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यूक्रेन की जंग छोड़कर भागे रूसी सैनिकों पर क्या बीत रही है

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रूसी अदालतें आजकल अजीबोग़रीब हालात का सामना कर रही हैं.

बीबीसी की रूसी सेवा की पड़ताल से पता चला है कि इन अदालतों के सामने सैनिकों के फौज छोड़ कर चले जाने या फिर छुट्टियों से अपनी यूनिटों में न लौटने के रिकार्ड मामले सामने आ रहे हैं.

सेना छोड़ कर भाग खड़े होने वाले कई सैनिक अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लिए हुए हैं. अब इन रिश्तेदारों पर भी मुकदमों का ख़तरा मंडरा रहा है.

23 मार्च 2023 को दक्षिणी रूस के स्तावरोपोल गांव में एक रूसी युवक दमित्री सेलजिनेन्को ने अपनी गर्लफ्रेंड को अपनी मोटरसाइकिल में लिफ्ट दी. इस युवती को स्थानीय अथॉरिटी दफ़्तर में बिल जमा कराने जाना था.

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छह महीने पहले ही इस युवक को मोर्चे पर ज्यादा से ज्यादा सैनिकों को झोंकने की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की योजना के तहत यूक्रेन में लड़ने के लिए बुलाया गया था.

उस साल मार्च तक उसे मोर्चे पर लौट आना था.

दस दिनों की मेडिकल लीव लेने के बाद वो अपनी यूनिटों में नहीं लौटा.अब वो रूस की ‘वॉन्टेड लिस्ट’ में है.

लेकिन गांव के रास्ते में इस युवक को उसके साथ पढ़ चुके एंद्रेई सोवरशेनेव ने पहचान लिया. सोवरशेनेव स्कूल की पढ़ाई के बाद रूसी पुलिस में भर्ती हो गए थे.

एक भागा हुआ सैनिक और परिवार की त्रासदी image BBC रूस में दो गुटों के बीच लड़ाई का चित्रण

सोवरशेनोव ने अपने दोस्त के बारे में मिलिट्री पुलिस को ख़बर कर दी. उस दिन जब वो अपनी गर्लफ्रेंड का इंतज़ार कर रहे थे तो तीन लोगों ने सेलिजिनेन्को को गिरफ़्तार करने की कोशिश की.

सेलिजिनेन्को किसी तरह अपनी मां और सौतेले पिता को ये बताने में कामयाब हो गए. दोनों अपनी गाड़ी से बीच-बचाव करने पहुंचे. लेकिन वहां जो हुआ उसके बारे में दो तरह की बातें सुनने की मिल रही है.

पुलिस ने आधिकारिक तौर पर जो कहा है उसके मुताबिक़ सेलिजिनेन्को के सौतेले पिता एलेक्सांद्र ग्राचोव सोवरशेनेव के हाथ से हथकड़ी छीनने की कोशिश करते हुए चिल्लाए,‘’ सेलिजिनेन्को के बजाय मुझे गिरफ़्तार करो.’’ कहा जा रहा है इसके बाद उन्होंने सोवरशेनेव को जमीन पर गिरा दिया और उन्हें पीटने लगे.

जबकि सेलिजिनेन्को के परिवार का कहना है कि एलेक्सांद्र ग्राचोव को जमीन पर गिरा दिया गया और पीटा गया. ग्राचोव अपने सौतेले बेटे की गिरफ़्तारी का वारंट देखना चाह रहे थे.

मारपीट की इस घटना के बाद दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन ग्राचोव पर एक पुलिसकर्मी पर हमला करने का मामला दर्ज कर दिया गया.

लेकिन इस पूरे झगड़े के बीच सेलिजिनेन्को अपने माता-पिता की गाड़ी में बैठ कर वहां से भाग गए.

इस बीच इस पूरे मामले में सोशल मीडिया पर गांव वालों के चैट ग्रुप में गर्मागर्म बहस चलने लगी.

सेलिजिनेन्को के परिवार ने कहा कि उनके बेटे को सेना में जाना ही नहीं था. उन्होंने कहा कि सेलिजिनेन्को की मेडिकल जांच कर यह पता करने की कोशिश भी नहीं की गई कि वो सेना के लिए फिट भी थे या नहीं. वो कोरोना वायरस से पीड़ित थे फिर भी उन्हें अग्रिम मोर्चे पर भेज दिया गया.

जनवरी 2023 में सेलिजिनेन्को ‘फ्रोस्टबाइट’ (बेहद ठंड से शरीर का अकड़ जाना) के शिकार हो गए. उन्हें आराम करने के लिए छुट्टी दी गई. घर पहुंचने के दो दिन बाद उनकी गैस्ट्रिक सर्जरी हुई. घरवालों को कहना था दमित्री सेलिजिनेन्को मिलिट्री सर्विस के लिए बिल्कुल भी फिट नहीं थे. मिलिट्री मेडिकल कमीशन को उनकी जांच करनी चाहिए थी.

लेकिन गांव वालों के चैट ग्रुप में हर कोई उनकी दलीलों से सहानुभूति नहीं रखता.

इसके जवाब में अपने पड़ोसियों से अपील करते हुए दमित्री के परिवार ने ये भावुक अपील की.

इसमें लिखा था,’’यहां आपलोग अपने गांव में आराम की ज़िंदगी जी रहे हैं लेकिन आपमें से कौन हमारे साथ प्यातिगोरस्क,बुदियोनोवोवस्क या रोस्तोव जाकर अस्पतालों में देखेंगे कि वहां कितने घायल सैनिक पड़े हुए हैं. ''

''आप लोग दूसरों को अपनी नज़र से देखने के बजाय एक मां और बेटे की जगह खुद को रख कर देंगे. उस मां-बेटे की जगह, जिन्होंने अब तक इतना कुछ सहा है. आपके पति और बेटे आपके सामने आपके साथ हैं. हम ईश्वर से प्रार्थना करेंगे आपके साथ वैसा न हो जैसा हमारे साथ हुआ है.’’

मार्च, 2024 को अलेक्सांद्र ग्राचोव को पुलिसवालों पर हमले का दोषी पाया गया. उन पर डेढ़ लाख रूबल का जुर्माना लगाया गया.

दमित्री सेलिजिनेन्को अभी तक सेना की अपनी यूनिट में नहीं लौटे हैं. वो इस वक़्त कहां हैं ये भी किसी को पता नहीं.

इस मामले से संबंधित कोई भी पक्ष बीबीसी से बात नहीं करना चाहता.

'हमसे हमारे पुरुष छीन लिए गए' image BBC रूस में सैनिकों की गिरफ़्तारी के समय अक्सर झगड़े हो जाते हैं.

स्तावरोपोल इलाके के गांव से सैकड़ों किलोमीटर दूर रूसी गणराज्य की दूसरी तरफ बुरेशिया की अदालत में जज के सामने दो मामले आए.

वहां कटघरे में विताली पेत्रोव खड़े थे. पेत्रोव सेना की अपनी यूनिट छोड़ चुके थे. मामला यहां भी झगड़े का था.

पेत्रोव की सास लिडिया सरेगोरोदत्सेवा ने स्थानीय पुलिस को उन्हें गिरफ़्तार करने से रोका था.

अदालत के अलग-अलग दस्तावेज़ों और इस केस को जानने वाले लोगों के सुबूतों और बयानों के आधार पर बीबीसी ने पता किया कि मामला क्या था.

यहां सुरक्षा कारणों से हम इस केस से जुड़े किसी शख़्स का नाम नहीं ले रहे हैं.

33 साल के विताली पेत्रोव शारालदे गांव के रहने वाले हैं. उनके दो बच्चे हैं. उन्हें जंग लड़ने के लिए 2022 में यूक्रेन बुलाया गया.

ये इलाका रूस के निर्धनतम इलाकों में से एक है. 2022 में पतझड़ के मौसम में रूस में सबसे ज्यादा सैनिकों की भर्तियां हो रही थीं.

बीबीसी और स्वतंत्र रूसी न्यूज़ आउटलेट मीडियाज़ोना रिसर्च के मुताबिक़ इसी समय में सैनिकों की मौतें काफी ज़्यादा हो रही थी.

ये सबसे ज्यादा सैनिकों के मारे जाने वाले दौर में से एक था.

जून 2023 में पेत्रोव एक सैनिक अस्पताल से भाग गए थे.

दरअसल छुट्टी लिए बगैर गैरहाज़िर होने की वजह से उन्हें वहां भेजा गया था.

इससे पहले उसी साल उन्हें जबरदस्ती उनकी यूनिट में भेजा गया था.

उनकी सास का कहना है कि वो सैन्य सेवा के लिए फिट नहीं हैं. उनके सिर में दर्द रहता है. उन्होंने अदालत में कहा कि मिलिट्री यूनिट में उनके दामाद के साथ हिंसा की गई और फिरौती मांगी गई.

सेना के वकीलों का कहना था के पेत्रोव और कुछ नहीं बस सेना के अग्रिम मोर्चे पर जाने से बचने के लिए ये बहाना कर रहे थे.

सेना की ओर से जबरदस्ती अग्रिम मोर्चे पर भेजे जाने से बचने के लिए पेत्रोव 2023 के पतझड़ और पूरी गर्मियों में अपनी सास के घर में छुपे रहे. ज्यादातर दिन वो नजदीक के जंगलों में छुपे रहते.

वहां उनका काम पाइन नट्स, मशरूम और तरह-तरह की बेरियों से काम चल रहा था. रात को वो जब-तब सोने के लिए अपनी ससुराल आते.

ग्रिगोरी स्वेरदलिन एनजीओ ‘रन टु द फॉरेस्ट से जुड़े’ हैं. ये एनजीओ उन सैनिकों की मदद करता है जो देश छोड़ने के लिए सेना से भाग खड़े हुए हैं.

इस एनजी का आकलन है सेना छोड़ने वाले 30 फ़ीसदी सैनिक रूस में ही रहते हैं जबकि बाकी 70 फीसदी विदेश भाग जाते हैं.

मीडियाज़ोना के मुताबिक़ रूसी अदालतों में सेना से भागने और बगैर छुट्टी लिए गैरहाज़िर होने के 13 हजार से अधिक मामले चल रहे हैं.

बहरहाल, दिसंबर 2023 में पुलिस पेत्रोव को गिरफ़्तार करने उनके घऱ पहुंच गई.

इस मामले को भी अलग-अलग तरह से बताया गया .सरेगोरोदत्सेवा ने बताया कि पुलिस ने दरवाजा तोड़ दिया और घर में घुस गई.

उसने उन्हें धक्का देकर एक तरफ कर दिया. इससे उनकी छोटी नातिनें बुरी तरह डर गईं. उन्होंंने पूरे घर में तलाशी लेनी शुरू की और फ्लोर बोर्ड को कुल्हाड़ी से तोड़ने लगे.

अदालत के दस्तावेजों के मुताबिक़ सरेगोरोदत्सेवा ने बताया कि पुलिस न तो अपना आईडी दिखा पाई और न गिरफ़्तारी का वारंट.

हालांकि पुलिस ने इस दावे को गलत बताया है. पुलिस का कहना है कि उसने घर में कोई तलाशी नहीं ली और न ही किसी चीज को वहां से हटाया.

लेकिन परिवार और पुलिस दोनों के बयान से पता चला कि पेत्रोव तहखाने में छुपे हुए थे. उन्हें देखते हुए उनकी दोनों बेटियां उनकी ओर दौड़ीं.

image Getty Images

अदालत में पेत्रोव के परिवार और पुलिस ने एक दूसरे पर हिंसा का आरोप लगाया है. दरअसल पेत्रोव की गिरफ़्तारी के वक़्त दोनों ओर से धक्कामुक्की हुई.

उन्हें घर से घसीट कर निकाला गया. पेत्रोव की छोटी बेटियों ने कहा उनके पिता को स्टेनगन से पीटा गया.

लेकिन कहा जा रहा है कि इस मामले की प्रमुख जांचकर्ता को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था. आरोप है कि पेत्रोव के परिवार के साथ झगड़े के दौरान उन पर खौलता पानी फेंका गया.

इस मामले में पेत्रोव और उनकी सास लिडिया सरेगोरोदत्सेवा, दोनों को सजा दी गई.

पेत्रोव को छह साल की जेल की सजा मिली, जबकि उनकी सास को दो साल की जेल की सजा दी गई.

उन्हें उस घायल पुलिस अफ़सर को भी एक लाख रूबल देने के लिए कहा गया, जो उनके दामाद की गिरफ़्तारी के दौरान झगड़े में घायल हो गया था.

इस मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बीबीसी को बताया कि पेत्रोव की पत्नी ने ये जानकर राहत की सांस ली कि उनके पति जेल में हैं. उन्हें लड़ाई के अग्रिम मोर्चे पर नहीं भेजा गया है.

बीबीसी को सूत्रों ने बताया कि यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध ने अब गांवों में रहने वालों पर कहर ढाना शुरू किया है.

इन सूत्रों में से एक ने बताया, "गांवों में रहने वाले सभी पुरुषों को ले जाया गया है. मवेशियों की देखभाल और जाड़ों की तैयारियों जैसे भारी काम करने के लिए गांव में पुरुष ही नहीं हैं. एक का बच्चा बीमार है. और दूसरे कई लोगों को मौत का डर लगा हुआ है. मुझे माफ करें, लेकिन इस समय गांव में सिर्फ औरतें ही बची हैं जो बदले हुए हालात में सारी जिम्मेदारियां उठा रही हैं."

इस सूत्र ने बताया कि कई स्थानीय पुरुषों का मानना है वो ‘कठिन हालात’ में फंस गए हैं.

उन्हें उनकी मर्जी के बगैर युद्ध के मोर्चे पर भेजा जा रहा है. जबकि उनके पीछे गांव में उनके परिवारों को हर चीज के लिए जूझना पड़ रहा है.

सात साल की सजा image BBC

बीबीसी ने एक ऐसा मामला देखा, जिसमें एक सैनिक को सजा हुई थी.

जनवरी 2023 में रूस-मंगोलिया सीमा पर बसे एक गांव के रहने वाले रोमन येवदोकिमोव को सेना में अपनी यूनिट छोड़ कर जाने के आरोप में सात साल के लिए जेल भेज दिया गया था.

34 साल के येवदोकिमोव पहले भी दो बार चोरी के आरोप में सजा भुगत चुके थे.

अक्टूबर 2022 में देश भर से सैनिकों की भर्तियों के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत उन्हें लड़ने के लिए मोर्चे पर भेजा गया.

सेना में शामिल होने एक महीने बाद ही येवदोकिमोव बिना छुट्टी लिए ही यूनिट से नदारद हो गए. उस दौरान वो अपने घर पहुंच गए थे. कुछ समय तक वो जंगल में छुपे रहे.

इसके बाद परिवार ने उन्हें उनकी सास के घर में तहखाने में छुपा दिया. लेकिन अंतत: सेना के अधिकारियों ने उन्हें पकड़ लिया और फिर वो जेल भेज दिए गए.

सजा मिलने के बावजूद येवदोकिमोव को जेल नहीं भेजा गया.उन्हें यूक्रेन जाकर लड़ने को कहा गया.

उन्हें अग्रिम दस्ते में छह महीने तक लड़ने का मौका मिला. इसके बाद उस समय के नियम (अब ये नियम बदल दिया गया है) उन्हें छोड़ दिया गया. अप्रैल 2024 तक वो फिर अपने घर पहुंच गए थे.

उनके परिवार ने बताया कि छह महीने तक अग्रिम मोर्चे पर लड़ने की वजह से वो ट्रॉमा के शिकार हो गए हैं.

वो अपनी पुरानी ज़िंदगी में नहीं लौट पा रहे हैं. अब वो अपना ज़्यादातर समय जंगल में ही बिताते हैं. जैसे पहले मिलिट्री पुलिस से बचने के लिए बिताया करते थे.

image Ministry of Defence/Ukraine कई सैनिक छुट्टी पर आने के बाद दोबारा फ्रंट पर ही नहीं जाते. (सांकेतिक तस्वीर)

येवदोकिमोव 2023 में जेल से ही सैनिक के तौर पर भर्ती किए गए थे.

उन्हें सेना छोड़ने के अपराध में मिली सात साल की सजा से आधिकारिक तौर पर माफी दे दी गई थी.

लेकिन ये साबित करने के लिए उनके पास कोई कागजी दस्तावेज नहीं था कि वो ये साबित कर सकें कि वो सेना के पास लड़े थे और इस दौरान वो घायल हुए थे.

जेल से भर्ती किए गए कई पूर्व सैनिक रूस के रक्षा मंत्रालय को अदालत में घसीटने की तैयारी में लगी हैं. वो सैनिक के तौर पर अपने दर्जे को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं.

लेकिन नजदीकी भर्ती दफ़्तर में पहुंच कर मामले सुलझाने के लिए चार घंटे का सफर करने को लेकर वो काफी पसोपेश में थे.

उनकी बहन ने बीबीसी से कहा, "मैं जब उनसे मिलने गई तो देखा को वह शराब पीकर बैठे हुए थे. वो यही सोच रहे थे कि क्या दस्तख़त कर कॉन्ट्रैक्ट पर सैनिक बन जाएं."

उनकी बहन ने कहा,"मैं उन्हें जाने नहीं दूंगीं. वो डरे हुए हैं और मुझे छोड़कर नहीं जाना चाहते. वो जानते हैं कि मैं उनके लिए कितनी चिंतित रहती हूं. लेकिन वो वहां अपने साथियों के साथ मोर्चे में शामिल होना चाहते हैं. क्योंकि वहां कुछ लोग मौत की कगार पर हैं और मेरे भाई उनके लिए चिंतित हैं. वो मोर्चे पर रहने की कीमत चुकाना चाहते हैं."

अदालत में इस तरह के मामले बड़ी संख्या में आ रहे हैं. ये मामले इनका एक छोटा हिस्सा है.

आधिकारिक रिकार्ड के मुताबिक़ 2024 में छुट्टी लिए बगैर गैरहाज़िर रहने, आदेश न मानने और यूनिट छोड़ने के आरोप में हर महीने 800 सैनिकों को सजा दी गई.

मीडियाज़ोना का कहना है कि पिछले साल की तुलना में ये संख्या दोगुनी है. युद्ध शुरू होने से पहले जितने सैनिकों को सजा मिली थी उसकी तुलना में ये तादाद दस गुनी है.

इस मामले की कोई जानकारी नहीं है कि सेना से भागे सैनिकों की मदद करने के आरोप में उनके परिवार के कितने सदस्योंं को सजा मिली है.

(अतिरिक्त रिपोर्टिंग - ओल्गा इवशिना)

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित

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