बांग्लादेश की सत्ता से शेख़ हसीना के बेदख़ल होने के बाद से पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बहुत कुछ हो रहा है.
जैसे 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद पिछले हफ़्ते पहली बार पाकिस्तान से समुद्री संपर्क शुरू हुआ. पाकिस्तान का एक मालवाहक पोत कराची से चलकर बांग्लादेश के दक्षिणपूर्वी तट पर स्थित चटगांव बंदरगाह पहुँचा था.
इससे पहले दोनों देशों के बीच समुद्री व्यापार सिंगापुर या कोलंबो के ज़रिए होता था.
अब बांग्लादेश ने ढाका यूनिवर्सिटी में पाकिस्तान के स्टूडेंट्स को भी आने की अनुमति दे दी है. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान ने भी बांग्लादेश के नागरिकों के लिए वीज़ा हासिल करने की प्रक्रिया को काफ़ी आसान बना दिया है.
ढाका यूनिवर्सिटी बांग्लादेश का सबसे बड़ा शैक्षणिक संस्थान है. ढाका यूनिवर्सिटी की प्रो-वाइस चांसलर प्रोफ़ेसर सायमा हक़ बिदिशा ने कहा है कि 13 नवंबर को वाइस चांसलर प्रोफ़ेसर नियाज़ अहमद ख़ान की अध्यक्षता में एक सिंडिकेट मीटिंग में यह फ़ैसला लिया गया था.
इस फै़सले के बाद कहा जा रहा है कि शेख़ हसीना के बेदख़ल होने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश की क़रीबी लगातार कई स्तरों पर बढ़ रही है.
संशोधित नीति के अनुसार, पाकिस्तानी स्टूडेंट्स ढाका यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले सकेंगे और बांग्लादेश के स्टूडेंट्स पाकिस्तान में पढ़ाई कर सकेंगे.
बांग्लादेश के अंग्रेज़ी अख़बार ढाका ट्रिब्यून से प्रोफ़ेसर सायमा हक़ बिदिशा ने कहा, ''पाकिस्तान के साथ संबंध कई स्तरों पर नहीं हैं लेकिन ढाका यूनिवर्सिटी एक शैक्षणिक संस्थान है. हमारे कई छात्र स्कॉलरशिप पर पाकिस्तान जाना चाहते हैं. कई लोग अकादमिक कॉन्फ़्रेंस में जाना चाहते हैं. हमने इस मुद्दे को सुलझा लिया है. बातचीत के ज़रिए इस मामले में पाकिस्तान से सामान्य संबंध बहाल कर दिया गया है.''
बांग्लादेश के इतिहास में ढाका यूनिवर्सिटी की अहम भूमिका रही है. बांग्लादेश में सरकारों के ख़िलाफ़ विरोध की आवाज़ भी इसी यूनिवर्सिटी से बुलंद होती रही है.
इसी साल जुलाई-अगस्त महीने में शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ ढाका यूनिवर्सिटी से ही आंदोलन की शुरुआत हुई थी. 1971 के मुक्ति युद्ध में भी इस यूनिवर्सिटी की भूमिका थी. पाकिस्तान के सैन्य ऑपरेशन सर्चलाइट में ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों और प्रोफ़ेसरों को भी निशाने पर लिया था.
ढाका यूनिवर्सिटी पाकिस्तान विरोधी आंदोलन का जन्म स्थान रहा है. शेख़ हसीना की सरकार के दौरान यूनिवर्सिटी में यह मांग उठी थी कि पाकिस्तान 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में जनसंहार के लिए माफ़ी मांगे.
साल 2015 में इसी मांग के दौरान शेख़ हसीना की सरकार ने ढाका यूनिवर्सिटी में पाकिस्तानी स्टूडेंट्स के एडमिशन पर पाबंदी लगा दी थी.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर यह भी आरोप लग रहा है कि वो अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हमले होने दे रही है और इस्लामिक कट्टरपंथियों को बढ़ावा दे रही है.
इसे लेकर अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी चिंता जताई थी. तब ट्रंप का चुनावी अभियान चल रहा था.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने 18 नवंबर को भारत अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिन्दू' को दिए इंटरव्यू में हिन्दुओं पर हमले से जुड़े सवालों को प्रॉपेगैंडा बताया है.
मोहम्मद युनूस ने कहा, ''ट्रंप को बांग्लादेश और यहाँ के अल्पसंख्यकों के बारे में दुरुस्त जानकारी नहीं है. पूरी दुनिया में इसे लेकर प्रॉपेगैंडा चलाया जा रहा है. लेकिन जब ट्रंप को सच्चाई पता चलेगी तो वो भी हैरान रह जाएंगे. मैं नहीं मानता हूँ कि अमेरिका में नए राष्ट्रपति के आने से सारी चीज़ें बदल जाएंगीं.अगर अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हुआ है तो बांग्लादेश में भी हुआ है. ऐसे में आप थोड़ा इंतज़ार कीजिए. हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर है और अमेरिका की इसमें काफ़ी दिलचस्पी होगी.''
द हिन्दू ने उनसे सवाल किया कि बात केवल ट्रंप की नहीं है. भारत ने भी कई बार प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले की बात उठाई है.
इसके जवाब में मोहम्मद यूनुस ने कहा, ''16 अगस्त को पीएम मोदी से फोन पर मेरी पहली बातचीत हुई थी. पीएम मोदी ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ ख़राब व्यवहार की बात कही थी. मैंने उनसे स्पष्ट कहा था कि यह प्रॉपेगैंडा है. यहाँ कई पत्रकार आए और कई लोगों ने तनाव की बात कही लेकिन ऐसा नहीं है, जैसा कि मीडिया में कहा जा रहा है. मुझे नहीं पता है कि इस प्रॉपेगैंडा के पीछे कौन है लेकिन इसका सच्चाई से कोई संबंध नहीं है.''
द हिन्दू की डिप्लोमैटिक अफेयर्स एडिटर सुहासिनी हैदर ने मोहम्मद यूनुस से पूछा, ''मैंने बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों से बात की. वे डरे हुए हैं. इन्हें लगता है कि सरकार निशाना बना रही है.सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि बांग्लादेश एक इस्लामिक देश है. जो अभी सत्ता में हैं, उनके मुँह से यह कहते सुना गया है कि संविधान बदलना है और धर्मनिरपेक्षता की बात हटानी है. ऐसे में एक संदेश गया है कि आपकी सरकार इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर बढ़ रही है.''
Getty Images इसी साल जुलाई-अगस्त में शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ आंदोलन की शुरुआत भी ढाका यूनिवर्सिटी से ही हुई थीइसके जवाब में मोहम्मद यूनुस ने कहा, ''जो आप कह रही हैं, उसमें मैं फिट बैठता हूँ? कैबिनेट का हर सदस्य मानवाधिकार कार्यकर्ता है या पर्यावरण कार्यकर्ता जो ख़ुद ही पीड़ित रहा है. बांग्लादेश की कैबिनेट एक्टिविस्टों की जमात है. जो बात आप मेरे सामने कह रही हैं, वही बात अगर इनके सामने आप कहेंगी तो आपसे तीखा विरोध जताएंगे. कैबिनेट के सारे सदस्य बहुत समर्पित लोग हैं. यहाँ कई महिलावादी एक्टिविस्ट हैं.''
मोहम्मद यूनुस ने ये भी कहा है कि वह शेख़ हसीना का भारत से प्रत्यर्पण कराने की कोशिश जारी रखेंगे.
17 नवंबर को बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने 'बे ऑफ बंगाल कन्वर्सेशन' में बोलते हुए कहा था, ''बांग्लादेश में हिंसक सत्ता परिवर्तन के बावजूद भारत से आर्थिक, ट्रांसपोर्ट, ऊर्जा और लोगों के आपसी संबंध सकारात्मक हैं. हमलोग के संबंध बहुआयामी हैं और किसी एक एजेंडे पर निर्भर नहीं है.''
हालांकि पाकिस्तान में बांग्लादेश की नई सरकार के रुख़ को लेकर सकारात्मक रूप में लिया जा रहा है. भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित मानते हैं कि शेख़ हसीना का सत्ता से बाहर होना पाकिस्तान के लिए एक अच्छा मौक़ा है.
अब्दुल बासित ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर कहा, ''भारत को शेख़ हसीना सत्ता का बाहर होना रास नहीं आ रहा है. बांग्लादेश के ख़िलाफ़ भारत की लॉबी अमेरिका में सक्रिय हो गई है. इसी लॉबी की कोशिश है कि ट्रंप प्रशासन बांग्लादेश के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाए. बांग्लादेश से कपड़ों का सबसे ज़्यादा निर्यात अमेरिका में ही होता है. ट्रंप टैरिफ लगाने की वकालत करते रहे हैं. अगर ट्रंप टैरिफ लगाते हैं तो बांग्लादेश को काफ़ी नुकसान होगा.''
अब्दुल बासित ने बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच समुद्री संपर्क शुरू होने पर कहा, ''पहली बार ऐसा हुआ है कि पाकिस्तानी मालवाहक पोत सीधे चटगांव पहुंचा है. इससे पहले दोनों देशों के बीच जो भी व्यापार होता था, वो सिंगापुर और श्रीलंका के रास्ते होता था.''
''इससे भारत में कोहराम मच गया है. बांग्लादेश में जो नेतृत्व है, वो अब बहुत खुले विचारों का है. ऐसा नहीं कि वो भारत से रिश्ते बढ़ाने के ख़िलाफ़ है लेकिन उन्होंने अपने विकल्प खुले रखे हैं और पाकिस्तान के साथ ताल्लुकात क्यों न बढ़ाएं. अब अगला क़दम ये होगा कि व्यापार और उद्योग जगत के संगठन भी एक दूसरे के यहां जाएंगे और हो सकता है कि अगले साल तक विदेश सचिवों के स्तर पर दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हो.”
Getty Images बांग्लादेश के दौरे पर ज़ुल्फ़ीकार अली भुट्टो और उनके साथ शेख मुजीब-उर रहमान बांग्लादेश पाकिस्तान संबंधबांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर रहमान पाकिस्तान को लेकर बहुत सख़्त थे.
यहाँ तक कि शेख मुजीब-उर रहमान ने बांग्लादेश को मान्यता दिए बिना पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़ीकार अली भुट्टो (बाद में प्रधानमंत्री) से बात करने से इनकार कर दिया था. पाकिस्तान भी शुरू में बांग्लादेश की आज़ादी को ख़ारिज करता रहा.
लेकिन पाकिस्तान के तेवर में अचानक परिवर्तन आया. फ़रवरी 1974 में ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन का सम्मेलन लाहौर में आयोजित हुआ.
तब भुट्टो प्रधानमंत्री थे और उन्होंने मुजीब-उर रहमान को भी औपचारिक आमंत्रण भेजा. पहले मुजीब ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया लेकिन बाद में इसे स्वीकार कर लिया.
इस समिट के बाद भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच एक त्रिकोणीय समझौता हुआ.
1971 की जंग के बाद बाक़ी अड़चनों को सुलझाने के लिए तीनों देशों ने नौ अप्रैल, 1974 को समझौते पर हस्ताक्षर किए. पाकिस्तान 28 अगस्त, 1973 के भारत-पाकिस्तान समझौते में निर्दिष्ट ग़ैर-बंगालियों की सभी चार श्रेणियों को स्वीकार करने के लिए सहमत हुआ.'
पाकिस्तानी विदेश और रक्षा मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी किया गया. इस बयान में कहा गया कि पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में किसी भी तरह का अपराध किया है तो यह खेदजनक है.
जून 1974 में भुट्टो ढाका गए. इस दौरे में बांग्लादेश ने संपत्तियों के बँटवारे का मुद्दा उठाया. इस दौरे से दोनों देशों के संबंध में जमी बर्फ़ पिघली.
22 फ़रवरी 1974 को पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता दे दी थी. भुट्टो ने यह मान्यता ओआईसी समिट में ही देने की घोषणा की थी.
ज़ुल्फ़ीकार अली भुट्टो ने मान्यता की घोषणा करते हुए कहा था, ''अल्लाह के लिए और इस देश के नागिरकों की ओर से हम बांग्लादेश को मान्यता देने की घोषणा करते हैं. कल एक प्रतिनिधिमंडल आएगा और हम सात करोड़ मुसलमानों की तरफ़ से उन्हें गले लगाएंगे.''
मान्यता देने के एक दिन बाद बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीब-उर रहमान लाहौर पहुँचे और एयरपोर्ट पर उनके स्वागत में भुट्टो खड़े थे.
इससे पहले शेख मुजीब और भुट्टो की मुलाक़ात जनवरी, 1972 में हुई थी. तब भुट्टो राष्ट्रपति थे और उन्होंने 10 महीने से जेल में बंद मुजीब को मुक्त किया और उन्हें बांग्लादेश जाने की अनुमति दी थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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