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पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का अपना अध्यक्ष बदलने का क्या है मक़सद और अधीर रंजन चौधरी का क्या होगा?

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Getty Images कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी (फाइल फोटो)

पश्चिम बंगाल की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस और ख़ासतौर पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ सबसे मुखर नेता अधीर रंजन चौधरी की प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष के तौर पर औपचारिक विदाई हो गयी है.

उनकी जगह पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के सचिव शुभंकर सरकार की नियुक्ति हो गयी है जबकि प्रदेश में पार्टी की बाकी कार्यसमिति जस की तस है.

पश्चिम बंगाल में अधीर रंजन चौधरी विपक्ष के एकमात्र ऐसे नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं जो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी की नीतियों की बढ़-चढ़ कर आलोचना करते रहे हैं.

जानकार मानते हैं कि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल यानी बीजेपी में भी कोई ऐसा नेता नहीं है जिसने सत्ताधारी दल और सबसे ताक़तवर मुख्यमंत्री से इस तरह लोहा लिया हो.

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हालांकि, ये भी कहा जाता है कि वो अधीर रंजन चौधरी ही हैं जिनकी वजह से हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो पाया जबकि दोनों पार्टियां केंद्र में एक गठबंधन में हैं.

इन चुनावों में अधीर रंजन चौधरी अपनी बहरामपुर की लोकसभा सीट पूर्व क्रिकेटर युसूफ पठान से हार गए थे जिसके बाद उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा देने की पेशकश भी की थी.

इससे पहले बहरामपुर सीट वो साल 1999 से लगातार जीतते आ रहे थे .

ममता बनर्जी पर चौधरी का रुख़ और इस्तीफ़ा image BBC अधीर रंजन चौधरी (बीच में) और शुभंकर सरकार (दाएं)

कांग्रेस के केंद्रीय नेता ममता बनर्जी पर सीधा निशाना साधने से हमेशा ख़ुद को अलग रखते आए हैं, लेकिन अधीर रंजन चौधरी का रुख़ हमेशा एक सा रहा. वो राज्य के स्तर पर तृणमूल के ख़िलाफ़ अपनी पार्टी के ‘वन मैन आर्मी’ के रूप में ही जाने जाते रहे हैं.

पश्चिम बंगाल में वो अपनी इसी राजनीति पर अड़े रहे. ऐसे में संगठन के अंदर से भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या चौधरी के इस रुख़ से पार्टी को फ़ायदा पहुंचा या नुक़सान?

वैसे बतौर अध्यक्ष, 28 जून को ही उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था. लेकिन राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि नए अध्यक्ष के चयन में पार्टी के हाईकमान ने देर इसलिए कर दी ''ताकि वो पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक रणनीति में बदलाव ला सकें.''

अधीर रंजन चौधरी और कांग्रेस आलाकमान के बीच मनमुटाव के संकेत तभी से मिलने लगे थे जब लोकसभा के चुनावों के दौरान पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने घोषणा कर दी थी कि उन्हें यानी चौधरी को “पद से हटाया जा सकता है.”

चौधरी इस घोषणा के समय काफ़ी नाराज़ हुए और 21 जून को उन्होंने पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया था.

फिर 29 जुलाई को जब पश्चिम बंगाल के बड़े कांग्रेस के नेताओं को पार्टी के आलाकमान ने दिल्ली तलब किया था तो बैठक के दौरान पार्टी के प्रदेश प्रभारी ग़ुलाम अहमद मीर ने अधीर रंजन चौधरी को ‘पूर्व अध्यक्ष’ कहकर संबोधित किया था.

इस बैठक में पार्टी के केंद्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल सहित दूसरे केंद्रीय नेता भी मौजूद थे जबकि पश्चिम बंगाल से दीपा दासमुंशी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे अब्दुल मन्नान और प्रदीप भट्टाचार्य के अलावा अमिताभ चक्रवर्ती, नेपाल महतो, मनोज चक्रवर्ती और प्रदेश के कांग्रेस के एकमात्र सांसद ईशा खान चौधरी भी मौजूद थे.

उस वक्त भी बैठक में यही कवायद चल रही थी कि प्रदेश का अगला अध्यक्ष कौन होगा?

अधीर रंजन चौधरी की 'राजनीति' पर क्या कहते हैं जानकार? image BBC पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष शुभंकर सरकार (बीच में)

कुछ जानकार ये भी मानते हैं कि अधीर रंजन चौधरी, संगठन की नहीं बल्कि “ख़ुद की राजनीति” ज़्यादा करते थे. यही कारण वो बताते हैं कि ऐसे कम ही मौके़ होते थे जब चौधरी पार्टी के प्रदेश कार्यालय में दिखते हों.

कुछ समय पहले बीबीसी से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सुमन चट्टोपाध्याय ने कहा था कि चौधरी पर ये भी आरोप लगते रहे थे कि वो प्रदेश कांग्रेस कार्यालय का संचालन दिल्ली स्थित अपने आवास से करने लगे थे.

सुमन चट्टोपाध्याय का मानना था, “बतौर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, अधीर चौधरी का प्रभाव पूरे प्रदेश में होना चाहिए था और उन्हें प्रदेश भर का सर्वमान्य कांग्रेस का चेहरा होना चाहिए था. मगर ऐसा नहीं था. उनकी राजनीति का केंद्र उनका चुनावी क्षेत्र ही रहा. उन्होंने अपने आपको वहीं तक सीमित रखा और संगठन के विस्तार या उसे मज़बूत बनाने के लिए कुछ नहीं किया.”

यही मुख्य कारण था कि अधीर रंजन को लेकर पार्टी आलाकमान पशोपेश में रहा.

हालांकि, जानकारों में एक ऐसा तबका भी है जो ये मानता है कि अधीर रंजन चौधरी ‘बलि का बकरा बन गए हैं.’

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक निर्माल्या मुखर्जी मानते हैं कि अधीर रंजन चौधरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी और ममता बनर्जी के बीच चल रही रस्साकशी के बीच फंस गए हैं इसलिए उन पर ''गाज'' गिर गयी.

वो कहते हैं, “अधीर रंजन चौधरी का चुनाव हारना. उनका अध्यक्ष पद से हटाया जाना ये साफ़ इशारा कर रहा है कि राहुल गांधी, ममता बनर्जी के साथ चलना चाहते हैं. वो कहते हैं कि ऐसा होने पर फ़ायदा कांग्रेस को कम और ममता बनर्जी को ही ज़्यादा होगा क्योंकि बुरे हाल में ही सही, कांग्रेस का अपना 7 प्रतिशत मज़बूत वोटों का आधार है. ये सात प्रतिशत वोट अगर ममता को कांग्रेस के साथ गठबंधन या समर्थन से मिल जाएं, तो आने वाले विधानसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के लिए डगर कठिन होगी.”

निर्माल्या मुखर्जी कहते हैं कि ऐसे कयास लगाए जाने लगे हैं कि शायद अधीर रंजन चौधरी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं. लेकिन उन्हें नहीं लगता कि ऐसा ख़ुद बीजेपी चाहेगी क्योंकि अधीर रंजन चौधरी की छवि एक ‘तपाकी नेता’ के रूप में बनी हुई है. इसलिए उन्हें पार्टी में स्वीकार किया जाएगा इसको लेकर कोई एकमत नहीं है.

कांग्रेस के साथ कैसे होंगे तृणमूल कांग्रेस के संबंध? image Getty Images अधीर रंजन चौधरी (बाएं) और शुभंकर सरकार (दाएं) आरजी कर मामले को लेकर धरने पर बैठे थे

जहां चौधरी को पिछली लोकसभा में विपक्ष के एक प्रमुख चेहरे को तौर पर अपनाए गए आक्रामक तेवर के लिए जाना जाता रहा. वहीं पार्टी के नए अध्यक्ष उनके ‘ठीक विपरीत’ माने जाते हैं.

उन्होंने कुर्सी संभालते ही संकेत दे दिए कि “कांग्रेस को तृणमूल कांग्रेस से परहेज़ नहीं है.”

ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति बदले जाने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता.

बीबीसी से बात करते हुए शुभंकर सरकार इन बातों को सिर्फ़ ‘अटकल बाज़ी’ कहते हैं.

बुधवार को मध्य कोलकाता के सबसे व्यस्ततम इलाक़े धर्मतल्ला में प्रदेश कांग्रेस ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर से बलात्कार और हत्या के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था.

इस दौरान मंच पर प्रदेश की पूरी कार्यकारिणी मौजूद थी. मंच पर बैठे अधीर रंजन चौधरी के चेहरे से साफ़ झलक रहा था कि वो ‘अलग-थलग’ हो रहे हैं.

लेकिन पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि नया अध्यक्ष तय करना पार्टी आलाकमान का काम है जो उन्होंने किया.

उनका कहना था, “मैं कुछ नहीं कहना चाहता. अध्यक्ष तो कोई भी बन सकता है. ये पार्टी हाईकमान को तय करना था जो उन्होंने किया. मुझे इसमें क्या आपत्ति हो सकती है.”

वरिष्ठ पत्रकार और स्थानीय बांग्ला दैनिक, आनंद बाज़ार पत्रिका के डिजिटल संपादक रह चुके तापस सिन्हा मानते हैं कि कांग्रेस पार्टी तृणमूल कांग्रेस को लेकर अपनी रणनीति में बदलाव के संकेत इसी तरह दे रही है.

वो कहते हैं कि अधीर रंजन चौधरी के अध्यक्ष रहते कांग्रेस आलाकमान पश्चिम बंगाल की राजनीति में ज़्यादा हस्तक्षेप नहीं करता था. इसी वजह से तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी के बीच दूरियां बढ़ती चली गयीं और वो एक साथ गठबंधन में नहीं आ सके.

सिन्हा कहते हैं, “अब संकेत दिख रहे हैं कि प्रदेश कांग्रेस ममता बनर्जी की तरफ़ नर्म रवैया अपनाएगी और रिश्तों में नरमी भी लाने की कोशिश करेगी जो अधीर रंजन चौधरी की वजह से तल्ख़ होते चले गए थे. ये भी हो सकता है कि ‘इंडिया ब्लॉक’ पश्चिम बंगाल में ‘एक्टिवेट’ हो जाए.”

image Getty Images अधीर रंजन चौधरी (फाइल फोटो)

जानकारों की मानें तो पश्चिम बंगाल में लंबे समय तक राज करने के बाद कांग्रेस की जब से वाम मोर्चे के हाथों हार हुई, तब से पार्टी प्रदेश की राजनीति में दोबारा खड़ी नहीं हो पायी जबकि उसके पास अपने ज़माने के कई कद्दावर नेता थे. ऐसे नेताओं में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रियरंजन दासमुंशी जैसे दिग्गज नेता शामिल थे.

मौजूदा समय में कांग्रेस पार्टी पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक तरह से ‘अप्रासंगिक’ सी होकर सिमटती दिख रही है.

शुभंकर सरकार इस बात को स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि संगठन की हालत की वजह से जो ‘समर्पित कार्यकर्ता’ भी रहे हैं, उन्होंने भी दूरी बनानी शुरू कर दी.

बीबीसी से बात करते हुए सरकार का कहना था, “मेरी यही प्राथमिकता है कि आम कार्यकर्ताओं की सुनी जाए. उन्हें वो सम्मान फिर से दिया जाए. उनके सुझावों के हिसाब से रणनीति बनायी जाए. अभी संगठन कमज़ोर है. उसे दोबारा खड़ा करना सबसे बड़ी चुनौती है.”

कांग्रेस पार्टी के प्रदेश के दूसरे नेता भी मानते हैं कि आज जिस स्थिति में वो पश्चिम बंगाल में हैं वो अपनी ग़लतियों के कारण ही हैं. प्रदेश कांग्रेस कमिटी के महासचिव आशुतोष चटर्जी कहते हैं कि संगठन अंदरूनी कलह और आपस में तालमेल की कमी की वजह से हाशिये पर पहुंच गया है.

उनका कहना है कि अधीर रंजन चौधरी बेशक अब अध्यक्ष नहीं हैं लेकिन वो अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के अहम फैसले और रणनीति बनाने वाली कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सदस्य हैं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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