सीकर न्यूज़ डेस्क, करीब पांच सौ साल पहले अरावली की पहाड़ियों पर बने चामुंडा माता मंदिर में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु शारदीय नवरात्रि में चूने की थाली और पानी का घड़ा लेकर आते हैं और अष्टमी व नवमी को मेला लगता है। पुजारी राकेश कुमार, लक्ष्मण प्रसाद पुत्र चौथमल शर्मा ने बताया कि कस्बे सहित राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, मुंबई समेत कई जगहों से श्रद्धालु अपनी कुलदेवी के दर्शन के लिए शारदीय नवरात्रि में आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करते हैं। नवरात्रि में अष्टमी व नवमी को मेला लगता है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार चामुंडा माता मंदिर 100 ई. से 1600 ई. तक खंडेला गांव के अंत में पहाड़ी की तलहटी में स्थित था। वह मंदिर खंडेश्वर के नाम से जाना जाता है,
जो कई शताब्दी पुराना है, जहां दिव्य शिवलिंग, हनुमान मंदिर, भैरव मंदिर स्थित हैं। वहां माता की मूर्ति विराजमान है। 1600 ई. में देवी मां की पूजा करने वाले पुजारी ने स्वप्न में कहा कि मंदिर के पीछे श्मशान है, जहां से मुझे शवों के जलने की गंध आ रही है, इसलिए मंदिर दूसरी जगह बनाया जाए, जैसा मैं कहूं वैसा करो। सुबह उठकर गांव वालों को इकट्ठा करो और पूजा के बाद हल्दी की गांठ को रुई के फाहे में लपेटकर पश्चिम दिशा की ओर फेंक दो, जहां भी हल्दी की गांठ गिरे, वहां मंदिर बना दो। सुबह पुजारी ने सभी गांव वालों के सामने देवी मां की पूजा की।
इसके बाद उसने हल्दी की गांठ को रुई के फाहे में लपेटा और पश्चिम दिशा की ओर फेंक दिया। गांव वालों को हल्दी की गांठ पश्चिम दिशा में करीब 5 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी के ऊपर मिली। पहाड़ी पर मंदिर बनाने के लिए मिट्टी और पानी की समस्या थी, लेकिन पुजारी ने देवी मां के नाम पर मंदिर बनवा दिया।
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