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ब्लॉकबस्टर फिल्मों पर बोले निर्देशक बाल्की – 'अब फिल्में वैसी नहीं, प्रोजेक्ट बन गई हैं'

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मुंबई, 20 नवंबर . फिल्म इंडस्ट्री के सफल निर्देशक आर. बाल्की ने पुणे के एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में आयोजित ‘व्हाट ऑन अर्थ इज रॉन्ग विद एडवरटाइजिंग एंड सिनेमा’ विषय पर एक चर्चा के दौरान अपने विचार शेयर किए. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में बनी कुछ ब्लॉकबस्टर फिल्में वास्तव में खराब फिल्में थीं.

‘पा’, ‘पैडमैन’, ‘चीनी कम’ जैसी फिल्में बनाने वाले बाल्की ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में बनी कुछ ब्लॉकबस्टर फिल्में वास्तव में न केवल बौद्धिक दृष्टिकोण से बल्कि मनोरंजन के लिहाज से भी बेहद खराब फिल्में रही हैं. मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि न केवल बौद्धिक या कलात्मक दृष्टिकोण से बल्कि पुराने मनोरंजन, ‘मसाला, पैसा वसूल’ के लिहाज से भी बहुत उबाऊ रही हैं.”

ख्याति प्राप्त मनमोहन देसाई की फिल्मों से तुलना करते हुए उन्होंने कहा, “अगर आप मनमोहन देसाई की फिल्में देखें… अमित जी (अमिताभ बच्चन) का एक पुनरावलोकन था और मैं मनमोहन देसाई की ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘नसीब’ जैसी फिल्में देख रहा था. वे कितनी मजेदार होती थीं. अब ब्लॉकबस्टर फिल्मों से मजा पूरी तरह से खत्म हो चुका है.”

उन्होंने आगे कहा कि “इन फिल्मों में न तो मनोरंजन है और न ही कोई थीम, फिर भी ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बड़ी कमाई करने में कामयाब रही हैं. अब ये फिल्में प्रोजेक्ट की तरह बन गई हैं. इसके साथ एक इकोनॉमिक्स जुड़ा हुआ है.”

उन्होंने बताया कि मार्केटिंग के जरिये लोगों को यकीन दिलाया जाता है कि यह अच्छा है. जब तक लोगों को लगता है कि यह खराब फिल्म है तब तक फिल्म की कमाई हो चुकी होती है.

उन्होंने कहा कि इसमें केवल मेकर्स का ही दोष नहीं है, बल्कि दर्शकों की साइकोलॉजी भी इसमें योगदान दे रही है.

उन्होंने कहा, “कभी-कभी लोग यह स्वीकार करने को तैयार नहीं होते कि यह खराब है. वे कोई फिल्म देखने के बाद उसकी बुराई नहीं करना चाहते. वे फिल्म के बारे में पसंद करने के लिए एक या दो अच्छी चीजें ढूंढना चाहते हैं. अगर उन्हें किसी स्टार के बारे में एक या दो अच्छी चीजें पसंद आती हैं, तो वे इसे ‘टाइम पास’ का टैग दे देते हैं.“

उन्होंने कहा कि वास्तव में कोई 500 रुपये लगाकर फिल्म देखने के बाद खुद को कोसना नहीं चाहता.

बाल्की ने दर्शकों की सिनेमा में रुचि न होने के पीछे के कारणों पर भी बात की. उन्होंने कहा, “सिनेमा में जो रुचि थी, वह अब नहीं है. अब बस लोग फैमिली के साथ फिल्में देखने जा रहे हैं तो कह देते हैं कि यह फिल्म ठीक है. वास्तव में हम अब बहुत फिल्में बना रहे हैं.”

उन्होंने फिल्म मेकिंग स्टूडेंट्स को सलाह दी, “आप ऐसी फिल्में बनाइए जो लगे कि पहले ऐसी कहानी पर्दे पर नहीं उतरी है. काम करते रहें और खुद को आश्चर्यचकित करते रहें. इसके लिए लिखते रहें और उन विचारों के बारे में सोचते रहें जो आपको लगता है कि पहले नहीं खोजे गए हैं. आप ऐसी कहानियां लिख डालिए जो फिल्म के रूप में सामने आते ही दर्शकों के साथ ही आपको भी हैरत में डाल दे.

एमटी/एकेजे

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