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Jaipur मंदिरों से एकत्र कर रहे धार्मिक सामग्री और खंडित मूर्तियां, सम्मान से विसर्जन

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जयपुर न्यूज़ डेस्क , जयपुर पर्यावरण के संरक्षण के साथ ही आस्था का अपमान होेने से रोकने के लिए शहर के कई स्वयंसेवी संगठनों ने अनूठी मुहिम शुरू की है। इसके तहत इन संगठन-संस्थाओं की ओर से हर सप्ताह धार्मिक-सार्वजनिक क्षेत्रों से धार्मिक सामग्री सहित खंडित मूर्तियां एकत्र की जा रही हैं। साथ ही विधि-विधान से इन्हें आमेर, गलता व कानोता सहित अन्य जगहों पर सम्मान के साथ विसर्जित किया जा रहा है। साथ ही इन जगहों पर पौधे भी लगाए गए हैं। इस अभियान के प्रति लोगों को भी जागरूक किया जा रहा है।

मानसरोवर निवासी मधु सिंह ने बताया कि महिलाओं की टीम के साथ हर सप्ताह वह मानसरोवर सहित आस-पास के क्षेत्रों के मंदिरों से फूल व माला एकत्र कर रही हैं। इसके अलावा पीपल के पेड़ के नीचे स्थित खंडित प्रतिमाओं, तस्वीरों, पोशाक, नारियल और पूजन सामग्री को एकत्र किया जा रहा है। फूलों से महीने में एक बार खाद तैयार करने के साथ ही लोबान व धूपबत्ती भी बनाई है। इस अभियान से कॉलोनियों की कई अन्य महिलाएं भी जुड़ी हैं।राधे की सेवा चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से झालाना, सीकर रोड, वैशाली नगर व विद्याधर नगर सहित अन्य जगहों पर मंदिरों में प्लास्टिक के कैरेट रखने की शुरुआत की है। अध्यक्ष रामबाबू शर्मा ने बताया कि यहां आने वाले लोग पूजा के बाद इनमें धार्मिक सामग्री डाल रहे हैं। इस पहल से इस सामग्री का उचित तरीके से निस्तारण होगा।

कई बड़े मंदिर भी जुड़े

ताड़केश्वर महादेव मंदिर, झाड़खंड महादेव मंदिर, काले हनुमान जी व रोजगारेश्वर महादेव मंदिर सहित अन्य मंदिरों में भी पूजन व धार्मिक सामग्री को एकत्र कर गोशालाओं में भेजा जा रहा है। मंदिर से जुड़े लोगों से विसर्जन योग्य धार्मिक सामग्री प्लास्टिक के कैरेट में डालने की अपील की है।

गाड़ी के जरिए कर रहे एकत्रित

एक पहल निर्माण संस्था के संस्थापक राकेश राव ने बताया कि दादी का फाटक, वैशाली नगर, मानसरोवर, सांगानेर, परकोटा क्षेत्र व सी-स्कीम सहित अन्य जगहों पर मंदिरों में जगह—जगह पोस्टर भी चिपका रहे हैं। साथ ही गाड़ी के जरिए पूजन सामग्री व इस्तेमाल में आ चुकी धार्मिक तस्वीरें एकत्र की जा रही हैं। उन्होंने बताया कि इस मुहिम से जुड़ने के लिए कई लोगों ने संपर्क किया है। आसपास के मंदिरों के पुजारी हर सोमवार फूल-माला एकत्र करने में सहयोग करते हैं। अब तक 400 के आसपास मंदिरों को जोड़ा जा चुका है। निवारू, बैनाड़ में गड्ढ़े खुदवाकर सामग्री का विसर्जन कर वहां बड़ी संख्या में पौधे भी लगाए गए हैं। इनकी देखभाल की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों को दी है।

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