भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है यहां पर हर धर्म के लोगों को अपने रीति रिवाज व परंपरा के अनुसार विवाह व सम्पत्ति विषयक अधिकार हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार हिन्दू, सिख, बौद्ध व जैन धर्म में सम्पत्ति का बंटवारा सभी भाई बहनों में बराबर बराबर होता है।
हिंदू धर्म में पुत्र और पुत्री दोनों ही पिता की सम्पत्ति में बराबर के हकदार हैं। पर शरीयत एक्ट 1937 (Shariat Act 1937) में सम्पत्ति विषयक विवाद का निपटारा होता है जिसके अनुसार मुस्लिम लाॅ के अनुसार एक मुस्लिम परिवार की बेटी को पिता की प्रॉपर्टी में अपने भाई के बराबर हिस्सा नहीं मिलता बल्कि भाई को जितना हिस्सा मिलता है, उसका आधा बहन को मिलता है। इस कानून को चुनौती देते हुए एक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव व अधिकारों के हनन की बात कही गई है।
जैसा की विदित है, मुस्लिमों में शरीयत एक्ट 1937 के अनुसार उत्तराधिकार संबंधी विवाद और पर्सनल लाॅ के तहत प्रॉपर्टी या पैसे का बंटवारा मौजूद उत्तराधिकारियों के बीच होता है। मुस्लिम लाॅ के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने की स्थिति में उसकी विधवा, माता पिता व पुत्र पुत्रियां उसकी संपत्ति के हकदार होते हैं। मृतक की पत्नी को संपत्ति का छठवां हिस्सा तथा बेटी को बेटे को मिली प्रॉपर्टी के मुकाबले आधा हिस्सा मिलता है।
मुस्लिम लाॅ में यह भी प्रावधान है कि लड़की शादी के बाद या फिर पति से तलाक के बाद कोई बच्चा ना होने की स्थिति में अपने पिता के घर में रहने का हक रखती है। बच्चे के बालिग होने पर इस जिम्मेदारी का निर्वहन उसके बच्चे करेंगे।
मुस्लिम महिला ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौतीशरीयत कानून के मुताबिक संपत्ति के बंटवारे में लड़कों के मुकाबले आधी संपत्ति मिलने को मुस्लिम महिलाओं ने अपने अधिकारों का हनन मानते हुए इस निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है जिस पर अभी सुनवाई जारी है। बुशरा अली नामक एक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए कहा है कि पुरुष के मुकाबले उसे प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा मिला है जो प्रत्यक्ष रूप से भेदभाव दर्शाता है।
बुशरा अली ने अपनी याचिका में मुस्लिम पर्सनल लाॅ की धारा-2 को चुनौती देते हुए कहा है कि परिवार की संपत्ति में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को आधा हिस्सा मिलता है जो संविधान के अनुच्छेद-15 का प्रत्यक्ष उल्लंघन है जौ प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार देते हुए जाति, धर्म व लिंग के आधार पर भेदभाव को असंवैधानिक मानते हुए प्रतिबंधित करता है।
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