उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में यमुनोत्री हाईवे पर सिलक्यारा सुरंग का निर्माण कार्य अब भी चल रहा है.
ये वही सुरंग है, जहां पिछले साल यानी 12 नवंबर, 2023 को सुरंग के अंदर मिट्टी धंसने से 41 मज़दूर फंस गए थे, जिन्हें 17 दिनों की कोशिशों के बाद बाहर निकाला जा सका था.
इन 17 दिनों के भीतर यह सुरंग हादसा, देश ही नहीं दुनिया भर के मीडिया में सुर्ख़ियों में रहा था.
इन श्रमिकों को बचाने के लिए एक बड़ा रेस्क्यू अभियान चलाया गया, जिसमें कई संस्थानों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया था.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएहादसे का एक साल बीतने के बाद सुरंग में सुरक्षा को लेकर कुछ बदलाव हुए, लेकिन निर्माण की गति में बहुत तेज़ी नहीं आ पाई है.
लेकिन, सुरंग के निर्माण कार्य से जुड़े अधिकारियों का मानना है, "कार्य की यह गति संतोषजनक है, क्योंकि हम दोबारा से कोई जोखिम नहीं चाहते."
पिछले साल हुए हादसे के दौरान हम लगातार 17 दिनों तक सुरंग के आसपास ही ठहरे थे. एक साल बाद वहां पहुंचने पर दिखा कि सुरंग में निर्माण कार्य चल रहा है.
हालाँकि, इस प्रोजेक्ट के ज़िम्मेदार अधिकारियों ने नाम ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर निर्माण कार्यों से जुड़ी जानकारी दी.
ये भी पढ़ेंइन अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक, अभी भी 197 मीटर सुरंग का निर्माण शेष है और सुरंग में भूस्खलन वाले हिस्से से मलबे का हटाया जाना अब भी बाक़ी है.
अधिकारियों के अनुसार सुरंग के अंदर भूस्खलन के मलबे को हटाने के लिए बड़ी सावधानी और तकनीकी मदद से काम किया जा रहा है.
वहीं, एक उच्चस्तरीय कमेटी ने इसी सितंबर महीने में अपनी विस्तृत जांच रिपोर्ट सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय को सौंपी है.
राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम (एनएचआईडीसीएल) के एक अधिकारी के मुताबिक़, “अभी इस रिपोर्ट का प्रेजेंटेशन विभागीय सेक्रेटरी के पास होना है. उसके बाद ही सभी बातें सामने आ पाएँगी. उच्च स्तरीय कमेटी ने जो सुझाव हमें दिये थे, अब उसके तहत ही कार्य किया जा रहा है.”
हालाँकि, नाम न बताने की शर्त पर हादसे के दौरान टनल में अहम ज़िम्मेदारी संभाल रहे एक अन्य अधिकारी ने बताया, "उच्च स्तरीय जाँच कमेटी द्वारा सौंपी गई जाँच रिपोर्ट में हादसे के लिए एनएचआईडीसीएल संस्था और निर्माण कंपनी की गंभीर लापरवाही को इंगित किया गया है.”
ये भी पढ़ेंबीते साल सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन वाला हादसा उस वक्त हुआ था, जब पिछले साल की दीपावली की रात से ठीक पहले की रात मज़दूर शिफ़्ट खत्म कर बाहर आने वाले थे.
उनकी यह शिफ़्ट सुबह आठ बजे खत्म होनी थी. लेकिन, लगभग सुबह पांच बजे सुरंग के मुहाने से 200 मीटर अंदर भूस्खलन हुआ और सुरंग के अंदर काम कर रहे मज़दूर अंदर ही फंस गए.
जब यह हादसा हुआ तो उस समय करीब 4.53 कि.मी. लंबी सुरंग की निर्माण लागत 853.76 करोड़ रुपये थी. इस हादसे से पहले लक्ष्य 2024 के अप्रैल-मई तक इसे ब्रेकथ्रू (आर-पार) करने का था.
सुरंग के आर-पार होने के बाद इसकी फिनिशिंग संबंधी कार्य पर लगभग एक साल का और समय लगता. इस हिसाब से इस साल नवंबर महीने तक सुरंग का काम पूरा हो रहा होता.
एनएचआईडीसीएल के मुताबिक, “अब इसका निर्माण पूरा होने की संभावित तिथि 28 जनवरी 2026 प्रस्तावित की गई है.”
ये भी पढ़ेंसिलक्यारा हादसे में जो 41 श्रमिक सुरंग में 17 दिन तक फंसे रहे, उनमें से केवल 10 ही काम पर वापस लौटे हैं.
बाक़ी 31 मज़दूर ठेकेदारों के अधीन काम करते थे, वह सुरंग हादसे के बाद वापस काम पर नहीं लौटे.
वापस लौटे यह 10 मज़दूर निर्माण कंपनी नवयुगा कंपनी के लोग हैं और अपना-अपना कार्य कर रहे हैं.
सिलक्यारा में हमारी मुलाक़ात सुरंग हादसे के बाद काम पर वापस लौटे मानिक तालुकदार से हुई.
50 वर्षीय मानिक तालुकदार पश्चिम बंगाल के ज़िला कूच बिहार के रहने वाले हैं और वर्ष 2018 से यहाँ काम कर रहे हैं.
जब सुरंग में भूस्खलन हुआ तब वह उस जगह से क़रीब 800 मीटर पीछे की तरफ़ काम कर रहे थे.
मानिक तालुकदार ने बीबीसी हिंदी को बताया कि, “वह दीवाली की सुबह थी और मैं अपना काम जल्दी जल्दी निपटा रहा था.”
“उस शाम हम दीवाली के उपलक्ष्य में ख़ुशियाँ मनाने वाले थे जिसके लिए हमने पहले ही पटाखों सहित अन्य ख़रीदारी की हुई थी.”
“एक घंटे बाद शिफ़्ट ख़त्म होने ही वाली थी और हम थोड़ी देर बाद बाहर आने वाले थे. मगर हमने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि अब कई दिनों के लिए सुरंग में ही बंद हो जाएँगे.”
“सुरंग में फँसे हम लोगों ने 17 दिन यही सोचते हुए काटे कि क्या हम अब बच पाएँगे या नहीं. जिस दिन हमें सुरंग से रेस्क्यू कर बाहर लाया गया वह दिन मेरे लिये दूसरा जीवन था.”
ये भी पढ़ेंयमुनोत्री हाईवे पर चारधाम ऑल वेदर परियोजना की 4,531 मीटर लंबी सिलक्यारा सुरंग का निर्माण वर्ष 2018 में शुरू हुआ.
तब राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम (एनएचआईडीसीएल) ने इस सुरंग के निर्माण का ज़िम्मा मुख्य कंस्ट्रक्शन कंपनी नवयुगा इंजीनियरिंग कंपनी को सौंपा था.
सिलक्यारा (क्षेत्र का नाम) की ओर से नवयुगा इंजीनियरिंग कंपनी और बड़कोट (क्षेत्र का नाम) की ओर से पेटी कांट्रेक्टर कंपनी गजा कंस्ट्रक्शन ने सुरंग निर्माण का कार्य शुरू किया था.
बीते वर्ष 12 नवंबर (दीपावली) तक सिलक्यारा की ओर से 2,400 मीटर और बड़कोट की ओर से 1,640 मीटर की खुदाई हो चुकी थी.
इस बीच 12 नवंबर 2023 को सुबह पांच बजे सिलक्यारा सुरंग में हादसा हो गया. सुरंग में हुई इस घटना के बाद सुरक्षा मानकों को लेकर तमाम सवाल उठे.
कई महीनों तक काम बंद हो गया था. लंबे इंतज़ार के बाद 23 जनवरी 2024 को सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय की ओर से निर्माण शुरू करने के आदेश मिले.
BBCअब नवयुगा इंजीनियरिंग कंपनी ने पेटी कांट्रेक्टर गजा कंस्ट्रक्शन कंपनी को हटा कर ख़ुद से ही बड़कोट की ओर से काम शुरू किया.
मौजूदा समय में टनल के दोनों हिस्सों (सिलक्यारा और बड़कोट) की तरफ़ नवयुगा इंजीनियरिंग कंपनी ही कार्य कर रही है.
एनएचआईडीसीएल के एक अधिकारी के अनुसार, “कांट्रेक्ट से अलग भी अन्य सेफ़्टी कंसलटेंट हो या फिर डिज़ाइन कंसलटेंट, को बुलाकर कार्य डबल सेफ़्टी के साथ कराया जा रहा है. हमारी कमेटी भी बीच बीच में निर्माण कार्यों का रिव्यू करती रहती है.”
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के भू वैज्ञानिक डा. एसपी सती कहते हैं, “अगर दो किलोमीटर से अधिक का टनल बनता है तो सुरक्षा के मद्देनज़र एक के साथ एक अन्य लगती हुई टनल भी बनाई जाती है. लेकिन लगभग साढ़े चार किलोमीटर की इस टनल में ऐसी कोई सुरंग नहीं बनाई गई.”
सती के मुताबिक अभी भी सवाल यही है कि “इस सुरंग में सुरक्षा की दृष्टि से क्या किया जा रहा है जिससे आम जनमानस में यह संतोष रहे कि अब सुरंग में कोई त्रुटि नहीं है.”
ये भी पढ़ेंहालांकि निर्माण कार्य संभाल रही कंपनी की ओर से दावा किया जा रहा है कि सुरक्षा के सभी मानकों का ख़्याल रखा जा रहा है.
निर्माणाधीन टनल में भूस्खलन की घटना के बाद सबसे पहले सुरंग में एस्केप पेसेज (निकास मार्ग), टनल फेस पर हेडिंग (सुरंग के ऊपरी हिस्से की खुदाई), बेंचिंग व इनवर्ट (सुरंग की सबसे निचली खुदाई) का कार्य शुरू किया गया.
जबकि सिलक्यारा की ओर से सुरंग के मुहाने से लेकर भूस्खलन वाले क्षेत्र के बीच करीब 120 मीटर हिस्से में ह्यूम पाइप व आरसीसी बाक्स डालकर निकास मार्ग बनाई गई है.
अधिकारियों के अनुसार उत्तराखंड के पहाड़ फ़्लाइट रॉक से बने हैं जो कि कमज़ोर हैं, ऐसे में इन्हें अच्छे ट्रीटमेंट की ज़रूरत है.
सिलक्यारा टनल के अंदर ऑस्ट्रिया से बुलाए गए विशेषज्ञ व मुख्य डिज़ाइनर के साथ एक अन्य डिज़ाइनर को भी निगरानी के लिए साइट पर तैनात किया गया है.
ये भी पढ़ेंनौ जुलाई, 2018 को इस सुरंग का काम शुरू हुआ था, पहले दावा किया गया था कि आठ जुलाई, 2022 तक काम पूरा हो जाएगा.
हादसे के बाद अब इसे 28 जनवरी, 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.
मौजूदा समय में अधिकारियों की दी गई जानकारी के मुताबिक 13 नवंबर, 2024 तक 63 प्रतिशत काम पूरा हो पाया है.
ज़ाहिर है कि ऐसे में सुरंग की लागत भी बढ़ने वाली है. पहले इसकी लागत 853.76 करोड़ रुपये थी, लेकिन यह लागत हर बीतते दिन के साथ बढ़ रही है.
कितना हटाया जा सका भूस्खलन का मलबा BBC हादसे के दौरान 200 मीटर अन्दर की तरफ़ से शुरू होकर 60 मीटर तक मलबा गिरा था. उस मलबे को हटाने की प्रक्रिया आज भी चल रही है.यमुनोत्री राजमार्ग पर निर्माणाधीन इस टनल के दो मुहाने हैं एक सिलक्यारा (क्षेत्र का नाम) और दूसरा बड़कोट
टनल के एक छोर यानि बड़कोट की तरफ़ से सुरंग में निर्माण कार्य चल रहा है और दो किलोमीटर तक अंदर कार्य हो चुका है.
टनल में सिलक्यारा की तरफ़ से 2300 मीटर तक कार्य हो चुका है. कुल मिलाकर टनल में 4300 मीटर तक कार्य पूर्ण हो चुका है.
सुरंग के एक मुहाने सिलक्यारा की तरफ़ से हादसे के दौरान गिरे मलबे को हटाया जा रहा है. हादसे के दौरान 200 मीटर अन्दर की तरफ़ से शुरू होकर 60 मीटर तक मलबा गिरा था.
उस मलबे को हटाने की प्रक्रिया आज भी चल रही है. सिलक्यारा की तरफ़ से सुरंग में अभी भी 60 मीटर की लंबाई में मलबा पड़ा हुआ है.
एनएचआईडीसीएल के एक सीनियर अधिकारी के अनुसार, “विशेषज्ञों के सुझाव पर 60 मीटर क्षेत्र में फैले मलबे को हटाने के लिये तीन ड्रिफ़्ट सुरंग बनाई जा रही हैं. ड्रिफ़्ट इसलिए बनाई जाती है कि जो सुरंग के अंदर का भाग है वहाँ जाकर काम किया जा सके.”
अधिकारियों का मानना है कि जब तीनों ड्रिफ्ट पूरे हो जाएंगे तभी सिलक्यारा की तरफ़ से सुरंग में जमा मलबा हटते ही काम में तेज़ी आ सकेगी.
सुरंग जब बंद हुई थी तब उसमें पानी भी निकल रहा था. पानी का प्रेशर अधिक न बढ़े इसलिए पानी को निकालना आवश्यक था जो चुनौती भरा कार्य था.
सुरंग से पानी निकालने के लिए कई तरह के पंप लगाए गए जिसके बाद सुरंग से बाहर पानी को निकाला गया. सुरंग में जमा 11 करोड़ 62 लाख 56 हज़ार 348 लीटर पानी को भी निकाला गया है.
एनएचआईडीसीएल अधिकारियों ने बताया, “केविटी (सुरंग का ऊपरी खोखला भाग, जहाँ से मलबा गिरा था) का काम एक तरफ पूरी तरह से हो चुका है मगर मलबा पूर्ण रूप से हटाए जाने के बाद स्थिति स्पष्ट हो पाएगी.”
ये भी पढ़ेंसिलक्यारा सुरंग हादसे के दौरान बौखनाग मंदिर भी काफ़ी चर्चाओं में रहा था.
सुरंग के पास एक छोटा सा मंदिर बना था, जिसे अब मंदिर का रूप दिया जा रहा है. सुरंग के प्रवेश द्वार के पास बन रहे मंदिर की छत तक निर्माण कार्य पहुंच चुका है.
इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रो. अर्नोल्ड डिक्स भी खोज-बचाव अभियान के दौरान सुरंग के बाहर स्थापित छोटे मंदिर में पूजा करते दिखे थे.
स्थानीय ग्रामीणों की मांग पर नवयुगा कंपनी की ओर से सिलक्यारा सुरंग के प्रवेश द्वार के पास मंदिर निर्माण शुरू किया गया है. इन दिनों मंदिर की छत और गुंबद का निर्माण किया जा रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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