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बिहार का राजगीर खेल परिसर क्या खिलाड़ियों के लिए 'गेम चेंजर' साबित होगा?

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BiharGovt राजगीर खेल परिसर

राष्ट्रीय स्तर पर खेल कूद की दुनिया में की गिनती कहीं नहीं होती.

एकाध मौक़ों पर का कोई खिलाड़ी नेशनल टीम तक पहुंचता है, तो मालूम होता है कि वो खेल कूद की दुनिया में जगह बनाने के लिए सालों पहले अपने राज्य से बाहर निकल चुका होता है.

ऐसे राज्य में खेल कूद की आधारभूत सुविधाओं का नितांत अभाव दिखता रहा है. लेकिन इन दिनों बिहार के एक नई स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी और खेल परिसर को लेकर ख़ूब चर्चा हो रही है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अपने ज़िले नालंदा में बनने वाली यूनिवर्सिटी और उसमें बन चुके राजगीर खेल परिसर को उनका ड्रीम प्रोजेक्ट भी बताया जा रहा है.

इसी खेल परिसर में 11 नवंबर से महिला एशियाई हॉकी चैंपियनशिप का आयोजन हो रहा है.

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मेजबान भारत के अलावा इसमें चीन, साउथ कोरिया, मलेशिया, जापान और थाईलैंड की टीमें हिस्सा ले रही हैं.

11 नवंबर को चीन और थाईलैंड के बीच हो रहे वीमेंस हॉकी मैच के दौरान स्टेडियम में भोजपुरी गाना ‘आवे तानी खेले रउआ रंगे हरियर……’ बज रहा था.

इस गाने पर स्थानीय दर्शकों के साथ-साथ सफ़ेद और नीले रंग की मिडी पहनी चार चीयर गर्ल्स भी झूमती नज़र आईं. चीयर गर्ल्स जिस दिशा में नाचती हैं, स्टेडियम में बैठे लोगों का चेहरा उसी दिशा में घूम जाता है.

बिहार की राजधानी पटना से 110 किलोमीटर दूर नालंदा ज़िले स्थित राजगीर खेल परिसर में यह आयोजन 20 नवंबर तक चलेगा.

स्टेडियम में बड़ी संख्या में दर्शक राजगीर की ग्रामीण आबादी पहुँच रही हैं. इस आबादी के लिए चीयर लीडर्स, हॉकी टर्फ और निकर पहने लड़कियों को खेलते देखने का अनुभव नया है.

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यहां आईं अंशु कुमारी कहती हैं, “हम बहुत एक्साइटेड हैं लड़कियों के मैच देखने के लिए. बिहार में हम ऐसा पहली बार देख रहे हैं. लड़कियां इससे स्पोर्ट्स में आगे आएंगी.”

मनसुख के पास खड़ी उनकी दोस्त स्मृति कुमारी कहती हैं, “उम्मीद तो नहीं थी कि राजगीर में भी कभी ऐसा होगा. अच्छी बात ये है कि अब अगर कोई खेलना चाहता है, तो उसको सब कुछ राजगीर में ही मिल जाएगा.”

हालांकि, इन उम्मीदों के बीच कई लोग ऐसे भी हैं, जिनको खिलाड़ियों के परिधान पर एतराज है.

जैसा कि स्टेडियम में मज़दूरी करने वाली जया देवी कहती हैं, “इतना छोटा-छोटा कपड़ा पहनकर लड़की सब खेल रही थी और सारे आदमी उसे देख रहे थे.”

लेकिन, यह आयोजन खेल की दुनिया में बिहार की मौजूदगी को दर्शा रहा है और इसी खेल परिसर में राज्य की पहली स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी भी साल 2025 तक शुरू करने का लक्ष्य है.

image BBC बिहार के राजगीर में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी का भी निर्माण हो रहा है ये भी पढ़ें
बिहार की पहली स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी

अक्टूबर 2018 में राज्य के नालंदा ज़िले के राजगीर में 90 एकड़ में राजगीर खेल परिसर बनना शुरू हुआ था. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर इस परिसर में एक्सपोज़ ब्रिक वर्क का इस्तेमाल किया गया है.

एक्सपोज़ ब्रिक वर्क के काम में प्लास्टर, पेंट या दूसरे तरह का रंग रोगन नहीं होता. खेल परिसर में तैयार हो चुकी इमारतों में नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों की झलक मिलती है.

750 करोड़ की लागत से बन रहे इस खेल परिसर में राज्य खेल अकादमी, खेल विश्वविद्यालय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम बन रहा है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य खेल अकादमी और बिहार खेल विश्वविद्यालय का उद्घाटन 29 अगस्त 2024 को किया है.

हालांकि, अभी यहां निर्माण संबंधी कार्य जारी हैं और सारी सुविधाओं को आने में समय लगेगा.

कैंपस के अंदर बिहार, बंगाल, झारखंड के अलग-अलग हिस्सों से आए मज़दूर यहाँ बनी अस्थायी कॉलोनी में रहकर निर्माण कार्य कर रहे हैं.

इस संबंध में पूछे जाने पर राज्य के खेल मंत्री सुरेन्द्र मेहता बीबीसी से कहते हैं, “अभी खेल परिसर में काम चल रहा है और हमें उम्मीद है कि साल 2025 के नवंबर तक खेल यूनिवर्सिटी शुरू हो जाएगी और क्रिकेट स्टेडियम तैयार हो जाएगा. साथ ही बहुत सारे खेल के लिए सुविधाएं हम लोग मार्च 2025 तक शुरू कर पाएंगे.”

image BBC राजगीर खेल परिसर में कुछ हिस्सों का निर्माण कार्य जारी है ये भी पढ़ें
अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम भी बन रहा

इस कैंपस में फुटबॉल, हॉकी, तैराकी, तीरंदाजी, बास्केटबॉल, हैंडबॉल, लॉन टेनिस, साइकलिंग, ताइक्वांडो, कबड्डी, जूडो और तलवारबाज़ी सहित कुल 23 खेलों के लिए इंडोर और आउटडोर स्टेडियम होंगे.

इस खेल परिसर में छात्र–छात्राओं के लिए हॉस्टल, कोच आवास, ट्रान्जिट हॉस्टल सहित कर्मचारियों के आवास होंगे.

खेल अकादमी के तहत संचालित होने वाले इन 23 खेल के अलावा इस खेल परिसर में अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम भी निर्माणाधीन है.

ज़ाहिर है इतने बड़े आधारभूत सुविधाओं के लिए कई तरह की नियुक्तियां भी हो रही हैं. क्रिकेट स्टेडियम में कुल 114 पदों पर नियुक्ति होनी है जिसमें से 81 स्थाई पद है.

वहीं, स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी की बात करें तो नवंबर 2024 में ही सरकार ने इसके पहले कुलपति के तौर पर पूर्व आईएएस शिशिर सिन्हा की नियुक्ति की है.

राज्य सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ के मुताबिक, “बिहार राज्य में शारीरिक शिक्षा, खेल विज्ञान, खेल प्रोद्योगिकी, खेल प्रबंधन, खेल परीक्षण के क्षेत्र में खेल शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ ही खेलों के लिए उच्च स्तरीय शोध केन्द्र के रूप में कार्य करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने 16 जुलाई 2021 को बिहार खेल विश्वविद्यालय की स्थापना की स्वीकृति दी.”

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2032 के ओलंपिक में मेडल जीतने का लक्ष्य

तक़रीबन 13 करोड़ की आबादी वाले बिहार राज्य को खेल के मामले में ‘खोखला’ या ‘स्पोर्ट्स डेफिसिट स्टेट’ भी कहा जाता है. सरकार इस ‘परसेप्शन’ को तोड़ने के लिए हाल के सालों में कोशिशें कर रही है.

यही वजह है कि इस साल 9 जनवरी को सरकार ने खेल गतिविधियों और खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए ‘खेल विभाग’ का गठन किया.

इससे पहले खेल की गतिविधियां ‘कला, संस्कृति और युवा विभाग’ के अधीन थी. इससे पहले राज्य सरकार ने बिहार राज्य खेल प्राधिकरण का गठन किया था.

बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के महानिदेशक और राज्य खेल अकादमी के निदेशक रविन्द्रन शंकरण बीबीसी से कहते है, “हमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ़ से एक रोड मैप मिला है, जिस पर प्राधिकरण काम कर रहा है. पहला बिहार में खेल को एक आंदोलन का रूप देना. दूसरा साल 2028 के ओलंपिक्स में भारतीय टीम में बिहार के बच्चों का शामिल होना और तीसरा 2032-36 के ओलंपिक में मेडल जीतना है.”

मेडल जीतने के लिए सबसे पहले तो खिलाड़ी चाहिए और उसके बाद इन खिलाड़ियों को तराशने के लिए कोच चाहिए.

और इन दो पहलू के बारे में पूछे जाने पर शंकरण कहते हैं, “हम लोगों ने 14 खेल में 200 कोच की नियुक्ति करने के लिए विज्ञापन निकाला है. हम फ़िलहाल राजगीर खेल परिसर को स्टेट सेंटर फोर एक्सीलेंस और बाद में नेशनल सेंटर फॉर एक्सीलेंस बनाने का लक्ष्य रखते है.”

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खेल में बिहार के प्रदर्शन में सुधार

वैसे पिछले कुछ सालों में देखें तो राष्ट्रीय स्तर पर बिहार के युवा खेल कूद की प्रतियोगिताओं में नज़र आने लगे हैं. बिहार ने साल 2022 में गुजरात में हुए नेशनल गेम्स में महज दो कांस्य पदक हासिल किए थे.

लेकिन, साल 2023 में गोवा में हुए नेशनल गेम्स में ये आंकड़ा बढ़कर नौ तक पहुंचा था, जिसमें छह कांस्य और तीन रजत पदक शामिल था.

इसी तरह नेशनल स्कूल गेम्स में 2017-18 में जहां राज्य को 37 पदक मिले थे, उनकी गिनती 2023-24 में बढ़कर 74 हो गई.

इसके अलावा पैरालंपिक गेम्स और चीन में हुए एशियन गेम्स में भी राज्य ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. भारतीय महिला हॉकी के राष्ट्रीय कोच हरेन्द्र सिंह बिहार के सारण ज़िले के हैं.

उन्होंने कहा, “मैं 57 देश घूमा हूं और बिहार में बन रहा ये खेल परिसर दुनिया के अच्छे स्पोर्ट्स प्रांगण में से एक है. मेरी बिहार के अभिभावकों से ये अपील रहेगी कि अपने बच्चों को स्पोर्ट्स में लाए. स्पोर्ट्स सेहत, शोहरत और दौलत तीनों देता है.”

क्या खेल परिसर बना देना काफ़ी है?

परिसर को लेकर सरकारी दावों-वादों के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या खेल परिसर बना देना काफ़ी है?

इस सवाल पर दैनिक अखबार प्रभात ख़बर के खेल पत्रकार धर्मानाथ कहते हैं, “एक ही परिसर में यूनिवर्सिटी और खेल की सुविधाएं होने से एक खिलाड़ी के पास कई सारे ऑप्शन उपलब्ध होंगे. वो खेल खेलने के साथ-साथ स्पोर्ट्स साइंस, अकादमिक, न्यूट्रशनिस्ट जैसी विधाओं में भी अपना करियर बना सकते है. ये बिहार को स्पोर्ट्स के फील्ड में स्थापित करेगा.”

वहीं अंग्रेजी अख़बार द हिंदू की खेल पत्रकार उत्तरा गणेशन का मानना है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है.

वो कहती हैं, “यहां सिर्फ कॉम्प्लेक्स खड़ा कर देने से बात नहीं बनेगी. बल्कि साथ-साथ आपको नालंदा – राजगीर को अपने अंतरराष्ट्रीय–राष्ट्रीय खिलाड़ियों के हिसाब से विकसित करना होगा. अभी यहां से कनेक्टिविटी एक बड़ा इश्यू है, एप्रोच का रास्ता बहुत संकरा है, अच्छे होटल नहीं हैं. अभी हॉकी चैम्पियनशिप के लिए जो टीम आई है, उनको गया में ठहराया गया है. जहाँ से आने-जाने में ही उन्हें डेढ़ से दो घंटे लग रहे हैं.”

ज़ाहिर है कि अभी सुविधाओं से लेकर खेल प्रतिभाओं तक की पहचान की दिशा में काफ़ी कुछ होना है.

image BiharGovt राजगीर खेल परिसर सीएम नीतीश कुमार के महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है ग्रासरूट से ‘टैलेंट स्काउटिंग’

राज्य सरकार ने इसके लिए हाल ही में प्रदेश भर की पंचायत में खेल क्लब बनाने का कार्यक्रम बनाया है.

यानी ज़मीनी स्तर पर प्रतिभाओं के केन्द्र यानी सरकारी स्कूलों में प्रतिभाओं को परखने की ज़िम्मेदारी शारीरिक शिक्षकों पर हैं. लेकिन, ये शिक्षक राज्य सरकार के ख़िलाफ़ लगातार आंदोलन करते आए हैं.

यानी जिन पर टैलेंट स्काउटिंग या प्रतिभाओं को ढूंढने – संवारने की ज़िम्मेदारी है, वही नाराज़ हैं. बिहार में सरकारी स्कूलों में काम कर रहे शिक्षकों को हर माह मात्र 8,000 रुपये मानदेय के तौर पर मिलते हैं.

बिहार राज्य शारीरिक शिक्षक सह अनुदेशक संघ के राजेश कुमार पांडेय बीबीसी को बताते है, “साल 2022 में हम लोगों की परीक्षा लेकर नियुक्ति की गई थी. 2500 शारीरिक शिक्षक नियुक्त हैं. रोज़ आठ घंटे की ड्यूटी देते हैं, होमगार्ड की बहाली, छठ पूजा, गया में पिंडदान से लेकर हर छोटे बड़े काम में सरकार हमें लगा देती है, लेकिन मानदेय एक मजदूर से भी कम देती है.”

image BBC राजगीर खेल परिसर की एक इमारत 'मेडल लाओ, नौकरी पाओ'

बीबीसी ने जब इस संबंध में खेल मंत्री सुरेन्द्र मेहता से सवाल पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, “ये हमारे अंडर में नहीं हैं.”

ऐसे में ये सवाल है कि बिहार के अंदरूनी इलाकों में प्रतिभाओं की पहचान अगर नहीं होगी, तो स्थापित आधारभूत संरचना का लाभ, राज्य को खेल पटल पर कैसे मिलेगा?

पंचायत खेल क्लब बनाने के अलावा सरकार ने खेल छात्रवृत्ति और मेडल लाओ, नौकरी पाओ योजना भी शुरू की है.

मोहम्मद अफ़ज़ल आलम और श्यामा रानी फुटबॉल के खिलाड़ी हैं. इन दोनों ही खिलाड़ियों को स्पोर्ट्स कोटा से नौकरी मिली है.

इन दोनों का दावा है, “बिहार सरकार अपनी योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर पहुंचाने की कोशिश कर रही है और अगर आप बिहार सरकार का कैलेंडर देखें तो राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गतिविधियां लगातार हो रही है. जो खेल प्रतिभाओं को सामने लाने का एक प्रोसेस है.”

खेल प्राधिकरण के महानिदेशक रविन्द्रन शंकरण बताते है, “सिर्फ़ दो महीने में हमने 71 खिलाड़ियों को नौकरी दी है. बिहार पहला ऐसा स्टेट है, जिसमें खिलाड़ी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर लाएंगे, पोर्टल पर अपलोड करेंगें और उन्हें उनकी उपलब्धि के हिसाब से नौकरी मिलेगी. इसमें कोई लाल फीताशाही नहीं चलेगी.”

राजगीर खेल परिसर, राज्य में उम्मीदों के रथ पर तो सवार करता है, लेकिन खेल की दुनिया में कामयाबी केवल ढांचों के बनने से नहीं मिलती है, लगन और नीयत के साथ प्रतिभाओं को निखारना होगा.

लेकिन फ़िलहाल ये नया और निर्माणाधीन परिसर खिलाड़ियों के लिए ख़ुश होने का मौका है.

जैसा कि राज्य के उभरते हुए हॉकी खिलाड़ी ज्योतिष कुमार कहते हैं, “एक पॉजिटिव फीलिंग हो रही है. पहले हम लोगों को टर्फ़ नहीं मिलता था. घास पर खेलते थे और सीधे टूर्नामेंट में खेलते थे. अब खेल सुविधाएं बढ़ने से हम अपना अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे.”

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित

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