ग़ज़ा के बाद लेबनान और अब यमन. इसराइली हमले के दायरे का विस्तार हो रहा है.
लेबनान में ईरान समर्थित शिया चरमपंथी संगठन के प्रमुख सैय्यद हसन नसरल्लाह को मारने के बाद इसराइल ने अब यमन में हूती चरमपंथी संगठन के ठिकानों पर हमला शुरू कर दिया है.
हूती विद्रोहियों के गुट को भी ईरान समर्थित चरमपंथी संगठन ही कहा जाता है.
नसरल्लाह के मारे जाने पर अरब के ज़्यादातर सुन्नी मुसलमानों के नेतृत्व वाले देश चुप रहे हैं या बहुत ही सधी हुई प्रतिक्रिया आई है.
सुन्नी नेतृत्व वाले अरब के देशों के समक्ष दुविधा रही है कि वे इसराइल से संबंध सामान्य करें या हिज़्बुल्लाह को प्रश्रय देने वाले ईरान का विरोध करें.
नसरल्लाह पिछले 32 सालों से हिज़्बुल्लाह की अगुवाई कर रहे थे और उनके ‘दुश्मन’ इसराइल और पश्चिम के अलावा आसपास के भी देश थे.
2016 में खाड़ी के देशों के अलावा अरब लीग ने हिज़्बुल्लाह को आतंकवादी समूह घोषित किया था. हालांकि इस साल अरब लीग ने आतंकवादी घोषित करने का फ़ैसला वापस ले लिया था.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें- सद्दाम हुसैन के एक फ़ैसले से जब नसरल्लाह को छोड़ना पड़ा था इराक़
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सुन्नी नेतृत्व वाले सऊदी अरब ने रविवार की शाम कहा कि लेबनान में जो कुछ भी हो रहा है, वह गंभीर चिंता का विषय है. सऊदी ने लेबनान की संप्रभुता और उसकी सुरक्षा की बात कही. लेकिन सऊदी अरब ने नसरल्लाह का ज़िक्र नहीं किया.
वहीं सुन्नी नेतृत्व वाले देश क़तर, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बहरीन नसरल्लाह के मारे जाने पर पूरी तरह से चुप हैं.
यूएई और बहरीन ने तो 2020 में इसराइल से संबंध सामान्य कर लिए थे. 2011 में बहरीन ने शिया समुदाय के लोकतंत्र के समर्थन में शुरू हुए आंदोलन को दबा दिया था. बहरीन शिया बहुल देश है लेकिन शासक सुन्नी हैं. जैसे कि सीरिया के शासक शिया हैं और ज़्यादा आबादी सुन्नियों की है.
खाड़ी के छह देशों (बहरीन, ओमान, क़तर, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत) के संगठन गल्फ़ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) ने बयान जारी कर लेबनान की संप्रभुता, सुरक्षा और स्थिरता का समर्थन किया है.
जीसीसी ने लेबनान-इसराइल सीमा पर तुरंत संघर्ष विराम पर ज़ोर दिया है. साथ ही बयान में ये भी कहा गया है कि कोई भी हथियार लेबनान की सरकार की अनुमति के बिना मौजूद न हो और उसके प्रशासन के अलावा कोई प्रशासन मौजूद न हो.
यानी जीसीसी का कहना है कि लेबनान की सरकार के अलावा वहाँ कोई और प्रभाव में ना रहे. ज़ाहिर है कि हिज़्बुल्लाह का लेबनान में काफ़ी दखल रहा है.
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समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, बहरीन में ईरान समर्थित लुआलुआ टीवी ने एक वीडियो का प्रसारण किया, जिसमें नसरल्लाह के प्रति सहानुभूति दिखाई गई. इस चैनल ने कहा कि बहरीन की सरकार ने नसरल्लाह के समर्थन में आए लोगों पर हमला किया और उन्हें हिरासत में ले लिया.
बहरीन के विपक्ष की वेबसाइट बहरीन मिरर का कहना है कि प्रशासन ने शिया धर्मगुरु को हिरासत में ले लिया क्योंकि वह नसरल्लाह को श्रद्धांजलि दे रहे थे. रॉयटर्स का कहना है कि उसने बहरीन की मीडिया रिपोर्ट्स की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की है.
मिस्र के राष्ट्रपति अब्दल फ़तेह अल-सीसी ने लेबनान के प्रधानमंत्री नाजिब मिकाती से फ़ोन पर बात की और उन्होंने नसरल्लाह का नाम लिए बिना कहा कि मिस्र लेबनान की संप्रभुता के उल्लंघन को नकारता है.
ईरान के छद्म संगठनों और उसकी नीतियों को लेकर मिस्र उसके ख़िलाफ़ रहा है. हालांकि ईरान की सरकार से मिस्र की अनौपचारिक बातचीत होती रही है.
मिस्र के राष्ट्रपति ने नसरल्लाह के मारे जाने के बाद कहा था कि पूरा इलाक़ा मुश्किल हालात में है. उन्होंने कहा कि मिस्र चाहता है कि इस इलाक़े की स्थिरता और सुरक्षा हर हाल में सुनिश्चित हो.
अल-सीसी ने टीवी पर प्रसारित अपने भाषण में नसरल्लाह का नाम तक नहीं लिया. वहीं शिया शासकों वाले देश सीरिया और इराक़ में तीन दिनों के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई है.
शनिवार तक कई अरब देशों में हसन नसरल्लाह का नाम सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा था, जिसमें कई लोग उनकी मौत पर दुख जता रहे थे.
ओमान के शाही इमाम शेख़ अहमद बिन हमाद अल-ख़लीली ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि उनका देश ‘हिज़्बुल्लाह के महासचिव के गुज़रने पर दुख जता रहा है, वो बीते तीन दशकों से यहूदी परियोजना के गले की फांस बने हुए थे.’
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तुर्की के इसराइल के साथ राजनयिक संबंध हैं, लेकिन तुर्की ने ग़ज़ा में इसके आक्रमण की तीखी आलोचना की है.
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने एक्स पर कहा कि लेबनान में "जनसंहार" किया जा रहा है. हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर नसरल्लाह का ज़िक्र नहीं किया है.
हसन नसरल्लाह की मौत पर पाकिस्तान ने भी बयान जारी किया था. हालांकि उसने भी सीधे नसरल्लाह का नाम नहीं लिया था.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि ‘पाकिस्तान मध्य-पूर्व में बढ़ती इसराइली दुस्साहस की निंदा करता है. लेबनान की संप्रभुता के उल्लंघन को स्वीकार नहीं करेंगे.’
पाकिस्तान ने साथ ही कहा कि उसकी लेबनान की जनता और इसराइली हमले के पीड़ित परिवारों के साथ सहानुभूति है.
नसरल्लाह के मारे जाने के बाद पाकिस्तान में इसराइल के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं. रविवार को लाहौर, कराची के अलावा इस्लामाबाद, पेशावर में भी प्रदर्शन हुए हैं. कराची में प्रदर्शन के दौरान झड़पें भी हुई हैं.
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि रहीं मलीहा लोधी ने कि ‘इस शहादत के बाद इसराइल का ये सोचना कि हिज़्बुल्लाह का आंदोलन रुक जाएगा, फ़लस्तीनी हक़ के लिए आवाज़ नहीं उठाएगा तो ये उसकी ग़लतफ़हमी है.’
उन्होंने कहा, “हिज़्बुल्लाह के लिए ये झटका है कि उसका टॉप लीडर इस तरह से शहीद हुआ है. इनसे पहले हिज़्बुल्लाह के नेता को भी इसराइल ने शहीद किया था. क्या इसके बाद हिज़्बुल्लाह ख़त्म हो गया? उसके बाद भी इसका आंदोलन चलता रहा जो और मज़बूत हुआ. ये हिज़्बुल्लाह के लिए झटका ज़रूर है लेकिन वो फिर से उठेगा.”
पाकिस्तान के मीडिया में नसरल्लाह की मौत को शहादत कहा जा रहा है.
अरब के कई इलाक़ों में जश्न क्यों? Getty Images सीरिया में विद्रोही गुटों के क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में नसरल्लाह की मौत पर जश्न मनाया गयाएक तरफ़ हसन नसरल्लाह की मौत पर कुछ लोगों ने दुख जताया वहीं कुछ लोग इसका जश्न भी मना रहे थे. इनमें अधिकतर सीरिया में विद्रोही गुटों के क़ब्ज़े वाले इलाक़े थे.
सीरिया में बशर अल असद की सेना को रूस और ईरान के अलावा हिज़्बुल्लाह ने भी समर्थन दिया था और सरकार विरोधी लड़ाकों से वापस कई इलाक़ों पर पकड़ बनाने में असद सरकार की मदद की थी.
एक्स पर इराक़ स्थित पत्रकार उमर अल-जमाल ने लिखा, “सीरिया में नसरल्लाह की वजह से लाखों पीड़ित हैं. क्या वो मुसलमानों से रहम की उम्मीद रखते हैं?”
यूएई स्थित पत्रकार सैफ़ अल दरई ने सीरिया में लोगों के जश्न मनाते वीडियो को पोस्ट किया. उन्होंने लिखा, “हिज़्बुल्लाह ने सीरिया में हमारे भाइयों के ख़िलाफ़ वो कर दिखाया जो यहूदी नहीं कर पाए.”
न्यूज़वीक पत्रिका में जॉर्डन सीनेट के पूर्व सदस्य मुहम्मद अलाज़ेह ने लिखा कि साल 2006 में इसराइल और हिज़्बुल्लाह के बीच हुई जंग में पूरे अरब जगत और मुस्लिम देशों में हिज़्बुल्लाह के समर्थन में रैलियां निकलती थीं लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है.
वो लिखते हैं कि हिज़्बुल्लाह ने सीरिया, इराक़ और यमन में दख़ल देना शुरू किया इसके अलावा बहरीन के प्रदर्शनों में भी उसकी भूमिका रही जिससे वो इसराइल के साथ-साथ इन देशों में मुस्लिमों के ख़िलाफ़ भी हो गया.
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वो लिखते हैं, “हिज़्बुल्लाह का यमन, सीरिया, इराक़ और ईरान के भ्रष्ट शासन को समर्थन का बड़ा असर इसराइल पर हमले की तुलना में अरब और इस्लामी मुल्कों के लोगों पर ज़्यादा पड़ा है. इसी वजह से हसन नसरल्लाह की मौत पर इनके बीच आंसू नहीं बहाए गए हैं.”
हिज़्बुल्लाह न केवल लेबनान का सबसे शक्तिशाली खिलाड़ी है बल्कि उसका दक्षिण एशिया को लेकर एक क्रांतिकारी नज़रिया रहा है. इस नज़रिए का सऊदी अरब और दूसरे खाड़ी के मुल्कों के साथ मतभेद रहा है.
साल 2016 में गल्फ़ कॉओपरेशन काउंसिल (जीसीसी) ने हिज़्बुल्लाह को ‘आतंकवादी संगठन' घोषित कर दिया था.
उसी समय हिज़्बुल्लाह के नेतृत्व ने इस्लामिक स्टेट (आईएस) के उदय के लिए सऊदी अरब को ज़िम्मेदार ठहराया था. वो सऊदी अरब पर क्षेत्र में सांप्रदायिक संघर्ष को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाता रहा है.
अरब जगत में बदलते समीकरणों के बीच ये सवाल अब भी बरक़रार है कि हिज़्बुल्लाह और सऊदी अरब समेत सुन्नी बहुल देशों के संबंध अब किस तरह प्रभावित होंगे.
Getty Images हसन नसरल्लाह का दशकों तक लेबनान और उस पूरे क्षेत्र पर प्रभाव था इस्लामिक देशों का विरोधाभासयूएई और बहरीन ने इसराइल से राजनयिक रिश्ते कायम कर लिए थे. इनके बाद सूडान और मोरक्को ने भी इसराइल से राजनयिक संबंध कायम करने का फ़ैसला किया था. सूडान और मोरक्को भी मु्स्लिम बहुल देश हैं.
ऐसा ही दबाव सऊदी अरब पर भी था. लेकिन सऊदी अरब ने ऐसा नहीं किया और कहा कि जब तक फ़लस्तीन 1967 की सीमा के तहत एक स्वतंत्र मुल्क नहीं बन जाता है तब तक इसराइल से औपचारिक रिश्ता कायम नहीं करेगा. सऊदी अरब पूर्वी यरुशलम को फ़लस्तीन की राजधानी बनाने की भी मांग करता है.
तुर्की यूएई और बहरीन की आलोचना कर रहा था कि इन्होंने इसराइल से राजनयिक संबंध क्यों कायम किए. ऐसा तब है जब तुर्की के राजनयिक संबंध इसराइल से हैं. तुर्की और इसराइल में 1949 से ही राजनयिक संबंध हैं. तुर्की इसराइल को मान्यता देने वाला पहला मुस्लिम बहुल देश था.
यहाँ तक कि 2005 में अर्दोआन कारोबारियों के एक बड़े समूह के साथ दो दिवसीय दौरे पर इसराइल गए थे. इस दौरे में उन्होंने तत्कालीन इसराइली पीएम एरिएल शरोन से मुलाक़ात की थी और कहा था कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम से न केवल इसराइल को ख़तरा है बल्कि पूरी दुनिया को है.
सऊदी अरब और हमास के रिश्ते भी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. 1980 के दशक में हमास के बनने के बाद से सऊदी अरब के साथ उसके सालों तक अच्छे संबंध रहे. 2019 में सऊदी अरब में हमास के कई समर्थकों को गिरफ़्तार किया गया था. इसे लेकर हमास ने बयान जारी कर सऊदी अरब की निंदा की थी. हमास ने अपने समर्थकों को सऊदी में प्रताड़ित करने का भी आरोप लगाया था. 2000 के दशक में हमास की क़रीबी ईरान से बढ़ी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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