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Udaipur आवासीय भूमि पर होटल, तत्कालीन अधिकारियों की कार्यशैली पर उठे सवाल

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उदयपुर न्यूज़ डेस्क, उदयपुर  जिस जमीन का यूडीए (तत्कालीन यूआइटी) की ओर से आवासीय भू रूपांतरण कर 90 बी की कार्रवाई की गई हो, वहां जिम्मेदारों की आंखों के सामने किस तरह ‘भ्रष्टाचार’ की इमारत खड़ी हो जाती है इसका उदाहरण हाल ही में एसीबी की ओर से पकड़े गए खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के संभागीय उपभोक्ता संरक्षण अधिकारी जयमल सिंह राठौड़ के मामले में देखने को मिला है। सज्जनगढ़ रोड पर बनी राठौड़ के पारिवारिक स्वामित्व वाली होटल की जमीन की आजाद नगर सोसायटी के रूप में आवासीय प्रयोजनार्थ 90 बी की कार्रवाई की गई थी, लेकिन मामले में मिलीभगत का खेल ऐसा चला कि तमाम विवादों के बावजूद यहां 26 कमरों का होटल खड़ा हो गया। संबंधित भूमि को लेकर विवाद न्यायालय में जाने के बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों ने निर्माण रोकने की जहमत नहीं उठाई।

अब जब राठौड़ के एसीबी के शिकंजे में आए तो अवैध रूप से होटल निर्माण का मामला भी सामने आया है। बताया जा रहा है कि संबंधित जमीन का मामला जब विवादों में आया तो यूडीए की ओर से न्यायालय में भूमि पर अपना मालिकाना हक बताते हुए पैरवी की गई, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब होटल का निर्माण हुआ तब यूडीए के जिम्मेदार आधिकारियों ने आंखों पर पट्टी क्यों बांध ली? जब 90 बी की कार्रवाई के बाद यह भूमि यूडीए के खाते में आ गई थी। इस बीच कतिपय लोगों ने पूर्व के खातेदार की मृत्यु के बाद कागजों से खेल कर दिया। मामला न्यायालय में जाने के बाद यूडीए ने हर बार जमीन अपनी होने का दावा किया। बताया जा रहा है कि बाद में समझौते से मामले का निपटारा हो गया, लेकिन सवाल यह है कि 90 बी की कार्रवाई के बाद यूडीए ने समझौते को कैसे स्वीकार कर लिया। संबंधित भूमि पर होटल निर्माण की स्वीकृति कैसे दे दी गई। बाद में भी कुछ खातेदार न्यायालय में गए तो उनके दावे को दरकिनार कर होटल कैसे बनने दिया गया। अब एसीबी होटल निर्माण के लिए नगर निगम की फायर एनओसी, गेस्ट हाउस के लिए पर्यटन विभाग, रूफ टॉप रेस्टोरेंट के लाइसेंस के लिए खाद्य विभाग व प्रदूषण नियंत्रण मंडल से दी गई एनओसी आदि खंगाल रही है।यह मामला अभी हमारे पास नहीं आया है। आएगा तो दिखवाएंगे।

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