"मेरी छह साल की बेटी में कई शारीरिक बदलाव आ रहे थे. इतनी कम उम्र में ये देखकर मैं घबरा गई थी. वो बात-बात पर ग़ुस्सा होने लगी थी. ये बदलाव मुझे चिंतित कर रहे थे."
ये कहना है महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के एक गांव में रहने वाली अर्चना (बदला हुआ नाम) का.
अर्चना के पति पेशे से किसान हैं. वो अपने खेत में बने एक छोटे से मकान में रहते हैं. उनके दो बच्चे हैं. एक बेटा और एक बेटी.
परिवार में बेटी बड़ी है. जब अर्चना की छह साल की बेटी अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ी दिखने लगी तो उन्होंने उसे डॉक्टर से मिलने का फ़ैसला किया.
दिल्ली की रहने वाली राशि भी अपनी बेटी के शरीर में कई बदलाव देख रही थीं, लेकिन वो इन्हें सामान्य मान रही थीं.
उनकी छह साल की बेटी का वजन 40 किलो था और वो उसे ‘हेल्दी चाइल्ड’ समझ रही थीं.
लेकिन एक दिन अचानक राशि की बेटी ने ख़ून आने की शिकायत की. डॉक्टर के पास जाने के बाद पता चला कि उनकी मात्र छह साल की बेटी के पीरियड्स शुरू हो गए हैं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए ये भी पढ़ें-राशि कहती हैं, “हमारे लिए ये स्वीकार करना बहुत मुश्किल था. मेरी बेटी को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है.”
वहीं, अर्चना को स्थानीय डॉक्टर ने किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाने की सलाह दी.
पुणे स्थित मदरहुड हॉस्पिटल में डॉ. सुशील गरुड़ (विंग कमांडर) कहते हैं, “जब अर्चना अपनी बच्ची को हमारे पास लाईं तो जांच के बाद हमने पाया कि उसमें प्यूबर्टी के सभी लक्षण थे. उसके शरीर की बनावट 14-15 साल की किशोरी जैसी थी और उसे कभी भी पीरियड्स शुरू हो सकते थे.”
BBCडॉ. सुशील गरुड़ बताते हैं कि बच्ची में हार्मोन का स्तर उसकी उम्र से तीन गुना ज़्यादा था और इसके कई कारण हो सकते हैं. .
डॉक्टर का कहना हैं, ''अर्चना ने उन्हें बताया कि उनके घर में कीटनाशकों के पांच-पांच किलो के दो कनस्तर रखे रहते हैं और उनकी बच्ची इन्हीं के आसपास खेलती रहती है. तो बच्ची के हार्मोन में बदलाव होने का ये एक मुख्य कारण हो सकता है.''
डॉ. सुशील गरुड़ बताते हैं कि बच्चों के शरीर में समय से पहले ऐसे बदलावों का होना मेडिकल भाषा में प्रीकॉशियस प्यूबर्टी या अर्ली प्यूबर्टी कहलाता है.
प्यूबर्टी या किशोरावस्था के दौरान शरीर में बदलाव होते हैं और इसमें बच्चा अपनी अवस्था से निकलकर किशोरावस्था में प्रवेश करता है.
नेशनल सेंटर फ़ॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (एनसीबीआई) की वेबसाइट के मुताबिक, प्यूबर्टी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें लड़का या लड़की के शरीर में बदलाव आते हैं, उनके यौन अंगों का विकास होता है और वो प्रजनन के लिए सक्षम हो जाते हैं.
वेबसाइट के अनुसार, लड़कियों में प्यूबर्टी आठ से 13 साल और लड़कों में नौ से 14 साल के बीच शुरू होती है.
महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. एसएन बसु बताती हैं कि लड़कियों में लड़कों के मुक़ाबले प्यूबर्टी पहले आती है, लेकिन जब प्यूबर्टी की उम्र मेडिकल किताबों में दी गई उम्र से पहले शुरू हो, तो इसे प्रीकॉशियस प्यूबर्टी कहते हैं.
बाल रोग विशेषज्ञ और किशोरों में हार्मोन से जुड़ी बीमारियों (एंडोक्राइनोलॉजिस्ट) का इलाज करने वाली डॉ. वैशाखी रूस्तेगी कहती हैं, “हम क़रीब कुछ साल पहले तक ये देखते थे कि लड़कियों में शारीरिक बदलाव के पहले संकेत दिखने के 18 महीने से तीन साल बाद उन्हें पीरियड्स आते थे. अब लड़कियों को तीन से चार महीने के भीतर ही शुरू हो रहे हैं.''
वे बताती हैं कि वहीं लड़कों में अब प्यूबर्टी शुरू होने के बाद एक से डेढ़ साल में दाढ़ी-मूंछ आनी शुरू हो जाती है, वहीं पहले चार साल तक लग जाते थे.”
फ़िलहाल अर्चना और राशि, दोनों की ही बेटियों का इलाज चल रहा है.
BBC क्या हैं कारण? Getty Images डॉक्टर सुचित्रा सुर्वे बताती हैं कि उन्होंने अध्ययन में ये पाया है कि समय से पहले प्यूबर्टी आने के मामलों में बढ़ोतरी हुई हैएनसीबीआई पर छपी जानकारी के मुताबिक, प्यूबर्टी के कारण बच्चों में कई शारीरिक के साथ-साथ भावनात्मक बदलाव भी आते हैं और शरीर में होने वाले परिवर्तनों से उन्हें तनाव भी होता है.
महाराष्ट्र स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के चाइल्ड हेल्थ रिसर्च विभाग में डॉक्टर सुचित्रा सुर्वे बताती हैं कि उन्होंने अध्ययन में ये पाया है कि समय से पहले प्यूबर्टी आने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.
आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच के 2000 बच्चियों पर किए गए अध्ययन में ये भी सामने आया कि माताएं अक्सर प्यूबर्टी के संकेतों को समझ नहीं पाती हैं.
फ़िलहाल ये संस्था नौ साल से कम उम्र की बच्चियों में होने वाली समय से पहले प्यूबर्टी के कारणों और उससे जुड़े खतरों पर अध्ययन कर रही है.
डॉक्टरों के अनुसार, लड़कियों में समय से पहले प्यूबर्टी आने के कई कारण हो सकते हैं.
मुंबई में लड़कियों में इसी विषय पर काम कर रहे डॉक्टर प्रशांत पाटिल का कहना है कि अर्चना की छह साल की बेटी में शारीरिक बदलावों का कारण कीटनाशक हो सकते हैं.
हालांकि ये एक दुर्लभ कारण हो सकता है, लेकिन ज़हरीले कीटनाशकों से प्रीकॉशियस प्यूबर्टी हो सकती है क्योंकि इससे हार्मोन में बदलाव आ सकते हैं.
वहीं, मुंबई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अविनाश भोंडवे बताते हैं कि फसलों को बचाने के लिए कई तरह के कीटनाशकों का प्रयोग होता है.
ये कीटनाशक हमारे शरीर में नाक और मुंह के ज़रिए प्रवेश कर सकते हैं. कई कीटनाशक खाने के जरिए भी शरीर में जाते हैं और इनका प्रभाव मस्तिष्क में मौजूद उस ग्रंथि पर पड़ता है जो हार्मोन को नियंत्रित करती है.
इसके अलावा, सब्जियों को तेजी से बड़ा करने के लिए या गाय-भैंस से अधिक दूध लेने के लिए हार्मोन का भी इस्तेमाल होता जिसका भी नकारात्मक प्रभाव शरीर पर पड़ सकता है.
कई कारण Getty Images समय से पहले पीरियड्स आने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें जीवन शैली में अनियमितता सबसे बड़ा कारण हैडॉक्टरों का कहना है कि प्रीकॉशियस प्यूबर्टी के कई कारण हो सकते हैं और किसी एक को इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इस पर अभी अध्ययन चल रहे हैं.
मुंबई के बीजे वाडिया अस्पताल ने आईसीएमआर के साथ मिलकर साल 2020 में एक अर्ली प्यूबर्टी कैंप का आयोजन किया था. ये कैंप छह से नौ साल की लड़कियों के लिए लगाया गया था.
अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग में कार्यरत डॉ. सुधा राउ बताती हैं, “60 लड़कियां, जिनकी उम्र छह से नौ साल के बीच थी, उन्हें समय से पहले प्यूबर्टी आ चुकी थी और कुछ के पीरियड्स कभी भी शुरू हो सकते थे.”
वो बताती हैं कि प्रीकॉशियस प्यूबर्टी उन बच्चों में पाई जाती है जो मोटापे के शिकार होते हैं और कोरोना के दौरान बच्चों में मोटापा बढ़ने के कारण ये समस्या बढ़ी है.
मोटापा, ज़्यादा टीवी भी संभावित कारण Getty Images सेनिटाइज़र में पाए जाने वाले केमिकल भी स्किन में खून के ज़रिए चले जाते हैं और वो भी हार्मोन पर असर डालते हैं.डॉक्टरों का कहना है कि मोटापे के अलावा मोबाइल, टीवी या स्क्रीन का अधिक उपयोग, कसरत न करना आदि भी कारण हो सकते हैं.
डॉ एसएन बसु बताती हैं कि समय से पहले प्यूबर्टी के कारणों को समझने के लिए कई शोध हो रहे हैं.
ये जानकारी सामने आई है कि जहां कीटनाशक, खाने में उपयोग होने वाले प्रिज़र्वेटिव्स, प्रदूषण, मोटापा आदि बाहरी कारण हो सकते हैं.
साथ ही, शरीर में ट्यूमर का होना या जेनेटिक डिसऑर्डर भी शरीर की सर्केडियन रिदम को बिगाड़ देते हैं, जो इसके कारण बन रहे हैं.
डॉ. वैशाखी बताती हैं कि पिछले दो-तीन साल से उनकी ओपीडी में रोज़ पांच से छह बच्चियों में पीरियड्स के मामले सामने आ रहे हैं.
वो बताती हैं, “मेरे पास ऐसे मामले भी आते हैं, जहाँ मां बताती हैं कि अप्रैल में उन्होंने बदलाव देखे और जून-जुलाई में बच्चियों को पीरियड्स शुरू हो गए. अब लड़कों के भी ऐसे मामले सामने आने लगे हैं.”
वो बताती हैं कि स्क्रीन टाइम का भी अप्रत्यक्ष तौर पर समय से पहले प्यूबर्टी पर असर पड़ता है.
उनके अनुसार, “ब्रेन से निकलने वाला मेलाटोनिन हार्मोन हमें नींद में मदद करता है लेकिन स्क्रीन टाइम बढ़ने से नींद की साइकिल यानी सर्केडियन रिदम बिगड़ जाता है, क्योंकि स्क्रीन की रोशनी इसका संतुलन बिगाड़ देती है. ये हार्मोन हमारे सेक्शुअल हार्मोन को दबाने में मदद करता है लेकिन मेलाटोनिन का संतुलन बिगड़ने से सेक्शुअल हार्मोन जल्दी रिलीज़ हो जाते हैं.”
वहीं सेनिटाइज़र में पाए जाने वाले केमिकल भी स्किन में खून के ज़रिए चले जाते हैं और वो भी हार्मोन पर असर डालते हैं.
डॉ एसएन बसु कहती हैं कि हमारे शरीर में किसपेप्टिन नाम का हार्मोन होता है और ये समय से पहले प्यूबर्टी को डेवलप करने में मदद करता है.
वहीं अन्य कारण मिलकर हार्मोन का संतुलन बिगाड़ देते हैं और वो अर्ली प्यूबर्टी का कारण बनते हैं. लेकिन इन सभी कारणों पर अभी अध्ययन हो रहा है और इन्हें केवल पांच प्रतिशत ज़िम्मेदार बताया जा सकता है.
अर्चना और राशि की बेटियों को दवाओं के साथ इंजेक्शन दिए जा रहे हैं ताकि एक उम्र तक उनके पीरियड्स को रोका जा सके.
डॉक्टरों का कहना है कि इस उम्र में बच्चियां इतनी समझदार नहीं होती कि पीरियड्स में ख़ुद का ख़्याल रखे और सफ़ाई बरत सकें.
वहीं, मनोवैज्ञानिक तौर पर भी अर्ली प्यूबर्टी का नकारात्मक असर देखा जाता है क्योंकि उनके आस-पास की बच्चियां उन्हें अलग समझती हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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