मंदिर मां की मूर्ति के पास ही लोक देव गुणा जी की मूर्ति हैं जो देवी के भाई माने जाते हैं। ये दोनों प्रतिमाएं इस क्षेत्र की तंत्र साधना के प्राचीन आयामों का दर्शन कराती हैं। देवी के उत्तरी पक्ष में ही फूलबाई माता का स्थान हैं जो अनेक मूर्तियों व अवशेषों के रूप में हैं। फूलबाई माता से भक्तगण कार्य सम्पन्न करने की मिन्नतें करते हैं। इस प्रकार देवी डगेश्वरी का मंदिर सिद्धी अर्जन का शक्तिपीठ माना जा सकता हैं। सम्पूर्ण मंदिर अंदर से चमकदार पाषाणों से परिपूर्ण हैं। इसके बाहरी बरामदे में देवी-देवताओं तथा धार्मिक प्रतीक हैं जिन्हें देखकर भक्ति के भाव मन में जाग्रत होते हैं। प्रागंण में पीपल के छायादार वृक्ष के नीचे अनेक युगों की संस्कृति के शिल्पावशेष प्रतिष्ठापित हैं। ये अवशेष डग की युग युगीन उन्नत संस्कृति के प्रमाण हैं। प्रति नवरात्रा तथा देवीय दिवसों पर गरबा होता है।
यह है इतिहास
यह सम्पूर्ण क्षेत्र तब दुधालिया नगर के शासक चन्द्रसिंह राठौड़ के अधिकार में था। यह क्षेत्र अपने छोटे पुत्र जसवन्त सिंह को जागीर में प्रदान किया था, जिसका विश्वस्त अम्बालाल तब अनूप नगर में रहता था। यहीं से वह खेड़ी गांव के क्षेत्र में स्थित डगेश्वरी माता का पूजन करने गया तो उसे देवी प्रेरणा प्राप्त हुई और उसने उसी के पास माता का एक भव्य मंदिर बनाया। सन् 1147 ई. में डगेश्वरी की मूर्ति उस नए मंदिर में स्थापित की जो वर्तमान डग नगर के मध्य में है। माता के नाम पर यहीं नगर बसाकर उसे डग नाम दिया। उसने यहां क्षेत्र के चारों ओर मिट्टी का परकोटेनुमा दुर्ग व बावड़ी का निर्माण कराया किंतु वर्तमान में यहां बावड़ी दिखाई नहीं देती है।
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