हाथरस के रसगवां गाँव से क़रीब आधा किलोमीटर दूर धान और बाजरे के खेतों के बीच बने दो मंज़िला डीएल पब्लिक स्कूल के हॉस्टल में रह रहे 11 साल के बच्चे की कथित तौर पर बलि दिए जाने का मामले चर्चा के केंद्र में है.
स्कूल में ताला लगा है, नाम लिखा बोर्ड फटा हुआ है. बाहर स्कूल प्रबंधक और ज़िले के अधिकारियों के फ़ोन नंबर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखे हैं.
स्कूल के बाहर खड़े गांव के कई लोग ये मानने को तैयार नहीं हैं कि ‘अच्छी अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा दे रहे इस स्कूल में’ एक बच्चे की कथित रूप से ‘बलि’ दी गई है.
22-23 सितंबर की दरमियानी रात, स्कूल के हॉस्टल में रह रहे दूसरी क्लास के छात्र 11 साल के कृतार्थ कुशवाहा की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई थी.
अगले दिन, 23 सितंबर की सुबह, स्कूल पोशाक पहने कृतार्थ की लाश प्रबंधक दिनेश बघेल की कार में मिली थी. उसका बस्ता भी कार में पड़ा था.
कृतार्थ के गले पर गहरे लाल निशान थे. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ गला दबाए जाने से मौत हुई और गले की हड्डी भी टूट गई.
पुलिस ने कृतार्थ की हत्या के आरोप में 26 सितंबर को स्कूल के प्रबंधक दिनेश बघेल, उनके पिता यशोदन बघेल, प्रिंसिपल लक्ष्मण सिंह और स्कूल परिसर में रहने वाले दो शिक्षकों को गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया.
65 वर्षीय यशोदन बघेल की पहचान आसपास के गांवों में ‘भगत जी’ के रूप में है जो सात साल पहले लकवा ग्रस्त होने तक झाड़-फूंक और ‘भूत उतारने’ का काम करते थे.
हाथरस पुलिस ने इसे बलि का मामला माना है और मीडिया को दिए बयानों में कहा है कि स्कूल की तरक्की और प्रसिद्धि के लिए ‘बच्चे की बलि’ दी गई.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें क्या कह रही है पुलिस?हाथरस पुलिस से जुड़े कई सूत्रों ने नाम न ज़ाहिर करते हुए बीबीसी से कहा है कि अभी तक की जांच में ये बलि दिए जाने का ही मामला लग रहा है.
पुलिस ने यशोदन बघेल के तांत्रिक होने और बलि दिए जाने से जुड़े ‘परिस्थितिजन्य साक्ष्य’ मिलने का भी दावा किया है, जिनका ज़िक्र अभियुक्तों की रिमांड रिपोर्ट में भी है.
हालांकि बीबीसी से बात करते हुए हाथरस के अपर पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार सिंह ने कहा, ‘'अभी जांच पूरी नहीं हुई है, कुछ और तथ्य भी सामने आ सकते हैं.’'
हाथरस के पुलिस अधीक्षक निपुण अग्रवाल ने इस मामले पर बीबीसी के सवालों का जवाब नहीं दिया.
हाथरस पुलिस की तरफ़ से जारी प्रेस नोट में भी बच्चे की बलि दिए जाने का ज़िक्र नहीं है.
इस प्रेस नोट में कहा गया है, “अभियोग में विवेचना के क्रम में सबूत जुटाने के दौरान अन्य अभियुक्तों के नाम सामने आए हैं. हत्या की घटना की सफल जाँच करते हुए अभियोग से संबंधित पाँच अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया गया है.”
वहीं अभियुक्तों के परिजनों ने पुलिस जाँच पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि पुलिस अभी तक घटना के पूरे सच तक नहीं पहुँची है.
लेकिन मीडिया में पुलिस अधीक्षक निपुण अग्रवाल के कई बयान छपे हैं, जिसमें उन्होंने इस हत्या को बलि मानते हुए मुख्य अभियुक्त यशोदन बघेल को तांत्रिक बताया है.
पिता के सवाल BBC कृष्णा पेशे से इंजीनियर हैं और पुलिस के अपने बेटे की बलि दिए जाने के दावे को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैंरसगवां गाँव से क़रीब आठ किलोमीटर दूर, तुर्सेन गाँव में मृतक कृतार्थ के घर के बाहर भीड़ लगी है.
कृतार्थ के पिता कृष्णा कुशवाहा बार-बार कहते हैं, “21वीं सदी में कोई कैसे बलि दे सकता है, मेरे बच्चे की हत्या के पीछे कोई साज़िश है, इसका पूरा सच सामने आना ही चाहिए.”
शनिवार को उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष देवेंद्र शर्मा ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग दिल्ली की टीम और ज़िला प्रशासन के कई अधिकारियों के साथ परिवार से मुलाक़ात की.
देवेंद्र शर्मा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “अगर ये बलि का मामला है तो ऐसी घटना को स्वस्थ समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. पुलिस इसकी तह तक जाएगी और दोषियों को सज़ा दिलाई जाएगी.”
शर्मा ने कहा, “उत्तर प्रदेश सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुझे परिवार से मिलने भेजा है.”
कृष्णा अपने बेटे के लिए इंसाफ़ की गुहार लगाते हुए देवेंद्र शर्मा के पैरों में गिर गए और रोते हुए कहा, “मैंने अपने इकलौते बेटे को खो दिया है, मुझे इंसाफ़ चाहिए. सरकार ऐसे क़दम उठाए कि किसी और पिता को अपना बेटा ना गँवाना पड़े.”
BBC यूपी बाल आयोग के अध्यक्ष देवेंद्र शर्मा (बाएं) ने पीड़ित परिवार से मुलाक़ात की और इंसाफ़ का भरोसा दियाकृतार्थ की मां कमलेश बदहवास हैं. अपने बच्चे की स्कूली पोशाक दिखाते हुए वो बेहोश हो जाती हैं.
कमलेश बस इतना ही कहती हैं, “बहुत उम्मीद से बेटे को हॉस्टल भेजा था. कभी उसने घर आकर कोई शिकायत नहीं की. हमने अपने बेटे को पढ़ने भेजा था, उन्होंने उसे मार दिया.”
कृष्णा पेशे से इंजीनियर हैं और नोएडा की एक आईटी कंपनी में नौकरी करते हैं.
हर सप्ताहांत पर गाँव आने वाले कृष्णा घटना के दिन गाँव में ही थे. रसगवां गाँव का स्कूल उनके घर से क़रीब आठ किलोमीटर दूर है.
23 सितंबर की सुबह को याद करते हुए कृष्णा कहते हैं, “सुबह पाँच बजे का समय था. मैं नोएडा के लिए निकल रहा था, तभी प्रबंधक दिनेश बघेल ने फोन करके बताया कि कृतार्थ की तबीयत ख़राब है. मुझे कुछ गड़बड़ लगी और मैंने दिनेश बघेल को बार-बार फोन किया तो कभी उन्होंने कहा कि वो बच्चे को लेकर आगरा जा रहे हैं, कभी कहा कि अलीगढ़. इसी दौरान सादाबाद में हमें उनकी गाड़ी मिल गई. मेरे बेटे की लाश उसमें पड़ी थी. हमने तुरंत पुलिस को बुलाया.”
कृष्णा के मुताबिक़, उन्हें मीडिया रिपोर्टों से ही पता चला कि उनके बेटे की बलि दी गई.
कृष्णा सवाल करते हैं, “मैं एक पिता हूँ, मैंने अपने इकलौते बेटे को खोया है, ये मेरा हक़ है कि मुझे पता चले कि आख़िर मेरे बेटे के साथ हुआ क्या? उसे इतनी बेरहमी से क्यों मारा गया.”
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डीएल पब्लिक स्कूल के पास पांचवीं तक क्लास चलाने की मान्यता थी लेकिन यहां आठवीं क्लास तक पढ़ाई हो रही थी. ज़िला प्रशासन के मुताबिक़ हॉस्टल संचालित करने की मान्यता स्कूल के पास नहीं थी.
कृतार्थ की मौत के बाद हाथरस के शिक्षा विभाग ने स्कूल की मान्यता रद्द करने की कार्रवाई शुरू की है और अपनी तरफ़ से स्कूल प्रशासन पर मुक़दमा दर्ज किया है.
बीबीसी से बात करते हुए बेसिक शिक्षा अधिकारी स्वाति भारती ने कहा, “हॉस्टल अवैध रूप से चल रहा था, स्कूल को सील कर दिया जाएगा.”
इस स्कूल के हॉस्टल में 25 छात्र रह रहे थे और 600 से अधिक बच्चे यहां शिक्षा हासिल कर रहे थे.
स्कूल बंद होने से इन बच्चों की पढ़ाई रुक गई है. क्या इन बच्चों के लिए प्रशासन ने कोई व्यवस्था की है, इस सवाल पर स्वाति भारती कहती हैं, “अभी प्रयास किए जा रहे हैं.”
हॉस्टल में पहले भी गला दबाने के आरोप Family of Student बीबीसी ने हॉस्टल में रहने वाले दो ऐसे छात्रों के परिजनों से मुलाक़ात की है, जिन्होंने हॉस्टल में अपने बच्चों का गला दबाए जाने के आरोप लगाए हैं. ये तस्वीर एक छात्र के परिवार ने बीबीसी को उपलब्ध करवाई हैतुर्सेन गाँव से क़रीब डेढ़ किलोमीटर दूर बहरदोई गाँव के दो छात्र, जो इसी स्कूल के छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहे थे, उनके परिजनों ने भी अपने बच्चों की हत्या का प्रयास किए जाने का दावा किया है.
गाँव के अंतिम छोर पर बने एक घर में कई बकरियां और भैंसे बंधी हैं. इस किसान परिवार का 9 साल का बेटा भी हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा था.
परिवार का दावा है कि छह सितंबर की रात उनके बेटे का भी गला दबाया गया था. इस घटना के तीन सप्ताह बाद भी बच्चे के गले पर निशान बाक़ी हैं.
इस छात्र के पिता दावा करते हैं, “अगले दिन स्कूल प्रबंधन ने मुझे बताया कि मेरे बेटे को दौरा पड़ा है. मैं तुरंत स्कूल गया तो मेरा बच्चा बदहवास था. उसका गला सूजा हुआ था और गहरा लाल निशान था. उसकी आँखें भी लाल थीं.”
ये बच्चा अब भी सदमे में है और अपने परिजनों की मौजूदगी में दावा करता है, “उस रात भगत जी (यशोदन) ने मेरा गला दबाया था. मेरी आँख खुली तो वो मेरे ऊपर चढ़कर गला दबा रहे थे."
परिवार ने इस घटना के बाद बच्चे को हॉस्टल से बुला लिया था और स्कूल भेजना बंद कर दिया था. बच्चे का इलाज कराया गया, जिसके दस्तावेज़ परिवार के पास मौजूद हैं.
पिता दावा करते हैं, “डॉक्टर ने बेटे को देखकर बताया कि उसे गला दबाकर मारने की कोशिश हुई है.”
हालांकि, घटना के वक़्त परिवार ने इस बारे में पुलिस को सूचित नहीं किया था.
इसी गांव के एक और 10 साल के छात्र ने भी रस्सी से अपना गला दबाए जाने का दावा किया है. परिवार का दावा है कि, ये घटना 18 सितंबर में दोपहर की है.
BBC कृतार्थ के परिजनों से मुलाक़ात करते हाथरस ज़िला प्रशासन के अधिकारीबच्चे की मां और पिता के मुताबिक़, “बच्चे ने हमें बताया कि उसके साथ हॉस्टल में रहने वाले एक बड़े लड़के ने रस्सी से उसका गला दबाया. हमने स्कूल प्रशासन से शिकायत की लेकिन प्रबंधक ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और बात को दबाने की गुज़ारिश की.”
बीबीसी ने इन कथित घटनाओं के बाद ली गई बच्चों की तस्वीरें देखी हैं, जिनमें गले पर निशान साफ़ नज़र आ रहे हैं.
इन दोनों ही बच्चों के परिजन कहते हैं कि अगर उन्होंने समय रहते पुलिस को सूचित किया होता तो शायद कृतार्थ की जान बच जाती.
क़रीब 10 साल की उम्र के ये दोनों बच्चे दावा करते हैं कि यशोदन रात को उसी हॉल में सोते थे, जिसमें हॉस्टल में रहने वाले बच्चे रहते थे.
हाथरस पुलिस ने ये माना है कि इन दो बच्चों का गला दबाने की घटनाएं हुई हैं.
बीबीसी को हॉस्टल में रहने वाले छात्रों के ज़रिए 6 और 18 सितंबर के बीच एक और छात्र का गला दबाए जाने का पता चला लेकिन इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी.
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रसगवां गाँव के बीचों-बीच एक बड़ा दो मंज़िला मकान है जो आसपास के मकानों से काफ़ी बड़ा नज़र आता है.
इस मकान को देखते ही अंदाज़ा हो जाता है कि यहाँ रहने वाला परिवार, आसपास के बाक़ी परिवारों से समृद्ध है.
आंगन में बिछी चारपाई पर क़रीब 95 साल के डोरीलाल बघेल लेटे हैं. डोरीलाल के नाम पर ही डीएल पब्लिक स्कूल का नाम रखा गया है.
डोरीलाल कहते हैं, “मेरा बेटा और पोता जेल में हैं, हमारी बात कहने वाला कोई नहीं है.”
परिवार के मुताबिक़, 65 साल के यशोदन अधिकतर समय स्कूल में ही रहते थे.
यशोदन की बेटी विनीता बघेल दावा करती हैं कि उनके पिता धार्मिक प्रवृति के हैं और कर्मकांड करते थे, तंत्र-मंत्र से उनका कोई लेना देना नहीं है.
परिवार की एक महिला कहती हैं, "लकवे के बाद भगतजी ने ये काम छोड़ दिया था और स्कूल बनने के बाद से वो अधिकतर समय वहीं रहते थे."
अभियुक्त दिनेश बघेल की माँ शकुंतला कहती हैं, “मेरे बेटे ने अधिकतर समय घर से बाहर रहकर पढ़ाई की. वो बचपन में फ़िरोज़ाबाद रहा, फिर तैयारी करने कोटा चला गया, उसके बाद रुड़की से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.”
परिवार के मुताबिक़, रुड़की से इंजीनियरिंग करने के बाद दिनेश की मलेशिया में एक आईटी कंपनी में नौकरी लगी थी लेकिन वो एक महीने के भीतर ही वापस लौट आए थे.
BBC गिरफ़्तार दिनेश की बहन विनीता सवाल करती हैं- 'मेरा भाई स्कूल चला रहा था, वो अपने ही छात्र की बलि क्यों देगा?'दिनेश ने साल 2019 में गांव में अपनी पैतृक ज़मीन में स्कूल बनाने का प्रयास शुरू किया.
शकुंतला कहती हैं, “उसने ज़मीन बेची, बैंक से लोन लिया और फिर स्कूल बनाया.”
स्कूल खोलने से पहले दिनेश गांव में ही बच्चों को ट्यूशन देते थे. आसपास रहने वाले कई छात्र ये दावा करते हैं कि दिनेश ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया.
तंत्र-मंत्र के लिए बच्चे की बलि दिए जाने के आरोपों को ख़ारिज करते हुए शकुंतला कहती हैं, “कोई ऐसी घटना करके अपने चलते-चलाते काम को क्यों बर्बाद करेगा. एक बच्चे की हत्या हुई है, पुलिस को जांच कर सबूत पेश करने चाहिए और सच सामने लाना चाहिए.”
दिनेश की बहन विनीता बघेल कहती हैं, “मेरे पिता स्कूल में रहते थे, बच्चों की देखभाल करते थे, वो अपने ही स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे की हत्या क्यों करेंगे?”
आस-पड़ोस की कई महिलाएं हां में हां मिलाते हुए कहती हैं, “अगर बलि हुई है तो पुलिस साबित कर दे या फिर इस घटना की जांच सीबीआई करे.”
Dinesh Baghel दिनेश बघेल के परिवार का दावा है कि वो गांव में बच्चों को शहर जैसी बेहतर शिक्षा देने का प्रयास कर रहे थेडीएल पब्लिक स्कूल की वेबसाइट पर इसे सीबीएसई पद्यति पर शिक्षा देने वाला हाईटेक स्कूल बताया गया है.
डीएल पब्लिक स्कूल जैसे कई स्कूल आसपास के गाँवों में हैं.
इस ग्रामीण क्षेत्र में बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में भेजने का क्रेज़ साफ़ नज़र आता है.
बीबीसी से बात करते हुए कई अभिभावक कहते हैं कि बच्चों की बेहतर शिक्षा उनके लिए सबसे ज़रूरी मुद्दा है.
रसगवां गाँव में यूं तो सरकारी प्राथमिक विद्यालय और दसवीं तक की शिक्षा के लिए माध्यमिक विद्यालय है, लेकिन गांव के अधिकतर बच्चे डीएल पब्लिक स्कूल में ही पढ़ाई कर रहे थे.
अमित बघेल, जो दिनेश के परिवार से ही हैं, कहते हैं, “मेरे तीन बच्चे डीएल पब्लिक स्कूल में पढ़ रहे थे, अब तीनों की पढ़ाई बंद है. मैं अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर चिंतित हूं.”
सरकारी स्कूल में बच्चों को भेजने के सवाल पर वो कहते हैं, “मैं ड्राइवर हूँ और चाहता हूं कि बच्चे अच्छे से पढ़ें, सरकारी स्कूल में माहौल उतना अच्छा नहीं होता.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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