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आग लगने की वो घटनाएं जिनमें गई कई बच्चों की जान

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Getty Images अस्पताल में लगने वाली आग के लिए शॉर्ट सर्किट को एक प्रमुख वजह बताया जाता रहा है

उत्तर प्रदेश में झांसी के सरकारी मेडिकल कॉलेज के नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में शुक्रवार को आग लगने से 10 नवजात की मौत हो गई.

एसएसपी झांसी सुधा सिंह ने पत्रकारों को बताया कि घटना में घायल 16 नवजात का इलाज किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना की जांच के लिए कमिश्नर और डीआईजी के नेतृत्व में दो सदस्यीय एक जांच कमेटी बनाई है.

अस्पताल में आग की घटनाओं ने हाल के समय में कई नवजात शिशुओं की जान ली है. हर घटना के बाद प्रशासन.. सुरक्षा व्यवस्था को और दुरुस्त करने के दावे करते रहे हैं.

आइये जानते हैं बीते सालों में हुई अस्पताल में आग लगने की उन घटनाओं के बारे में जिनमें गई कई मासूमों की जान.

image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए करें दिल्ली, 25 मई 2024 image BBC बेबी केयर न्यूबोर्न हॉस्पिटल, विवेक विहार, दिल्ली

बीती 25 मई को दिल्ली के लगने से सात नवजात बच्चों की मौत हो गई.

पुलिस के अनुसार, यह बेबी केयर अस्पताल अवैध रूप से चल रहा था और इसमें सिर्फ पांच बेड थे, जबकि 12 बच्चों को भर्ती किया गया था.

दिल्ली फ़ायर सेवा के अधिकारियों ने एक बयान में बताया था कि आग लगने की वजह शॉर्ट सर्किट हो सकती है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल इस अस्पताल के संचालन की मंज़ूरी पर खड़ा किया गया.

यह अस्पताल एक रिहायशी इलाक़े के पास की तंग जगह में एक कमर्शियल बिल्डिंग में स्थित था. इसी इमारत में एक बैंक भी था. अस्पताल का पिछला हिस्सा रिहायशी कॉलोनी से जुड़ा हुआ था.

पुलिस जांच में पता चला कि अस्पताल में एमबीबीएस डॉक्टरों की जगह बीएएमएस (आयुर्वेदिक) डॉक्टर नियुक्त किए गए थे.

जांच के अनुसार, अस्पताल का लाइसेंस 31 मार्च को ख़त्म हो गया था. अस्पताल क्षमता से अधिक भरा हुआ था. दो मंज़िला इस अस्पताल में कोई आपातकालीन द्वार नहीं था. अस्पताल को सिर्फ़ 20 सिलेंडर रखने की अनुमति थी पर अस्पताल में 32 सिलेंडर थे.

राजकोट गेमज़ोन अग्निकांड, 25 मई 2024, image BBC / BIPIN TANKARIA राजकोट के गेमज़ोन में लगी आग के पीछे भी फ़ायर सेफ़्टी के मामलों में लापरवाही के मामले सामने आए थे.

25 मई 2024 के ही दिन गुजरात के राजकोट में एक गेमज़ोन में भीषण आग लग जाने से 27 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें 9 बच्चे थे.

शव इतनी बुरी तरह जल गए थे कि उनकी पहचान के लिए डीएनए टेस्ट कराए गए.

मई में गर्मी की छुट्टियां हुई थीं और बड़ी संख्या में बच्चे अपने परिजनों के साथ गेमज़ोन में मौजूद थे.

जकोट तालुका पुलिस ने गेमज़ोन के प्रबंधकों सहित छह लोगों के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 304, 308, 337, 338 और 114 के तहत मामला दर्ज किया गया था.

प्राथमिक जांच में यहां भी फ़ायर सेफ़्टी को लेकर लापरवाही बरतने का मामला सामने आया.

6 अगस्त, 2020 को अहमदाबाद के नवरंगपुरा क्षेत्र में बने श्रेया अस्पताल के आईसीयू में भी आग लगी थी, जिसमें आठ कोरोना मरीज़ों की मौत हो गई थी.

भोपाल, नवंबर 2021 image SHURAIH NIAZI/BBC भोपाल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल हमीदिया के परिसर में कमला नेहरू अस्पताल स्थित है.

नवंबर 2021 में भोपाल के लगने से चार बच्चों की मौत हो गई थी जबकि तीन बच्चे झुलस गए थे.

प्रशासन का कहना था कि सिलेंडर में ब्लास्ट या शॉर्ट सर्किट इस आग की वजह हो सकती है.

राजधानी भोपाल में स्थित आठ मंज़िल के इस अस्पताल में आग बुझाने के लिए कोई भी इंतज़ाम नहीं था. इस अस्पताल में लगभग 400 मरीज़ हमेशा भर्ती रहते हैं. वहीं यह बात भी सामने आई कि अस्पताल के पास बिल्डिंग की फायर एनओसी भी नहीं थी.

अस्पताल ने न तो एनओसी ली थी और ना ही फ़ायर सेफ़्टी ऑडिट हुआ था.

इसके साथ ही आग को काबू करने के लिए अस्पताल में लगे उपकरण भी काम नहीं कर रहे थे.

महाराष्ट्र, जनवरी 2021 image Pravin Mudholka मारे गए सभी 10 नवजातों की उम्र एक महीने से तीन महीने के बीच थी.

नौ जनवरी 2021 को महाराष्ट्र के भंडारा के ज़िला अस्पताल के स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट में हो गई थी.

समाचार एजेंसी एएनआई ने डॉक्टरों के हवाले से बताया था कि सभी नवजात एक महीने से तीन महीने के बीच के थे.

प्रशासन ने माना था कि अस्पताल में फ़ायर सेफ़्टी उपकरण लगाने का प्रस्ताव पिछले एक साल से लंबित था. हालांकि उस समय की तत्कालीन उद्धव ठाकरे की सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए थे.

राज्य के तत्कालीन मंत्री विजय वेडेट्टिवार ने कहा था कि नेशनल फ़ायर सेफ़्टी कॉलेज एंड विश्वेसरैया नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, नागपुर के एक्सपर्ट से इस मामले की जांच कराने की बात कही थी और दोषियों को कड़ी सज़ा देने की बात कही थी.

कोलकाता image BBC अस्पताल के कर्मचारियों को आखिर में अस्पताल से निकाला गया.

दिसंबर 2011 में कोलकाता के एक निजी लगी थी जिसमें कम से कम 89 लोगों की मौत हो गई थी. ज़्यादातर लोगों की मौत दम घुटने से हुई.

घटना के समय अस्पताल में 160 मरीज़ मौजूद थे. अस्पताल में सबसे अधिक मौत उन लोगों की हुई जो इलाज करवा रहे थे.

बताया जाता है कि कई मंज़िला इमारत होने के कारण राहत पहुंचने में भी देर हुई और राहत कार्यों की रफ़्तार से लगा कि फ़ायर ब्रिगेड इस तरह के काम के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी.

अस्पताल में दाख़िल होने के लिए अग्निशमन कर्मचारियों को खिड़की का शीशा तोड़ना पड़ा, तब जाकर वे मरीज़ों को बाहर निकाल सके.

इसी साल अक्तूबर महीने में ही पश्चिम बंगाल के सियालदह में ईएसआई अस्पताल में अग लग गई जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई. पुलिस के अनुसार, शॉर्ट सर्किट के कारण यह आग लगी थी.

फ़ायर सेफ़्टी को लेकर निर्देश

इसी साल मई में आग लगने की दो बड़ी घटनाओं के बाद जून में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को फ़ायर सेफ़्टी से जुड़े जारी किए थे.

मंत्रालय ने राज्यों से आग रोकने के उपयुक्त उपाय लागू करने के निर्देश दिए, जैसे कि ज्वलनशील पदार्थों का सुरक्षित स्टोरेज और इलेक्ट्रिक सर्किट की नियमित जांच करना आदि.

मंत्रालय ने इन नियमों के कड़ाई से पालन के निर्देश दिए थे.

दिशा निर्देशों में कहा गया कि-

  • फ़ायर सेफ़्टी के एनओसी के लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को अस्पतालों और पीडब्ल्यूडी और स्थानीय फ़ायर डिपार्टमेंट के बीच बेहतर तालमेल किया जाए.
  • ज़रूरी फ़ायर सेफ़्टी और इलेक्ट्रिकल सेफ़्टी उपायों को लागू किया जाए और कड़ाई से इनकी नियमित जांच की जाए.
  • आग लगने से रोकने के लिए नियमित रूप से मॉक ड्रिल की जाए और फ़ायर सेफ़्टी के प्रोटोकॉल को लेकर स्टॉफ़ की ट्रेनिंग कराई जाए.
  • आग लगने से रोकथाम के लिए ज़रूरी अलार्म सिस्टम के रख-रखाव पर अधिकतम ध्यान दिया जाए.
  • सभी अस्पतालों में तैयारी की समीक्षा और एंबुलेंस की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए.
  • सभी अस्पतालों में ज़रूरी नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए, आग लगने से रोकने और राहत और बचाव कार्य की तैयारियों पर विशेष ध्यान दिया जाए.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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