अब जब राठौड़ के एसीबी के शिकंजे में आए तो अवैध रूप से होटल निर्माण का मामला भी सामने आया है। बताया जा रहा है कि संबंधित जमीन का मामला जब विवादों में आया तो यूडीए की ओर से न्यायालय में भूमि पर अपना मालिकाना हक बताते हुए पैरवी की गई, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब होटल का निर्माण हुआ तब यूडीए के जिम्मेदार आधिकारियों ने आंखों पर पट्टी क्यों बांध ली? जब 90 बी की कार्रवाई के बाद यह भूमि यूडीए के खाते में आ गई थी। इस बीच कतिपय लोगों ने पूर्व के खातेदार की मृत्यु के बाद कागजों से खेल कर दिया। मामला न्यायालय में जाने के बाद यूडीए ने हर बार जमीन अपनी होने का दावा किया। बताया जा रहा है कि बाद में समझौते से मामले का निपटारा हो गया, लेकिन सवाल यह है कि 90 बी की कार्रवाई के बाद यूडीए ने समझौते को कैसे स्वीकार कर लिया। संबंधित भूमि पर होटल निर्माण की स्वीकृति कैसे दे दी गई। बाद में भी कुछ खातेदार न्यायालय में गए तो उनके दावे को दरकिनार कर होटल कैसे बनने दिया गया। अब एसीबी होटल निर्माण के लिए नगर निगम की फायर एनओसी, गेस्ट हाउस के लिए पर्यटन विभाग, रूफ टॉप रेस्टोरेंट के लाइसेंस के लिए खाद्य विभाग व प्रदूषण नियंत्रण मंडल से दी गई एनओसी आदि खंगाल रही है।यह मामला अभी हमारे पास नहीं आया है। आएगा तो दिखवाएंगे।
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