अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हो चुके हैं, जिनमें रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को जीत मिली है.
व्हाइट हाउस में एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप की वापसी होगी. यह ख़बर दुनियाभर में चर्चा में है.
ट्रंप की ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ पॉलिसी के चलते अब दुनिया भर में संघर्ष वाले क्षेत्रों में अमेरिका अपनी सहभागिता को घटा सकता है.
बीबीसी के पाँच संवाददाताओं ने कुछ देशों में ट्रंप की जीत के बाद बनने वाली स्थिति का आकलन किया है.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए ये भी पढ़ेंजेम्स वाटरहाउस, यूक्रेनी संवाददाता, कीएव
BBC Getty Images डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को एक बार ‘इतिहास का सबसे बड़ा सेल्समैन’ बताया था"ट्रंप का अगला कदम क्या होगा, इस बारे में भविष्यवाणी करने की कोशिश मत कीजिए. कोई नहीं जानता है कि वह क्या करने वाले हैं."
ये शब्द एक यूक्रेनी सांसद के हैं, जो उस राजनीतिक चुनौती की ओर इशारा करते हैं, जो कीएव के सामने है.
ट्रंप की जीत के बाद यहां व्यापक स्तर पर आशंका का माहौल बन गया था कि भविष्य में अमेरिका से मिलने वाली सहायता को लेकर क्या स्थिति बन सकती है.
दरअसल, ट्रंप ने एक बार रूस और यूक्रेन की जंग एक दिन में ख़त्म करने की बात कही थी. उन्होंने अमेरिकी सेना के यूक्रेन की सहायता करने के मामले में आलोचना की थी.
ऐसे में अब कोई भी अंदाज़ा लगा सकता है कि ट्रंप क्या कर सकते हैं.
सरहद पर तैनात एक सैनिक ने कहा, "वह (ट्रंप) पुतिन से कह सकते हैं कि युद्ध को रोक दें और इसके बाद वह (पुतिन) कहें कि 'ठीक है'."
उन्होंने कहा, "हालांकि, यह बहुत ही ख़राब स्थिति होगी क्योंकि, कुछ ही वर्षों में रूस एक बार फिर ताक़तवार हो जाएगा और हमें ख़त्म कर देगा."
उन्होंने कहा, "दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि पुतिन ऐसा करने से इनकार कर दें. इसके बाद तय है कि ट्रंप का उसका जवाब ज़रूर देंगे. यह स्थिति ज़्यादा उम्मीद भरी है."
दरअसल, यूक्रेन को उम्मीद है कि यूक्रेन को हारने की स्थिति में देखकर अमेरिका खुद यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य सहायता को और बढ़ा देगा.
सीमा पर तैनात यूक्रेनी सैनिकों ने रूस की आक्रामकता को क़रीब से महसूस किया है. ऐसे में वो लोग ट्रंप को राहत के तौर पर देख रहे हैं.
डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को ‘इतिहास का सबसे बड़ा सेल्समैन’ बताया था. हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद उन्हें सबसे पहले बधाई देने वालों में ज़ेलेंस्की भी शामिल थे.
इस दौरान उन्होंने राजनीतिक और आर्थिक अवसरों में सहभागिता को लेकर बात की, ताकि बदले में उनको रूस के साथ जंग जारी रखने के लिए मदद मिल पाए.
वहां एक और मुद्दा भी है. इसमें ट्रंप को न सिर्फ़ यूक्रेन को दी जा रही अमेरिकी सैन्य सहायता पर विचार करना होगा, बल्कि यह भी तय करना होगा कि रूस के आक्रमण में उत्तर कोरिया की बढ़ती भागीदारी को लेकर जवाब देना है या नहीं या फिर कैसे जवाब देना है.
ये भी पढ़ेंस्टीव रोज़नबर्ग, रूसी संपादक, सोची
BBC Getty Images 16 जुलाई 2018 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाक़ात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से हेलेंस्की, फ़िनलैंड में हुई थी.क्रेमलिन ने ट्रंप को जीत और व्हाइट हाउस में उनकी वापसी को लेकर ख़ुशी ज़ाहिर करने में जल्दबाज़ी नहीं दिखाई.
ट्रंप ने भी अपने पूरे चुनाव अभियान के दौरान व्लादिमीर पुतिन की आलोचना करने से परहेज किया था. जबकि कमला हैरिस ने ज़रूर रूस के राष्ट्रपति को ‘हत्यारा तानाशाह’ बताया था.
ट्रंप ने कीएव को अमेरिकी सैन्य सहायता उपलब्ध करवाए जाने को लेकर भी सवाल उठाया था.
हालांकि, सार्वजनिक तौर पर रूस ऐसी प्रतिक्रिया देने से बच रहा है कि जिससे यह संदेश जाए कि ट्रंप की जीत को लेकर वह उत्साहित है.
नतीजे आने के तुरंत बाद रूसी सरकार के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा था कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं कि पुतिन ट्रंप को बधाई देंगे या नहीं.
उन्होंने कहा, "यह मत भूलिए कि अमेरिका एक ‘अमित्र देश’ है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर हमारे देश के ख़िलाफ़ युद्ध में शामिल है."
हालांकि समाचार एजेंसी तास के , रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को वल्दाई इंटरनेशनल डिस्कशन क्लब के एक कार्यक्रम में डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीतने की बधाई दी.
पुतिन ने डोनाल्ड ट्रंप को एक साहसी व्यक्ति बताते हुए कहा, व्हाइट हाउस में उनके पहले कार्यकाल के दौरान हर तरफ से उन्हें परेशान किया गया था.
दरअसल, ट्रंप के पहले कार्यकाल में क्रेमलिन को बहुत उम्मीदें थीं कि अमेरिका और रूस के रिश्ते बेहतर हो जाएंगे. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. यही वजह है कि इस बार उम्मीदें कम हैं.
फिर भी, मैं सोची के ऊपर पहाड़ों में एक राजनीतिक परिचर्चा क्लब में पहुंचा हूं. जहां रूस के अग्रणी राजनीतिक जानकारों को ट्रंप के अगले कार्यकाल का इंतज़ार है.
एक जानकार ने मुझसे कहा कि उनको लगता है कि ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका अपने ग्लोबल सुपर पावर वाले स्टेटस से 'पीछे हट जाएगा'.
ये भी पढ़ेंपॉल किर्बी, यूरोप डिजिटल एडिटर
BBC Getty Images कई यूरोपियन यूनियन के नेताओं के लिए ट्रंप का दूसरा कार्यकाल सुरक्षा, व्यापार और क्लाइमेट चेंज को लेकर मुश्किलों का संकेत दे सकता हैबुडापेस्ट में गुरुवार को जब यूरोपीय यूनियन के दर्जनभर यूरोपीय नेता इकट्ठा हुए, तो संभवतः उनमें से कुछ डोनाल्ड ट्रंप की जीत की ख़ुशियां मना रहे थे कुछ अपने आप से यह सवाल पूछ रहे थे कि अब आगे क्या होगा?
हंगरी के प्रधानमंत्री और ट्रंप के सहयोगी विक्टर ओरबान ने सबसे पहले फ़ेसबुक पर लिखा था, "यह तो होना ही था!"
मगर, कई यूरोपियन यूनियन के नेताओं के लिए ट्रंप का दूसरा कार्यकाल सुरक्षा, व्यापार और क्लाइमेट चेंज को लेकर मुश्किलों का संकेत दे सकता है.
डोनाल्ड ट्रंप को बधाई देने के चंद पलों बाद ही फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने कहा कि वह जर्मन चांसलर ओलाफ़ शुल्त्ज़ की बात से सहमत हैं कि, "इस नए संदर्भ में हमें एकजुट होकर यूरोप को और मजबूत बनाने की दिशा में काम करना होगा".
यह आइडिया जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक ने दिया था. यूक्रेन से लौटने के बाद उन्होंने कहा था कि यूरोपियन नेताओं को "सोच को बड़ा रखते हुए यूरोप की सुरक्षा में बड़ा निवेश करना होगा. इसमें अमेरिका हमारा भागीदार है."
उनके पोलिश और नेटो समकक्ष रेडोस्लाव सिकोरस्की ने कहा था कि वह ट्रंप की शीर्ष टीम के साथ संपर्क में हैं और वह इससे सहमत हैं कि "यूरोप को अपनी सुरक्षा को लेकर तत्काल ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए."
यूरोपीय यूनियन के आयात पर अमेरिकी टैरिफ़ (आयात शुल्क) में भारी बढ़ोतरी की संभावना है.
यूरोपीय यूनियन कमीशन की प्रमुख उर्सुला वोन डेर लेयेन ने ट्रंप को बधाई तो दी, लेकिन ट्रंप को यह भी याद दिलाया कि 'लाखों नौकरियां और करोड़ों का व्यापार' उनके अटलांटिक सागर के उस पार के रिश्तों पर निर्भर हैं.
ये भी पढ़ेंलूसी विलियमसन, मध्य पूर्व संवाददाता, यरुशलम
BBC Getty Images ट्रंप को पहले पहल बधाई देने वाले नेताओं में इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू भी हैं.इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू पहले थे, जिन्होंने ट्रंप को जीत की बधाई दी थी. और वह पहले भी ट्रंप को लेकर कह चुके हैं कि व्हाइट हाउस में ट्रंप इसराइल के सबसे अच्छे दोस्त साबित हुए हैं.
दरअसल, ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु संधि को रद्द कर दिया था. इस संधि का इसराइल ने विरोध किया था. ट्रंप ने ऐसा करके इसराइल का समर्थन हासिल किया था.
इसके अलावा ट्रंप ने यरूशलम को इसराइल की राजधानी घोषित करके दशकों से चली आ रही अमेरिकी नीति को भी पलट दिया था.
अमेरिका में इसराइल के पूर्व राजदूत माइकल ओरेन कहते हैं, "जहां तक इसराइल की बात है तो ट्रंप का पहला कार्यकाल 'अनुकरणीय' रहा है."
मगर, वह कहते हैं कि "हमें यह बात बहुत अच्छे से समझनी होगी कि डोनाल्ड ट्रंप कौन हैं और उनके कहने का क्या मतलब है."
ओरेन कहते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति युद्ध को महंगा मानते हैं और ट्रंप ने इसराइल से अपील की है कि ग़ज़ा में युद्ध को तत्काल ख़त्म किया जाए.
वह कहते हैं, "यदि डोनाल्ड ट्रंप जनवरी में व्हाइट हाउस पहुंचते हैं और कहते हैं, ठीक है. आपके पास एक सप्ताह का वक़्त है इस जंग को ख़त्म करने के लिए, तो नेतन्याहू को उनकी बात का सम्मान करना पड़ेगा."
ग़ज़ा में, जहां इसराइली सेना फ़लस्तीनी समूह हमास के साथ जंग लड़ रही है.
अहमद की पत्नी और बच्चा उनके घर पर हुए हमले में मारे गए थे. वह कहते हैं, "ट्रंप के पास "कुछ मज़बूत वादे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि वो मदद कर सकते हैं और शांति ला सकते हैं."
एक और विस्थापित फ़लस्तीनी ममदोह कहते हैं कि 'उनको इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि अमेरिका के चुनाव में कौन जीता है. हम लोग केवल कुछ मदद चाहते हैं.'
ये भी पढ़ेंलौरा बिकर, चीनी संवाददाता, बीजिंग
BBC Getty Images चीन को ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद डर सता रहा है कि उनकी मौजूदगी नए व्यापार युद्ध को शुरू कर देगी.चीन डोनाल्ड ट्रंप की वापसी को लेकर खुद को तैयार कर रहा है. चीन को ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद डर सता रहा है कि उनकी मौजूदगी नए व्यापार युद्ध को शुरू कर देगी.
राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप ने 300 अरब डॉलर से ज़्यादा के चीनी आयात पर टैरिफ़ लगाया था. इस बार उन्होंने कहा है कि टैरिफ 60 फ़ीसदी से ज़्यादा हो सकता है.
बीजिंग चुप नहीं बैठने वाला है. वह जवाब देगा. मगर, चीन की अर्थव्यवस्था पहले से मंदी में चल रही है. ऐसे में उसकी इच्छा दूसरे व्यापार युद्ध में उतरने की नहीं है.
दरअसल, स्थिरता को पसंद करने वाले चीनी नेताओं के लिए ट्रंप की अप्रत्याशित योजनाएं और तीखी बयानबाजी सिरदर्द का कारण है.
मगर, सत्ता और प्रभाव के मामले में कुछ विश्लेषणकर्ता मानते हैं कि यह बीजिंग के लिए एक अवसर के समान होगा.
बाइडन प्रशासन ने पिछले चार साल, एशिया में दक्षिण कोरिया, जापान, फ़िलिपींस और वियतनाम के साथ दोस्ती बनाने में बिताए हैं. ऐसा चीन को नियंत्रित करने की कोशिश में किया गया.
ट्रंप के 'अमेरिका फ़र्स्ट' वाले नारे ने अमेरिका के इन सहयोगियों को कमजोर और अकेला कर दिया है.
वह नाजुक कूटनीति के बजाय सौदा करने की कोशिश को प्राथमिकता देते हैं और अक्सर अमेरिका की दोस्ती की कोई क़ीमत तय कर देते हैं.
साल 2018 में उन्होंने दक्षिण कोरिया से उनके देश में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी बनाए रखने को लेकर और ज़्यादा धन की मांग की थी.
चीन अमेरिका की वैश्विक नेतृत्व वाली स्थिति को चुनौती देना चाहता है. बीजिंग ने पहले ही तथाकथित ग्लोबल साउथ में बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ रिश्ते कायम कर लिए हैं.
यदि वॉशिंगटन का प्रभाव एशिया और दुनिया में कम होता है तो राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए यह एक जीत होगी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें , , , और पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
ये भी पढ़ेंYou may also like
Dulquer Salmaan's Lucky Bhaskar Set for OTT Debut After Impressive Box Office Run
The Magic of Shiri: Divyanka Tripathi and Jaaved Jaaferi's New Series Finally Set for OTT Release
Gemini AI Assistant Just Got Smarter: New Utilities Extension Lets You Control Smartphone Functions
New Study Sheds Light on Mars's Mysterious Magnetic History
Google Weather App's New Immersive Vibrations Feature Brings Weather to Life on Pixel Devices