चित्तौड़गढ़ न्यूज़ डेस्क, चित्तौड़गढ़ में लगातार दो सालों से दुर्ग पर लगे सीताफल मौसम की मार झेल रहे हैं। पहले बेमौसम बरसात और बाद में नवंबर में तेज धूप के कारण सीताफल की पैदावार इस बार कम हुई है। इतना ही नहीं, सर्दियों का मेवा कहे जाने वाला यह फल एक महीना भी मार्केट में नहीं टिक पाया। प्रोडक्शन कम होने के कारण ठेका काफी सस्ता गया है। ठेका सस्ता होने के कारण सीताफलों की बाजार रेट सामान्य ही रही है। बड़े साइज के सीताफल कम आए हैं, ऐसे में उनके दाम बढ़ाकर बेचे जा रहे हैं। इस बार दुर्ग के सीताफलों की डिमांड दिल्ली, गुजरात और यूपी तक रही है।
इस बार भी कम में हुआ टेंडर
देश में चित्तौड़गढ़ सीताफल के लिए भी फेमस है। यहां के सीताफल की मांग देश के अलग-अलग क्षेत्रों में होती है। मनोहर माली ने बताया कि दुर्ग पर लगा सर्दियों का मेवा यानी सीताफलों को लेकर पुरातत्व विभाग की ओर से और तहसील की ओर से टेंडर हुए थे। पुरातत्व विभाग की ओर से दो लाख 10 हजार रुपए में टेंडर हुआ था। इसी तरह, तहसील कार्यालय से भी सिर्फ 60 हजार रुपए का टेंडर हुआ था। दोनों ही टेंडर किशन सालवी को मिला है।
एक महीने का होता है सीजन
13 किलोमीटर के एरिया में फैले चित्तौड़गढ़ फोर्ट पर सदियों से सीताफल की प्राकृतिक तरीके से खेती हो रही है। मॉन्यूमेंट्स, बस्ती और सड़कों की जगह को छोड़ दिया जाए तो लगभग 9 से 10 किलोमीटर के क्षेत्र में सीताफल के पेड़ लगे हैं। दुर्ग पर सीताफल के अनगिनत पेड़ हैं। जुलाई-अगस्त से ही इन पेड़ों में फल आने शुरू हो जाते हैं और दीपावली के बाद बिकने भी शुरू हो जाते हैं। इस फल का सिर्फ एक महीने का सीजन होता है। दुर्ग के बाहर गलियों और रोड साइड पर जो पेड़ होते हैं, वह तहसील के राजस्व रिकॉर्ड में आते हैं जबकि अंदर बाड़ों में लगे पेड़ों के फल पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत आते हैं। इसके अलावा कुछ बाड़े ऐसे हैं जो रिकॉर्ड में तो पुरातत्व विभाग के हैं, लेकिन उन पर अतिक्रमण किया जा चुका और मुआवजा भी वसूला जा चुका है। ऐसे में वहां के सीताफल उनके प्राइवेट खातेदारी में ही माने जा रहे हैं।
खंड वर्षा और गर्मी ने बिगाड़ा सीताफल का मार्केट
मनोहर माली ने बताया कि इस साल भी पिछली साल की तरह सीताफल मौसम की मार झेल रहे हैं। पिछले साल कम बरसात हुई थी। इस साल खंड वर्षा होने के कारण पेड़ों पर लगे फूल झड़ गए। माली ने बताया कि वैसे तो अक्टूबर के अंतिम हफ्ते से ही हल्की ठंड पड़ने लग जाती है। नवंबर में ठंड थोड़ी बढ़ जाती है, लेकिन इस साल नवंबर के में भी तेज धूप देखने को मिल रही है। ऐसे में सीताफलों को ठंड कम मिली। धूप के कारण फल जल्दी ही पक गए। इसलिए दीपावली के बाद कुछ ही दिनों तक फलों की बिक्री हुई है। हमारे को ना ज्यादा प्रॉफिट हुआ है और ना लॉस। लेकिन मार्केट में एक साथ फलों की बिक्री करने में असुविधा हुई है। साइज भी बहुत बड़े नहीं मिले। नॉर्मल सीताफल जहां 100 से 150 रुपए प्रति किलो में बिका। वहीं, बड़े साइज के सीताफल 200 रुपए किलो तक भी बिक रहा है।
जल्दी ही मार्केट से गायब हुए दुर्ग के सीताफल
सीताफल कम बारिश का पेड़ होता है। ज्यादा पानी से भी नुकसान होता है। ये मौसम ठीक होने से नेचरली पकते हैं तो इनमें मिठास अच्छी होती है। इसे पकाने पर इसकी मिठास कम हो जाती है और अगर पानी ज्यादा हो जाती है तो ये फल फीके हो जाते है। सीताफल पर ओस की गिरती है तो इनके साइज भी बड़ा होता है। इस बार धूप ज्यादा होने के कारण ऐसा नहीं हुआ है। जल्दी पकने के कारण सीताफलों की बिक्री भी जल्दी हो गई। मार्केट में जहां इसके एक महीने का सीजन होता था। वहीं यह 15 से 20 दिनों में ही यह मार्केट से गायब हो गया। इस बार इसकी सप्लाई दिल्ली, यूपी और गुजरात तक की गई है। चित्तौड़गढ़ दुर्ग के सीताफलों की काफी डिमांड होने के कारण कई लोगों ने ऑर्डर भी दिया था।
पिछले दो सालों का रिकॉर्ड
मनोहर माली ने बताया कि विभाग और तहसील विभाग के अंतर्गत आने वाले सभी पेड़ों के सीताफलों की नीलामी की जाती है। पिछली बार की बात करें तो साल 2023 में पुरातत्व विभाग की ओर से दो लाख रुपए में टेंडर हुआ था। जबकि तहसील कार्यालय से भी 52 हजार रुपए का टेंडर हुआ था। इसी तरह, साल 2022 में पुरातत्व विभाग की ओर से पांच लाख पांच हजार रुपए में टेंडर हुआ था और तहसील कार्यालय से भी एक लाख 86 हजार 200 रुपए का टेंडर हुआ था।
सामान्य रेट होने के कारण बिक्री हुई अच्छी
मुख्य ठेकेदार अलग-अलग छोटे-छोटे किसानों को ठेका देते हैं, जिसके बाद वह मार्केट में बेचने जाते हैं। इस बार भले ही कम दामों में ठेका छूटा हो लेकिन सामान्य रेट होने के कारण बिक्री अच्छी हुई। यहां नीमच और कुंभलगढ़ के आसपास के व्यापारी भी चित्तौड़गढ़ आकर सीताफल बेचते हैं।
चित्तौड़गढ़ के सीताफल का स्वाद सबसे अलग
राज्य में अलग-अलग जगहों पर सीताफल की पैदावार होती है लेकिन चित्तौड़ दुर्ग के सीताफल का स्वाद सबसे अलग और बेहतरीन माना जाता है। इसके चलते यहां के सीताफलों की मांग देश के अलग-अलग क्षेत्रों में रहती है। यहां सीताफल के पेड़ लगाए नहीं गए बल्कि प्राकृतिक रूप से लगे होने से भी स्वाद विशेष होता है। विशेष बात यह होती है की दुर्ग के सीताफलों को कभी पकाया नहीं जाता, यह डाल में ही पक जाते हैं। इसलिए इनमें मिठास भी बहुत होती है। सीताफल की सीजन सितंबर-अक्टूबर के बीच यहां आने वाले पर्यटक भी इनका स्वाद लेना नहीं भूलते। शहर के गांधीचौक में दुर्ग पर होने वाले सीताफल की रिटेल बिक्री होती आई है।
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