नई दिल्ली, 1 नवंबर . डॉ. बिबेक देबरॉय अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, अध्यात्म और अन्य विविध क्षेत्रों में पारंगत थे. शुक्रवार को 69 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. पद्मश्री से सम्मानित देबरॉय इससे पहले पुणे में गोखले इंस्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स के कुलाधिपति रह चुके थे. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे.
राजीव गांधी फाउंडेशन से उनका संबंध रहा और वह उसके थिंक टैंक थे. 2005 में जब देश में मनमोहन सिंह की सरकार थी तो देबरॉय द्वारा निर्देशित और इसके बाद प्रकाशित एक रिपोर्ट ने हलचल मचा दिया था.
दरअसल, उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी काम कर रहे थे और देबरॉय की जो रिपोर्ट आई, उसके हिसाब से आर्थिक स्वतंत्रता को मापने के सूचकांक में भारत का शीर्ष राज्य गुजरात को बताकर उन्होंने हलचल मचा दी थी.
इससे बाद विकास के लिए ‘गुजरात मॉडल’ को लेकर एक लंबी और गरमागरम बहस शुरू हो गई थी.
देबरॉय को 2005 में रिपोर्ट के बाद राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्परेरी स्टडीज (आरजीसीआईएस) छोड़ना पड़ा था, जिससे राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था.
शोध में दिखाया गया था कि गुजरात आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करने के मामले में भारत में नंबर एक राज्य है, जिस पर बवाल बढ़ा तो देबरॉय ने कथित तौर पर आरजीआईसी में निदेशक का पद छोड़ दिया.
एक तरफ केंद्र की तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार लगातार गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर हमला कर रही थी. दूसरी तरफ जर्मनी में फ्रेडरिक-नौमैन स्टिफ्टंग द्वारा प्रायोजित और आरजीएफ द्वारा प्रकाशित शोध पत्र ने विवाद खड़ा कर दिया.
अध्ययन में भारत में पहली बार, आर्थिक स्वतंत्रता के उप-राष्ट्रीय सूचकांक को मापा गया था. सरकारी हस्तक्षेप, कानूनी संरचना और संपत्ति अधिकारों की सुरक्षा जैसे कारकों के आधार पर गुजरात इस सूचकांक में शीर्ष पर था. तब कांग्रेस सरकार ने सभी अध्ययनों को “राजनीतिक रूप से जांचने” के लिए कहा था.
देबरॉय की इस रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस में असंतोष थी और इसके बाद वह राजीव गांधी फाउंडेशन छोड़कर पंजाब हरियाणा दिल्ली चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में चले गए थे. उद्योग निकाय में दो साल के कार्यकाल के बाद, 2007 से सेंटर फॉर पॉलिसी एंड रिसर्च में उनका एक लंबा कार्यकाल रहा. 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम के रूप में सत्ता संभालने के बाद वे केंद्र के थिंक टैंक का हिस्सा बन गए.
25 जनवरी 1955 को मेघालय के शिलांग में बिबेक देबरॉय का जन्म हुआ था. इनके दादा-दादी बांग्लादेश के सिलहट से भारत आए थे. बिबेक देबरॉय के पिता भारत सरकार की इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट्स सर्विस में काम करते थे.
बिबेक देबरॉय ने साल 1979 से 1983 के बीच कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में बतौर लेक्चरर पढ़ाया. वह गोखले इन्स्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड में कुलाधिपति भी रहे. जब आर्थिक उदारीकरण के बाद सरकार को बड़े पैमाने पर नई नीतियों के लिए एक्सपर्ट्स की आवश्यकता हुई तो साल 1993-98 के बीच देबरॉय ने वित्त मंत्रालय में लीगल रिफॉर्म्स के प्रोजेक्ट पर काम किया.
2014-15 के बीच जब देश में नरेंद्र मोदी की सरकार चल रही थी तो उन्हें रेल मंत्रालय की हाई पावर कमेटी का चेयरमैन नियुक्त किया गया. इस सेक्टर में उनकी कमेटी के कई सुझाव विवाद का भी कारण बने. जैसे शताब्दी और राजधानी जैसी प्रीमियम ट्रेनों के संचालन में प्राइवेट सेक्टर को लाने की सिफारिश. इसके साथ ही रेलवे का अलग से बजट पेश करने की जरूरत नहीं है, जैसे सुझावों ने खूब विवाद बढ़ाया.
फिर मोदी सरकार के दौरान जब योजना आयोग ने नीति आयोग का रूप लिया तो यहां भी देबरॉय को जगह मिली. वह जनवरी 2015 में नीति आयोग के स्थाई सदस्य बने और 2019 तक यहां काम किया. इसी बीच सितंबर 2017 में उन्हें पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद का चेयरमैन नियुक्त किया गया. वह इसके साथ ही सितंबर 2018 से सितंबर 2022 के बीच इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट के प्रेसिडेंट के रूप में भी काम करते रहे. साल 2015 में मोदी सरकार के दौरान ही उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया.
उनकी कमेटी ने गरीबी के नए पैमाने की वकालत की और साथ ही हिंदुओं और मुसलमानों की आबादी को लेकर भी अपनी रिपोर्ट जारी की थी. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएएसी-पीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने एक अखबार में नए संविधान की मांग करते हुए लेख लिखा था. जिसके बाद इन मुद्दों पर खूब विवाद हुआ था.
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जीकेटी/
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