Top News
Next Story
NewsPoint

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के मामले में क्या है कांग्रेस की दुविधा?

Send Push
ANI कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया 'ज़मीन आवंटन' मामले पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी को हुए ज़मीन आवंटन के मामले में हाई कोर्ट के फ़ैसले ने पार्टी नेताओं को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से भी ज़्यादा दुविधा में डाल दिया है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि इससे सिद्धारमैया की बेदाग़ छवि को झटका लगा है.

लेकिन इससे ओबीसी नेता के तौर पर उनके कद को देखते हुए एक संगठन के तौर पर पार्टी पर इसके दूरगामी असर को राजनीतिक विश्लेषक खारिज नहीं कर रहे हैं.

पार्टी हलकों में यह अच्छी तरह से समझा जाता है कि उनका शीर्ष नेतृत्व फिलहाल मौजूदा हालात को बिगाड़ने के लिए इस मुद्दे पर कुछ नहीं करने वाला है.

image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

कर्नाटक में जस्टिस एम नागप्रसन्ना के फ़ैसले के साथ ही इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई अभी शुरू हुई है और सिद्धारमैया को क्लीन चिट पाने के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया का सामना करना है.

लेकिन अब यह सवाल भी है कि पार्टी आलाकमान कब तक विपक्षी बीजेपी और जेडीएस की ओर से सिद्धारमैया की छवि ख़राब करने की कोशिश को नाकाम कर पाएगा.

राजनीतिक विश्लेषक और एनआईटीटीई एजुकेशन ट्रस्ट के अकादमिक निदेशक संदीप शास्त्री ने बीबीसी हिंदी को बताया, ''इससे एक नेता के तौर पर सिद्धारमैया की पूरी छवि को नुकसान पहुंचा है. यही कांग्रेस पार्टी की दुविधा होगी."

"उसे संभालना कठिन हो सकता है और अगर सुप्रीम कोर्ट का रुख़ भी हाई कोर्ट की तरह होता है तो यह उन्हें एक बोझ बना देगा. इस घटना से उनकी राजनीतिक पकड़ भी कमजोर हो गई है.''

क्या है मामला image ANI 'ज़मीन आवंटन' के मामले पर प्रदर्शन करते बीजेपी नेता ( फ़ाइल फ़ोटो)

मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को 14 जगहों पर प्लॉटों का आवंटन किया था.

प्राधिकरण ने कथित तौर पर उनकी 3.16 एकड़ ज़मीन पर अवैध तौर पर कब्जा कर लिया था. यह ज़मीन उनके भाई बीएम मल्लिकार्जुनस्वामी ने 20 साल पहले तोहफे में दी थी.

इस मामले पर कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 218 के तहत उनके ख़िलाफ़ जांच की मंज़ूरी दी थी.

सिद्धारमैया ने इस जांच की मंज़ूरी पर सवाल उठाया था और इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील की थी. हालाँकि हाई कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ केवल जांच की अनुमति दी है, उनपर मुक़दमा चलाने की नहीं.

कानूनी जानकारों ने इस फ़ैसले पर सवाल भी खड़े किए हैं. सबसे पहले यह फ़ैसला अपनी पत्नी को ज़मीन आवंटन कराने में मुख्यमंत्री की मिलीभगत की पुष्टि करने के लिए “साक्ष्य” पेश करने में नाकाम रहा है.

क़ानूनी मामलों जानकार, वकील और 'विधि सेंटर फ़ॉर लिगल पॉलिसी' के सह संस्थापक आलोक प्रसन्ना कुमार ने बीबीसी हिंदी को बताया, “कोई भी जांच ओपन-एंडेड नहीं हो सकती. फ़ैसले में मुख्य तौर पर जो बिंदु गायब है, वह यह है कि इसमें मुख्यमंत्री की सीधी भूमिका की ओर इशारा नहीं है.''

जानकारों के मुताबिक़ मामला कितना गंभीर image ANI कर्नाटक के राज्यपाल ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के ख़िलाफ़ जांच की मंज़ूरी दी उसके बाद लोगों ने प्रदर्शन भी किया

सिद्धारमैया साल 1996 और 1999 के बीच और फिर साल 2004-2005 तक कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री थे. वो साल 2009 और साल 2013 में विपक्ष के नेता भी रहे हैं.

उसके बाद साल 2013 से 2018 के बीच और फिर मौजूदा समय में वो साल 2023 से वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.

कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा है, “यदि घटना के लिंक या इसकी कड़ियों पर ध्यान दें तो इसमें जोड़ने के लिए कुछ है. यह वह कनेक्शन है जिसके लिए कम से कम पूछताछ या जांच की ज़रूरत होगी.”

जस्टिस नागप्रसन्ना के मुताबिक़, "मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि याचिकाकर्ता की पत्नी के पक्ष में 14 सेल डीड रजिस्टर होने के तुरंत बाद ही, एमयूडीए के कमीश्नर को दिशा-निर्देश तैयार होने तक मुआवज़े के तौर पर दिए जाने वाले प्लॉट के आवंटन को रोकने के निर्देश दिए गए.''

प्रसन्ना कुमार कहते हैं, “यह मानते हुए कि इसमें कोई अपराध हुआ है, इसमें जांच के आदेश देना ठीक है. लेकिन इस मामले में यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि मल्लिकार्जुनस्वामी ने अपने बहनोई सिद्धारमैया के नाम का इस्तेमाल एक एहसान हासिल करने के लिए किया, ताकि वह अपनी बहन पार्वती को जमीन उपहार में दे सकें,''

"यह 2जी घोटाले जैसा है. इसे हर किसी ने घोटाला, घोटाला कहा और सात साल बाद यह साबित हो गया कि राज्य के खजाने को कोई नुक़सान नहीं हुआ और सभी को बरी कर दिया गया. वे एक भी बात साबित नहीं कर पाए."

जस्टिस नागप्रसन्ना ने यह भी कहा कि, ''संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह लेना राज्यपाल का कर्तव्य है. लेकिन वो असमान्य हालात में स्वतंत्र फ़ैसला ले सकते हैं. राज्यपाल के विवादित आदेश में स्वतंत्र विवेक का प्रयोग करने में कोई कसूर नहीं निकाला जा सकता है.''

image ANI बीजेपी ने सीएम सिद्धारमैया के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी किया है

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने बताया कि यह फैसला मैसूर शहर में नुक़सान की भरपाई के लिए दी गई ज़मीन का विस्तृत विश्लेषण कर, संवैधानिक प्रावधानों के सवालों से निपटने के मुद्दे से दूर चला गया है.

संजय हेगड़े ने बीबीसी हिंदी को बताया, "मूल रूप से संवैधानिक प्रावधानों में सवाल अधिक सीमित था कि क्या राज्यपाल ने कैबिनेट की सलाह के बावजूद इसके ख़िलाफ़ जाकर, मुख्यमंत्री को छोड़कर अपने विवेक से काम किया था.”

"इस फ़ैसले के 'तर्क' में खामी है. उनका निष्कर्ष दोषपूर्ण है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है वह यह है कि यदि कैबिनेट ने कोई सलाह दी है, तो यह मानना आमतौर पर राज्यपाल के लिए बाध्यकारी है. सिवाय इसके कि जब यह पूरी तरह से ग़लत हो."

संजय हेगड़े कहते हैं, "इन निष्कर्षों को देखते हुए यदि इन्हें अपील में रद्द नहीं किया जाता है, तो यह जांच करने वालों की सोच को प्रभावित करेगा. जांच अधिकारी और ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट के फ़ैसले का असर महसूस करेंगे. उन्हें यह भी लग सकता है कि वे उच्च न्यायालय के फैसले के ख़िलाफ़ नहीं जा सकते . अगर इस फ़ैसले को कायम रहने दिया गया तो यह एक बड़ा झटका होगा.''

कानून के जानकार ये अंदाज़ा नहीं लगा पा रहे हैं कि सारी कानूनी प्रक्रिया में कितना वक़्त लगेगा. लेकिन राजनीतिक टीकाकारों को लगता है कि एक तरफ़ कांग्रेस और सिद्धारमैया के बीच खींचतान और दूसरा विपक्ष के साथ रस्साकशी आने वाले हफ़्तों में और बढ़ेगी.

बीजेपी-जेडीएस गठबंधन के लिए ये उस व्यक्ति पर हमला करने का सुनहरा मौका है जिसकी वजह से वो कर्नाटक में बहुमत पाने से चूक गए थे.

अदालत का फ़ैसला आने के तुरंत बाद सिद्धारमैया ने ख़ुद कहा था, "ये लोग अपने दम पर कभी भी सरकार नहीं बना पाए हैं. बीजेपी ने हमेशा धनबल और ऑपरेशन लोटस का इस्तेमाल किया है."

कांग्रेस की सियासी उलझन image ANI कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया

अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर ए नारायण ने बीबीसी हिंदी को बताया, "इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि बीजेपी अब लगातार एक अभियान चलाएगी. हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद देखना होगा कि अब कौन सी एजेंसी निचली अदालत से इस मामले की जांच का इजाजत मांगेगी."

"अगर ये अनुमति राज्य सरकार की कोई एजेंसी या लोकायुक्त मांगता है तो बीजेपी आपत्ति करेगी और कांग्रेस को भी लगेगा कि इससे जनभावना उसके ख़िलाफ़ जा सकती है.”

सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से आते हैं. यह कर्नाटक में सबसे बड़ा ओबीसी समुदाय है.

प्रोफ़ेसर नारायण कहते हैं, "अगर सिद्धरमैया को हटाया गया तो सवाल यही होगा कि क्या पार्टी एकजुट रह पाएगी. लेकिन अगर अदालत ने सीबीआई को जांच करने के लिए कहा तो पार्टी सिद्धारमैया का साथ देगी."

"पार्टी हमेशा उनके साथ खड़ी रही है. लेकिन अगर उन्हें हटाया गया तो कांग्रेस के लिए कुरुबा जैसे समुदाय का समर्थन बचा पाना मुश्किल होगा."

कर्नाटक के राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर हरीश रामास्वामी भी प्रोफ़ेसर नारायण से सहमत दिखते हैं.

उन्होंने बीबीसी को बताया, "अगर सिद्धारमैया को हटाया तो पार्टी को एकजुट रख पाना मुश्किल होगा. दरअसल पार्टी इस बात का ख़्याल रखेगी कि उसे इसबार लिंगायत समुदाय का जो समर्थन मिला है वैसा साल 1990 में वीरेंद्र पाटिल के दौर के बाद कभी नहीं मिला है."

लेकिन प्रोफ़ेसर शास्त्री कहते हैं कि अगर सिद्धारमैया को पद से हटा भी दिया गया तो भी उनका ओबीसी समुदाय के बीच समर्थन घटेगा नहीं.

वे कहते हैं, "ऐसा देखा गया है कि पद से हटने के बाद भी समर्थन बरकरार रहता है. ये एक बड़ी वजह है जो उन्हें देवराज अर्स के बाद कम प्रभाव वाले ओबीसी समुदाय का बड़ा नेता बनाता है."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, और व्हॉट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

image
Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now