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महिलाओं के अधिकारों की कहानी कहती है 'पारो : द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ ब्राइड स्लेवरी'

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मुंबई, 10 नवंबर . फिल्म ‘पारो : द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ ब्राइड स्लेवरी’ को लेकर अभिनेत्री और निर्माता तृप्ति भोईर ने कहा है कि यह फिल्‍म उन महिलाओं के बुनियादी मानवाधिकारों के लिए उनकी लड़ाई है, जो पितृसत्तात्मक व्यवस्था की सताई हुई हैं, जिसके कारण उन्हें गुलामी का सामना करना पड़ता है.

‘पारो : द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ ब्राइड स्लेवरी’ गुलामी में फंसी महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली क्रूर वास्तविकताओं को दिखाती है.

फिल्म के बारे में बात करते हुए तृप्ति ने कहा, “इन कहानियों को सबके सामने लेकर आना केवल जागरूकता बढ़ाने के बारे में नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के लिए जमीनी स्तर पर वास्तविक बदलाव लाने के बारे में है. यह फिल्म उनके बुनियादी मानवाधिकारों के लिए मेरी लड़ाई है.”

इस उद्देश्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता मेटा वर्ल्ड पीस और अकियो टायलर की आवाजों से मेल खाती है, जो न्याय के लिए उनके जुनून को साझा करते हैं. वे कहते हैं, “हम मानते हैं कि हर महिला को, चाहे वह किसी भी परिस्थिति में हो, अपनी बात कहने, सम्मान पाने और सशक्त बनाने का अधिकार है.

तृप्ति ने कहा, ”इस फिल्‍म के माध्‍यम से हमारा लक्ष्य उन महिलाओं की आवाज को आगे बढ़ाना है, जिन्होंने दुल्हन बनकर गुलामी को झेला है. हमने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि उनकी कहानियां वैश्विक दर्शकों तक पहुंचें और स्थायी परिवर्तन को बढ़ावा दें.”

फिल्म में तृप्ति भोईर के साथ ताहा शाह बदुशा भी हैं जिन्होंने संजय लीला भंसाली की ओटीटी डेब्यू ‘हीरामंडी: द डायमंड बाजार’ में अपने अभिनय से नाम कमाया.

यह फिल्म हॉलीवुड और बॉलीवुड की संस्कृतियों को आपस में जोड़ती है. रूही (रोहिणी) हक के नेतृत्व में होपबीलिट महिलाओं को सशक्त बनाने और उन लोगों की आवाज को बुलंद करने की अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ है, जिन्हें लंबे समय से चुप कराया जाता रहा है.

गजेंद्र अहिरे के निर्देशन में बनी इस फिल्‍म का निर्माण संदीप शारदा और प्रिया सामंत ने किया है. सतीश चक्रवर्ती ने इसे संगीत में पिरोया है.

एमकेएस/एकेजे

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