हरियाणा में विधानसभा चुनाव के नतीजों से ठीक पहले क़रीब सभी एग्जिट पोल्स ने कांग्रेस की सरकार बनने के अनुमान लगाए हैं.
अगर एग्जिट पोल सही साबित होते हैं तो दस साल बाद कांग्रेस हरियाणा की सत्ता में वापसी करेगी. इस चुनाव में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था.
लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री की कुर्सी किसे मिलेगी?
मतदान के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा के भरोसेमंद उम्मीदवारों के रोहतक स्थित उनके घर पहुँचने का सिलसिला शुरू हो चुका है.
ANI कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा का हाथ मिलवाते हुए राहुल गांधी BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए करेंवहीं हुड्डा रविवार की रात रोहतक से दिल्ली रवाना हो गए, जहाँ उनकी मुलाक़ात कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया से हुई.
दूसरी तरफ़ मुख्यमंत्री की दूसरी बड़ी दावेदार कुमारी शैलजा मतदान के दिन ही राजस्थान में सालासर धाम पहुंचीं थी, जहाँ उन्होंने पूजा अर्चना की.
किसके नाम पर लगेगी मुहर?कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक चुनावी रैली में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सांसद कुमारी शैलजा का हाथ मिलवाकर ये दिखाने की कोशिश की थी कि राज्य की कांग्रेस इकाई में कोई गुटबाजी नहीं है.
लेकिन कुमारी शैलजा ने एक नहीं बल्कि कई बार खुले तौर पर मुख्यमंत्री पद पर दावा किया है.
भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के अलावा एक तीसरा नाम रणदीप सुरजेवाला का है. कांग्रेस ने उनके बेटे आदित्य सुरजेवाला को कैथल से टिकट दिया है.
सुरजेवाला भी कांग्रेस के केंद्रीय के क़रीबी माने जाते हैं और वे भी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा ज़ाहिर कर चुके हैं.
सत्ता की चाबी किसे मिलेगी? इस सवाल पर कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामकिशन गुर्जर ने बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा, “लोगों ने अपना फ़ैसला सुना दिया है. उत्साह का माहौल है. हर ज़िले में जश्न की तैयारी हो रही है. रही बात मुख्यमंत्री की तो यह फ़ैसला विधायक और हाईकमान से होगा.”
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, “हरियाणा में कांग्रेस को कितनी सीटें मिलती हैं, उसके बाद ही तय होगा कि मुख्यमंत्री कौन होगा. हालांकि कांग्रेस जीत जाती है तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक नेचुरल चॉइस की तरह मुख्यमंत्री बनते हुए दिखाई दे रहे हैं.”
ऐसी ही बात वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल करते हैं. वे कहते हैं कि सीटों की संख्या बहुत मायने रखती है.
आदेश रावल कहते हैं, “अगर हरियाणा में कांग्रेस की 65 से 70 सीटें आती हैं, तो फ़ैसला करने में केंद्रीय लीडरशिप अहम रोल अदा करेगी, लेकिन यह नंबर अगर 50 रहता है तो राज्य के नेतृत्व में जो आदमी मज़बूत होता है, वह अपने हिसाब से फ़ैसले करवाना चाहता है.”
वे कहते हैं, “हरियाणा में दो ही खेमे हैं, एक भूपेंद्र सिंह हुड्डा का और दूसरा कुमारी शैलजा का. 90 में से 72 टिकटें हुड्डा खेमे को मिले हैं, वहीं 9 टिकटें शैलजा खेमे को. ऐसे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का पलड़ा ज़ाहिर तौर पर भारी है.”
कुमारी शैलजी हरियाणा में सिरसा लोकसभा सीट से सांसद हैं और राज्य की राजनीति में एक प्रमुख दलित चेहरा हैं.
रोहतक के वरिष्ठ पत्रकार धर्मेंद्र कंवारी कहते हैं, “शैलजा जी ने चुनाव में कांग्रेस को डैमेज करने की कोशिश की है. वो राहुल गांधी के लिए भी बड़ा सिर दर्द बना रहा, इसलिए आख़िर में अशोक तंवर को लाया गया.”
वे कहते हैं, “कांग्रेस के अंदर मुख्यमंत्री बनाने को लेकर कोई लड़ाई नहीं है और इस रेस में कुमारी शैलजा कहीं दिखाई नहीं देती हैं.”
कंवारी कहते हैं, “ज़्यादा से ज़्यादा ये हो सकता है कि शैलजा जी के एक दो समर्थकों को मंत्री बना दिया जाए.”
पिछले 10 साल से हरियाणा में बीजेपी की सरकार है. वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल कहते हैं कि कुमारी शैलजा की नेतृत्व में पार्टी हरियाणा में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई हैं.
BBCवे कहते हैं, “जब 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया तब भी कुमारी शैलजा रेस में थीं, लेकिन कुछ नहीं हुआ और हुड्डा 10 साल तक सत्ता में रहे. 2019 में कांग्रेस पार्टी ने शैलजा को हरियाणा का अध्यक्ष बनाया. उनकी लीडरशिप में चुनाव हुआ और कांग्रेस को सिर्फ़ 31 सीटें आईं.”
रावत कहते हैं, “साल 2022 में कांग्रेस हाईकमान ने राज्य इकाई में बदलाव किया. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कहने पर उनके करीबी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और अब दोनों की लीडरशिप में ये चुनाव हुआ है, जिसका फ़ायदा उन्हें मिलेगा.”
कुमारी शैलजा को उपमुख्यमंत्री बनाने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, “अगर कुमारी शैलजा को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा तो उन्हें सांसदी छोड़कर विधायक का चुनाव लड़ना होगा, लेकिन कांग्रेस लोकसभा की एक सीट ख़ाली नहीं करना चाहेगी.”
वे कहते हैं, “उपमुख्यमंत्री और उप-प्रधानमंत्री सिर्फ नाम के पद हैं, इनका ज़िक्र संविधान तक में नहीं है. ये सिर्फ़ नाम के लिए हैं. अक्सर पार्टी के वरिष्ठ नेता को ख़ुश करने के लिए कई बार ऐसा पद दे दिया जाता है, लेकिन इसकी उम्मीद हरियाणा में दिखाई नहीं देती.”
भूपेंद्र सिंह हुड्डा 80 के दशक से सक्रिय राजनीति कर रहे हैं. साल 1991 में उन्होंने पूर्व उपप्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीलाल को रोहतक से हराकर सुर्खियां बटोरी थीं.
वे साल 2005 से 2014 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे. उनके पिता रणबीर सिंह हुड्डा भी रोहतक से सांसद रहे हैं.
जब पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना तब रणबीर सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री के एक बड़े दावेदार थे, हालांकि उस समय भगवत दयाल शर्मा ने यह कुर्सी संभाली और उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया.
हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी यानी दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी रोहतक से सांसद हैं और उनका नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में लिया जा रहा है.
पत्रकार धर्मेंद्र कंवारी कहते हैं, “ये चुनाव दूसरी पीढ़ी के नेताओं को सत्ता सौंपने का चुनाव भी है. भूपेंद्र हुड्डा की चुनाव में पूरी कोशिश अपने बेटे दीपेंद्र को आगे बढ़ाने के थी. दीपेंद्र ने अपने पिता से क़रीब तीन गुणा ज्यादा जनसभाएं की हैं. वे पूरे चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़े कैंपेनर बनकर सामने आए.”
वे कहते हैं, “जितनी बॉडी लैंग्वेज में समझ पाया हूँ, उस हिसाब से मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मुख्यमंत्री बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है. वे अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को कुर्सी पर बिठाना चाहते हैं.”
भूपेंद्र सिंह हुड्डा 77 साल के हो गए हैं. जानकारों का मानना है कि वे उम्र की उस दहलीज पर पहुंच गए हैं, जहाँ उनका पूरा ज़ोर अपने बेटे को राज्य की राजनीति में स्थापित करने का है.
वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल कहते हैं कि इसे लेकर कई प्रयास भी किए गए हैं.
वे कहते हैं, “हुड्डा टीम की तरफ़ से ही ऐसा डेटा जारी किया गया था, जिसमें बताया गया था कि क़रीब 30 टिकटें 50 साल से कम उम्र के उम्मीदवारों को दिए गए हैं और इसमें दीपेंद्र हुड्डा का अहम योगदान है.”
रावल कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है और यह सब अंतिम नतीजों पर बहुत हद तक निर्भर करता है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें , , और पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)