के परिसर में प्रवेश करते है। बड़ी पोल से प्रवेश करने के बाद पर्यटकों के सामने सिटी पैलेस का सबसे पहला प्रवेश द्वार त्रिपोलिया गेट आता है। त्रिपोलिया गेट के ऊपर सात छतरियां बनी हुई है।त्रिपोलिया गेट से आगे चलने पर जो सबसे पहला स्थान आता है उस जगह पर राजाओं को तौल कर उनके वजह के बराबर सोना और चांदी मेवाड़ की आम जनता में बांटा जाता था।
त्रिपोलिया गेट के सामने ही हाथियों के बीच में युद्ध करवाया जाता था। जिस स्थान से राजा हाथियों का युद्ध देखते थे उसे अगद कहा जाता था। कुछ आगे चलने पर तोरण पोल आता है, पोल के आसपास संगमरमर की बहुत सुंदर मेहराब बनी हुई है।
अमर विलास सिटी पैलेस उदयपुर
सिटी पैलेस में स्थित अमर विलास का निर्माण महाराणा अमर सिंह ने 1699 में करवाया था। अमर विलास सिटी पैलेस में बना हुआ एक बहुत सुंदर उद्यान है। इस उद्यान को सुंदर बनाने के लिए इसमें पेड़-पौधों के अलावा संगमरमर से बनी हुई मूर्तियां और फव्वारे लगाए गए थे। चौकोर इमारतों के बीच में स्थित अमर विलास का उपयोग राजा और उनके परिवार के लोग अपने आराम का समय व्यतीत करने के लिये किया करते थे।
बड़ी महल सिटी पैलेस उदयपुर
महाराणा अमर सिंह ने 1699 में अमर विलास के साथ-साथ बड़ी महल का निर्माण भी करवाया था। बड़ी महल 104 संगमरमर के नक्काशीदार खम्बों से बना हुआ एक बेहद खूबसूरत महल है। बड़ी महल की दीवारों और छत पर जिस प्रकार स्थानीय कारीगरों द्वारा संगमरमर के पत्थर की टाइल्स लगाई गई है, वो यकायक ही पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम है।
बड़ी महल के निर्माण के बाद से ही इसका उपयोग वार्षिक त्योहारों जैसे होली, दीवाली, दशहरा जैसे बड़े त्योहार मनाने के लिए किया जाता था। इस अलावा राजपरिवार से जुड़े हुए उत्सवों का आयोजन भी बड़ी महल में किया जाता था। बड़ी महल सिटी पैलेस में ऊंचाई पर बना हुआ है।
सिटी पैलेस में ऊँचाई पर स्थित होने के बावजूद भी बड़ी महल में बेहद छायादार पौधे लगे हुए है और इसी वजह से बड़ी महल को वर्तमान में गार्डन पैलेस के नाम से भी जाना जाता है। पिछोला झील के सबसे शानदार और खूबसूरत दृश्य बड़ी महल से ही दिखाई देते है।
फतेह प्रकाश पैलेस सिटी पैलेस उदयपुर
फतेह प्रकाश पैलेस, सिटी पैलेस में निर्मित सबसे नई इमारत है। फतेह प्रकाश पैलेस का निर्माण 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में महाराणा फतेह प्रकाश ने करवाया था। फतेह प्रकाश पैलेस वर्तमान में एक पांच सितारा होटल में बदल दिया गया है और इस होटल पर मालिकाना अधिकार आज भी राजपरिवार के पास ही है।
तथा इस होटल का संचालन ताज ग्रुप ऑफ होटल्स के द्वारा किया जाता है। देश विदेश के बहुत सारे भव्य कार्यक्रम और बड़ी-बड़ी शादियाँ इस होटल में आयोजित होती रहती है। फतेह प्रकाश होटल से पिछोला झील के बहुत ही सुन्दर दृश्य दिखाई देते है, शाम के वक़्त फतेहप्रकाश होटल से सूर्यास्त देखना एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है।
फतेह प्रकाश होटल के अंदर लगे हुए अधिकतम सोफा, कुर्सी, कालीन, क्रिस्टल, हथियार, कलाकृतियां और चित्रों जैसी बहुत सारी अमूल्य वस्तुएँ महाराणा सज्जन सिंह के शासनकाल 1877 के समय मंगवाई गई थी।
दरबार हॉल सिटी पैलेस उदयपुर
दरबार हॉल का निर्माण भी फतेह प्रकाश पैलेस के साथ 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था। 1909 में तात्कालीन भारत के वॉयसराय लार्ड मिंटो ने दरबार हॉल का निर्माण शुरू करने के लिए आधारशिला रखी थी। शुरुआत में दरबार हॉल को मिंटो हॉल के नाम से पुकारा जाता था। दरबार हॉल में मेवाड़ के लगभग सभी राजाओं के बहुत ही शानदार विशाल चित्र बने हुए है इन सब के अलावा महाराणा प्रताप और चेतक से जुड़े हुए हथियारों को भी प्रदर्शित किया गया है।
दरबार हॉल का उपयोग उस समय होने वाली विशेष बैठकों और राजसी कार्यक्रम के लिए किया जाता था। इस हॉल में लगे हुए झूमर किसी भी महल में लगे हुए भारत के सबसे बड़े झूमर में से एक माने जाते है। दरबार हॉल में स्थित क्रिस्टल गैलरी दुनिया की सबसे बड़ी क्रिस्टल गैलरी में से एक है। हॉल से पिछोला झील में स्थित जगमंदिर पैलेस, लेक पैलेस के अलावा सज्जनगढ़ पैलेस के विहंगम दृश्य दिखाई देते है। वर्तमान में दरबार हॉल में संगीत संध्या, शादी समारोह, रात्रिभोज और विश्वस्तरीय कॉन्फ्रेंस आयोजित की जाती है।
भीम विलास सिटी पैलेस उदयपुर
सिटी पैलेस में स्थित भीम विलास को एक बहुत सुंदर आर्ट गैलरी कहा जा सकता है। भीम विलास में भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी के बहुत सुंदर भित्ति चित्र दीवारों पर उकेरे हुये है। भीम विलास चित्रकारों ने कुछ दरवाजे तो इस प्रकार बनाये है जिनके नजदीक जाए बिना पर्यटक असली और नकली दरवाजे में फ़र्क भी नहीं कर सकता।
चिनि चित्रशाला सिटी पैलेस उदयपुर
चिनि चित्रशाला भी एक सुंदर आर्ट गैलरी है इस चित्रशाला को डच और चीनी टाइल्स का उपयोग करके बहुत ही व्यस्थित तरीके से सुसज्जित किया गया है।
छोटी चित्रशाला सिटी पैलेस उदयपुर
छोटी चित्रशाला में बनी हुई मोर की सुन्दर आकृतियां पर्यटकों को ध्यान आकर्षित करती है उसके अलावा इस चित्रशाला में 19 शताब्दी और उसके पहले के बने हुए चित्रों का विशाल संग्रह देखने को मिलता है।
कृष्ण विलास सिटी पैलेस उदयपुर
कृष्ण विलास में राजपरिवार से जुड़े चित्रों का संग्रह पर्यटकों को देखने के लिए मिलता है। इन चित्रों में राजपरिवार के लोगों की जीवन शैली, रहन सहन, खेल-कूद और उनके द्वारा मनाये जाने वाले त्यौहार आदि का विस्तृत वर्णन चित्रों के द्वारा देखने को मिलता है।
माणक महल सिटी पैलेस उदयपुर
माणक महल राजाओं के लिए एक बैठक कक्ष के रूप में उपयोग किया जाता था। मंत्रियों से निजी विचार-विमर्श और औपचारिक मेहमानों से मिलने के लिए भी राजा इस कक्ष का उपयोग किया करते थे। माणक महल में राजपरिवार से जुड़े हुए प्रतीक और कुछ शिलालेख भी दीवारों पर लगे हुए है। ऐसा माना जाता है की राजा भोजन ग्रहण करने से पहले अपने ईष्ट देवता की प्रार्थना इसी कक्ष में किया करते थे। माणक महल में एक स्वागत कक्ष बना हुआ है। महल के अन्दर भगवान सूर्य की एक प्रतिमा भी लगी हुई है।
मोर चौक सिटी पैलेस उदयपुर
सिटी पैलेस के अंदरूनी भाग में स्थित मोर चौक की दीवार पर 5000 काँच के टुकड़ों का उपयोग करके तीन बहुत ही शानदार मोर बनाये गए है। महल में बने हुए इन तीन काँच के मोर की वजह से महल के इस भाग को मोर चौक के नाम से जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है की काँच से बने हुए यह तीन मोर तीन प्रमुख मौसम सर्दी, गर्मी और बारिश का प्रतिनिधित्व करते है। मोर चौक के ऊपर वाले हिस्से में एक बालकनी भी बनी हुई है यह बालकनी एक समय एक छोटे अंदरूनी न्यायालय के रूप मे उपयोग में ली जाती थी।
रंग भवन सिटी पैलेस उदयपुर
रंग भवन एक समय मेवाड़ के राजपरिवार के कोषागार के रूप में उपयोग लिया जाता था। वर्तमान में रंग भवन के अंदर भगवान शिव, भगवान श्रीकृष्ण और मीरा बाई के मंदिर बने हुए है।
शीश महल सिटी पैलेस उदयपुर
महाराणा प्रताप ने 17वीं शताब्दी की शुरुआत में सिटी पैलेस शीशमहल का निर्माण अपनी महारानी अजबदे पँवार को प्रसन्न करने के लिए करवाया। सिटी पैलेस में स्थित शीशमहल को दर्पणमहल के नाम से भी जाना जाता है।
सिटी पैलेस संग्रहालयउदयपुर
लगभग 400 साल पुराने सिटी पैलेस में स्थित सिटी पैलेस संग्रहालय की स्थापना महाराणा भगवत सिंह ने 1969 में की थी। यह संग्रहालय सिटी पैलेस की दो प्रमुख इमारतों जनाना महल और मर्दाना महल में बना हुआ है। सिटी पैलेस संग्रहालय में पर्यटकों के लिए मेवाड़ और सिसोदिया राजपूत वंश के राजाओं से जुड़ी हुई अनेक वस्तुएँ प्रदर्शनी के लिए रखी गई है।
अपनी स्थापना के बाद से ही उदयपुर के सिटी पैलेस संग्रहालय ने पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। विश्व की अनेक संग्रहालयों से जुड़ी हुई संस्थाओं ने सिटी पैलेस संग्रहालय के विशाल ऐतिहासिक संग्रह और संग्रहालय द्वारा अपनी ऐतिहासिक धरोहर के रख-रखाव के लिये अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित किया है। उदयपुर घूमने आने वाले पर्यटकों को सिटी पैलेस में स्थित संग्रहालय के लिए पर्याप्त समय जरूर रखना चाहिए।
जनाना महल, सिटी पैलेस उदयपुर
सिटी पैलेस के भीतरी भाग में स्थित जनाना महल का निर्माण 16वीं शताब्दी में करवाया गया था। जनाना महल का उपयोग राजपरिवार की महिलायें किया करती थी और इसके अलावा राजसी परिवार में होने वाले विवाह भी इसी जनाना महल में आयोजित किये जाते थे। दुनिया के कई प्रसिद्ध हस्तियों की शादियां जनाना महल में आयोजित हो चुकी है। जनाना महल में आयोजित किये जाने वाले किसी भी समारोह के लिए लगभग 500 मेहमानों की मेज़बानी करने की क्षमता है।
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