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ऑस्टियोपोरोसिस: हड्डियों की इस साइलेंट बीमारी से कैसे बचें और फ्रेक्चर के जोखिम को कैसे कम करें | CliqSED

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ऑस्टियोपोरोसिस एक साइलेंट और खतरनाक बीमारी है जो हड्डियों को कमजोर बनाकर फ्रेक्चर के जोखिम को बढ़ाती है। यह रोग जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने के साथ-साथ उम्र को भी घटा सकता है। चूंकि शुरुआत में इसके कोई लक्षण नहीं दिखते, इसे “साइलेंट डिजीज” के रूप में जाना जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस के कारण हड्डियों की घनत्व और मजबूती में कमी आने लगती है, जिससे हड्डियां जल्दी टूटने का खतरा बढ़ जाता है। विशेष रूप से, यह कलाई, कूल्हे और रीढ़ की हड्डियों को खोखला कर देता है, जिससे व्यक्ति की आयु पर भी असर पड़ता है।

ऑस्टियोपोरोसिस के बढ़ते खतरे के कारण

नेशनल ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन के अनुसार, केवल अमेरिका में ही लगभग 1 करोड़ लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं, जबकि 4.3 करोड़ लोगों की हड्डियों की घनत्व कमजोर है, जिससे वे भविष्य में ऑस्टियोपोरोसिस का शिकार हो सकते हैं। अनुमान है कि 2030 तक करीब 30 प्रतिशत आबादी इस रोग से प्रभावित हो जाएगी। हर साल वैश्विक स्तर पर लगभग 90 लाख लोग ऑस्टियोपोरोसिस के कारण फ्रेक्चर का शिकार होते हैं। विशेष रूप से, युवाओं में खराब जीवनशैली और अस्वास्थ्यकर खानपान के कारण इस बीमारी का खतरा बढ़ता जा रहा है।

ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव के उपाय

प्रारंभिक लक्षणों की पहचान करें: अगर कमर में दर्द, बार-बार छोटे फ्रेक्चर या कद में कमी जैसे लक्षण दिखाई दें, तो यह ऑस्टियोपोरोसिस का संकेत हो सकता है। इससे समय पर इलाज की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं।

कैल्शियम और विटामिन डी का संतुलित सेवन: हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम और विटामिन डी आवश्यक हैं। इसके लिए नियमित रूप से दूध, दही, हरी पत्तेदार सब्जियां, अंडे की जर्दी, मशरूम आदि का सेवन करें। सूरज की रोशनी विटामिन डी का सबसे अच्छा प्राकृतिक स्रोत है।

नियमित व्यायाम: हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें। डांस, जॉगिंग, वेट लिफ्टिंग जैसे वेट-बेयरिंग एक्सरसाइज ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव के लिए फायदेमंद हैं।

समय-समय पर हड्डियों की जांच: हड्डियों की डेंसिटी टेस्ट कराते रहें, ताकि किसी भी प्रकार की कमजोरी का जल्द से जल्द पता लगाया जा सके।

सही खानपान और नियमित व्यायाम के जरिए ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम कम किया जा सकता है। जागरूकता और समय पर देखभाल से इस साइलेंट बीमारी के प्रभाव को रोका जा सकता है।

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