एक अक्तूबर को जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 40 सीटों पर वोट डाले जाएंगे.
तीसरे चरण के मतदान से पहले कांग्रेस और बीजेपी दोनों अपना पूरा ज़ोर जम्मू इलाके की सीटों पर लगा रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरे चरण की वोटिंग से पहले जम्मू क्षेत्र में 28 सितंबर को जनसभा को संबोधित किया. पीएम मोदी की जम्मू में ये चौथी चुनावी रैली थी.
दूसरी ओर राहुल गांधी ने भी अभी तक जम्मू और कश्मीर में दो अलग-अलग चुनावी जनसभाएं की हैं. राहुल के जम्मू और कश्मीर चुनावी प्रचार में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल रहे.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंइसके अलावा 28 सितंबर को कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने जम्मू के बिश्नाह में एक चुनावी रैली को संबोधित किया.
इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने 27 सितंबर को एक ही दिन में जम्मू में चार जनसभाओं को संबोधित किया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी जम्मू में चुनावी प्रचार में हिस्सा लिया.
तीसरे चरण में जम्मू, सांबा, कठुआ, उधमपुर की सीटों पर मुख्य मुक़ाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है.
बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने ही जम्मू क्षेत्र में चुनाव प्रचार पर ख़ासा ध्यान दिया है.
आइए जानते हैं कि आख़िर जम्मू क्षेत्र दोनों पार्टियों के लिए इतना अहम क्यों है और विश्लेषक क्या कह रहे हैं?
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क़रीब एक दशक बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. इसमें जम्मू क्षेत्र में 43 विधानसभा सीटें हैं, जबकि कश्मीर घाटी में 47 हैं.
जम्मू क्षेत्र में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ कांग्रेस के गठबंधन का मतलब है कि कांग्रेस पार्टी को जम्मू में अपनी ताक़त दिखानी है जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस को कश्मीर घाटी में अपना दमखम दिखाना है.
लेकिन कांग्रेस के लिए जम्मू में पार्टी को फिर से पुनर्जीवित करना इतना आसान भी नहीं है. बीजेपी इस बार जम्मू-कश्मीर में अपनी सरकार बनाने का दावा कर रही है लेकिन उसके लिए भी जम्मू में अपना दबदबा बरकरार रख पाना ख़ासा मुश्किल होगा.
जम्मू में 28 सितंबर को पीएम मोदी ने अपने चुनावी भाषण में दावा किया कि पहली बार जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है.
बीजेपी जम्मू के वोटरों को इस बात का यक़ीन दिलाने में लगी है कि जम्मू क्षेत्र में पार्टी की कामयाबी का मतलब है कि सरकार बनाने के सारे रास्ते जम्मू से ही खुल सकते हैं और इसका फ़ायदा जम्मू के लोगों को मिल सकता है.
जम्मू के सियासी दलों और लोगों में हमेशा इस बात की शिकायत रही है कि जम्मू-कश्मीर की सियासी ताक़त का केंद्र कश्मीर रहा है.
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जानकार मानते हैं कि इस बार जम्मू-कश्मीर में हो रहे विधानसभा के चुनाव की भविष्यवाणी करना आसान नहीं है, लेकिन एक बात तय है कि जम्मू-कश्मीर में इस बार राजनीतिक संतुलन का रास्ता जम्मू क्षेत्र से होकर गुजरेगा.
विश्लेषक तारिक अली मीर कहते हैं कि जम्मू क्षेत्र में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए ''वजूद की लड़ाई है.''
तारिक अली मीर कहते हैं, "आज जम्मू में जो बीजेपी है, वो किसी ज़माने में कांग्रेस हुआ करती थी. कश्मीर को छोड़कर अगर कांग्रेस अपनी बुनियाद बना पाएगी तो सिर्फ जम्मू में. नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के लिए ज़रूरी है कि जम्मू में पार्टी को अच्छा प्रदर्शन करना पड़ेगा. जम्मू में कांग्रेस जितनी कमज़ोर होगी, नेशनल कॉन्फ्रेंस को सरकार बनाने के लिए कश्मीर में तीसरे सहयोगी को तलाश करना उतना ही मुश्किल होगा."
उन्होंने बीजेपी की ओर से सरकार बनाने के दावे पर कहा, "बीजेपी भी जो अपनी सरकार बनाने का दावा करती है, उसकी बुनियाद और निर्भरता भी जम्मू पर है. अगर कांग्रेस को उभरने का मौका मिलेगा तो वो सिर्फ़ जम्मू में मुमकिन है. इसी तरह बीजेपी को भी जम्मू में ही उभरने का मौका मिल सकता है. जम्मू क्षेत्र में ना एनसी है ना पीडीपी है. कुल मिलाकर दोनों पार्टियों के वजूद का मैदान जम्मू है."
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का सियासी गढ़ कश्मीर है, जहां दोनों पार्टियों का अपने-अपने क्षेत्र में मजबूत वोट शेयर है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन किया है. पांच सीटों पर दोनों दल "फ्रेंडली कांटेस्ट" कर रहे हैं.
कांग्रेस, कश्मीर में 7 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि जम्मू में 25 सीटों पर मैदान में है. गठबंधन के तहत नेशनल कॉन्फ्रेंस कुल 51 और कांग्रेस 32 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
हालांकि, इस बार कश्मीर घाटी में इंजीनियर राशिद की आवामी इत्तिहाद पार्टी (एआईपी) का फैक्टर भी शामिल हो गया है. इंजीनियर राशिद की पार्टी 34 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. उनकी पार्टी ने जमात-ए-इस्लामी के साथ चुनावी गठबंधन किया है.
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वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अनुराधा भसीन कहती हैं कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जो गठबंधन किया है, उस गठबंधन को जम्मू के लोग कैसे लेते हैं, ये देखना बेहद ज़रूरी है.
वो कहती हैं, "कांग्रेस तो कोशिश कर रही है कि वह पूरे जम्मू और कश्मीर में अपने पैर पसारे, लेकिन वो हकीकत से परे है. कांग्रेस की कश्मीर में मौजूदगी रही है लेकिन बहुत कम. हिंदुत्व फ़ैक्टर आने से पहले जम्मू में दशकों तक कांग्रेस की मजबूत मौजूदगी रही है. एक तो कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन किया जो कमजोर भी है.”
“दूसरी बात ये कि जम्मू में कांग्रेस उन मुद्दों को एड्रेस नहीं कर पा रही है, जिस सत्ता विरोधी लहर की चुनौतियों का बीजेपी को सामना करना था. लोगों में मायूसी थी, अर्थव्यवस्था ठप थी, बेरोज़गारी और ड्रग्स का मुद्दा है, चरमपंथ जम्मू में फिर सिर उठा रहा है."
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के चुनावी गठबंधन की आलोचना करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अगर ये सत्ता में आ गए तो यहां 'पाकिस्तान का एजेंडा' लागू करेंगे.
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर में कुछ कानूनों को वापस लेने की बात की है. साथ ही नौजवानों की जेलों से रिहाई जैसे मुद्दे भी शामिल किए हैं.
जानकार बताते हैं कि बीजेपी का वोट बैंक जम्मू में ज़रूर है लेकिन कश्मीर का सियासी लैंडस्केप ऐसा है जो पार्टी को भाता है और इसका इस्तेमाल जम्मू में किया जाता है. इस बार कश्मीर घाटी में बीजेपी कुल 19 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
अनुराधा भसीन कहती हैं, "बीजेपी की जीत पूरी तरह से जम्मू पर निर्भर है. सीटें तो उनको जम्मू से ही मिलनी हैं. लेकिन कश्मीर की लैंडस्केप उन्हें इसलिए पसंद है, क्योंकि वहां का राजनीतिक नक्शा बँटा हुआ है और कई सारे चुनावी दल मैदान में हैं. ये सब बीजेपी को सूट करता है.”
“कश्मीर में अलगाववादी, कट्टरपंथी तत्व जिन्हें जम्मू में ध्रुवीकरण के आंकड़ों के तौर पर देखा जाता है, ये चीज़ें जम्मू में बीजेपी का वोट बैंक मजबूत करने में मदद करती हैं. वहीं कांग्रेस इस कोशिश में है कि उनका संदेश सब तक पहुंचे कि उनकी पार्टी का दायरा पूरे जम्मू-कश्मीर में है और वो एक सेक्यूलर छवि रखती है."
एक आम धारणा यह है कि जम्मू में हिंदू वोट की वजह से बीजेपी को फायदा होता है और इस हिंदू वोट की वजह से जम्मू क्षेत्र में बीजेपी अपना प्रभाव बनाए रखने में सफल हो जाती है.
जानकार भी इस बात को मानते हैं कि तीसरे चरण में जम्मू में पड़ने वाला हिंदू वोट यह तय कर सकता है कि चुनावी लहर किस ओर जाएगी.
अनुराधा भसीन कहती हैं, "इस बार भी जम्मू का हिंदू वोट बेल्ट किस दिशा में जाएगा? ये एक ऐसा मसला होगा जो राजनीतिक गणित को तय कर सकता है. बीजेपी की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है. उनका एक वोट बैंक है, लेकिन हर सीट पर ऐसा नहीं होगा. क्या कांग्रेस इस स्थिति का फ़ायदा उठा पाएगी? जम्मू का हिंदू वोट दोनों दलों के लिए महत्वपूर्ण है कि इस बार चुनाव किसकी ओर जाएगा?"
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साल 2014 से बीजेपी लगातार जम्मू में अपनी बढ़त बनाए हुए है. इस बार भी बीजेपी जम्मू से ऐसी ही उम्मीद कर रही है.
कश्मीर यूनिवर्सिटी के पूर्व राजनैतिक विज्ञान प्रोफेसर नूर अहमद बाबा कहते हैं, "बीजेपी के लिए जम्मू काफी महत्वपूर्ण है. वो इसलिए क्योंकि जम्मू काफी समय से बीजेपी के असर में रहा है. 2014 से अब तक ये सिलसिला बरकरार है. 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी उनका दबदबा रहा. केंद्र शासित प्रदेश में उनका फूटहोल्ड सिर्फ़ जम्मू है.”
“अगर जम्मू में ये कम होता है तो उसका मतलब है कि पूरे जम्मू और कश्मीर में वो कमजोर पड़ जाएंगे. जम्मू इनका परंपरागत रूप से मजबूत रहा है. लेकिन ऐतिहासिक तौर से कांग्रेस का भी जम्मू में अपना असर रहा है. लेकिन बीते दस या बारह वर्षों में उनका फूटहोल्ड कमजोर हो गया. कांग्रेस का वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर असर कमजोर हो गया था.”
वो कहते हैं, “कांग्रेस अब जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है, उसी तरह यहां भी कर रही है. लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस की एक उम्मीद ये भी बन गई है कि जम्मू में उनका वोट शेयर बढ़ गया. बीजेपी जम्मू में अपनी पकड़ को बरक़रार रखने की कोशिश करेगी और कांग्रेस पुनर्जीवित होने के लिए लड़ेगी."
इससे पहले 2014 में हुए जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 25 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं. बीजेपी को 25 सीटें केवल जम्मू क्षेत्र से ही मिली थीं. जबकि कांग्रेस को 3 सीटें कश्मीर से भी मिली थीं और लद्दाख से भी.
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बीजेपी के लिए जम्मू कितना अहम है, इस सवाल के जवाब में बीजेपी प्रवक्ता और पूर्व विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) जी.एल. रैना कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि वो कश्मीर में पूरी ताक़त नहीं लगा रहे हैं.
वो कहते हैं, "पूरा जम्मू-कश्मीर हमारे लिए अहम है. अब सिर्फ़ फर्क इतना है कि जम्मू की तुलना में अभी कश्मीर में हमारी पार्टी कमज़ोर है. बीजेपी ने जम्मू के लोगों की उमंगों को आवाज़ दी है. जम्मू में हम काफ़ी ज़्यादा मज़बूत हैं. हम जम्मू से बहुत उम्मीद कर रहे हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कश्मीर में हम दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं या ताक़त नहीं लगा रहे हैं."
इस बात से रैना इनकार करते हैं कि जम्मू में पार्टी की केवल हिन्दू वोटों पर नज़र है. वो कहते हैं, "ये बिलकुल गलत बात है. गलत इसलिए है कि हमने कभी मुसलमान और हिन्दू में फ़र्क़ नहीं किया. हमारे लिए राष्ट्रवाद अहम है. हमारी कसौटी धर्म नहीं है."
इस बार बीजेपी ने जम्मू के पीर पंजाल में भी कई मुसलमानों को टिकट दिया है. पीरपंजाल के मुस्लिम वोट पर भी पार्टी की निगाह लगी है.
वहीं कांग्रेस की बात करें तो नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस के लिए जम्मू की अहमियत को बताते हुए कहा था, ''मैं उम्मीद करता हूँ कि राहुल गांधी कश्मीर की एक या दो सीटों पर चुनाव प्रचार के बाद जम्मू पर अपना फोकस करेंगे. कांग्रेस जो कुछ कश्मीर में कर रही है, उसकी ज्यादा अहमियत नहीं है."
क्या पिछली बार की तरह इस बार भी कांग्रेस को जम्मू से इस बार ज़्यादा सीटें मिलने की उम्मीद है?
इस सवाल के जवाब में जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष तारिक हामिद कर्रा का कहना है, "ये बात सही है. लेकिन आपको दूसरे पहलुओं को भी सामने रखना होगा. उस समय (2014 के चुनाव में) जो मोदी लहर थी, वो पूरी की पूरी धर्म के नाम पर थी.”
“ऐसा माहौल बनाया गया था कि पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव खड़ा हो गया था. और जम्मू-कश्मीर जैसी जगह पर भी सांप्रदायिक तनाव नज़र आ रहा था. अभी जम्मू और कश्मीर में सीटों को लेकर चर्चा कुछ जल्दबाज़ी है. नतीजे आने के बाद इस पर फिर हम बात कर सकते हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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