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जानिए कैसे हुई विश्वकर्मा भगवान की उत्पत्ति और क्यों मशीनों की होती है इस दिन पूजा…

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पौराणिक काल के सबसे बड़े सिविल इंजीनियर कहे जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की पूजा कन्या संक्रांति को होती है। जी हां इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था, इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं।

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बता दें कि मान्यता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, उनका निर्माण भगवान विश्वकर्मा के द्वारा ही किया गया था। सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ या फिर कलयुग का ‘हस्तिनापुर’। इतना ही नहीं कहा जाता है कि ‘सुदामापुरी’ की तत्क्षण रचना भी विश्वकर्मा भगवान ने ही की थी। ऐसे में आइए जानते है इस बार के विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त और भगवान विश्वकर्मा से जुड़ी दिलचस्प कहानी…

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गौरतलब हो कि इस दिन उद्योगों, फैक्ट्रियों में मशीनों की पूजा की जाती है। देवशिल्पी बाबा विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर और वास्तुकार के नाम से जाना जाता है। इस दिन विश्वकर्मा पूजा के उपलक्ष्य पर उद्योगों, फैक्ट्रियों में मशीनों की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही विश्वकर्मा पूजन के दिन फैक्ट्रियों, वर्कशॉप, मिस्त्री, शिल्पकार, औद्योगिक घरानों में विश्वकर्मा भगवान की पूजा की जाती है।

विश्वकर्मा पूजा की विधि…

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बता दें कि इस दिन सूर्योदय से पहले उठने का विधान है। फिर स्नान कर विश्वकर्मा पूजा की सामग्रियों को एकत्रित कर लें। फिर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें। वहीं यह मान्यता है कि इस पूजा को पति पत्नी साथ में करें तो बेहतर होगा। पूजा में हल्दी, अक्षत, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, दीप और रक्षासूत्र रखें। साथ ही घर में रखे लोहे का सामान और मशीनों को पूजा में शामिल करें। जिन चीजों की पूजा की जानी हैं उन पर हल्दी और चावल लगाएं। फिर इसके बाद पूजा में रखे कलश को हल्दी लगाकर कलावे से बांधे और पूजा शुरु करें, साथ ही साथ मंत्रों का उच्चारण करते रहें। आख़िर में भगवान विश्वकर्मा को भोग लगाकर प्रसाद सभी में बांट दें।

इस दिन कारखानों की पूजा का विधान क्यों?…

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गौर करने वाली बात यह है कि भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पकार और वास्तुकार थे। इस दिन उद्योग-फैक्ट्रियों की मशीनों समेत सभी तरह की मशीनों की पूजा की जाती है। मान्यताओं की मानें तो भगवान विश्कर्मा ही ऐसे देवता हैं, जो हर काल में सृजन के देवता रहे हैं और सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी चीजें सृजनात्मक हैं, जिनसे जीवन संचालित होता है वह सब भगवान विश्वकर्मा की ही देन है। इसलिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा करके उन्हें इस दिन धन्यवाद दिया जाता है।

पूजा का शुभ मुहूर्त…

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इस बार 17 सितंबर, शुक्रवार को सुबह 6:07 बजे से 18 सितंबर, शनिवार को 3:36 बजे तक पूजन का शुभ समय रहेगा। वहीं भगवान विश्वकर्मा की पूजा का एक विशेष विधान यह है कि इनकी पूजा राहुकाल में नहीं करनी चाहिए। बता दें कि 17 सितंबर को राहुकाल सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक रहेगा।

कौन हैं भगवान विश्वकर्मा?…

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धार्मिक मान्यताओं अनुसार भगवान ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की और उसे सुंदर बनाने का काम भगवान विश्वकर्मा को सौंपा था। इसलिए विश्वकर्मा जी को संसार का सबसे पहला और बड़ा इंजीनियर कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के पुत्र वास्तु की संतान थे। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक रावण की लंका, कृष्ण जी की द्वारका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ, इंद्र के लिए वज्र, भगवान शिव के लिए त्रिशूल, विष्णु जी के सुदर्शन चक्र और यमराज के कालदंड समेत कई चीजों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही किया गया था।

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ऐसे हुई भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति…

बता दें कि एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम ‘नारायण’ अर्थात साक्षात भगवान विष्णु सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ तथा धर्म के पुत्र ‘वास्तुदेव’ हुए। कहा जाता है कि धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए और पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।

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