बुलडोज़र से विध्वंस की कार्रवाइयों पर बुधवार को देश की सर्वोच्च अदालत ने रोक लगा दी है.
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा कि अगर कोई अपराधी है या फिर उस पर किसी अपराध के आरोप हैं तब भी सरकार गैर कानूनी तरीके से उसका घर नहीं तोड़ सकती है.
कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारी जज नहीं बन सकते और अभियुक्तों की संपत्तियों को नहीं ढहा सकते.
ये फैसला ऐसे समय पर आया है जब कई राज्यों की सरकारों ने अभियुक्तों से जुड़ी संपत्तियों पर बुलडोज़र की कार्रवाई की है.
भारत की राजनीति में बुलडोज़र को चर्चा में लाने का काम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया है.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएयही वजह है कि उनके समर्थक उन्हें ‘बुलडोज़र बाबा’ कहते हैं और उनकी रैलियों में बुलडोज़र से उनका स्वागत करते हैं.
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का देश में चल रही ‘बुलडोज़र की राजनीति’ पर क्या असर होगा?
ख़ासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन में क्या 'बुलडोज़र एक्शन' पर रोक लग पाएगी?
उत्तर प्रदेश में ‘बुलडोज़र जस्टिस’ ANI उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में अतीक़ अहमद के एक क़रीबी के घर पर 'बुलडोज़र एक्शन' (फ़ाइल फ़ोटो)अवैध निर्माण को गिराने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल सालों से सिविक एजेंसियां करती आई हैं, लेकिन राजनीति में इसके इस्तेमाल को लेकर शुरू से लोग सवाल उठाते रहे हैं.
दो साल पहले उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के जावेद मोहम्मद का दो मंज़िला घर बुलडोज़र से ढहा दिया गया था.
जावेद पर आरोप था कि उन्होंने साल 2022 में बीजेपी नेता नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था. तब नूपुर ने पैग़ंबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.
उन पर आरोप था कि प्रदर्शन के दौरान हिंसा और पथराव की घटना हुई और इसके बाद उनके घर पर स्थानीय प्रशासन ने बुलडोज़र चला दिया.
प्रयागराज विकास प्राधिकरण का कहना था कि उनका घर अवैध तरीके़ से बनाया गया था. ऐसा ही एक मामला फ़तेहपुर में समाजवादी पार्टी के नेता हाजी रज़ा से जुड़ा है.
अगस्त 2024 में उनके चार मंज़िला शॉपिंग कॉम्प्लेक्स पर बुलडोज़र चला दिया गया था. हाजी रज़ा पर आरोप था कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के ख़िलाफ़ कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.
वहीं साल 2020 में जब विकास दुबे का घर गिराया गया तब भी बुलडोज़र एक्शन को लेकर राज्य सरकार की आलोचनाएं हुईं. दुबे के ख़िलाफ़ कई आपराधिक मामले दर्ज थे.
उत्तर प्रदेश में बुलडोज़र एक्शन के ऐसे कई मामले हैं जो समय समय पर लगातार कई दिनों तक ख़बरों में बने रहे.
फरवरी 2024 में ने एक रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में अप्रैल और जून 2022 के बीच सांप्रदायिक हिंसा और विरोध प्रदर्शनों के बाद असम, दिल्ली, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में 128 संपत्तियों के विध्वंस का विश्लेषण किया गया था.
एमनेस्टी ने इसे बदले की कार्रवाई बताया था और कहा था कि यह वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों की वजह से हुई. उनके मुताबिक़ इसमें कम से कम 617 लोग प्रभावित हुए.
उत्तर प्रदेश में 37 साल बाद 2017 में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने.
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि शुरुआती सालों में योगी आदित्यनाथ लव जिहाद और गौरक्षा जैसे मुद्दों पर फ़ोकस कर रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे वे बुलडोज़र पर आ गए.
वे कहते हैं, “बुलडोज़र निर्माण की बजाय ध्वस्त करने का चिन्ह है. शुरू में अपराध को कम करने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल किया गया, लेकिन जब किसी चीज़ को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता है.”
योगी आदित्यनाथ जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उनके स्वागत में बुलडोज़र रैलियां निकाली गईं. वे ख़ुद राज्य में क़ानून के राज के लिए बुलडोज़र को क्रेडिट दे रहे थे.
विजय त्रिवेदी कहते हैं, “किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से शुरू होकर यह बुलडोज़र मुस्लिम समाज पर चलने लगा और इससे हिंदू समाज को आनंद मिलने लगा. लोगों के बीच ये बात होने लगी कि यह बुलडोज़र मुसलमानों के ख़िलाफ़ है, जिसने योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व वाली छवि को और मज़बूत करने का काम किया.”
वहीं वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नए-नए प्रतीक गढ़े गए हैं जो हिंदुओं के एक तबके को पसंद आ रहे हैं.
वे कहते हैं, "इन प्रतीकों में योगी आदित्यनाथ ने बुलडोज़र को एक प्रतीक के तौर पर स्थापित किया, जो शक्तिशाली शासन व्यवस्था का पर्याय बन गया. ऐसा दिखाया गया कि अब सत्ता हमारे पास है और इस ताकत के सामने कानून का कोई वजूद नहीं है."
गुप्ता कहते हैं, "देश में अजमल कसाब तक को फेयर ट्रायल दिया गया, वहीं बुलडोज़र के मामले में अभियुक्तों के परिवार की एक नहीं सुनी गई. चंद मिनटों में देखते ही देखते कई जगहों पर घर ढहा दिए गए, जिसकी कानून में कोई जगह नहीं थी."
हालांकि उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी कहते हैं कि राज्य में बुलडोज़र योगी आदित्यनाथ के पहले से चल रहा है.
वे कहते हैं, “2007 से 2012 तक मायावती मुख्यमंत्री रहीं. उनके राज में कई माफियाओं की संपत्ति पर बुलडोज़र चला. इसमें अतीक अहमद का नाम भी शामिल है. उसके पीछे भी राजनीति ही थी.”
हेमंत तिवारी कहते हैं, “2017 में योगी आदित्यनाथ के आने के बाद बड़े पैमाने पर बुलडोज़र एक्शन हुआ. इसके पीछे एक कारण यह था कि बीजेपी ने चुनावों में ये वादा किया था कि अखिलेश सरकार में जो गुंडे माफिया हैं, जो दादागिरी करते हैं उनकी कमर तोड़ी जाएगी.”
उत्तर प्रदेश से शुरू हुई बुलडोज़र कार्रवाई देखते ही देखते मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा समेत कई राज्यों तक पहुंच गई.
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि दूसरे राज्यों ने जब यह देखा कि बुलडोज़र चलाने का लाभ मिल रहा है तो उन्होंने अपने यहां भी यह शुरू कर दिया.
वे कहते हैं, “बुलडोज़र मॉडल को बीजेपी ने देशभर में लागू कर दिया. यहां तक की मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान भी बुलडोज़र मामा बन गए जबकि इन कामों में वे बेहद नर्म माने जाते थे.”
वहीं दूसरी तरफ शरद गुप्ता कहते हैं कि हिंदुओं को एकजुट करने और उन्हें खुश करने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल किया गया, जिसमें बीजेपी और योगी आदित्यनाथ को कामयाबी मिली.
शरद गुप्ता कहते हैं, “बुलडोज़र के पीछे की सोच बहुसंख्यकवाद है. अभी बहुसंख्यक जातियों में बंटे हुए हैं. उन्हें किस तरह एक साथ लाया जाए, इसी का एक हल बुलडोज़र है. बुलडोज़र के ज़रिए मुसलमानों में डर बिठाने का काम किया गया.”
वे कहते हैं, “राजनीति में इस डर का फायदा उठाया गया, क्योंकि ऐसा माना गया कि बुलडोज़र की ज़्यादातर कार्रवाइयां मुसलमानों के खिलाफ ही हो रही हैं. बार-बार ये बताने की कोशिश की गई कि जिन पिछली सरकारों ने अल्पसंख्यकों को सिर पर बिठाया अब उनके खिलाफ बुलडोज़र चलाया जाएगा.”
शरद गुप्ता कहते हैं कि बुलडोज़र कार्रवाई को लेकर हाल ही में जो सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश दिए हैं उससे उत्तर प्रदेश समेत देश भर में बुलडोज़र कार्रवाइयों में कमी आएगी लेकिन इसे लेकर राजनीति होती रहेगी.
ऐसी ही बात विजय त्रिवेदी भी करते हैं. वे कहते हैं कि इससे योगी आदित्यनाथ की जो छवि है उस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
वे कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने में बहुत देर हो गई है. योगी आदित्यनाथ ने बुलडोज़र के ज़रिए अपनी एक छवि बना ली है. भले अब कार्रवाइयां कम हों, लेकिन सरकार कोई दूसरा रास्ता निकाल लेगी और इसका फायदा उन्हें लगातार मिलता रहेगा.”
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने ‘बुलडोज़र एक्शन’ पर अहम फैसला सुनाया.
पीठ ने कहा, “एक आम नागरिक के लिए घर बनाना कई सालों की मेहनत, सपनों और महत्वाकांक्षाओं का नतीजा होता है.”
कोर्ट ने कहा, “हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अगर कार्यपालिका मनमाने ढंग से किसी नागरिक के घर को केवल इस आधार पर तोड़ देती है कि किसी अपराध का अभियुक्त है तो कार्यपालिका कानून के शासन के सिद्धांतों के खिलाफ कार्य करती है.”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा है कि ऐसे मामलों में जो अधिकारी क़ानून अपने हाथ में लेते हुए इस तरह की मनमानी कार्रवाई करते हैं, उन्हें भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की मनमानी, एकतरफ़ा और भेदभावपूर्ण कार्रवाइयों को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश ज़रूरी है.
अदालत ने ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किए हैं.
- किसी भी ढांचे को ढहाने से 15 दिन पहले नोटिस ज़रूरी
- संबंधित संपत्ति पर नोटिस चिपकाना अनिवार्य
- शिकायत मिलने के बाद ज़िला कलेक्टर को सूचित करें
- तीन महीने के अंदर डिजिटल पोर्टल बनाएं
- पोर्टल पर उपलब्ध करवाएं हर जानकारी
- अधिकारी संबंधित व्यक्ति की शिकायतें सुनें, रिकॉर्ड रखें
- संपत्ति के मालिक को अदालत जाने का मौका मिले
- संपत्ति ढहाने से जुड़ी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी हो
- दिशानिर्देश नहीं माने गए तो अधिकारी ज़िम्मेदार और उन्हें निजी खर्च से ढांचा दोबारा बनवाना होगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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