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हरियाणा में बागी बिगाड़ेंगे खेल, मैदान में भाजपा-कांग्रेस के दर्जनों बागी नेता

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नई दिल्ली, 3 अक्टूबर . हरियाणा विधानसभा चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है. आगामी 5 अक्टूबर को होने वाले चुनाव में प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा, लेकिन सबसे बड़ा झटका भाजपा और कांग्रेस को उनके बागी नेताओं से मिल रहा है. इन दोनों प्रमुख दलों से बगावत कर करीब दर्जनों नेता मैदान में उतर गए हैं, जिससे चुनावी समीकरण गड़बड़ा गए हैं.

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के शीर्ष नेतृत्व ने बागी नेताओं को मनाने की भरपूर कोशिश की. हाईकमान ने व्यक्तिगत स्तर पर बातचीत से लेकर राजनीतिक दबाव तक सब कुछ आजमाया, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद बागी नेताओं ने अपना नाम वापस नहीं लिया. ये नेता अब अपनी ही पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशियों की जीत की राह मुश्किल हो गई है.

अंबाला कैंट से कांग्रेस का टिकट न मिलने पर चित्रा सरवारा निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं, जिससे कांग्रेस को नुकसान हो रहा है. यहां त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है, जिससे भाजपा के अनिल विज को फायदा हो सकता है. पूंडरी से कांग्रेस के सतबीर भाणा भी निर्दलीय लड़ रहे हैं, जिससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है. कैथल के गुहला चीका से नरेश ढांडे निर्दलीय खड़े होकर कांग्रेस के देवेंद्र हंस को टक्कर दे रहे हैं.

पानीपत सिटी और ग्रामीण सीटों पर भी कांग्रेस के बागी प्रत्याशी रोहिता रेवड़ी और विजय जैन मुकाबले को रोमांचक बना रहे हैं. लाडवा में भाजपा के संदीप गर्ग निर्दलीय लड़ रहे हैं, जिससे त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है. गन्नौर में देवेंद्र कादियान और असंध में जिले राम शर्मा भी भाजपा से बगावत कर चुनावी मैदान में हैं, जिससे भाजपा और कांग्रेस दोनों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

हरियाणा के चुनावी मैदान में बागियों की मौजूदगी ने समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है. दोनों ही दलों को अपने ही नेताओं से चुनौती मिल रही है. भाजपा और कांग्रेस के बागी उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत जनाधार रखते हैं और इनकी लोकप्रियता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये बागी किस तरह से चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं.

बागियों के चुनावी मैदान में मौजूदगी से वोटों का बंटवारा होने की प्रबल संभावना है. इससे फायदा क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को हो सकता है, जो इस विभाजन का लाभ उठाकर अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं. यही वजह है कि इन बागियों की वजह से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

कांग्रेस में पहले से चली आ रही गुटबाजी ने इन बगावतों को और बढ़ावा दिया है. कई वरिष्ठ नेताओं को टिकट न मिलना गुटों के बीच आपसी विवाद का परिणाम माना जा रहा है. वहीं, भाजपा में टिकट वितरण को लेकर असंतोष पनपा, जिसने कई नेताओं को बगावत की राह पर धकेल दिया. पार्टी नेतृत्व ने नाराजगी कम करने की कोशिश की, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.

हरियाणा में इस बार के चुनाव में बागियों की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है. वोटों के बंटवारे और मतदाताओं की नाराजगी का फायदा उठाकर ये बागी नेता कई सीटों पर परिणाम पलट सकते हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 5 अक्टूबर को मतदान के बाद 90 सीटों में से कितनी सीटें बागियों के प्रभाव में आती हैं और इससे भाजपा और कांग्रेस को कितना नुकसान होता है.

पीएसके/जीकेटी

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