सात नवंबर की शाम. मुंबई का जुहू बीच और चारों तरफ़ लोगों की भीड़. छठ मनाने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के हज़ारों लोग जुहू बीच के पाँच किलोमीटर से ज़्यादा लंबे किनारे पर जुटे हैं.
सीनियर फ़ोटो जर्नलिस्ट नीरज प्रियदर्शी ने मुझसे इस दौरान कहा, “मुझे लगता है कि जुहू जैसा छठ बिहार में भी नहीं होता है.”
यहीं मेरी मुलाक़ात हुई उत्तर प्रदेश के जौनपुर से आने वालीं रेणु हलवाई से हुई. वो पिछले 18 साल से मुंबई में छठ मना रही हैं.
रेणु कहती हैं, “यूपी जैसी ही छठ मुंबई में मनाई जा रही है, इसलिए यहाँ घर जैसा ही लगता है.”
आज ये लोग जिस पहचान के कारण जुहू बीच पर छठ मनाने इकट्ठा हुए हैं, एक दौर में इसी पहचान के कारण इन पर हमले हुए थे.
ये वो दौर था, जब शिव सेना और फिर राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना स्थानीय मराठी वोटों का समर्थन पाने की ख़ातिर उत्तर प्रदेश, बिहार और दूसरे उत्तर भारतीय राज्यों से आए लोगों को निशाने पर लेती थीं.
BBC छठ के दौरान मुंबई के जुहू बीच पर जुटी भीड़ जब महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर हुए हमलेअक्टूबर 2008. मुंबई में रेलवे की परीक्षा में हिस्सा लेने बहुत सारे छात्र उत्तर प्रदेश और बिहार से पहुँचे थे. तब राज ठाकरे की 2006 में शिव सेना से अलग होकर बनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इन छात्रों का विरोध किया और कुछ ही समय में इस विरोध ने हिंसक रूप ले लिया.
इस हिंसा की आंच तब महाराष्ट्र में रहने वाले उत्तर भारतीयों तक भी पहुँची थी.
उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले दीनानाथ तिवारी तब एक स्थानीय अख़बार में बतौर रिपोर्टर काम करते थे. वो इन घटनाओं की लगातार कवरेज कर रहे थे. उनका कहना है कि रिपोर्टिंग के दौरान मलाड में कुरार पुलिस स्टेशन के अंदर उन पर हमला हुआ था.
BBC दीनानाथ तिवारी को वो दौर अब भी याद है, जब मुंबई में हिन्दी भाषियों को निशाने पर लिया जाता थाउस दिन को याद करते हुए दीनानाथ तिवारी कहते हैं, “मैं पिटाई के एक मामले की जानकारी लेने कुरार पुलिस स्टेशन गया था. वहाँ मनसे के कार्यकर्ता पहले से मौजूद थे. वो ‘बिहारी मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए बोले कि हमें बिहार या यूपी के किसी पत्रकार से बात नहीं करनी है. मैं जैसे ही वापस जाने के लिए मुड़ा, तुरंत मेरे ऊपर हमला होता है.”
उस समय जब हिंसा बढ़ी तो मुंबई पुलिस ने मनसे प्रमुख राज ठाकरे को हिरासत में लिया था.
दिसंबर, 2018 में उस तमाम घटनाक्रम के बारे में बात करते हुए राज ठाकरे ने कहा था, “हमारा मानना है कि महाराष्ट्र में केंद्र सरकार की नौकरियां हैं तो मराठियों को मिलनी चाहिए, यूपी-बिहार वालों को नहीं. उस समय हमारे लोगों ने यूपी-बिहार वालों से बात की कि आप लोग वापस चले जाइए. जब ये लोग बात करने गए तो उन लोगों ने जिस भाषा का प्रयोग किया था तो वो सुनकर आप लोग भी खौल पड़ते.”
Getty Images उत्तर भारतीयों को लेकर बाल ठाकरे क्या सोचते थे?बाल ठाकरे की राजनीति की शुरुआत महाराष्ट्र में दक्षिण भारतीयों के विरोध से शुरू हुई थी. 1990 के दशक के आख़िर में इस राजनीति के केंद्र में मराठी बनाम उत्तर भारतीय का नेरैटिव आ गया था. उनके दौर में यूपी-बिहार के लोगों को नकारात्मक तरीके से ‘भैया’ कहकर बुलाया जाने लगा था.
साल 2008 में उन्होंने शिव सेना के मुखपत्र ‘सामना’ में बिहार से आए लोगों के लिए ‘गोबर का कीड़ा’ शब्द इस्तेमाल किया था.
एक इंटरव्यू में 'मराठी मानुष बनाम बाहरी' के सवाल पर बाल ठाकरे ने कहा था, "ज़िंदा रहो, ज़िंदा रहने दो. ये पॉलिसी थी मेरी. किसी का इसमें कोई द्वेष नहीं था. हर एक प्रांत में हर समुदाय का अधिकार होता है तो मैं मेरे लोगों का अपने प्रांत में अधिकार हासिल करने की कोशिश कर रहा था."
मार्च 2010 में महाराष्ट्र के राज्यपाल के. शंकरनारायण ने कहा था कि मुंबई में कोई भी रह सकता है.
इस पर बाल ठाकरे ने शिव सेना के मुखपत्र 'सामना' में लिखा था, 'मुंबई धर्मशाला बन गई है, बाहरी लोगों को आने से रोकने का एकमात्र तरीक़ा यही है कि परमिट सिस्टम लागू कर दिया जाए.'
ये भी पढ़ेंमलाड में रहने वाले राजकुमार लोध 40 साल पहले उत्तर प्रदेश के रायबरेली से मुंबई आए. उनका पूरा परिवार सिलाई का काम करता है.
राजकुमार के बेटे दिनेश उस हिंसक दौर के गवाह हैं, जब उत्तर भारतीयों के साथ ‘भैया’ कहकर मारपीट हुई थी. उस दौर को याद करते हुए उनकी आवाज़ में अपने आप एक ठहराव आ जाता है और वो उस वक़्त को एक दर्दनाक हिस्सा बताते हैं.
दिनेश कहते हैं, "एक समय ऐसा था जो उत्तर भारतीयों के लिए एक दर्दनाक हिस्सा था लेकिन आज हम मुंबई में सुरक्षित हैं और भेदभाव नहीं होता है."
लेकिन राजकुमार की बेटी ज्ञानती की राय अपने भाई से थोड़ी अलग है. ज्ञानती का जन्म मुंबई में ही हुआ और उनका मानना है कि अब भी उत्तर भारतीयों के साथ कहीं ना कहीं भेदभाव होता है.
वो कहती हैं, “यहां लोग हमेशा कहते हैं कि मराठी बोलिए. जब हमें मराठी नहीं आती तो हम क्यों बोले मराठी? हम हिंदी बोल रहे हैं न आप हमसे बात कीजिए. लेकिन लोगों को समझना नहीं है.”
BBC अब शिव सेना और मनसे का क्या है रुख़?बाल ठाकरे ने मराठी मानुष बनाम उत्तर भारतीय का मुद्दा उठाया और राज ठाकरे पर इसे हिंसक रूप देने का आरोप लगा. अब दोनों ही पार्टियां इस मुद्दे पर खुलकर बात करने से बचती हैं. लेकिन ऐसा हुआ क्यों?
गिरीश कुबेर महाराष्ट्र के चर्चित अख़बार लोकसत्ता के संपादक हैं.
गिरीश कुबेर कहते हैं, “मुंबई में 36 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 26 सीटों पर उत्तर भारतीय प्रभावी भूमिका में हैं. यानी मराठी भाषी लोग वहाँ बहुसंख्यक नहीं है. जब इतनी सच्चाई का सामना करना पड़ा तो शिव सेना हो या मनसे इन्हें मराठी का मुद्दा छोड़ना ही पड़ा.”
महाराष्ट्र के जिन शहरों में उद्योग-धंधे फल-फूल रहे हैं, वहाँ आपको हिंदी भाषी लोग आसानी से मिल जाएंगे. फिर चाहे वो नागपुर हो, नासिक हो या पुणे हो.
लेकिन मुंबई में उत्तर भारतीयों की संख्या सबसे ज़्यादा है.
मुंबई में उत्तर भारतीयों की राजनीति को क़रीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश तिवारी कहते हैं, “मुंबई में उत्तर भारतीयों को ठीक-ठाक संख्या में टिकट मिलते रहे हैं और जीतते रहे हैं. कुछ उत्तर भारतीय कैबिनेट मंत्री के पद तक भी पहुंचे हैं. 2008 की हिंसा के बाद 2009 का जब चुनाव हुआ था, तब अकेले मुंबई में नौ उत्तर भारतीय चुनकर आए थे. 36 सीटों में से 9 यानी 25 फ़ीसद. आप इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि उनकी हैसियत क्या है?”
चुनाव आयोग के मुताबिक़, मुंबई नगर और उपनगर को मिलाकर एक करोड़ से ज़्यादा मतदाता हैं.
इस संख्या में 30-35 लाख उत्तर भारतीय वोटर हैं और इसमें लगभग 15 लाख उत्तर भारतीय मुसलमान वोटर शामिल हैं.
मानखुर्द शिवाजी नगर सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अबू आज़मी चुनाव लड़ रहे हैं.
यूपी के आज़मगढ़ से संबंध रखने वाले अबू आज़मी कहते हैं, “जब मैं दो सीटों से चुनाव जीत सकता हूं तो कोई भी उत्तर भारतीय यहां राजनीति कर सकता है, बशर्ते वो हिम्मत दिखाए.”
हलांकि बिहार के रोहतास से आने वाले संजय निरुपम की राय इससे अलग है. वो पत्रकारिता के रास्ते राजनीति में आए थे.
उन्होंने शिवसेना से अपनी राजनीति की पारी शुरू की. फिर वो लंबे समय तक कांग्रेस में रहे. अब वो एकनाथ शिंदे की शिवसेना में हैं और डिंदोशी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
संजय निरुपम कहते हैं, “महाराष्ट्र ख़ासकर मुंबई की राजनीति में यूपी-बिहार के लोगों के लिए जगह बनाना मुश्किल है क्योंकि हम लोग यहां अल्पसंख्यक हैं. पूरी जनसंख्या में हमारी हिस्सेदारी 25-30 प्रतिशत है. चूंकि महाराष्ट्र मराठी भाषी लोगों का प्रदेश है इसलिए उनकी एक सत्ता भी है, यहाँ पर.”
BBC किन नेताओं को मिला टिकट?महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा सीटें हैं. मुंबई में नगर और उपनगर में 36 विधानसभा सीटें हैं. इन 36 सीटों पर 14 उत्तर भारतीय चुनाव लड़ रहे हैं.
बीजेपी ने चार, एकनाथ शिंदे की शिव सेना ने एक, अजित पवार की एनसीपी ने तीन, कांग्रेस ने चार, शरद पवार की एनसीपी और समाजवादी पार्टी ने एक-एक उत्तर भारतीय को टिकट दिया है.
मनसे और शिव सेना (यूबीटी) ने एक भी उत्तर भारतीय को मुंबई में टिकट नहीं दिया है.
महायुति (बीजेपी के सहयोगियों का गठबंधन) से 8 और महाविकास अघाड़ी (कांग्रेस के सहयोगियों का गठबंधन) से 6 उत्तर भारतीय चुनाव लड़ रहे हैं.
चुनाव लड़ने वालों में नवाब मलिक, संजय निरुपम, अबू आज़मी, नसीम ख़ान, असलम शेख़, फ़हाद अहमद और विद्या ठाकुर प्रमुख चेहरे हैं.
ये भी पढ़ेंमुंबई में दहिसर, कांदिवली ईस्ट, मलाड, दिंडोशी, सायन कोलीवाड़ा और कलिना. ये कुछ ऐसी सीटें जिनमें उत्तर भारतीय मतदाता जीत-हार तय करते हैं.
कलिना सीट से मुंबई में उत्तर भारतीय राजनीति के जाने-पहचाने चेहरे और महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपाशंकर सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनकर आते थे.
इस बार इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आठवले) के कोटे से अमरजीत सिंह को उतारा है.
अमरजीत सिंह कहते हैं, “बीजेपी ने पहले की तुलना में अब उत्तर भारतीयों को ज़्यादा महत्व देना शुरू किया है. पहले उत्तर भारतीय कांग्रेस के साथ बड़ी संख्या में थे लेकिन बदलते समय के साथ ये मतदाता अब बीजेपी के साथ हैं.”
एक दौर ऐसा भी था जब यूपी के फ़ैज़ाबाद (अब अयोध्या) से आने वाले तीन मुस्लिम नेताओं को कांग्रेस ने अहम पद दिए थे. 1999-2004 के बीच कांग्रेस ने सैय्यद अहमद को कैबिनेट मंत्री, नसीम ख़ान को राज्यमंत्री और सुहैया अशरफ़ को मुंबई म्हाडा (महाराष्ट्र हाउसिंग ऐंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी) के स्लम बोर्ड का चैयरमैन बनाया था.
अब कांग्रेस से कई उत्तर भारतीय नेता या तो बीजेपी में चले गए हैं या उनके सहयोगी दलों में. 2021 में कृपाशंकर सिंह कांग्रेस से बीजेपी में आए और 2024 का लोकसभा चुनाव यूपी की जौनपुर सीट से लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए.
संजय निरुपम ने इस साल लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ी और एकनाथ शिंदे की शिवेसना से जुड़ गए. 2009 में दिंडोशी सीट से कांग्रेस के विधायक रहे राजहंस सिंह साल 2021 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे और अभी बीजेपी की तरफ़ से विधान परिषद के सदस्य हैं.
BBCउत्तर भारतीय नेताओं के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने पर मुंबई कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और राष्ट्रीय प्रवक्ता चरण सिंह सपरा कहते हैं, “अगर कुछ नेता कांग्रेस छोड़कर दूसरी पार्टियों में गए हैं, वो उनकी व्यक्तिगत महत्वकांक्षाएं हैं. लेकिन उत्तर भारतीय वोटर जानता है कि कांग्रेस पार्टी हमेशा हमारे साथ खड़ी रही है और आगे भी खड़ी रहेगी.”
दोनों पार्टियों से इतर समाजवादी पार्टी भी उत्तर भारतीय मुसमानों को लेकर राजनीतिक प्रयोग करती रही है. अबू आज़मी सपा के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष हैं और नवाब मलिक भी एक समय सपा के बैनर तले राजनीति करते थे.
उत्तर भारतीयों के वोटिंग पैटर्न पर वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह कहते हैं, “एक समय उत्तर भारतीय समुदाय कांग्रेस को वोट करते थे. 2014 के बाद इसमें बदलाव आया है. 2014 के बाद उत्तर भारतीय बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट करने लगे. लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने उत्तर भारतीयों को एक भी टिकट नहीं दिया और फिर नाराज़गी के कारण इन लोगों ने बड़ी संख्या में कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) का रुख़ कर लिया था. इसलिए उनकी सीटें भी ज़्यादा आई थीं.”
लेकिन क्या उत्तर भारतीय मुसलमान और हिन्दू का वोटिंग पैटर्न एक जैसा है?
हिन्दुस्तान उर्दू डेली अख़बार के संपादक सरफ़राज़ आरज़ू कहते हैं, "बीजेपी हो या मनसे, उत्तर भारतीयों मुसलमानों की कोशिश होती है कि जो पार्टी उनसे भेदभाव करती है उसके ख़िलाफ़ वोट किया जाए. उत्तर भारतीयों के लिए सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा होता है. मुंबई में ज़्यादातर उत्तर भारतीय मुसलमान समाजवादी पार्टी को वोट करते हैं. ये लोग अखिलेश यादव को अपना नेता मानते हैं."
BBC एम. ए. रहमान शेख़. उत्तर भारतीयों के मुद्दे क्या हैं?धारावी में रहने वाले एम. ए. रहमान शेख़ 1995 में बिहार के शिवहर से मुंबई आए थे. यहां पर उन्होंने सिलाई का काम सीखा और अब ख़ुद का कपड़े से जुड़ा काम करते हैं.
चुनाव में मुद्दों के सवाल पर वो कहते हैं, “रोज़ी-रोटी और सुरक्षा मिल जाए यही बहुत है हम लोगों के लिए. यूपी-बिहार वालों के लिए अभी माहौल बेहतर है और ऐसा ही रहे तो अच्छा रहेगा.”
मुंबई में काम करने करने वाला उत्तर भारतीय संघ उत्तर भारतीयों का सबसे बड़ा ग़ैर-राजनीतिक संघटन है. इस संगठन में मुंबई में रहने वाले अलग-अलग पेशे के उत्तर भारतीय लोग जुड़े हैं.
उत्तर भारतीय संघ के अध्यक्ष संतोष सिंह बताते हैं, "उत्तर भारतीयों के लिए दो मुद्दे सबसे अहम हैं. पहला रोज़गार और दूसरा सुरक्षा. इसके अलावा प्रतिनिधित्व भी एक अहम मुद्दा है. उत्तर भारतीय समाज यह भी देखता है कि कौन सी पार्टी उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व दे रही है."
20 नवंबर को महाराष्ट्र में चुनाव हैं और 23 तारीख़ को पता चल जाएगा कि दोनों गठबंधन से कितने उत्तर भारतीय उम्मीदवार विधानसभा में दिखेंगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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