नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। अजरबैजान के बाकू में सीओपी 29 जलवायु सम्मेलन में जारी एक शोध में यह बात सामने आई है कि चैटजीपीटी जैसे जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (जीएआई) मॉडल अस्पतालों में मरीजों को हैंडल करने के साथ कागज के उपयोग को कम कर सकते हैं, लेकिन इससे शायद ही अस्पतालों को भारी कार्बन उत्सर्जन (कार्बन एमिशन) से बचाने में मदद मिल सकती है।
ऑस्ट्रेलियाई और यूके के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए शोध में बड़े भाषा मॉडल का उपयोग करके स्वास्थ्य सेवा में एआई के प्रभाव की जांच की गई।
इंटरनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र में दिखाया गया है कि चैटजीपीटी प्रतिदिन हजारों मरीजों के रिकॉर्ड को आसानी से संभाल सकता है और पेपर वर्क को भी कम कर सकता है। लेकिन इनकी ऊर्जा खपत बहुत अधिक हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने सुझाव देते हुए कहा कि अस्पतालों को एआई का सावधानीपूर्वक और जिम्मेदारी से उपयोग करना चाहिए। इसमें मरीज के डेटा को संक्षेप में समझने के लिए छोटे-छोटे प्रॉम्प्ट्स का इस्तेमाल करना भी शामिल है।
एडिलेड विश्वविद्यालय से शोध का नेतृत्व करने वाले ओलिवर क्लेनिग ने कहा, "अस्पताल में रहने के अंत तक, आपके नाम पर दसियों हजार शब्द जमा हो सकते हैं। व्यस्त स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों के विपरीत, चैटजीपीटी जैसे निजी बड़े भाषा मॉडल इसको बेहतर तरीके से अपना सकते है।
क्लेनिग ने कहा, "हालांकि, एक एआई क्वेरी इतनी बिजली का इस्तेमाल करती है कि एक स्मार्टफोन को 11 बार चार्ज किया जा सकता है और ऑस्ट्रेलियाई डेटा सेंटर में 20 मिलीलीटर ताजे पानी की खपत होती है। अनुमान है कि चैटजीपीटी गूगल की तुलना में 15 गुना ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल करता है।"
क्लेनिग ने कहा कि बड़े भाषा मॉडल को लागू करने के पर्यावरणीय परिणाम बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं। चैटजीपीटी हेल्थकेयर एआई सिस्टम के कारण घरेलू उत्सर्जन से भी अधिक इसका प्रभाव पड़ सकता है।
इसके अलावा इन एआई सिस्टम के लिए आवश्यक हार्डवेयर के लिए बड़े पैमाने पर दुर्लभ पृथ्वी धातु खनन की आवश्यकता होती है। इससे प्राकृतिक वातावरण को नुकसान पहुंच सकता है। इसके अलावा, एआई सिस्टम बनाने की प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन दोगुना हो सकता है।
हालांकि, इस अध्ययन से पता चलता है कि एआई के उपयोग से मरीजों का आवागमन सुचारू हो सकता है और कागजी कार्यों में जरूर कमी आ सकती है।
--आईएएनएस
एमकेएस/एएस
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