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हरियाणा चुनाव: क्या अग्निपथ योजना का असर बीजेपी पर पड़ेगा?- ग्राउंड रिपोर्ट

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BBC अग्निवीर योजना से नाराज़ अनिल ने सेना में भर्ती की तैयारी बीच में ही छोड़ दी

भिवानी का एक व्यस्त बाज़ार. 24 साल के अनिल अपनी छोटी सी दुकान पर चाय बनाकर आसपास की दूसरी दुकान वालों को जा-जाकर पिला रहे हैं.

कुछ समय पहले तक अनिल की ज़िंदगी का बिल्कुल अलग ही मक़सद था. अनिल जी जान से सेना में भर्ती की तैयारी के लिए पसीना बहा रहे थे.

मगर अब उनका वो सपना टूट चुका है और तैयारी छूट चुकी है. साल 2020 में वो अपना सपना पूरा करने के क़रीब पहुँचे थे.

उन्होंने सेना की शारीरिक परीक्षा पास कर ली थी लेकिन भर्ती रद्द हो गई और दो साल बाद सेना में जाने के नियम ही बदल गए.

साल 2022 में केंद्र सरकार ने अग्निपथ योजना का एलान किया, जिसके तहत सेना में अग्निवीरों की भर्ती का प्रस्ताव था. लेकिन अनिल को यह योजना रास नहीं आई और उनके जैसे कई युवाओं ने सेना में जाने के इरादे बदल दिए.

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हरियाणा के गांव में अनिल जैसे हज़ारों युवा हैं, जिनकी अपनी कहानी और अपना अलग संघर्ष है.

अनिल कहते हैं, "अग्निवीर योजना से मुझे नफ़रत है. अग्निवीर के बाद मैंने भर्ती देखना ही बंद कर दिया. चार साल की नौकरी से अच्छा है कि आदमी दिहाड़ी मज़दूरी ही कर ले."

अग्निवीर योजना शुरू होने के बाद हरियाणा में पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं.

इस चुनाव में तीन ऐसे मुद्दे हैं, जिनकी गूंज हर तरफ़ सुनाई दे रही है, वो हैं- किसान, पहलवान और जवान.

तो अग्निवीर योजना का क्या हरियाणा विधानसभा चुनाव में कोई असर पड़ सकता है? क्या भारतीय जनता पार्टी को इसका नुक़सान होगा या विपक्ष के इस मुद्दे की काट बीजेपी ने खोज ली है?

यही समझने के लिए हमने राज्य के उन ज़िलों का दौरा किया, जहाँ से बड़ी तादाद में युवा सेना में भर्ती होते रहे हैं.

तैयारी कर रहे युवाओं का क्या कहना है? image BBC भिवानी जिले के भीम स्टेडियम में अग्निवीर भर्ती की तैयारी करते युवा

भिवानी का भीम स्टेडियम जहाँ बनियान, शॉर्ट्स और ट्रैक सूट पहने कई लड़के और लड़कियों का समूह दौड़ लगा रहा है.

नवंबर में अग्निवीर के लिए भर्ती परीक्षा होनी है और युवाओं के पास तैयारी के लिए कम दिन ही बचे हैं.

हालांकि इनमें से ज़्यादातर युवाओं की तैयारी में उत्साह नहीं झलक रहा है.

चरखी दादरी के रहने वाले गणेश पिछले प्रयास में सेना की शारीरिक परीक्षा पास नहीं कर पाए थे. वो कहते हैं, "मेरे साथ गाँव के बहुत बच्चे फौज की तैयारी कर रहे थे लेकिन अग्निवीर के बाद उनका जुनून ख़त्म हो गया है."

वह कहते हैं, "दूसरी नौकरी मिलना भी आसान नहीं है इसलिए इसी में दम लगाएंगे. ये मेरे लिए सिर्फ़ नौकरी नहीं बल्कि पूरी ज़िंदगी का सवाल है."

image BBC राजेश पिछले क़रीब एक दशक से युवाओं को सेना में भर्ती की तैयारी करवा रहे हैं

स्टेडियम में तैयारी कर रहे बच्चों को कोचिंग दे रहे राजेश कहते हैं, "इस ग्राउंड पर पहले डेढ़ हज़ार बच्चे तक प्रैक्टिस करते थे. अग्निवीर के बाद ये संख्या घटकर 300 पर आ गई है."

वे कहते हैं, "चार साल की सेवा अवधि को लेकर बच्चों के माता-पिता बहुत निराश हैं और अब वे अपने बच्चों को तैयारी के लिए नहीं भेजना चाहते.”

लेकिन अग्निवीर को लेकर यहां सभी निराश हैं या मजबूरी में तैयारी कर रहे हैं, ऐसा भी नहीं है. लोहारू के रहने वाले जितेंद्र बड़े उत्साह से तैयारी में जुटे हैं.

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दौड़ के बीच मिले एक ब्रेक के दौरान पसीने से तर बतर लेकिन रोमांचित नज़र आ रहे जितेंद्र कहते हैं, “मैंने बचपन से सोच रखा था कि मुझे देश की सेवा करनी है."

वह कहते हैं, "भले ही फिर चार महीने हो या फिर चार साल, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता."

जितेंद्र कहते हैं, “जिन्होंने अग्निवीर आने के बाद मन बदला, दरअसल उन्हें आर्मी में जाना ही नहीं था.”

विपक्ष हमलावर

अग्निपथ योजना के लॉन्च होने के बाद से विपक्षी पार्टियां इसे लेकर आक्रामक हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस योजना की शुरुआत से ही भारतीय जनता पार्टी पर हमलावर हैं.

उन्होंने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था, “अग्निवीर योजना को हम कूड़ेदान में उठाकर फेंक देंगे. एक सैनिक को शहीद का दर्जा मिलेगा दूसरे को शहीद का दर्जा नहीं मिलेगा."

"एक सैनिक को पेंशन मिलेगी दूसरे को नहीं मिलेगी. एक शहीद के परिवार को रक्षा मिलेगी, दूसरे शहीद के परिवार को नहीं मिलेगी. अग्निपथ योजना को हम उठाकर डस्टबिन में फेंकने वाले हैं.”

हरियाणा की कांग्रेस लीडरशिप भी अग्निवीर को चुनावी मुद्दा बना रही है.

भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर रणदीप सुरजेवाला तक चुनावी मंचों पर अग्निवीर योजना की आलोचना कर रहे हैं.

नारनौल में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, "अग्निवीर योजना का सबसे ज़्यादा नुक़सान हरियाणा और ख़ासकर दक्षिण हरियाणा को हुआ है. प्रदेश से पहले हर साल पाँच हज़ार युवा फौज में भर्ती होते थे लेकिन अब केवल 250 ही भर्ती हो पाते हैं."

अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचार के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार भी अग्निवीर योजना को मुद्दा बना रहे हैं.

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और भिवानी जिले की बवानी खेड़ा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप नरवाल कहते हैं, "भिवानी ने देश को सिपाही से लेकर जनरल रैंक तक के अफसर दिए हैं, लेकिन अग्निवीर योजना के बाद स्टेडियम खाली हो गए हैं."

वे कहते हैं, "ना सिर्फ़ सेना बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है. हमारे यहाँ यह बहुत बड़ा मुद्दा है और हम अग्निवीर को वापस करवाने के लिए संघर्ष करते रहेंगे."

क्या बैकफ़ुट पर है बीजेपी? image BBC भिवानी की एक डिफेंस एकेडमी, जहां ग्रामीण इलाकों से आकर बच्चे रहते हैं और अग्निवीर भर्ती की तैयारी करते हैं

भिवानी के भीम स्टेडियम के आधा किलोमीटर के दायरे में कई पीजी हैं, जहाँ आसपास के गाँवों से आकर बच्चे रहते हैं और सेना में भर्ती की तैयारी करते हैं.

दीवारों पर कपड़े टंगे हैं. सामान रखने लायक हर जगह पर कुछ ना कुछ रखा है. कमर सीधी करने लायक ही सोने के लिए बिस्तर हैं. इन छोटे तंग कमरों में ग़रीब परिवारों से आए ये युवा बड़े सपने देख रहे हैं.

खाने का कुछ सामान घर से लाने के बावजूद इन युवाओं के महीने का ख़र्च क़रीब सात हज़ार रुपए है, जिसे जुटाना इनके परिवारों के लिए बड़ी मशक्कत का काम है.

रेवाड़ी से आए 19 साल के मंजीत स्टेडियम से दौड़कर लौटे हैं और नाश्ते में बना दलिया, गुड़ डालकर खा रहे हैं.

मंजीत कहते हैं, "अग्निवीर से पहले हमारे गांव के 20-25 बच्चे तैयारी करते थे, अब सिर्फ़ हम दो हैं. अग्निवीर बनने के बाद महीने के 21 हज़ार रुपए मिलेंगे, उतने पैसे में क्या होगा. महीने में पाँच-सात हज़ार तो हम तैयारी में ही ख़र्च कर रहे हैं. क़र्ज़ लेकर तैयारी कर रहा हूं, आगे चलकर ये पैसे उतारने भी होंगे.”

भारतीय जनता पार्टी को भी शायद ये अंदेशा है कि इस योजना को लेकर राज्य के युवाओं का ग़ुस्सा उसे भारी पड़ सकता है.

गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में भिवानी में हुई एक चुनावी रैली में एलान किया, "हरियाणा के एक भी अग्निवीर को वहां (सेना) से अगर वापिस आना पड़ता है तो वह नौकरी के बिना नहीं रहेगा. इसकी ज़िम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी की है."

इतना ही नहीं अग्निवीर के मुद्दे से निपटने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने सेवा अवधि पूरी कर घर लौटने वाले अग्निवारों के लिए कई घोषणाएं की हैं.

उनका कहना है, “हमारी सरकार हरियाणा में अग्निवीरों को प्रदेश सरकार द्वारा भर्ती किए जाने वाले सिपाही, माइनिंग गार्ड, फॉरेस्ट गार्ड, जेल वार्डन और एसपीओ के पदों पर सीधी भर्ती में दस प्रतिशत आरक्षण प्रदान करेगी.”

इसके साथ ही राज्य सरकार नेअग्निवीरों को आर्म्स लाइसेंस बनवाने और अन्य नौकरियों में भी प्राथमिकता देने का वादा किया है.

चुनाव पर कितना फ़र्क़ image BJP हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी

राज्य के विधानसभा चुनावों में अग्निवीर मुद्दे की गूंज हर तरफ़ सुनाई दे रही है. विपक्षी पार्टियां अग्निवीर योजना को लेकर राज्य में 10 साल से सत्ता पर काबिज बीजेपी पर हमलावर हैं.

90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा के लिए पांच अक्टूबर को वोटिंग होगी और आठ अक्टूबर को नतीजे आएंगे.

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, "साल 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 24 सीटों पर जीत का अंतर पांच हज़ार से कम और पांच सीटों पर ये अंतर एक हज़ार से कम था. ऐसे में अग्निवीर योजना निर्णायक साबित होगी."

वे कहते हैं, "बीजेपी के ख़िलाफ़ एक सत्ता विरोधी रुझान है और इस माहौल में अग्निवीर योजना आग में घी डालने का काम करेगी."

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भिवानी के स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार इन्द्रवेश दुहन कहते हैं, "अग्निवीर योजना का दक्षिणी हरियाणा के ज़िलों में बड़ा असर दिखाई देगा. भिवानी, दादरी, महेंद्रगढ़, नारनौल और रेवाड़ी जैसे ज़िले सैन्य क्षेत्र हैं. यहां हर दूसरे-तीसरे परिवार से व्यक्ति सेना में है और ये परिवार इस योजना से काफ़ी नाराज़ हैं.”

हालांकि दुहन ये भी कहते हैं, "जो लोग अग्निवीर से प्रभावित हुए, वो एक मंच पर इकट्ठा नहीं हो पाए. विरोध तो ज़रूर है लेकिन एक बड़ा मोर्चा पिछले सालों में तैयार नहीं हो पाया है."

वहीं कई पत्रकार और जानकार मानते हैं कि इस योजना को लेकर युवाओं में ग़ुस्सा ज़रूर है लेकिन इसका असर कुछ सीमित सीटों पर ही होगा.

हिसार के वरिष्ठ पत्रकार कुमार मुकेश के मुताबिक़ दक्षिण हरियाणा के कुछ ज़िलों में इसका प्रभाव ज़रूर है लेकिन उत्तर हरियाणा में ये मुद्दा ज़्यादा प्रभावी नहीं होगा क्योंकि इस इलाक़े से ज़्यादा लोग सेना में नहीं जाते.

वो इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के हरियाणा में औसत प्रदर्शन के लिए अग्निवीर योजना को ही ज़िम्मेदार बताते हैं.

लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में भारतीय जनता पार्टी महज़ पांच सीटें जीत पाई थी. जबकि पांच साल पहले हुए चुनाव में बीजेपी ने राज्य की सभी दस लोकसभा सीटें अपने नाम की थीं.

बंद होते कोचिंग इंस्टीट्यूट

अग्निपथ योजना के लॉन्च होने के बाद दक्षिण हरियाणा के कई ज़िलों में सेना की भर्ती की तैयारी करवाने वाले संस्थानों पर ताले लग गए हैं.

महेंद्रगढ़ के बलजीत शर्मा साल 2016 से शहर में ऐसी ही एक एकेडमी चला रहे थे लेकिन अग्निवीर के बाद उन्हें इसे बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

एकेडमी का सामान अब भी बलजीत शर्मा ने एक कमरे में रखा हुआ है. धूल से सने गद्दे, बेंच और दूसरे सामान को दिखाते हुए वे कहते हैं, “हालात ये है कि सामान को कोई ख़रीदना वाला तक नहीं है. हमें क़रीब बीस लाख रुपये का नुकसान हुआ है.”

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शहर में जो कुछ एकेडमियां चल भी रही हैं, वहां के हालात भी बहुत अच्छे नहीं हैं. शहर की लॉयन डिफ़ेंस एकेडमी में भी बच्चे रहकर सेना में भर्ती की तैयारी करते हैं.

इस एकेडमी के कोच संजय घोड़ा कहते हैं, “हमारी एकेडमी 2021 से चल रही है. फिलहाल हमारे पास 60 से 65 बच्चे हैं, वहीं अग्निवीर से पहले हम करीब 300 बच्चों को तैयारी करवाते थे. जिस गाँव से 20 बच्चे आते थे, आज उस गांव से एक बच्चा मुश्किल से आ रहा है.”

पूर्व सेनाध्यक्ष के गांव में क्या है माहौल image BBC पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह का गांव बापोड़ा भी भिवानी जिले में हैं.

पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह का गांव बापोड़ा भी भिवानी ज़िले में है. वीके सिंह केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं. इस गांव से हर साल बड़ी संख्या में युवा भारतीय सेना में जाते हैं.

अग्निवीर योजना के बाद गांव में क्या कुछ बदला, यह जानने के लिए हम इस गांव भी पहुंचे. क़रीब 35 हजार की आबादी वाले इस गांव में हर तरफ़ गंदगी दिखाई देती है. गलियों में कई-कई फीट तक पानी जमा है.

गांव में चौपाल पर सेना से रियाटर कुछ फौजी ताश खेल रहे हैं. अग्निपथ योजना का नाम लेने पर सभी नाराज़गी जाहिर करते हैं.

यहां हमारी मुलाकात 1971 की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले करनैल सिंह से हुई.

वे कहते हैं, “बापोड़ा गांव में एक हज़ार से ज़्यादा लोग सेना में हैं, लेकिन अब बच्चों का दिल टूट गया है."

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हालांकि करनैल सिंह कहते हैं कि वे अग्निपथ योजना से गुस्सा ज़रूर हैं, लेकिन चुनावों में इसका बहुत असर पड़ेगा, ऐसा दिखाई नहीं देता.

वो मानते हैं कि लोग स्थानीय उम्मीदवार को देखकर वोट देंगे.

वहीं सेना से रिटायर मदनपाल कहते हैं, “अग्निवीर योजना से लोगों में ग़ुस्सा है, जिसका असर चुनावों में दिखाई देगा. ज़्यादा नहीं तो क़रीब 25 प्रतिशत का फ़र्क़ ज़रूर पड़ेगा.”

क्या है अग्निपथ योजना? image BBC भिवानी के भीम स्टेडियम में अग्निवीर भर्ती की तैयारी करते युवा

सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना का एलान जून 2022 में किया था और इसके तहत भर्ती होने वाले जवानों को अग्निवीर कहा जाता है. इस वजह से ये योजना अग्निवीर योजना के नाम से भी जानी जाती है.

ये भारतीय सेना के तीनों अंगों- थलसेना, वायुसेना और नौसेना में जवान, एयरमैन और नाविक के पदों पर भर्ती के लिए रक्षा मंत्रालय की योजना है.

अग्निवीर योजना के साथ रक्षा मंत्रालय ने इन पदों पर भर्ती के लिए चलने वाली दूसरी योजनाएं ख़त्म कर दीं.

इस योजना के तहत भर्ती होने वाले जवानों का कार्यकाल चार साल का होता है.

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योजना के तहत भर्ती होने वालों में से सिर्फ़ 25 फीसदी जवानों को ही स्थायी सेवा में रखने के प्रावधान है. बाक़ी बचे 75 फ़ीसदी के लिए सिर्फ़ चार साल में ही रिटायर होने का प्रावधान है.

यही नहीं अग्निवीरों के लिए पेंशन, मेडिकल सुविधा और कैंटीन जैसे सुविधाएं भी ख़त्म कर दी गईं और चार साल बाद सेवा समाप्त होने पर एकमुश्त 10 लाख रुपये की सेवा निधि देने की व्यवस्था की गई.

इस योजना में ये भी प्रावधान है कि सेवा में रहने के दौरान अगर संघर्ष या लड़ाई में किसी अग्निवीर की मौत होती है तो उसे शहीद का दर्जा नहीं दिया जाएगा.

ऑन ड्यूटी अगर किसी अग्निवीर की मौत होती है तो परिवार को 48 लाख रुपये का बीमा कवर और 44 लाख रुपये की आर्थिक सहायता सेना की तरफ से दी जाती है.

वहीं अगर अग्निवीर ऑन ड्यूटी नहीं है तो उसे सिर्फ 48 लाख रुपये का बीमा कवर ही दिया जाता है.

इसके अलावा केंद्र सरकार ने अग्निवीरों को अर्धसैनिक बलों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का एलान किया है. इसके तहत, सीआईएसएफ़, बीएसएफ़, सीआरपीएफ़, और एसएसबी जैसे अर्धसैनिक बलों में आरक्षण दिया जाएगा.

उस वक़्त इस योजना के ख़िलाफ़ देश के विभिन्न राज्यों ख़ासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में विरोध प्रदर्शन हुए थे. इन विरोध प्रदर्शनों के बाद सेना के तीनों अंगों के बड़े अफ़सरों ने मीडिया के सामने आकर अपनी सफाई भी दी थी.

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