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महाराष्ट्र में महायुति के भीतर योगी के नारे 'बँटेंगे तो कटेंगे' को लेकर असहजता क्यों है?

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Getty Images महाराष्ट्र में महायुति के भीतर योगी के नारे बँटेंगे तो कटेंगे और पीएम मोदी के एक हैं तो सेफ नारे को लेकर असहजता नहीं है

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव भारत की राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी ख़ासा अहम है.

देश की आर्थिक गतिविधियों में महाराष्ट्र की बड़ी भूमिका होती है.

महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी विपक्षी गठबंधन है. इसमें उद्धव ठाकरे की शिव सेना, कांग्रेस और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) शामिल हैं.

इस गठबंधन ने लोकसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी की अगुवाई वाली महायुति पर बढ़त बनाई थी. महायुति गठजोड़ में भारतीय जनता पार्टी, एकनाथ शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल हैं.

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सबसे बड़ा सवाल यह है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे इसी साल हुए लोकसभा चुनाव की तरह ही होंगे या बिल्कुल अलग होंगे?

महाराष्ट्र की दो अहम क्षेत्रीय पार्टियां शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो चुका है. दोनों का एक-एक खेमा बीजेपी के साथ है और दूसरा खेमा कांग्रेस के साथ.

ऐसे में सवाल है कि हिन्दुत्व के नाम पर वोट बीजेपी और एकनाथ शिंदे को मिलेगा कि उद्धव ठाकरे की शिव सेना को. क्या अजित पवार बीजेपी के साथ होने के कारण कांग्रेस और शरद पवार के वोट बैंक में सेंध लगा पाएंगे?

बीबीसी हिन्दी के ख़ास साप्ताहिक कार्यक्रम 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रुम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म मुकेश शर्मा ने महाराष्ट्र चुनाव से जुड़े इन्हीं सवालों पर चर्चा की.

इस चर्चा में बीबीसी न्यूज़ मराठी के संपादक अभिजीत कांबले, सकाल पुणे की संपादक शीतल पवार, लोकमत पुणे के संपादक संजय आवटे और बीबीसी मराठी की संवाददाता प्राची कुलकर्णी शामिल हुए.

लोकसभा चुनाव और पिछले विधानसभा चुनाव में कैसा था प्रदर्शन?

लोकसभा के चुनावी नतीजों के बाद केंद्र में भले ही बीजेपी और उसके सहयोगी दल सरकार बनाने में क़ामयाब हो गए हों लेकिन महाराष्ट्र में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था.

लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के हिस्से में 48 सीटें आती हैं. इस चुनाव में महाविकास अघाड़ी को 30 और महायुति गठबंधन को 17 सीटें मिलीं. यानी जनता ने अपना झुकाव महाविकास अघाड़ी की ओर दिखाया.

2019 में हुए विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नज़र डालें तो बीजेपी को 105, शिव सेना (अविभाजित शिव सेना) को 56, एनसीपी (अविभाजित एनसीपी) को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं थीं.

जिसके बाद शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बना ली थी.

हालांकि इस गठबंधन की सरकार ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकी और साल 2022 के जून में शिव सेना के आपसी विवाद के कारण एकनाथ शिंदे शिव सेना के एक गुट को लेकर अलग हो गए.

वहीं अजित पवार भी एनसीपी के एक गुट को अपने साथ ले आए. इसके बाद वो बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिव सेना की सरकार में शामिल हो गए और उपमुख्यमंत्री बन गए.

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योगी के नारे पर महायुति में असहजता

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नारा नारा "बंटेंगे तो कटेंगे" और पीएम मोदी का नारा "एक हैं तो सेफ हैं" पर महायुति में बहुत सहजता नहीं है.

बीजेपी के बड़े नेता अपनी रैली में इन नारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन महायुति में ऐसे भी दल हैं जो इन नारों से परहेज कर रहे हैं.

अभिजीत कांबले कहते हैं कि महायुति के बाकी सहयोगी और महाराष्ट्र बीजेपी के बीच में इसको लेकर सहमति नहीं है कि हिंदुत्व का मुद्दा किस तरीक़े से सामने लाया जाए.

वो कहते हैं, "मराठा फैक्टर और बेरोज़गारी का मुद्दा महाविकास अघाड़ी के पक्ष में है. इसके बरक्स महायुति के लिए हिंदुत्व जैसा मुद्दा लाना ज़रूरी है जो देश भर में मज़बूत रहा है. महायुति चाहता है कि किसी तरह से इसका फ़ायदा मिल जाए."

वो कहते हैं, "हरियाणा में योगी आदित्यनाथ ने यह सब मुद्दा उछाला था लेकिन जब इन्होंने 'बंटेंगे तो कटेंगे' वाले बैनर महाराष्ट्र में लगाए तो इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई क्योंकि महाराष्ट्र में इस तरीके का हिंदुत्व नहीं चलता जो उत्तर प्रदेश या हरियाणा में चला है."

इस सवाल पर 'लोकमत पुणे' के संपादक संजय आवटे कहते हैं, "बीजेपी को पता चल चुका है कि इन हिंदुत्व वाले नारों का महाराष्ट्र में फ़ायदा नहीं होगा. महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ अजित पवार हैं और उन्होंने ये साफ़ कर दिया है कि ये जो भी कुछ चल रहा है ये नहीं होना चाहिए. महाराष्ट्र में जाति और धर्म पर चुनाव नहीं लड़े जाते."

लोकसभा चुनाव के नतीजों का क्या विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा असर? image ANI मराठा आरक्षण के लिए होने वाले विरोध प्रदर्शनों और भूख हड़ताल का नेतृत्व मनोज जरांगे ने किया था

लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी के अच्छे प्रदर्शन के बाद अब जब विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तो ऐसे में हवा कुछ बदली है या लोगों को हवा का रुख़ वैसा ही दिख रहा है?

इस पर 'लोकमत पुणे' के संपादक संजय आवटे का मानना है कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के माहौल में अंतर दिख रहा है.

संजय कहते हैं, "लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसा नहीं लग रहा था कि माहौल अलग है, लेकिन जब चुनाव के नतीजे आएं तब आंकड़े चौंकाने वाले थे."

वो बताते हैं, "लोकसभा चुनाव में 'कांग्रेस ने संविधान बचाओ' का नारा दिया था. ये एक बड़ा नैरेटिव था जो विधानसभा चुनाव में नहीं है. वहां केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ जो माहौल था वो भी नहीं है, लेकिन कहा जाए तो यहां राज्य का कोई भी अपना नैरेटिव और मुद्दा नहीं है."

"जिस ढंग से महाविकास अघाड़ी सरकार सत्ता से बाहर हुई, उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था, उस बारे में हमदर्दी की लहर कुछ हद तक है. लेकिन जो लोकसभा चुनाव में था वैसा अब नहीं है."

वो कहते हैं, "लोकसभा चुनाव में जरांगे (मनोज जरांगे) फैक्टर बहुत चला और विधानसभा चुनाव में भी चल सकता है, लेकिन जरांगे फैक्टर मराठवाड़ा में बीजेपी को ज़्यादा नुकसान करने वाला है. इसलिए लोकसभा चुनाव जैसा परिणाम विधानसभा में मिलेगा ऐसा नहीं लगता है."

दरअसल, मराठा आरक्षण के लिए होने वाले विरोध प्रदर्शनों और भूख हड़ताल का नेतृत्व मनोज जरांगे ने किया था.

एकनाथ शिंदे का काम image ANI महाराष्ट्र सरकार ने इस साल जून में 'मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन योजना' शुरुआत की थी

मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार की 'लाडली बहन योजना' के बाद महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने भी इस साल जून महीने में 'मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन योजना' की शुरुआत की है. इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं.

इस योजना का ज़मीनी स्तर पर क्या असर पड़ेगा, क्या महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव में महायुति को इसका फ़ायदा मिलेगा?

इस पर सकाल पुणे की कार्यकारी संपादक शीतल पवार का कहना है, 'मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन योजना' के बाद भी मराठवाड़ा की महिलाएं मौजूदा सरकार के पक्ष में नहीं जाएंगी.

उनका कहना है, "महाविकास अघाड़ी ने अपने घोषणापत्र में महिलाओं के लिए 'महालक्ष्मी योजना' के तहत 3,000 रुपये महीना देने की घोषणा की है. इसका मतलब ये है कि 'मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन योजना' लोगों के बीच, महिलाओं के बीच चर्चा का मुद्दा है."

वो आगे कहती हैं, "आर्थिक तौर पर जिन लोगों के लिए इस योजना को तैयार किया गया है, उसमें बहुत सारी महिलाओं को यह सशक्तीकरण की भावना दे रहा है. हालांकि हम जब उस समाज के शहरी क्षेत्र में जाते हैं तो हमें महंगाई की बात उतने ही ज़ोर-शोर से सुनाई देती है.''

image Getty Images बीजेपी अगर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करती है तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और मज़बूत होगी

लोकमत पुणे के संपादक संजय आवटे का मानना है कि महाराष्ट्र में 'मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन योजना' का कुछ असर हो सकता है.

वो कहते हैं, "लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी सक्रिय होकर कुछ नैरेटिव तैयार कर रही थी. भाजपा और महायुति तब डिफेंसिव थे. लेकिन महायुति अब 'मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन योजना' का मुद्दा सक्रिय होकर रख रहा है और महाविकास अघाड़ी डिफेंसिव दिख रहा है."

बीबीसी मराठी संवाददाता प्राची कुलकर्णी ने जब लोगों से बात की तब उन्होंने पाया, "तीन मुद्दे हैं, जिससे इस योजना को देखा जा रहा है. एक जिनके पास पैसे नहीं हैं वो कह रहे हैं कि कुछ पैसा आया और कुछ मदद हुई, लेकिन उससे बड़ा मुद्दा यह बना हुआ है कि महंगाई उसी तरह से बढ़ी है."

वो कहती हैं, "यह मुद्दा पूरे महाराष्ट्र में देखने को मिल रहा है और इसलिए अब ये महंगाई का मुद्दा बनाम 'मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन योजना' हो गया है. काफ़ी महिलाओं का कहना था उन्हें काम चाहिए. उसके एवज में हमें पैसा चाहिए. मुफ़्त के पैसे नहीं चाहिए. अगर आपको कुछ देना ही है तो महंगाई पर काम करें."

महिलाओं के लिए शुरू की गई इस योजना पर बीबीसी मराठी के संपादक अभिजीत कांबले ने कहा, ''हमने लोकसभा में यह साफ़ देखा था कि सिर्फ़ महाराष्ट्र नहीं पूरे देश में कांग्रेस कुछ एजेंडा तैयार रही थी और उसके ऊपर बीजेपी को प्रतिक्रिया देनी पड़ रही था, लेकिन लोकसभा के बाद महायुति ने एजेंडा तैयार करके बहुत बड़ा काम किया है, जिसमें 'मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन योजना' वाला एक मुद्दा है.''

अभिजीत कांबले का मानना है कि 'संविधान बचाओ' का एजेंडा अब महाराष्ट्र में अधिक असरदार नहीं दिख रहा है.

महाविकास अघाड़ी विधानसभा के लिए एजेंडा तैयार करने में कहीं ना कहीं महायुति से पीछे छूट गया है. महाविकास अघाड़ी को महायुति के एजेंडे पर सिर्फ़ प्रतिक्रिया देनी पड़ रही है.

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महाराष्ट्र की मनख़ुर्द शिवाजी नगर सीट से अजित पवार की एनसीपी ने नवाब मलिक को चुनावी मैदान में उतारा है, लेकिन बीजेपी इससे ख़ुश नहीं है और कहा है कि वो नवाब मलिक का प्रचार नहीं करेंगे.

महायुति गठबंधन में एनसीपी के साथ शामिल एकनाथ शिंदे की शिव सेना ने सुरेश बुलेट पाटिल को नवाब मलिक के ख़िलाफ़ टिकट दिया है. समाजवादी पार्टी के अबु आसिम आज़मी भी यहाँ से चुनाव लड़ रहे हैं.

साथ ही महाविकास अघाड़ी में शामिल कांग्रेस, शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिव सेना के बीच कई मुद्दों को लेकर आए दिन अलग-अलग राय सामने आती रहती है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या दोनों गठबंधन में एकजुटता है. क्या इन दोनों गठबंधनों में सब ठीक है?

इस सवाल पर शीतल पवार कहती हैं, "महाविकास अघाड़ी की बात करें तो तीनों दल के स्टार प्रचारक एक दूसरे पार्टी के उम्मीदवार के लिए भी प्रचार कर रहे हैं. उन्होंने अपनी तरफ़ से ये साफ़ किया है कि वो एक साथ रहेंगे. अगर हम महायुति की बात करें तो उन्होंने भी अपनी गारंटियां एक साथ दी, लेकिन उनके गठबंधन में अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की बात करें तो उनकी विचारधारा बाक़ी दोनों पार्टियों से अलग है."

वो आगे कहती हैं, "महायुति के प्रचार में ये दिखाई दे रहा है कि वो लोग एक दूसरे के क्षेत्र में ज़्यादा प्रचार नहीं कर रहे हैं. सबका फोकस अपने-अपने उम्मीदवार पर है."

वोट ट्रांसफर को लेकर ये बड़ा सवाल रहा है कि ये कैसे होगा? इस पर शीतल पवार कहती हैं, "मुझे लगता है कि लोकसभा चुनाव जितनी आसानी से महाविकास अघाड़ी में वोट ट्रांसफर हुआ वैसा महायुति में नहीं हुआ. इसलिए इस चुनाव में महाविकास अघाड़ी को इसका फ़ायदा मिलेगा."

image Getty Images उद्धव ठाकरे के लिए यह चुनाव बहुत अहम है क्योंकि इसके चुनावी नतीजे से यह भी पचा चलेगा कि लोग असली शिव सेना किसे मानते हैं बाग़ी और छोटी पार्टियों का क्या असर

महाराष्ट्र चुनाव में गठबंधन की राजनीति भी एक चुनौती की तरह है, जहाँ हर पार्टी को अपनी भूमिका साबित करनी होगी. कई बाग़ी हैं जो दोनों गठबंधन का खेल बिगाड़ सकते हैं.

ऐसे में दोनों ही गठबंधन के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी, उस सीट पर जीत हासिल करना, जहां बाग़ी और छोटी पार्टियां मज़बूत हैं.

इस मुद्दे पर बीबीसी मराठी के संपादक अभिजीत कांबले ने कहा, "इस चुनाव में यह एक काफ़ी बड़ा मुद्दा है. महाराष्ट्र चुनाव का इतिहास देखें तो 1995 में इस तरीके से चुनाव हुए थे और क़रीब 40 से 45 निर्दलीय चुनकर आए, जिनमें ज़्यादातर बाग़ी थे, इस बार भी वैसी ही स्थिति नज़र आ रही है."

वो कहते हैं, "महाराष्ट्र में कई ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहाँ महायुति, महाविकास अघाड़ी और बाग़ी उम्मीदवारों में सीधी टक्कर है. इसलिए ये बाग़ी उम्मीदवार इस चुनाव में बहुत अहम भूमिका निभा सकते हैं."

उन्होंने बताया, "क़रीब 50 ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहाँ बाग़ी उम्मीदवारों की वजह से नतीजे बदल सकते हैं. इसके अलावा जो पूरे महाराष्ट्र मे छोटी-छोटी पार्टियां हैं, उनका भी असर दिखाई देगा."

इस पर बीबीसी मराठी की संवाददाता प्राची कुलकर्णी कहती हैं, "लोगों का ये कहना है कि कौन उम्मीदवार किस पार्टी में है ये हमें समझ नहीं आ रहा है और कौन उम्मीदवार पार्टी में जाएगा ये हमें नहीं पता है. इन सबको लेकर हम कैसे वोट करें ये हम समझ नहीं पा रहे हैं."

चुनाव में क्या हैं मुख्य मुद्दे?

महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी महंगाई और अन्य मुद्दों को लेकर राज्य सरकार को घेर रही है.

ऐसे में विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी को उम्मीद है कि उन्हें चुनाव में लोगों का साथ मिलेगा.

मुद्दों को लेकर प्राची कहती हैं, "अभी सोयाबीन का मुद्दा काफ़ी चर्चा में है. किसानों का कहना है कि आप हमें एमएसपी को लेकर गारंटी दो तभी हम आपको वोट कर पाएंगे. लोगों का ये भी कहना है कि हमें योजना नहीं चाहिए हम जो काम कर रहे हैं, उसका हमें ठीक से लाभ मिलना चाहिए."

प्राची आगे कहती हैं, "यहां युवाओं में बेरोज़गारी का मुद्दा गंभीर है. मराठवाड़ा में भी इस आंदोलन में काफ़ी सारे जो युवा दिख रहे हैं जो इसकी बात कर रहे हैं. हर जगह बेरोज़गारी की बात हो रही है."

प्राची बताती हैं, "लोगों का मानना है कि ये बड़े मुद्दे हैं लेकिन कोई राजनीतिक दल हमारे मुद्दों की बात नहीं कर रहा है. लोगों का कहना था कि जो हाइपर लोकल मुद्दे हैं, हम उनको ध्यान में रखते हुए वोट डालेंगे."

आरएसएस को किस बात का डर? image ANI आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस

महाराष्ट्र चुनाव में आरएसएस को लेकर चर्चा इसलिए अहम हो जाती है क्योंकि नागपुर में इसका मुख्यालय है.

नागपुर बीजेपी का गढ़ माना जाता है और यहीं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का जन्म हुआ था.

फडणवीस ने नागपुर के मेयर से मुख्यमंत्री और फिर उपमुख्यमंत्री तक का सफ़र पूरा किया है.

हाल के लोकसभा चुनाव में कहा गया कि आरएसएस कुछ हद तक या तो नाराज़ था या भारतीय जनता पार्टी के लिए उतना सक्रिय नहीं दिखा था. क्या उसमें उसके उस कथित रुख़ को लेकर कोई परिवर्तन इस समय दिखाई पड़ रहा है?

इस सवाल पर 'लोकमत पुणे' के संपादक संजय आवटे कहते हैं, "लोकसभा चुनाव में आरएसएस की भूमिका कहीं दिख नहीं रही थी. लोग ये कह रहे थे कि आरएसएस नाराज़ है और ख़ासकर के अजित पवार के बीजेपी के साथ जाने के बाद से आरएसएस नाराज़ है. इस चीज को आरएसएस ख़ुद भी कह रहा था कि अजित पवार को साथ में लाना बिल्कुल ग़लत बात है.''

वो कहते हैं, "आरएसएस का गढ़ नागपुर है और 2025 में आरएसएस को 100 साल पूरे हो रहे हैं. उस साल महाराष्ट्र अगर बीजेपी-शिवसेना के हाथ से चला गया तो फिर बहुत मुश्किल होगी."

आवटे कहते हैं, ''इस चुनाव में आरएसएस पूरी तरह से सक्रिय होकर काम कर रहा है. वोट ट्रांसफर के लिए आरएसएस के लोग सभी जगह जाकर बोल रहे हैं कि चाहे घड़ी हो या धनुष बाण हो ये कोई मायने नहीं रखता, हम बस एक महायुति हैं."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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