Top News
Next Story
NewsPoint

'बुलडोज़र एक्शन' पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के बाद पुराने मामलों का क्या होगा?

Send Push
image Getty Images सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसका यह आदेश हर राज्य में भेजा जाए. सारे अधिकारियों को इसके बारे में बताया जाए.

'अपना घर हो, अपना आंगन हो,

इस ख़्वाब में हर कोई जीता है.

इंसान के दिल की ये चाहत है

कि एक घर का सपना कभी न छूटे.'

बुलडोज़र से किसी का आशियाना या घर तोड़ने से पहले सरकार या प्रशासन को क्या करना होगा, इसके बारे में ने बुधवार को अहम दिशा-निर्देश दिए.

कवि प्रदीप की इन चार लाइनों से ही 'बुलडोज़र एक्शन' पर फ़ैसले की शुरुआत होती है. ऐसा कह सकते हैं कि इन लाइनों का भाव, दिशा-निर्देश का मर्म है. फ़ैसला दो जजों की पीठ ने दिया है. इस पीठ में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन थे.

की दो जजों की पीठ ने कहा है कि किसी व्यक्ति के घर या संपत्ति को महज़ इसलिए तोड़ना कि वह अपराधी है या उन पर अपराध के आरोप हैं, क़ानून के ख़िलाफ़ है.

इस फ़ैसले में पीठ ने नोटिस देने, सुनवाई करने और तोड़फोड़ के आदेश जारी करने से जुड़े कई दिशा-निर्देश दिए हैं.

image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ करें
इससे ज़मीन पर क्या असर पड़ेगा? image ANI उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में अतीक़ अहमद के एक क़रीबी के घर पर 'बुलडोज़र एक्शन' (फ़ाइल फ़ोटो)

क़ानून के जानकारों का कहना है कि ये एक अहम फैसला है. इससे विध्वंस की ग़ैर-क़ानूनी कार्रवाइयों पर रोक लगेगी.

कोर्ट ने ये कहा कि घर या कोई जायदाद तोड़ने से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना होगा. अगर किसी राज्य के क़ानून में इससे लंबे नोटिस का प्रावधान हो तो उसका पालन करना होगा.

नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट से देना होगा. इसके साथ ही कथित ग़ैर क़ानूनी ढाँचे पर भी इस नोटिस को चिपकाना होगा.

नोटिस पर पहले की तारीख़ न दी जाए. इसके लिए नोटिस की एक कॉपी कलेक्टर/ ज़िला मजिस्ट्रेट को भी ईमेल पर भेजनी होगी.

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश में कहा गया है कि नोटिस में ये भी लिखना होगा कि कौन से क़ानून का उल्लंघन हुआ है. इस मामले में सुनवाई कब होगी. जब सुनवाई हो, तो उसका पूरा विवरण भी रिकॉर्ड करना होगा.

इसमें कहा गया है कि सुनवाई करने के बाद अधिकारियों को आदेश में वजह भी बतानी होगी. इसमें ये भी देखना होगा कि किसी संपत्ति का एक हिस्सा ग़ैर क़ानूनी है या पूरी संपत्ति ही ग़ैर क़ानूनी है.

अगर तोड़-फोड़ की जगह, जुर्माना या और कोई दंड दिया जा सकता है तो वह दिया जाएगा.

अगर क़ानून में संपत्ति तोड़ने या गिराने के आदेश के ख़िलाफ़ कोर्ट में अपील करने का प्रावधान है तो उसका पालन किया जाना चाहिए.

दिशा-निर्देश के मुताबिक़ अगर ऐसा प्रावधान नहीं भी है, तो आदेश आने के बाद संपत्ति के मालिक/मालकिन को 15 दिन का वक़्त मिलेगा ताकि वे ख़ुद ही ग़ैर क़ानूनी ढाँचे को सही कर लें. अगर ऐसा नहीं हो, तब ही इसे तोड़ने की कार्रवाई की जा सकती है.

image BBC image BBC
इससे क्या फ़र्क़ पड़ेगा? image ANI यूपी के सांगली में सीएम योगी आदित्यनाथ के समर्थक 'बुलडोज़र एक्शन का समर्थन करते हुए (फ़ाइल फ़ोटो)

कोर्ट ने कहा कि उसका यह आदेश हर राज्य में भेजा जाए. सारे अधिकारियों को इसके बारे में बताया जाए.

इस फ़ैसले के बाद होने वाले किसी भी विध्वंस की कार्रवाई में सरकार और उनके अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के इन दिशा-निर्देर्शों का पालन करना होगा.

ऐसा नहीं होने पर उन्हें अपनी निजी संपत्ति से नुक़सान की भरपाई करनी पड़ेगी. उन पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है. इस निर्देश से अधिकारियों की जवाबदेही बढ़ने की उम्मीद है.

इसके अलावा, सुनवाई के दौरान घर या संपत्ति ध्वस्त करने के कई मामलों में पीड़ितों का कहना था कि उन्हें जो नोटिस मिला, उसमें पहले की तारीख़ थी.

कोर्ट ने इन स्थितियों से बचने के लिए भी निर्देश दिए हैं. जैसे- कलेक्टर को ईमेल करना, वेबसाइट पर सारे दस्तावेज़ों को नियमित तौर पर डालना वग़ैरह.

कुछ याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन पर आरोप लगने या अपराध के तुरंत बाद ही उनकी संपत्ति को तोड़ा गया.

अभी कोर्ट ने जो दिशा-निर्देश दिए हैं, उनके मुताबिक़ नोटिस और अंतिम आदेश, दोनों के बाद कम से कम 15 दिनों का समय होना चाहिए. अब उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे से ऐसी चीज़ पर रोक लगेगी.

इन सब बातों की वजह से क़ानून के कई जानकारों का कहना है कि इस फ़ैसले से देश में ‘बुलडोज़र एक्शन’ के नाम पर होने वाली कार्रवाइयों पर असर पड़ेगा.

सुप्रीम कोर्ट के वकील ने एक्स (ट्विटर) पर लिखा, ''इस फ़ैसले से ‘बुलडोज़र जस्टिस’ पर रोक लगेगी.''

...लेकिन पुराने मामलों का क्या? image BBC मध्य प्रदेश के छतरपुर में हाजी शहज़ाद का निर्माणाधीन मकान 22 अगस्त 2024 को गिरा दिया गया था

कोर्ट कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था. ये दिशा-निर्देश उसी के तहत आए हैं.

ये याचिकाएँ जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे कुछ संगठनों और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नेता बृंदा करात और कुछ अन्य व्यक्तियों की ओर दायर की गई थीं.

कोर्ट के सामने कुछ ऐसे व्यक्ति भी थे जिनका कहना था कि उनकी संपत्ति को ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से तोड़ा गया है. इनके मामले अभी भी कोर्ट के सामने लंबित हैं.

अब इस फ़ैसले से पहले के मामलों में कोर्ट को यह देखना होगा कि तोड़फोड़ में क़ानूनी प्रक्रिया का पालन हुआ था या नहीं.

हर राज्य में निर्माण से जुड़े क़ानून हैं. इसमें किसी मकान को तोड़ने से पहले नोटिस देने, सुनवाई करने जैसी प्रक्रिया दी हुई है. कोर्ट को ये भी देखना होगा कि किसी कार्रवाई में इनका पालन हुआ था या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सीयू सिंह कहते हैं,'' इस फ़ैसले से बहुत सी चीज़ें बदलेंगी. इससे लंबित केस पर भी फ़र्क़ पड़ेगा.''

क़ानून के जानकारों के मुताबिक बुधवार के फ़ैसले में कोर्ट ने जिन सिद्धांतों की बात की है, उनका असर पहले के मामलों पर भी पड़ेगा.

बुधवार को भी कोर्ट ने कहा कि बिना सोचे-समझे सरकार और अधिकारी तोड़ने की कार्रवाई नहीं कर सकते. अगर ऐसा होता है तो उन्हें जवाब देना होगा. ज़िम्मेदारी लेनी होगी.

इस मामले में याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा था कि वही संपत्ति तोड़ी गई है, जिनका मालिक किसी मामले में अभियुक्त था. किसी अपराध में अभियुक्त बनाए जाने के ठीक बाद उनकी संपत्ति तोड़ी गई.

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि ये बस इत्तेफ़ाक़ की बात है कि जो ग़ैर क़ानूनी संपत्ति तोड़ी गई, वह किसी अभियुक्त की थी.

इस पर कोर्ट का कहना था, ''अचानक किसी संपत्ति को तोड़ा जाए और उसके अगल-बगल की एक जैसी इमारतों को कुछ न हो तो ऐसे में लगता है कि तोड़ने की कार्रवाई बुरे इरादे से की गई है. अगर ये दिखे कि किसी ढाँचे को गिराने के ठीक पहले उसके मालिक को किसी मामले में आरोपी बनाया गया है तो ये माना जा सकता है कि इस तोड़फोड़ का असली मक़सद बिना किसी कोर्ट के आदेश के आरोपी को सज़ा देना था. इस सूरत में अधिकारियों को ये साबित करना होगा कि उनका मक़सद ऐसा नहीं था.''

जब यूपी सरकार पर जुर्माना लगा image BBC

इस मामले में अगली सुनवाई चार हफ़्ते बाद है. उसमें शायद ये और साफ़ हो कि तोड़-फोड़ के पुराने मामलों में सुप्रीम कोर्ट क्या करेगा.

इस साल छह नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने साल 2019 में घर तोड़ने के एक मामले में उत्तर प्रदेश सरकार पर 25 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था.

कोर्ट ने कहा था कि मकान या आशियाना तोड़ने की कार्रवाई ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से की गई थी. इसके लिए कोई नोटिस नहीं दिया गया था. बाक़ी प्रक्रियाओं का पालन भी नहीं हुआ था. कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा था कि किसी भी सभ्य समाज में बुलडोज़र के ज़रिए इंसाफ़ नहीं होना चाहिए.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें , , , और पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

image
Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now