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मणिपुर फिर हिंसा की चपेट में, कैसे एक संवेदनशील इलाक़े तक पहुँची जातीय संघर्ष की आँच

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BBC मणिपुर में पिछले साल 3 मई को हिंसा की शुरुआत हुई थी. हाल ही में कुकी और मैतेई समुदाय के प्रतिनिधियों के बीच शांति वार्ता हुई लेकिन एक बार फिर हिंसा तेज़ हो गई

भारत का पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर एक बार फिर हिंसा की चपेट में है.

अक्तूबर से शुरू हुई छिटपुट हिंसा की घटनाएँ उस समय और तेज़ हो गईं, जब 11 नवंबर को सुरक्षाकर्मियों के साथ कथित मुठभेड़ में 10 हथियारबंद संदिग्ध चरमपंथी मारे गए.

इस घटना के बाद जिरीबाम से लेकर इंफाल वेस्ट ज़िले तक हिंसा की कई घटनाएँ सामने आई हैं. ये अशांति अब पड़ोसी राज्य असम और मिज़ोरम तक फैल गई है.

जिरीबाम में बढ़ती हिंसा को देखते हुए इससे सटे असम के कछार ज़िले में भी हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है. कछार के एसपी नुमल महत्ता ने बताया कि मणिपुर के जिरीबाम ज़िले में अशांति के मद्देनज़र असम से सटे इलाक़ों में चौबीसों घंटे गश्त की जा रही है.

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वहीं, इस हिंसा के बाद मिज़ोरम में रह रहे मैतेई समुदाय को ज़ो रीयूनिफिकेशन ऑर्गनाइज़ेशन (ज़ोरो) नाम के संगठन की ओर से धमकी मिलने के बाद वहाँ माहौल काफ़ी तनावपूर्ण बन गया है.

इस संगठन का आरोप है कि तटस्थ बल माने जाने वाले सीआरपीएफ़ के जवानों ने 11 नवंबर को 10 आदिवासी युवाओं की गोली मारकर हत्या कर दी, जिससे मणिपुर में जातीय संघर्ष और तेज़ हो गया.

हालाँकि, मणिपुर की पुलिस ने सोशल मीडिया अकाउंट पर जारी बयान में इन आरोपों का खंडन किया था. पुलिस का दावा है कि हथियारबंद चरमपंथियों ने पुलिस स्टेशन पर हमला किया.

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बैठक का कोई असर नहीं image BBC 19 अक्टूबर को जिरीबाम के बोरोबेकरा थाना क्षेत्र में फायरिंग की घटना हुई. कई घरों को जलाने की खबर भी सामने आई थी. यह घटना दोनों समुदाय की बैठक के बाद हुई थी

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 15 अक्तूबर को मणिपुर के बीजेपी विधायकों और मंत्रियों को नई दिल्ली बुलाकर एक बैठक की थी.

इस बैठक में कुकी जनजाति और मैतेई समुदाय के विधायक-मंत्री शामिल हुए थे.

पिछले साल 3 मई को हिंसा शुरू होने के बाद यह पहला मौक़ा था, जब दोनों समुदाय के प्रतिनिधियों ने बैठकर बात की थी.

इस बातचीत में मणिपुर के नगा जनजाति के विधायक और मंत्री भी मौजूद थे.

इस बैठक में मौजूद रहे एक विधायक ने बताया कि गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बैठक के बाद दोनों समुदाय के प्रतिनिधियों को एक संकल्प दिलाया था कि अब मणिपुर में एक भी गोली नहीं चलेगी.

कोई भी समुदाय हिंसा नहीं करेगा. लेकिन बैठक के तीन दिन बाद ही 18 अक्तूबर को जिरीबाम ज़िले के कालीनगर में संदिग्ध चरमपंथियों ने कुकी समुदाय के एक स्कूल में आग लगा दी.

अगले दिन 19 अक्तूबर को जिरीबाम के बोरोबेकरा थाना क्षेत्र में फ़ायरिंग की घटना हुई.

कई घरों को जलाने की ख़बर सामने आई. फिर 21 अक्तूबर को जिरीबाम के नुनखाल गाँव में मैतेई लोगों के कई घर जलाए गए.

पिछले सात नवंबर की शाम को संदिग्ध चरमपंथियों ने जिरीबाम के जैरावन गाँव में एक कुकी कबीले की महिला को गोली मारी और उनको कथित तौर पर मकान समेत जला दिया.

इस घटना के महज़ तीन दिन बाद 11 नवंबर को मणिपुर पुलिस और सीआरपीएफ़ के साथ हुई एक कथित मुठभेड़ में 10 संदिग्ध चरमपंथियों की मौत हो गई.

फ़िलहाल जिरीबाम ज़िले में स्थिति काफ़ी तनावपूर्ण बनी हुई है. प्रशासन ने पूरे इलाक़े में जारी कर्फ़्यू की मियाद अनिश्चित समय के लिए बढ़ा दी है.

दरअसल, सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए लोगों के शव अब तक परिवार वालों को सौंपे नहीं गए हैं.

दूसरी ओर तीन दिन से लापता छह लोगों को पुलिस अब तक तलाश नहीं पाई है.

मणिपुर की पुलिस का कहना है कि आईजी और रैंक के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी लापता लोगों की तलाश के लिए चलाए जा रहे अभियान की ख़ुद निगरानी कर रहे हैं.

वे जिरीबाम और बोरोबेकरा में मौजूद हैं.

ऐसे में दोनों समुदाय की तरफ़ से सामने आ रही प्रतिक्रिया से माहौल काफ़ी अशांत बना हुआ है.

पुलिस के अनुसार अगवा किए गए लोगों में तीन महिलाएँ और तीन छोटे बच्चे हैं, जिनको बचाने के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है.

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जिरीबाम में हिंसा क्यों? image BBC असम से जिरीबाम के रास्ते इंफ़ाल तक अधिकतर आवश्यक सामान इसी मार्ग से पहुँचते हैं. लिहाजा यहाँ हो रही लड़ाई क्षेत्र पर वर्चस्व की लड़ाई भी बताई जा रही है.

ऐसे में एक सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि आख़िर असम की सीमा से सटे जिरीबाम में इतनी हिंसा क्यों हो रही है?

एक विधायक ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, "मणिपुर में 11 महीने से हिंसा चल रही थी लेकिन जिरीबाम एक ऐसा ज़िला था, जहाँ इस साल 14 अप्रैल तक हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई थी. इस क्षेत्र में पूरी तरह शांति थी, लेकिन इसके बाद इलाक़े में कुछ अवांछित घटनाएँ हुईं और राज्य के अन्य हिस्सों से कुछ बाहरी लोगों का प्रवास हुआ और इसके बाद से जिरीबाम अब तक जल रहा है."

दरअसल, मणिपुर में कई नागरिक समाज संगठनों के युवकों ने अपने-अपने समुदाय की रक्षा करने के लिए हथियार उठा रखे है.

पिछले महीने जब मैं इंफाल वेस्ट ज़िले के कौतरूक गाँव में रिपोर्टिंग करने गया था, तो वहाँ ऐसे कई युवक हथियारों के साथ गाँव की सीमा पर पहरा दे रहे थे.

जबकि इन युवकों के कैंप के बिल्कुल पास मणिपुर के इंडिया रिज़र्व बटालियन के जवान भी तैनात थे.

ठीक इसी तरह कई हथियारबंद युवकों को मैंने चुराचांदपुर में प्रवेश करने से पहले एक बफ़र ज़ोन में पहरा देते देखा था.

जब इन हथियारबंद युवकों के बारे में इंफाल के एक विधायक से पूछा तो उन्होंने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया,"दरअसल, विलेज गार्ड के नाम पर प्रदेश में एक 'हथियारबंद प्राइवेट आर्मी' खड़ी कर दी गई है. ज़ाहिर सी बात है कि जिरीबाम में भी इन युवकों की तैनाती हुई है. 'प्राइवेट आर्मी' के लोगों का इतना डर है कि यहाँ कोई भी व्यक्ति निष्पक्ष बातचीत तक नहीं कर सकता."

वह आगे बताते हैं, "क्योंकि ये लोग सैन्य वर्दी में हथियार लेकर चलते हैं. इसके अलावा कुछ चरमपंथी भी अपने-अपने समुदाय की रक्षा करने के नाम पर आम लोगों के साथ आकर मिल गए हैं. लिहाजा ऐसी स्थिति में राज्य की क़ानून-व्यवस्था को कौन नियंत्रित करेगा? जिरीबाम में हिंसा के पीछे यह भी एक कारण है."

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जिरीबाम की अहमियत image BBC हिंसा के बाद से कुकी जनजाति के लोग अलग प्रशासन की मांग पर अड़े हैं. एक युवती की मौत के विरोध में कुकी समुदाय की महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया

मणिपुर में क़रीब 18 महीनों से दो समुदाय के बीच जारी हिंसा और प्रदेश की राजनीति पर नज़र रख रहे जानकारों का मानना है कि जिरीबाम मणिपुर का एक अहम एंट्री प्वाइंट है.

असम से जिरीबाम के रास्ते इंफ़ाल तक अधिकतर आवश्यक सामान इसी मार्ग से पहुँचता है. लिहाजा यहाँ हो रही लड़ाई क्षेत्र पर वर्चस्व की लड़ाई भी बताई जा रही है.

जिरीबाम में लंबे समय से बसे और वहाँ व्यापार कर रहे मोहम्मद नूर (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "घाटी के इलाक़ों में बसे मैतेई लोगों के लिए जिरीबाम से गुज़रने वाला नेशनल हाईवे-37 एक लाइफ़ लाइन की तरह है. खाने-पीने के सामान से लेकर बाहरी राज्यों से आने वाली हर वस्तु जिरीबाम या फिर नगालैंड के दीमापुर के रास्ते ही इंफाल तक पहुँचती है. ऐसे में ख़ासकर इंफाल घाटी में रहने वाले लोगों के लिए जिरीबाम-इंफाल को जोड़ने वाले राजमार्ग पर नाकाबंदी या किसी तरह का नियंत्रण बड़ी मुश्किल पैदा कर सकती है."

नूर बताते हैं कि जो पुराना राजमार्ग था, वो बिष्णुपुर, नुंग्बा, चुराचांदपुर, सेनापति और तामेंगलोंग ज़िलों से होकर गुज़रता था. ये केवल 100 किलोमीटर लंबा है. जबकि नया जिरीबाम राजमार्ग 220 किलोमीटर लंबा है.

इसके अलावा मणिपुर भारतीय रेलवे प्रणाली से भी जिरीबाम के माध्यम से जुड़ा है और यह रेल लाइन तामेंगलोंग ज़िले के खोंगसांग गाँव तक पहुँच चुकी है.

लगभग 111 किलोमीटर लंबी जिरीबाम-इंफाल रेलवे लाइन परियोजना मणिपुर की राजधानी इंफाल को जिरीबाम शहर से जोड़ने के लिए बनाई गई है.

मणिपुर विधानसभा के एक सदस्य ने नाम ना छापने की शर्त पर बीबीसी से कहा, "जिरीबाम और मोरेह ये दोनों ज़िले राज्य के लिए महत्वपूर्ण एंट्री प्वाइंट हैं. मणिपुर में बाहर से जो भी आवश्यक सामान सड़क मार्ग से आता है, वो या तो जिरीबाम से प्रवेश करता है या फिर नगालैंड के रास्ते प्रदेश में दाखिल होता है."

वह बताते हैं, "हिंसा के बाद से कुकी जनजाति के लोग अलग प्रशासन की मांग पर अड़े हैं. ऐसे में अगर भारत सरकार कोई फ़ैसला करती है तो इन दोनों नेशनल हाईवे पर कुकी का नियंत्रण हो सकता है. क्योंकि दोनों हाईवे के पास कुछ गाँव कुकी बहुल हैं. यह एक बड़ा कारण है और इसलिए इंफाल के बाहर अगर कहीं सबसे ज़्यादा हिंसा हुई है, तो वो जगह मोरेह और जिरीबाम ही हैं."

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राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई? image BBC राज्य में हिंसा शुरू होने के बाद से नागरिकों के पास भारी संख्या में हथियार होने की बात सामने आ रही थी. प्रशासन ने पूरे इलाके में जारी कर्फ्यू की मियाद अनिश्चित समय के लिए बढ़ा दी है

जिरीबाम पर राजनीतिक पकड़ को लेकर भी कई पार्टियाँ वर्षों से कोशिश कर रही हैं.

एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "जिरीबाम पर राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई लंबे समय से चल रही है. अभी तक जिरीबाम में बीजेपी एक बार भी जीत नहीं सकी है. इस पूरी लड़ाई में कुछ राजनेता आग में घी डालने का काम कर रहे हैं, इसलिए वहाँ हिंसा हो जाती है."

मणिपुर चुनाव अधिकारी कार्यालय की एक जानकारी के अनुसार, जिरीबाम में क़रीब 30 हज़ार पंजीकृत मतदाता हैं.

जबकि 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, बंगाली बोलने वाले (हिंदू-मुस्लिम) 50 फ़ीसदी से ज़्यादा हैं यानी राजनीतिक तौर पर यहाँ बंगाली समुदाय का ही दबदबा रहा है.

यही कारण है कि 2017 के बाद से बंगाली मूल के निर्दलीय उम्मीदवार इस सीट पर जीत दर्ज कर रहे हैं. जबकि 1967 से जिरीबाम सीट पर ज़्यादातर कांग्रेस पार्टी के ही विधायक रहे हैं.

जिरीबाम में 30 प्रतिशत से ज़्यादा मैतेई आबादी है और कुकी महज डेढ़ फ़ीसदी हैं. इसलिए बीजेपी पिछले कुछ समय से जिरीबाम की राजनीति पर पकड़ बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.

जिरीबाम ज़िले के एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि बीते कुछ सालों में पार्टी ने जिरीबाम पर अच्छी पकड़ बनाई है.

वह कहते है, "रणनीति के नज़रिए से जिरीबाम की अहमियत केवल मणिपुर के लिए ही नहीं है, बल्कि देश के लिए महत्वपूर्ण है. केंद्र सरकार नेशनल हाईवे से लेकर जो रेलवे कनेक्टिविटी पर काम कर रही है, इससे इंफाल ही नहीं बल्कि म्यांमार के साथ भी संपर्क जोड़ा जा सकता है. ऐसे में अगर कोई अलग प्रशासन की मांग कर रहा है तो वो बेतुकी मांग है."

उन्होंने कहा, "जहाँ तक राजनीतिक क्षमता की बात है, तो भले ही मौजूदा विधायक जनता दल (यूनाइटेड) की टिकट पर जीते थे, लेकिन नतीजों के बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए. इसलिए जिरीबाम को लेकर राजनीतिक वर्चस्व जमाने की बातों का कोई मतलब ही नहीं है."

क्या मैतेई लोगों के मन में यह डर है कि अगर केंद्र सरकार कुकी लोगों की अलग प्रशासन वाली मांग को मान लेती है, तो यह राजमार्ग और रेल कनेक्टिविटी उनके नियंत्रण में चली जाएगी?

इस सवाल के जवाब में बीजेपी नेता कहते हैं, "किसी को कोई डर नहीं है. हमारी सरकार मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए हरसंभव मदद कर रही है. कुछ लोग हिंसा करते हैं. उनके ख़िलाफ़ सरकार कार्रवाई कर रही है. इस समय यहाँ के लोग केवल शांति स्थापित करने की बात को सबसे अहम मान रहे हैं."

कई इलाक़ों में आफ़्स्पा लागू image Manipur Police इससे पहले आफ़्स्पा राज्य के मैतेई-बहुल घाटी क्षेत्रों में 19 पुलिस स्टेशनों को छोड़कर पूरे मणिपुर के लिए लागू था. पिछले कुछ समय से कुकी संगठन इस बात का विरोध करते आ रहा था

राज्य में जारी हिंसा के बीच गृह मंत्रालय ने गुरुवार को एक अधिसूचना जारी कर इंफाल घाटी क्षेत्रों के छह पुलिस स्टेशनों के अधिकार क्षेत्र में आफ़्स्पा यानी सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम के तहत ‘अशांत क्षेत्र’ अधिसूचना फिर से लागू कर दी गई.

राज्य में चल रहे जातीय संघर्ष के क़रीब 18 महीने बाद यह अधिसूचना जारी की गई है.

इससे पहले आफ़्स्पा राज्य के मैतेई-बहुल घाटी क्षेत्रों में 19 पुलिस स्टेशनों को छोड़कर पूरे मणिपुर के लिए लागू था. पिछले कुछ समय से कुकी संगठन इस बात का विरोध करते आ रहे थे.

अब इसे इंफाल वेस्ट ज़िले के सेकमाई और लमसांग पुलिस स्टेशनों के साथ ही इंफाल ईस्ट ज़िले में लमलाई, बिष्णुपुर ज़िले के मोइरांग, कांगपोकपी ज़िले के लीमाखोंग और जिरीबाम पुलिस स्टेशनों के अधिकार क्षेत्र तक बढ़ा दिया गया है.

राज्य में हिंसा शुरू होने के बाद से नागरिकों के पास भारी संख्या में हथियार होने की बात सामने आ रही थी. लिहाजा आफ़्स्पा लागू होने से सेना को किसी भी ऐसे स्थान पर स्वतंत्र रूप से कार्य करने की व्यापक शक्तियाँ मिल जाएँगी.

अधिसूचना में गृह मंत्रालय ने कहा है कि मणिपुर में स्थिति की समीक्षा में पाया गया कि स्थिति अभी भी “अस्थिर” बनी हुई है और “विष्णुपुर-चुराचंदपुर, इंफाल ईस्ट, इंफाल वेस्ट, कांगपोकपी और जिरीबाम ज़िलों के सीमांत इलाक़ों में हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में रुक-रुक कर गोलीबारी जारी है.”

गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कई घटनाओं में “हिंसा के जघन्य कृत्यों में उग्रवादी समूहों की भागीदारी” का भी उल्लेख किया गया है.

पिछले साल से चल रहा है हिंसा का दौर image BBC मणिपुर में पिछले साल शुरू हुई हिंसा में 200 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं

मणिपुर में क़रीब डेढ़ साल पहले हिंसा का दौर शुरू हुआ था. उस वक़्त मणिपुर हाई कोर्ट ने 27 मार्च 2023 को एक आदेश में राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की बात पर जल्दी विचार करने को कहा था.

इस आदेश के कुछ दिन बाद ही राज्य में जातीय हिंसा भड़क गई थी और कई लोगों की जान भी गई. इस हिंसा की वजह से हज़ारों लोगों को बेघर भी होना पड़ा और सार्वजनिक संपत्ति का भी नुक़सान हुआ.

राज्य के मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को इस हिंसा की मुख्य वजह माना जाता है. इसका विरोध मणिपुर के पहाड़ी इलाक़ों में रहने वाले कुकी जनजाति के लोग कर रहे हैं.

बाद में फ़रवरी 2024 में मणिपुर हाई कोर्ट ने अपने पिछले आदेश से उस अंश को हटा दिया था, जिसमें मैतेई समुदाय के लिए एसटी का दर्जा देने की सिफ़ारिश का ज़िक्र था.

हिंसा से प्रभावित मैतेई और कुकी समुदाय के लोग अब भी बड़ी संख्या में राहत शिविरों में रह रहे हैं. हिंसा से प्रभावित कुछ लोगों को भागकर पड़ोसी राज्य मिज़ोरम में शरण लेनी पड़ी है.

मणिपुर सरकार के अनुसार इस हिंसा में अब तक 250 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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