सऊदी अरब ने इस साल 100 से अधिक विदेशी नागरिकों को मृत्युदंड दिया है. समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट में ये दावा किया गया है. हाल ही में नशीली दवाओं की तस्करी के दोषी ठहराए गए यमन के एक नागरिक को मौत की सज़ा दी गई है.
इससे पहले सितंबर में ने भी सऊदी अरब में मौत की सज़ा दिए जाने में हुई बढ़ोतरी पर चिंता जाहिर की थी.
एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार इस साल सऊदी अरब ने अब तक कुल 101 विदेशी नागरिकों को मौत की सज़ा दी है.
एएफ़पी की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह 2023 और 2022 के आंकड़ों का तीन गुना है. 2022 में 34 और 2023 में भी 34 लोगों को ही मृत्युदंड दिया गया था.
बर्लिन से चलने वाले यूरोपियन-सऊदी ऑर्गनाइजेशन फ़ॉर ह्यूमन राइट्स (ईएसओएचआर) के क़ानूनी निदेशक ताहा अल-हज्जी ने एएफ़पी को बताया, "यह एक साल में विदेशी नागरिकों को मृत्युदंड देने की सबसे बड़ी संख्या है."
मानवाधिकार संगठन मृत्युदंड दिए जाने पर सऊदी अरब की आलोचना करते रहे हैं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए चीन और ईरान के बाद...अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था के अनुसार वर्ष 2023 में सऊदी अरब ने चीन और ईरान के बाद सबसे अधिक संख्या में मौत की सज़ा दी थी.
इस साल सितंबर तक सऊदी अरब ने तीन दशकों से अधिक समय में सबसे अधिक संख्या में मौत की सज़ा दी.
ये आँकड़ा 2022 में दी गई 196 और 1995 में 192 से कहीं अधिक है.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी कई बार सऊदी अरब के इस रवैए का विरोध किया है.
अक्तूबर में सात मानवाधिकार संस्थाओं के साथ जारी एक ने कहा था, “ हम सभी संगठन सऊदी अरब में मृत्युदंड की बढ़ती संख्या से भयभीत हैं. सऊदी प्रेस एजेंसी केआँकड़ों के अनुसार अकेले 2024 के पहले नौ महीनों में कम से कम 200 व्यक्तियों को मृत्युदंड दिया गया, जो पिछले तीन दशकों में एक वर्ष के दौरान मृत्युदंडों की संख्या से अधिक है.”
इस बयान पर हस्ताक्षर करने वाली संस्थाओं में एमनेस्टी इंटरनेशनल भी शामिल था.
सितंबर में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी सऊदी अरब में मौत की सज़ा दिए जाने में हुई बढ़ोतरी पर चिंता जाहिर की थी.
तब संस्था के महासचिवने कहा था, "सऊदी अरब मानवाधिकारों को ताक पर रखते हुए लोगों को मौत की सज़ा दे रहा है."
संस्था के महासचिव का कहना था, "मौत की सज़ा एक घृणित और अमानवीय सज़ा है. इसे सऊदी अरब ने कई प्रकार के अपराधों के लिए लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया है. इनमें राजनीतिक असहमति और नशीली दवाओं से संबंधित आरोप शामिल हैं. अधिकारियों को तुरंत मृत्युदंड पर रोक लगानी चाहिए. उन्हें मौत की सज़ा का सहारा लिए बिना अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अभियुक्तों पर फिर से मुकदमे चलाने चाहिए."
अब तक 274 को मौत की सज़ा, कितने भारतीय? BBC 2019-2023 के बीच जिन देशों में दिया गया मृत्युदंडएएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब में मौत की सज़ा में बढ़ोतरी हुई है और इस साल अब तक 274 मौत की सज़ाएँ हो चुकी हैं.
एएफ़पी की रिपोर्ट के मुताबिक़ इस साल जिन विदेशी नागरिकों को मौत की सज़ा दी गई है.
इनमें पाकिस्तान के 21, यमन के 20, सीरिया के 14, नाइजीरिया के 10, मिस्र के नौ, जॉर्डन के आठ और इथियोपिया के सात शामिल हैं.
इसके अलावा इनमें सूडान, भारत और अफगानिस्तान से तीन-तीन और श्रीलंका, इरिट्रिया और फिलिपींस से एक-एक व्यक्ति शामिल था.
सऊदी अरब ने 2022 में नशीली दवाओं के अपराधियों की मौत की सज़ा पर तीन साल की लगी रोक को हटा दिया था.
नशीली दवाओं से जुड़े अपराधों के लिए मृत्युदंड ने इस वर्ष की संख्या को बढ़ा दिया है.
नशीली दवाओं से जुड़े अपराध के 92 दोषियों को इस साल मृत्युदंड दिया गया है, जिनमें से 69 विदेशी नागरिक थे.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि विदेशी नागरिकों के मामले में आम तौर पर निष्पक्ष सुनवाई नहीं होती है और उन्हें अदालती दस्तावेज़ तक मुहैया नहीं करवाए जाते हैं.
ईएसओएचआर के हाजी के मुताबिक़ सऊदी अरब में विदेशी अभियुक्त सबसे कमज़ोर माने जाते हैं.
उन्होंने कहा, " विदेशी नागरिक न केवल बड़े ड्रग डीलरों के शिकार बनते हैं, बल्कि गिरफ़्तारी से लेकर उनके मृत्युदंड तक उन्हें अपने अधिकारों के उल्लंघन के लंबे सिलसिले से गुज़रना होता है."
एमनेस्टी के मुताबिक़, साल 2023 में पाँच देशों- चीन, ईरान, सऊदी अरब, सोमालिया और अमेरिका में सबसे ज़्यादा मौत की सज़ा दी गई.
इनमें से अकेले ईरान में मृत्यु दंड के 74 फ़ीसदी मामले रिपोर्ट हुए हैं. वहीं, सज़ा-ए-मौत के कुल मामलों में 15 फ़ीसदी केस सऊदी अरब में रिपोर्ट हुए.
एमनेस्टी का कहना है कि चीन की तरह उसके पास उत्तर कोरिया, वियतनाम, सीरिया, फ़लस्तीनी क्षेत्र और अफ़ग़ानिस्तान के आधिकारिक आंकड़े नहीं मिल सके.
कितने देशों ने मृत्यु दंड को समाप्त कर दिया है?मृत्यु दंड को समाप्त करने वाले देशों में भी बढ़ोतरी हुई है.
साल 1991 में इस सूची में 48 देश शामिल थे. वहीं 2023 में मृत्यु दंड की व्यवस्था को ख़त्म करने वाले देशों की संख्या बढ़कर 112 हो गई.
नौ देश ऐसे हैं, जहाँ सिर्फ़ गंभीर अपराधों के लिए मृत्यु दंड दिया जाता है, वहीं 23 देश ऐसे हैं, जहाँ पिछले एक दशक में मौत की सज़ा का इस्तेमाल नहीं किया गया है.
यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स कार्यालय का कहना है कि जिन देशों में मृत्यु दंड का प्रावधान है, वहाँ इसे "इस मिथक के कारण रखा जाता है कि इससे अपराध रुकते हैं."
समाज विज्ञानियों के बीच ये आम सहमति है कि सज़ा-ए-मौत अपराध को रोकने में कारगर साबित नहीं हुआ है.
कुछ लोगों का कहना है कि सबसे अधिक बाधा तो पकड़े जाने और दंडित किए जाने की संभावना से ही उत्पन्न होती है.
1988 में, संयुक्त राष्ट्र के लिए मौत की सज़ा और हत्या के मामलों के बीच संबंध निर्धारित करने के लिए एक सर्वे किया गया था.
इसे साल 1996 में अपडेट किया गया.
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