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त्वरित टिप्पणीः यूपी मदरसा एक्ट को 'सुप्रीम' मान्यता

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– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

यूपी मदरसा एक्ट वैध है या अवैध? सुप्रीम कोर्ट ने इस पर बड़ा फैसला सुनाते हुए अपनी ‘सुप्रीम’ मान्यता की मुहर लगा दी है और इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के (22 मार्च 2024) फैसले को पलटते हुए यूपी मदरसा एक्ट की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए मान्यता दी है। अब इस निर्णय से दो बातें पूरी तरह साफ हो गईं हैं, एक- यूपी सरकार की तरफ से संचालित मदरसा बोर्ड सही है। दो- मजहबी शिक्षा के नाम पर इस्लामवादी अपना कुछ भी एजेंडा नहीं चला सकते, जिसकी शिकायतें प्रायः अब तक मदरसा संचालन की आड़ में सामने आती रही हैं।

दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट को संविधान के मौलिक ढांचे के खिलाफ बताया था। इसके साथ ही 22 मार्च 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार को एक योजना बनाने का भी निर्देश दिया था, ताकि वर्तमान में मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित किया जा सके।

अपने इस निर्णय में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मदरसा कानून को पूरी तरह से धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन बताते हुए प्रदेश में चल रहे 13 हजार 364 मदरसों में पढ़ाई करने वाले 12 लाख से अधिक छात्रों को राज्य सरकार द्वारा संचालित मान्यता प्राप्त नियमित स्कूलों में प्रवेश दिलाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराजन ने कहा था कि प्रदेश सरकार यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को समाप्त करने के पक्ष में नहीं है। बल्कि सरकार चाहती है कि बोर्ड अधिनियम से उन प्रावधानों को खत्म कर दिया जाए जो उल्लंघनकारी है।

यूपी सरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा मदरसा बोर्ड को लेकर दिए गए आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। इस दौरान प्रदेश सरकार की ओर पक्ष रख रहे नटराजन ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट को 2004 में बने मदरसा अधिनियम को पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित नहीं करना चाहिए था।

यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा था कि यूपी मदरसा बोर्ड के जरिए दी जाने वाली कामिल और फाजिल डिग्री न यूनिवर्सिटी की डिग्री के समकक्ष है और न ही बोर्ड की ओर से पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रमों के समकक्ष है। इस स्थिति में मदरसे के छात्र उन्हीं नौकरियों के लिए योग्य हो सकते हैं, जिनके लिए हाई स्कूल/इंटरमीडिएट योग्यता की जरूरत होती है।

पूरे मामले पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए फैसला 22 अक्टूबर सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया है। अपना फैसला सुरक्षित रखते वक़्त उच्चतम न्यायालय ने कहा भी कि राज्य सरकार की मंशा मदरसों को मुख्यधारा में लाने की है। अगर ऐसा नहीं होता तो इन संस्थाओं में गणित, विज्ञान जैसे विषय नहीं पढ़ाए जाते। फिर आज सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जस्टिस की बेंच ने अपने निर्णय में कहा है कि ‘किसी भी छात्र को धार्मिक शिक्षा के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।’ सुप्रीम कोर्ट साफ कहा है कि राज्य सरकार शिक्षा को नियमित करने के लिए कानून बना सकती है। इसमें सिलेबस, छात्रों का स्वास्थ्य जैसे कई पहलू शामिल हैं।

यहाँ सुप्रीम कोर्ट की कही इस बात पर भी गंभीरता से गौर करना चाहिए कि मदरसा मजहबी शिक्षा भी देते हैं, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य शिक्षा ही होना चाहिए। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि किसी भी छात्र को धार्मिक शिक्षा के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, इसलिए किसी को भी धार्मिक शिक्षा लिए जाने के लिए बाध्य ना किया जाए। उच्चतम न्यायालय ने अपने इस निर्णय में एक जो बड़ा कार्य किया है वह है मदरसा बोर्ड की डिग्रियों को असंवैधानिक करार कर देना।

यूपी मदरसा एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक्ट में मदरसा बोर्ड को फाजिल, कामिल जैसी डिग्री देने का अधिकार दिया गया है, यह अपनी जगह ठीक हो सकता है लेकिन विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) एक्ट के खिलाफ है। इसे हटा देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की तीन जस्टिस की बेंच ने कहा है कि डिग्री देना असंवैधानिक है, बाकी एक्ट संवैधानिक है।

सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने अपने फैसले में यह साफ कह दिया है कि बोर्ड सरकार की सहमति से ऐसी व्यवस्था बनाए, जहां मदरसा के धार्मिक चरित्र को प्रभावित किए बिना सेक्युलर शिक्षा दी जा सके। यानी उच्चतम न्यायालय का निर्णय साफ है कि मदरसे, भविष्य में मदरसा बोर्ड से चलेंगे जरूर लेकिन वह ऐसी कोई शिक्षा नहीं देंगे जो कि मजहबीकरण के नाम पर देश विरोध, गैर मुसलमानों के प्रति असंवेदनशील बना देने जैसी बच्चों की मानसिकता को तैयार करने का काम करती है। सुप्रीम कोर्ट का यहां कहना सही है कि सेकुलर शिक्षा, पंथ निरपेक्ष शिक्षा, धर्म निरपेक्ष शिक्षा मदरसों में कैसे दी जाए यह व्यवस्था बनाना, उसको देखना और उसे विधिवत संचालित करना, करवाना राज्य सरकार का काम है और इस कार्य को राज्य सरकार को करना ही होगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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