Top News
Next Story
NewsPoint

झांसी: अब अपनी संतानों की तलाश में परेशान हैं माँ-बाप : ग्राउंड रिपोर्ट

Send Push
BBC कृपा राम की बहन शील कुमारी कहती हैं कि उन्होंने अस्पताल वालों के कहने पर प्राइवेट अस्पताल में भी जाकर देखा, लेकिन बच्चे का कुछ पता नहीं चला.

झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार की रात आग लग गई थी. इस हादसे में दस नवजात की जान गई है. मरने वाले दस नवजात में से तीन की शिनाख़्त अब तक नहीं हो पाई है.

हालांकि, हादसे के दौरान जिन लोगों ने कई बच्चों की जान बचाई, अब उन्हें अपनी ही संतान नहीं मिल रही है. वे उनकी तलाश करते-करते बेहाल हैं.

झांसी ज़िले के गरौठा के कृपा राम कहते हैं कि उनके बच्चे का कुछ पता नहीं चल रहा है. उसकी तलाश में वे अपनी बहन शील कुमारी के साथ इधर-उधर भटक रहे हैं.

मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी विभाग के बाहर बैठे भाई-बहन बच्चे के बारे में किसी अच्छी ख़बर का इंतज़ार कर रहे हैं.

image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए

शील कुमारी बताती हैं कि दस दिन पहले ही लड़के का जन्म हुआ था लेकिन अब उसका कुछ पता ही नहीं चल रहा है.

वो बताती हैं, "अस्पताल वालों ने कहा कि प्राइवेट अस्पताल में जाकर देखो. हम वहाँ भी देख आए लेकिन कुछ पता नहीं चला."

संतोषी का हाल भी कुछ ऐसा ही है. वह झांसी के पास के इलाक़े पंचना से आई हैं और हादसे के बाद से अपने बच्चे की तलाश कर रही हैं.

संतोषी बताती हैं कि अस्पताल के लोगों ने उनसे कहा है कि उनका बच्चा मिल जाएगा, लेकिन अब तक नहीं मिला है.

बच्चे के लिए धरने पर बैठे माता-पिता image BBC संतोषी हादसे के बाद से अपने बच्चे को तलाश रही हैं

महोबा से आए कुलदीप भी शनिवार देर रात तक बेहद परेशान थे. उनका बच्चा नहीं मिल रहा था. हालांकि, देर रात उनके बच्चे का पता चल गया.

शुक्रवार रात जब मेडिकल कॉलेज के नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में आग लगी तो कुलदीप भी वहीं थे. उन्होंने चार नवजात की जान बचाई.

कुलदीप का कहना है कि इस हादसे में उनका हाथ जल गया, फिर भी वह वहाँ से नहीं हटे.

जब उनका बच्चा नहीं मिला तो कुलदीप और उनके परिवार के लोग अस्पताल के गेट पर धरने पर बैठ गए. प्रशासन से भी उनकी बात हुई.

कुलदीप की पत्नी नीलू का शनिवार रात तक रो-रोकर बुरा हाल था. लेकिन अब ये परिवार राहत की सांस ले रहा है क्योंकि उन्हें पता चल गया है कि उनका बच्चा जीवित है.

कुलदीप ने बताया, "मेरे बेटे के चेहरे पर तिल था. इस वजह से उसकी पहचान हो पाई."

अधिकारियों ने क्या बताया? image BBC कुलदीप ने चार बच्चों की जान बचाई लेकिन अफ़रा-तफ़री के बीच उनका अपना बच्चा खो गया था और बाद में देर रात उनके बच्चे का पता चला.

दूसरी ओर, झांसी के ज़िलाधिकारी अविनाश कुमार ने शनिवार को बताया कि सभी दस्तावेज़ों की जाँच कर मिलान किया गया है.

उन्होंने कहा, "साथ ही हमने अस्पताल से बातचीत की है और पता चला है कि घटना के समय वार्ड में कुल 49 नवजात भर्ती थे. इसमें से 38 बच्चे सुरक्षित हैं. एक के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है. ये सब निजी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं."

ज़िलाधिकारी के मुताबिक़, "सात नवजात के शव उनके परिजनों को सौंप दिए गए हैं जबकि तीन की पहचान नहीं हो पाई है, उनकी पहचान की कोशिश की जा रही है."

image BBC झांसी के ज़िलाधिकारी अविनाश कुमार

ज़िलाधिकारी ने बताया कि ज़्यादातर नवजात में जलने के कोई निशान नहीं हैं.

उन्होंने बताया, "अधिकतर नवजात जलने के कारण घायल नहीं हुए हैं. एनआईसीयू में लाए जाने वाले अधिकतर बच्चे गंभीर अवस्था में ही लाए जाते हैं. जिन बच्चों की स्थिति पहले ही गंभीर थी, उनमें से तीन की स्थिति अभी गंभीर है. अन्य सभी की हालत सामान्य है."

"जिन बच्चों के माता-पिता नहीं मिल पा रहे थे, उनकी पहचान कर ली गई है. एक बच्चे के बारे में जानकारी नहीं मिली है. अस्पताल में एक सूची भी लगाई गई है. इसमें जानकारी है कि ये किनके बच्चे-बच्चियाँ हैं."

चश्मदीदों का क्या कहना है? image BBC गरौठा से आए कृपा राम कहते हैं कि उनके बच्चे का कुछ पता नहीं चल रहा है

शुक्रवार को रात तकरीबन साढ़े दस बजे मेडिकल कॉलेज के नियोनेटल वार्ड में आग लग गई थी. आग लगते ही वहां भगदड़ मच गयी.

वार्ड में उस वक़्त ड्यूटी पर तैनात सिस्टर मेघा जेम्स ने बताया कि आग सबसे पहले ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर में लगी थी. इसके तुरंत बाद उन लोगों ने वहां से बच्चों को बाहर निकालना शुरू किया.

बात करते-करते सिस्टर मेघा की आँखों में आँसू आ रहे हैं.

वह बताती हैं, "जब आग लगी तो ड्यूटी पर चार लोग थे. आग इतनी तेज़ी से भड़की कि हमें मौक़ा ही नहीं मिल पाया था."

एक बच्ची की परिजन आशा ने बताया कि उस वक़्त तक बाहर बैठे कई लोग सोए नहीं थे इसलिए जब आग लगी तो वे अंदर की तरफ भागे.

आशा का कहना है, "जिसको जो नवजात मिला, वो उसको बचाकर बाहर निकाल लाया."

बाद में अस्पताल प्रशासन ने बच्चों को लिया. आशा ख़ुश हैं कि हादसे में उनकी भतीजी बच गयी. उन्हें रात के चार बजे बच्ची मिली थी.

image BBC जिस वक्त वार्ड में आग लगी उस वक्त मेघा जेम्स वहां पर बतौर ड्यूटी नर्स मौजूद थीं. वो कहती हैं कि आग इतनी तेज़ी से भड़की कि लोगों को मौक़ा नहीं मिल पाया.

कीर्ति भी पास के हिसारी से यहां आई थीं. वे बताती हैं कि रात को अचानक 'भागो-भागो' की आवाज़ें आईं.

वह भी अपने भाई के बच्चे को बचाने के लिए अंदर भागीं और उन्हें जो भी नवजात मिला, उसे उठाकर ले आईं.

ललितपुर से आए मन्नू लाल की बच्ची भी तीन हफ़्ते से अस्पताल में भर्ती है. वो कहते हैं कि बच्ची बच गई है.

उनका आरोप है, "किसी को आग बुझाने वाला सिलेंडर चलाना नहीं आता था. सिलेंडर भी सही जगह नहीं लगे थे."

मन्नू लाल का कहना है कि इनकी बच्ची एक पालने में थी. इसमें कई और नवजात भी थे.

इस घटना के बाद मन्नू लाल ने बच्ची को एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करा दिया है.

image BBC हादसे के बाद मन्नू लाल ने अपनी बच्ची को एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करा दिया है

ऋषभ यादव नाम के एक चश्मदीद ने बताया कि हादसे के वक्त यहाँ काफ़ी अफ़रा-तफ़री मची हुई थी.

उन्होंने बताया, "जब आग लगी तो यहाँ लगभग 50 नवजात भर्ती रहे होंगे. लोग अपनी संतानों को लेकर इमरजेंसी विभाग की ओर भागे."

उन्होंने बताया, "कुछ परिवारों को तो ये भी पता नहीं है कि उनकी संतान कहाँ हैं. प्रशासन को इसकी जानकारी देनी चाहिए."

कुछ बच्चों के परिजनों ने आरोप लगाया कि आग बुझाने वाले सिलेंडर की मियाद पूरी हो गयी थी.

वहाँ पर खड़े कुछ लोगों ने बताया, "इन्हें बाद में लाकर रखा गया है."

हालांकि, अस्पताल प्रशासन ने इससे इनकार किया है. मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल नरेन्द्र सिंह सेंगर का कहना है कि कोई भी सिलेंडर पुराना नहीं था.

बीबीसी की टीम ने अस्पताल में लगे आग बुझाने वाले सिलेंडरों को देखा तो उनकी मियाद पूरी नहीं हुई थी.

अस्पताल और सरकार ने क्या कहा? image BBC मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल नरेन्द्र सिंह सेंगर सभी उपकरणों की समय-समय पर जाँच की जाती है

मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल नरेन्द्र सिंह सेंगर का कहना है कि कॉलेज में आग बुझाने के कुल 146 यंत्र लगे हैं और हादसे के समय एनआईसीयू वार्ड के आग बुझाने के यंत्र का भी उपयोग किया गया था.

सेंगर के मुताबिक़, "इन सभी उपकरणों की समय-समय पर जाँच भी की जाती है. इस दौरान कमियों को दूर किया जाता है. फरवरी में इन सभी उपकरणों की जाँच की गई थी. जून में आग बुझाने का अभ्यास भी किया गया था."

सेंगर ने कहा कि मेडिकल कॉलेज में आग बुझाने के यंत्रों के ख़राब होने की बात पूरी तरह से निराधार है.

उन्होंने कहा, "अब तक मिली जानकारी के अनुसार शॉर्ट सर्किट के कारण वार्ड में आग लगी थी. हादसे की जाँच की जा रही है."

हादसे के बाद राज्य के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक घटनास्थल पर पहुँचे थे.

उन्होंने कहा, "हम परिजनों के साथ मिलकर बच्चों की पहचान कर रहे हैं. घटना की उच्च स्तरीय जाँच के आदेश दे दिए गए हैं."

उप मुख्यमंत्री के मुताबिक़, “पहली जाँच शासन के स्तर पर होगी. जो कि स्वास्थ्य विभाग करेगा. दूसरी जाँच पुलिस प्रशासन की तरफ से की जाएगी. इसमें फ़ायर विभाग की टीम भी शामिल होगी. तीसरी जाँच मजिस्ट्रेट के स्तर पर होगी. हर हाल में घटना की जाँच की जाएगी. जो भी कारण होंगे वे प्रदेश की जनता के सामने रखे जाएँगे."

मुख्यमंत्री के निर्देश पर हादसे में मारे गए बच्चों के माता-पिता को मुख्यमंत्री राहत कोष से पाँच-पाँच लाख रुपये और घायलों के परिजनों को 50-50 हज़ार रुपये की सहायता दी जा रही है.

वहीं प्रधानमंत्री ने भी हादसे से प्रभावित लोगों के लिए आर्थिक सहायता का ऐलान किया है.

मुख्यमंत्री ने झांसी के आयुक्त और पुलिस डिप्टी महानिरीक्षक (डीआईजी) को जल्द से जल्द घटना के संबंध में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं.

आग कैसे लगी?

झाँसी के चीफ़ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट सचिन महोर ने कहा कि है कि यह घटना ऑक्सीज़न कंसन्ट्रेटर में आग लगने से हुई है.

सचिन महोर के मुताबिक़, "इस वार्ड में ऑक्सीजन की मात्रा काफ़ी रहती है इसलिए आग तुरंत फैल गई. जितनी कोशिश की जा सकती थी, हमने की. ज़्यादातर बच्चों को सकुशल बाहर निकाला गया है."

दूसरी ओर, ज़िलाधकारी के मुताबिक़, "पहली नज़र में लगता है कि आग शॉर्ट सर्किट से लगी है. इस बारे में आयुक्त और डीआईजी अपनी रिपोर्ट सरकार को भेज रहे हैं."

अस्पतालों में आग लगने की कुछ घटनाएँ

अस्पताल में आग लगने की ये पहली घटना नहीं है. पिछले कुछ सालों की प्रमुख घटनाएँ-

- दिल्लीः मई 2024 में विवेक विहार के एक अस्पताल में आग लगने से सात नवजात की मौत.

- मध्य प्रदेशः नवंबर 2021 में भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल के बाल रोग विभाग में आग लगने से चार बच्चों की मौत.

- महाराष्ट्रः जनवरी 2021 में भंडारा के ज़िला अस्पताल के ‘स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट’ में आग लगने से 10 नवजात की मौत.

- पश्चिम बंगालः दिसंबर 2011 में निजी अस्पताल के एमआरआई विभाग में भीषण आग लगने से कम से कम 89 लोगों की मौत.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें , , , और पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

image
Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now