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मैतेई-कुकी मणिपुर में आमने-सामने, पर इस इलाके में दोनों के बीच 'दोस्ती'

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Biswa Kalyan Purkayastha मणिपुर के जिरीबाम में बच्चों और महिलाओं की हत्या के विरोध में असम के सिलचर जिले में कैंडिल मार्च

मणिपुर के जिरीबाम से 12 किलोमीटर दूर असम के कछार जिले में एक ऐसी जगह है जहां मैतेई और हमार-कुकी समुदाय के लोग लंबे समय से साथ-साथ रहते आ रहे हैं.

साल 2023 के मई महीने से ही वो इस सह-अस्तित्व को बरकरार रखने किए अफवाहों से लड़ने में लगे हैं. लेकिन कहीं न कहीं वो डरे हुए भी हैं.

मणिपुर में मई 2023 से चले आ रहे जातीय संघर्ष में अब तक 220 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

इसने राज्य के दो प्रमुख समुदायों के बीच के रिश्तों को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया है.

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हिंसा की वजह से मैतेई और कुकी, दोनों समुदाय के हजारों लोग विस्थापन के शिकार होकर पड़ोसी राज्य असम में रह रहे हैं.

32 साल की लालरूतमोई जिरीबाम की रहने वाली हैं और असम के कछार जिले में एक छोटी सी दुकान चलाती हैं.

यहां जून महीने में पनाह लेने के बाद उन्होंने ये दुकान शुरू की थी. छह जून तक उनके पास दो दुकानें थीं. लेकिन अनाम उपद्रवियों ने इन्हें उजाड़ दिया था.

वो कहती हैं, ''मैं अपने परिवार में कमाने वाली अकेली हूं. मेरे माता-पिता बीमार हैं. मेरा छोटा भाई अभी पढ़ ही रहा है. हमने रात को बॉर्डर पार किया और अब यहां रह रहे हैं. इस उम्मीद में कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा.''

लालरूतमोई कहती हैं कि असम के लोग अलग हैं. ''उनमें संवदेना है. वो मेरे काम की तारीफ़ करते हैं और मुझे बढ़ावा देते हैं. हम यहां सुरक्षित महसूस करते हैं.''

असम के इस इलाके में मैतेई और कुकियों का भाईचारा image Biswa Kalyan Purkayastha मणिपुर में हिंसा फैलने के बाद असम में शरण लेने वाली छात्रा कछार जिले में चाय की दुकान चला रही हैं

मणिपुर और असम लगभग 200 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं.

इसका सबसे बड़ा हिस्सा जिरीबाम से ही होकर गुजरता है. मणिपुर के सेनापति जिले से निकलने वाली बराक नदी बांग्लादेश में प्रवेश से पहले असम के कछार और करीमगंज जिले से ही होकर गुजरती है.

स्थानीय लोग बताते हैं कि असम में मैतेई, हमार और कुकी समेत दूसरी जनजातियां कारोबार और खेती के मामले में एक-दूसरे पर निर्भर हैं.

मणिपुरी डेवलपमेंट काउंसिल, असम की अध्यक्ष रीना सिंह कहती हैं, "कुकी और हमार यहां होने वाले ज्यादातर ऑर्गेनिक फलों और सब्जियों की खेती करते हैं. मैतियों में ये सबसे ज्यादा पंसद किए जाते हैं.’’

रीना सिंह कहती हैं, ''मैंने कभी भी बाज़ार से अन्ननास नहीं खरीदा है. हमें अपने पड़ोस में रहने वाले हमार और कुकियों से ये मिल जाता है. मेरे पति डॉक्टर हैं. उनके ज्यादातर मरीज इन्हीं समुदायों के हैं. हमने कभी भेदभाव महसूस नहीं किया. उल्टे हमारे बीच काफी अच्छा रिश्ता है और पीढ़ियों से ये सदभाव चला आ रहा है.''

रीना सिंह ने माना कि हालात अब थोड़े बदले हैं और मणिपुर में हिंसा इसकी वजहों में से एक है.

उन्होंने कहा, ''ज्यादातर मामलों में हम अफवाहों के शिकार हैं. मणिपुर और दूसरे इलाकों के कुछ लोग सोशल मीडिया पर फ़र्जी जानकारियां साझा करते हैं और इनसे गड़बड़ियां फैलती हैं.’’

रीना सिंह कहती हैं वो और उनके साथ के लोग गांवों में बैठकें कर लोगों को समझा रहे हैं कि वो सोशल मीडिया पर प्राप्त अपुष्ट जानकारियों पर भरोसा न करें.

उन्होंने कहा,'' हमने दूसरे समुदाय के लोगों से भी कहा है कि वो अफवाहों पर ध्यान न दें.''

मैतेई और हमार-कुकी समुदाय के लोगों का एक दूसरे पर भरोसा क्यों? image Biswa Kalyan Purkayastha मणिपुर की 32 साल की लालरुतमोई असम के कछार जिले में ये दुकान चला रही हैं

कछार जिले के हमारख्वालिन इलाके में हमार और कुकी समुदाय के पंद्रह हजार लोग रहते हैं. मैतेई और हमार-कुकी समुदाय के लोगों के बीच कई शादियां हो चुकी हैं.

इस इलाके में रहने वाली एक मैतेई महिला ने बताया कि 2022 में उनकी शादी हमार समुदाय के युवक से हुई थी. उन्होंने कहा,'' हमें कोई ख़तरा महसूस नहीं होता.''

उन्होंने कहा, ''ये अरेंज्ड शादी थी. मेरे पिता ने मेरे लिए वर चुना क्योंकि उन्हें लगा कि वो जिसे चुन रहे हैं वो मेरे लिए उपयुक्त व्यक्ति होंगे. जब हम मणिपुर में होने वाली हत्याओं के बारे में सुनते हैं तो विचलित हो जाते हैं. लेकिन इससे हमारे रिश्तों पर कोई फर्क नहीं पड़ता.''

उनके पति ने कहा कि पत्नी के सामने वो मैतेई और कुकियों के बीच चल रही लड़ाई का ज़िक्र नहीं करते.

वो कहते हैं, ''उन्होंने (पत्नी) मुझे और मेरी संस्कृति को इसलिए अपनाया क्योंकि वो मुझसे प्रेम करती हैं. हमारी शादी इस बात का उदाहरण है कि प्रेम इन चीजों से ऊपर होता है.''

असम में मैतेई और हमार-कुकी जनजातियां किसान हैं.

इस इलाके में दूसरे समुदायों की तुलना में मैतेई लोगों की संख्या ज्यादा हैं. उनकी राजनीतिक ताकत भी ज्यादा है.

लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि मैतेई और हमार-कुकी समुदायों के बीच संघर्ष का कोई इतिहास नहीं है.

दिघली मणिपुरी बस्ती के 50 वर्षीय इबुनगोतोन शर्मा ने कहा कि उनके गांव में कुकी और मैतेई आमने-सामने रहते हैं.

वो कहते हैं, ''हालांकि गांव का नाम मणिपुरियों पर रखा गया है, लेकिन कुकी आबादी भी लगभग मैतेई आबादी के बराबर है. कुछ लोग हमें सलाह देते हैं कि कुकियों पर भरोसा मत करो. लेकिन कोई कारण समझ नहीं आता है जिससे हम कुकियों पर संदेह करें.''

मणिपुर के जिरीबाम में क्या हुआ था, क्यों भड़की थी हिंसा? image Biswa Kalyan Purkayastha कंस्ट्रक्शन मजदूर उत्तम सिंह, जिनके परिवार के छह लोगों को अपहरण के बाद मार डाला गया.

जिरीबाम जिले में उस समय नए सिरे से हिंसा भड़क उठी जब कुछ अज्ञात उपद्रवियों ने एक महिला की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी.

इसके बाद 9 नवंबर को उसी तरह से एक मैतेई महिला को मार दिया गया. फिर 11 नवंबर को हथियारबंद अज्ञात उग्रवादियों के कई समूहों ने बोरोबेकरा में मैतेई लोगों के गांव पर हमला किया.

उन्होंने पहले एक परिवार के छह सदस्यों का अपहरण किया और फिर दो बुजुर्ग पुरुषों की हत्या कर दी.

उसी दिन हमार-कुकी समुदाय के दस हथियारबंद लोग सीआरपीएफ के साथ एक मुठभेड़ में मारे गए. उनके शव पोस्टमॉर्टम के लिए असम के सिलचर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भेजे गए.

पोस्टमॉर्टम और शवों को उनके परिजनों को कथित तौर पर देर होने से गुस्साए लोगों ने सिलचर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में पुलिस पर हमला कर दिया.

इसके जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज किया. बाद में इन शवों को असम राइफल्स के हेलीकॉप्टर से एयरलिफ्ट कर मणिपुर के चुराचांदपुर ले जाया गया.

शुक्रवार से सोमवार के बीच बराक नदी में उन छह मैतेई लोगों के लाशें मिलीं, जिनका अपहरण कर लिया गया था.

इनमें तीन महिलाएं, दो बच्चे और आठ महीने का एक शिशु था. परिवारवालों के मुताबिक़ जिस वक़्त उनके घर पर हमला हुआ उस समय वो कोई त्योहार मना रहे थे.

मारे गए लोगों को पहचानने के लिए सिलचर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल आए जिरीबाम के उत्तम सिंह ने कहा कि परिवार निनगोल चाकोउबा त्योहार मना रहा था, उसी समय ये हमला हुआ. चरमपंथी आए और उनका अपहरण कर लिया. फिर उन्होंने उनका घर जला दिया.

उन्होंने कहा, ''उस दिन हमारा सबकुछ ख़त्म हो गया. हमें जब तक इंसाफ नहीं मिल जाता है तब तक हम लाश नहीं ले जाएंगे.''

बराक वैली हिल ट्राइब्स डेवलपमेंट काउंसिल के चेयरमैन लालथोमलिन हमार का मानना है कि जिरीबाम के निवासियों की लाशें कछार लाना एक भारी भूल थी.

उन्होंने कहा, ''पूरे डेढ़ साल से हम दोनों समुदायों को बीच शांति कायम करने के लिए काम कर रहे हैं. लेकिन सरकार के एक ग़लत फैसले ने चीजों को कितना कुछ बदल दिया. अब हम भले ही एक-दूसरे के इलाके में जाने से बच रहे हैं, लेकिन दुश्मनी की कोई भावना नहीं है.''

असम के इस इलाके में फिलहाल क्या हाल है? image Biswa Kalyan Purkayastha इस नदी के आर-पार लोग नाव से एक-दूसरे के इलाके में जाते हैं. असम और मणिपुर के बीच चलने वाली नावों पर फिलहाल रोक लगा दी गई है.

हमारख्वालिन हमार-कुकी के वर्चस्व वाला इलाका है. यहां सिर्फ दो दवाई की दुकानें मैतेई और बंगाली समुदाय के लोगों की है.

सोमवार को किसी ने दावा किया कि इन दुकानों के मालिकों को पीटा गया. उनकी दुकानें तोड़ दी गईं.

लालथोमलिन हमार ने बाद में इन दुकानों की तस्वीरें शेयर करते हुए साफ किया कि उनके साथ कुछ भी नहीं हुआ.

उन दुकानों के मालिकों ने भी सोशल मीडिया पर बयान जारी कर बताया कि वे सुरक्षित हैं.

उन्होंंने बीबीसी को बताया कि यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की गलत सूचनाएं सोशल मीडिया पर शेयर की गई.

उन लोगों ने कहा, ''अब हम सोशल मीडिया पर अपना संपर्क नंबर देते हैं. गलत जानकारियां फैलाने से पहले वो हमसे संपर्क कर सही जानकारी हासिल कर सकते हैं. हम शांतिपूर्ण तरीके से साथ रह रहे लोगों की इस परंपरा को बचाए रखने के लिए काम कर रहे हैं और अभी तक हम इसमें सफल रहे हैं.''

सड़क मार्ग की बात करें तो मणिपुर और असम राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 127 पर एक पुल से जुड़े हुए हैं. पुल के असम वाले इलाके को जिरीघाट कहते हैं जबकि दूसरी ओर के हिस्से को जिरीबाम. दोनों का नाम जिरी नदी पर पड़ा है जो बराक की सहायक नदी है.

ज्यादातर परिवारों के रिश्तेदार दोनों और उनमें से कई लोग नदी वाले इस रास्ते से सफर करते हैं. हालांकि असम पुलिस ने सोमवार रात को नौका सेवाओं को अस्थायी तौर पर रोक दिया है. पुलिस ने जिरीबाम के तनाव को देखते हुए ये फैसला किया है.

कछार जिले के पुलिस अधीक्षक नुमुल महाता ने मंगलवार को कहा कि पुलिस ने उन कमजोर एंट्री प्वाइंट्स को फिलहाल अस्थायी तौर पर बंद कर दिया है, जहां से लोग अंदर घुसने की कोशिश करते हैं. हालांकि लोग जिरीघाट में मौजूद पुल से आ-जा सकते हैं.

उन्होंने मंगलवार सुबह बताया, ''हमने बॉर्डर से लगे इलाके में 200 पुलिसकर्मियों को तैनात किया है और मौजूदा हालात को देखते हुए उन कमजोर प्वाइंट्स को बंद कर दिया है, जहां से लोग घुस सकते हैं.''

सोमवार की आधी रात को महाता और दूसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सीमा का जायजा लिया था. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने उन्हें सीमा से सटे इलाकों में सुरक्षा इंतजाम और मजबूत करने को कहा है.

महाता ने कहा, ''हम पड़ोसी राज्य से किसी तरह की गड़बड़ी को यहां पैदा नहीं होने दे सकते. मौजूदा हालात की वजह से दुकानें बंद हैं. स्थानीय लोग कभी-कभी जरूरी सामान लेने के लिए यहां नाव से आते हैं.''

हम उन्हें रोक नहीं रहे हैं, लेकिन वो सिर्फ जिरीबाम और जिरीघाट को जोड़ने वाले पुल से ही आ-जा सकते हैं.

सात से 17 नवंबर के बीच जिरीबाम में कुल 22 स्थानीय निवासी मारे गए हैं.

इम्फाल में कैबिनेट की एक विशेष बैठक में ये फैसला किया गया आने वाले दिनों में कुकी चरमपंथियों के ख़िलाफ़ एक बड़ा ऑपरेशन चलाया जाएगा.

image Biswa Kalyan Purkayastha कछार हमारख्वालिन के रहने वाले लालथोमलिन हमार का कहना है कि उनके इलाके में लोग शांति से रह रहे हैं.

असम के हमार-कुकी समुदाय के लोगों का कहना है कि वो वहां मैतेई लोगों के साथ वर्षों से शांति से रहते आ रहे हैं. वो इस घटना का असर इस पर नहीं पड़ने देंगे.

उनका कहना है, ''हमें बेकसूर लोगों के साथ पूरी सहानुभूति है. लेकिन हम हिंसा का समर्थन नहीं करते. हम मणिपुर और असम सरकारों से अपील करते हैं कि हमें इस विवाद में शामिल न करें. हमें शांतिपूर्ण तरीके से रहने दें.''

इस साल जून में जिरीबाम से असम में प्रवेश करने वाली 16 साल लड़की कछार जिले में एक चाय की दुकान चलाती है. उसने अपने राज्य (मणिपुर) के मौजूदा हालात के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराया.

उस लड़की ने कहा, '' उन्हें (केंद्र सरकार) काफी पहले दखल देना चाहिए था. इतने लोग मारे जा चुके हैं. हम अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं. लेकिन अभी भी हमें उम्मीद की किरण नहीं दिख रही है.''

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित

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