वाराणसी, 5 अक्टूबर . सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश बोर्ड ऑफ़ मदरसा एजुकेशन एक्ट, 2004 पर एक बड़ा फैसला सुनाते हुए इसकी संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है. एससी ने हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि यह एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यूपी मदरसा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन इफ्तिखार अहमद जावेद ने इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने से बात करते हुए कहा कि हाईकोर्ट से कहीं न कहीं चूक हुई थी.
उन्होंने कहा, “हाईकोर्ट में कुछ समय पहले एक भ्रम की स्थिति बनी थी, जब किसी राठौर ने एक रिट दाखिल की थी, जिसके बाद काफी समय तक बहस चली. मार्च के महीने में हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि यह एक्ट असंवैधानिक है, जो कि सभी के लिए बड़ा आश्चर्य का विषय था. इसके बाद, 5 अप्रैल को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले पर स्टे दे दिया था और आज, 7 महीने बाद, 5 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का निर्णय गलत था और एक्ट को वैध माना. इस फैसले से यह निश्चित हो गया है कि मदरसे अब भी उसी तरीके से काम करेंगे और यह एक्ट के अंतर्गत जारी रहेंगे. दरअसल, जो अरबी-फारसी बोर्ड और संस्कृत बोर्ड बने थे, उनका उद्देश्य हमेशा से प्राचीन भाषाओं जैसे अरबी, फारसी और संस्कृत को बढ़ावा देना था. अगर बच्चे अरबी या फारसी पढ़ते हैं तो वह कुरान और हदीस की शिक्षा प्राप्त करते हैं, और यदि संस्कृत पढ़ते हैं तो वह महाभारत, वेद, पुराण आदि पढ़ सकते हैं. यह बोर्ड इन भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए बने थे.”
उन्होंने आगे कहा, “कई बार यह गलतफहमी हो जाती है कि मदरसों में सिर्फ धार्मिक शिक्षा दी जाती है, लेकिन, ऐसा नहीं है. मदरसों में विज्ञान, गणित, अंग्रेजी, और अन्य विषय भी पढ़ाए जाते हैं. अफसोस यह है कि कुछ लोग, जो मदरसों में जाते नहीं हैं, केवल बाहरी नजरिए से अनुमान लगाते हैं और यह मानते हैं कि मदरसे सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं. मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं कि जब भी मौका मिले, मदरसों का दौरा करें. मदरसे ऐसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं जहां बच्चों तक शिक्षा पहुंचाना मुश्किल होता था. चंदे और जकात से चलने वाले इन मदरसों में गरीब बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, जिससे उनकी ज़िंदगी में बदलाव आ रहा है. हाईकोर्ट ने जो भी टिप्पणी की थी, सुप्रीम कोर्ट ने उसे पढ़ा और एक्ट को सही ठहराया. इस फैसले से मदरसे के संचालन को और मजबूती मिली है. उत्तर प्रदेश में लगभग 25,000 मदरसे हैं, और 20 लाख के आसपास बच्चे इन मदरसों में पढ़ाई कर रहे हैं. कभी-कभी कुछ लोग मदरसों पर कटाक्ष करते हैं और उनकी कामकाज की शैली पर सवाल उठाते हैं, लेकिन यह गलत है. मदरसे हमेशा से समाज के गरीब और जरूरतमंद बच्चों के लिए काम कर रहे हैं. अगर कभी किसी ने कहा कि मदरसों में केवल एक धर्म के बच्चों को शिक्षा दी जाती है, तो यह पूरी तरह से गलत है. मदरसे सभी बच्चों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा देते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “भारत एक ऐसा देश है जहां “सबका साथ, सबका विकास” की भावना है और कोई भी समाज या संस्था, चाहे वह मदरसा हो या स्कूल, किसी भी तरह के भेदभाव से बचकर ही समाज को आगे बढ़ा सकते हैं. आज सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद समाज विरोधी ताकतों को खामोश करने में मदद मिली है और हमें खुशी है कि मदरसे अब भी अपनी पूर्ववत कार्यप्रणाली के तहत काम करते रहेंगे.”
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पीएसएम/जीकेटी
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