पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चार साल के बाद एक बार फिर से चुनावों में जीत हासिल कर अमेरिका के अगले राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं.
ज़ाहिर तौर पर यह अमेरिका के राजनीतिक इतिहास की सबसे नाटकीय वापसियों में से एक है.
व्हाइट हाउस छोड़ने के चार साल बाद लाखों अमेरिकी मतदाताओं ने अपना समर्थन देकर ट्रंप की वापसी तय की है.
उनका चुनाव प्रचार अभियान भी ख़ुद में एक इतिहास है. इस दौरान दो बार उनकी हत्या की कोशिश की गई. उनके प्रमुख और शुरुआती प्रतिद्वंद्वी यानी अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने चुनावों के कुछ ही हफ़्ते पहले अपनी उम्मीदवारी छोड़ दी और कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार बनीं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए करेंअमेरिका के महत्वपूर्ण चुनावी राज्यों में वोटरों ने ट्रंप को वोट देने का फ़ैसला किया, जिनमें कई वोटरों के लिए अर्थव्यवस्था और प्रवासियों का मुद्दा सबसे अहम था.
ट्रंप की वापसी उनकी सियासी साख में एक बड़ी गिरावट के बाद हुई है. उन्होंने साल 2020 के चुनाव परिणामों को मानने से इनकार कर दिया था, जिसमें वो जो बाइडन से पराजित हो गए थे.
उन चुनावों के नतीजों को पलटने और अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय को न छोड़ने की उनकी कोशिश का आज भी आंकलन किया जा रहा है.
ट्रंप पर 6 जनवरी 2021 को कैपिटल हिल्स पर समर्थकों को कथित तौर पर हिंसा के लिए भड़काने का आरोप भी लगा.
व्यवसायिक रिकॉर्ड में हेराफेरी करने के दोषी पाए जाने और कुछ दूसरे मामलों में दोषी पाए जाने के बावजूद अमेरिका में राष्ट्रपति के पद पर बैठने वाले वो पहले व्यक्ति बन जाएंगे.
यह समझ पाना मुश्किल नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप क्यों बड़ा ध्रुवीकरण करने वाले शख़्स हैं.
अपने पूरे चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने कई बार भड़काऊ बयानबाज़ी भी की, भद्दे चुटकुले बनाए और अपने राजनीतिक विरोधियों को बदले की धमकी दी.
जब ट्रंप की बात आती है तो कुछ लोगों के पास बीच का रास्ता होता है. इस अभियान के दौरान हमने जिन मतदाताओं से बात की, उनमें से ज़्यादातर ने कहा कि वो चाहते हैं कि ''ट्रंप अपनी गंदी ज़ुबान बंद कर दें." लेकिन लोग उनकी इन बातों से आगे भी देख पा रहे थे.
इसके बदले लोगों ने उस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जो ट्रंप हर रैली में पूछ रहे थे, “क्या दो साल पहले की तुलना में आप बेहतर हालत में हैं?.”
डोनाल्ड ट्रंप को वोट देने वाले बहुत से लोगों ने हमें बताया कि उन्हें लगता है कि जब ट्रंप राष्ट्रपति थे तो अर्थव्यवस्था बहुत बेहतर हालत में थी, जबकि अभी वो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश में थक गए थे.
हालाँकि अमेरिका में महंगाई के पीछे कोविड-19 महामारी जैसी बाहरी वजहें ज़्यादा बड़ी रही हैं, जिसके लिए लोग मौजूदा अमेरिकी प्रशासन को दोषी ठहरा रहे थे.
अमेरिकी मतदाता अवैध प्रवासियों को लेकर भी बहुत चिंतित थे, जो बाइडन के शासन में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया.
अमेरिका में चुनाव के दौरान लोग आमतौर पर नस्लीय विचार व्यक्त नहीं कर रहे थे या मानते थे कि प्रवासी लोग स्थानीय लोगों के पालतू जानवरों को खा रहे हैं, जैसा कि ट्रंप और उनके समर्थकों ने दावा किया था. लेकिन लोग सीमा पर कड़ी चौकसी ज़रूर चाहते थे.
"अमेरिका फ़र्स्ट" इन चुनावों में ट्रंप के नारों में से एक था जो वास्तव में मतदाताओं को ज़्यादा जोड़ रहा था.
पूरे देश में हर तरफ हमने लोगों को यूक्रेन के समर्थन पर अरबों डॉलर खर्च किए जाने की शिकायत करते हुए सुना. लोगों का मानना था कि अमेरिका पर पैसा खर्च करना ज़्यादा बेहतर है.
अंत में ऐसे लोग कमला हैरिस को वोट नहीं दे पाए, जिन्होंने चार साल बाइडन के साथ उपराष्ट्रपति के तौर पर काम किया है. लोगों ने सोचा कि कमला को चुनना भी वैसा ही होगा, जबकि वे बदलाव चाहते थे.
यह शायद इस चुनाव की बड़ी विडंबनाओं में से एक है कि जिस उम्मीदवार ने बदलाव का सबसे ज़्यादा समर्थन किया, वह ख़ुद चार साल पहले ही सत्ता में था. हालाँकि तब और अब में कई अंतर हैं.
जब ट्रंप पहली बार साल 2016 में सत्ता में आए थे तो वो राजनीतिक तौर पर एक बाहरी व्यक्ति थे.
कुछ समय के लिए ट्रंप ने ख़ुद को अनुभवी राजनीतिक सलाहकारों और अधिकारियों से घेरे रखा, जिन्होंने उनके काम पर लगाम लगाई. अब ट्रंप की खेल के नियमों के अनुसार खेलने में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है.
इनमें से कई सलाहकारों और स्टाफ ने ट्रंप को "झूठा", "फासीवादी" और "अयोग्य" कहा है. उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर ट्रंप ख़ुद को वफादारों से घेर लेते हैं, जैसी उम्मीद उनसे की जाती है, तो ट्रंप को उनके ज़्यादा उग्र विचारों से रोकने वाला कोई नहीं होगा.
जब उन्होंने पद छोड़ा तो उन्हें कैपिटल हिल्स दंगों में उनकी भूमिका, राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित दस्तावेजों को संभालने के तरीके और एक पोर्न स्टार को चुपचाप पैसे के भुगतान से संबंधित कई आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ा.
लेकिन चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि राष्ट्रपति को कार्यालय में रहते हुए किसी आधिकारिक काम के लिए उन्हें अभियोजन से पूरी छूट हासिल है, इसलिए किसी भी अभियोजक के लिए अगले शासन के दौरान उन पर आरोप लगाना एक मुश्किल लड़ाई होगी.
अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में, ट्रंप अपने न्याय विभाग को 6 जनवरी 2021 के दंगों से संबंधित अपने ख़िलाफ़ संघीय आरोपों को हटाने का निर्देश दे सकते हैं ताकि उन्हें जेल की सज़ा की फ़िक्र न हो.
साथ ही वो कैपिटल हिल्स दंगों में भाग लेने के लिए जेल की सज़ा पाए सैकड़ों लोगों को माफ़ भी कर सकते हैं.
डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान वोटरों से कहा कि उनका देश एक असफल राष्ट्र है और केवल वो ही इसे फिर से महान बना सकते हैं.
इस बीच कमला हैरिस ने आगाह किया कि अगर ट्रंप चुनाव जीत गए, तो अमेरिकी लोकतंत्र को अपने अस्तित्व के ख़तरे का सामना करना पड़ेगा.
हालांकि यह देखना अभी बाक़ी है, लेकिन अपने अभियान के दौरान ट्रंप ने जो कुछ कहा, उससे लोगों का डर पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ.
उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के किम जोंग उन जैसे सत्तावादी नेताओं की प्रशंसा की.
ट्रंप ने कहा, "वो अपने खेल में शीर्ष पर हैं, चाहे आप उन्हें पसंद करें या न करें."
उन्होंने प्रेस में आलोचकों को चुप कराने की कोशिश के बारे में बात की. चुनाव से कुछ ही दिन पहले उन्होंने ऐसी टिप्पणियाँ भी कीं जिनका मतलब यह था कि अगर मीडिया के लोग मारे गए तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
ट्रंप ने षड्यंत्र के सिद्धांतों और चुनाव धोखाधड़ी के निराधार दावों को प्रचार के दौरान उठाना जारी रखा. भले ही इन चुनावों में अंत में उनकी जीत हुई.
अब अमेरिकी मतदाताओं को पता चलेगा कि चुनाव प्रचार अभियान के दौरान ट्रंप जो कुछ भी कहा, वह कहां तक महज़ बेकार की बातें थीं- "ट्रम्प तो ट्रम्प हैं."
हमें यह याद रखना होगा कि केवल अमेरिकी वोटरों को ही ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की हक़ीकत का सामना नहीं करना है.
दुनिया के बाक़ी देशों को भी अब पता चलेगा कि "अमेरिका फर्स्ट" का वास्तव में क्या मतलब है.
अमेरिकी आयात पर प्रस्तावित 20% टैरिफ के वैश्विक आर्थिक असर से लेकर यूक्रेन और मध्य पूर्व में जंग को समाप्त करने की जो कसम ट्रंप ने खाई है, उसका क्या होगा.
डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में अपनी सभी योजनाओं को लागू करने में सफल नहीं रहे थे.
ट्रंप को अमेरिका की जनता ने अब दूसरी बार जनादेश किया है. यह भी माना जाता है कि दूसरे कार्यकाल में ट्रंप पर दबाव भी काफ़ी कम होगा.
इसलिए अब अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को देखना है कि बड़े-बड़े चुनावी वादे करने वाले ट्रंप वास्तव में क्या कर पाते हैं.
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