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Diwali Ki Katha : दिवाली लक्ष्मी पूजन की पौराणिक कथा, इसके पाठ से महालक्ष्मी सदैव रहेंगी प्रसन्न

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प्राचीन समय में एक नगर में एक साहूकार रहता था उसकी एक लड़की थी वह रोजाना पीपल देवता की पूजा करती थी। एक दिन लक्ष्मी जी ने उस साहू‌कार की लड़की को दर्शन दिए और उससे बोली कि मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं, इसलिए तू मेरी सहेली बनना स्वीकार कर ले। लड़की बोली क्षमा कीजिये मैं अपने माता-पिता से पूछकर बताऊंगी। इसके बाद वह अपने माता-पिता की आज्ञा प्राप्त कर श्री लक्ष्मी जी की सहेली बन गईं। श्री महालक्ष्मी उससे बड़ा प्रेम करती थीं। एक दिन महालक्ष्मी जी ने उस लड़की को भोजन जीमने का निमंत्रण दिया। जब लड़की भोजन पाने को गई तो लक्ष्मी जी ने उसे सोने चांदी के बर्तनों में खाना खिलाया और सोने की चौकी पर उसे बैठाया और बहुमूल्य दिव्य दुशाला उसे ओढ़ने को दिया।इसके बाद लक्ष्मी जी ने साहुकाल की लड़की से कहा कि मैं भी कल तुम्हारे यहां जीमने आऊंगी। लड़की ने स्वीकार कर लिया और अपने माता-पिता से जाकर सारी बात कही लड़की की सारी बात सुनकर साहुकार और उसकी पत्नी बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन, लड़की उदास हो गई। लड़की का उदास चेहरा देख उसके माता पिता ने कारण पूछने पर उसने अपने पिता को बताया कि लक्ष्मी जी का वैभव बहुत बड़ा है, मैं उन्हे कैसे सन्तुष्ट कर सकूंगी। उसके पिता ने कहा कि बेटी गोबर से पृथ्वी को लीपकर जैसा भी बन पाये उन्हें रूखा सूखा श्रद्धा और प्रेम से खिला देना, यह बात पिता कहने भी न पाया कि सहसा एक चील मंडराती हुई आई और किसी रानी का नौलखा हार वहीं डाल गई यह देख करके साहूकार की लड़की बहुत प्रसन्न हो गई उसने उस हार को थाल में रख करके बहुत बढ़िया दुशाले से ढककर रख दिया। तब तक श्री गणेश और महालक्ष्मी जी भी वहां आ गए। लड़की ने उन्हें सोने की चौकी पर बैठने को कहा इस पर श्री महालक्ष्मी जी ने कहा कि इस पर तो राजा रानी बैठते हैं हम कैसे बैठें। बहुत आग्रह करने पर महालक्ष्मी जी और गणेश जी ने बड़े प्रेम से भोजन किया। लक्ष्मी जी ने और गणेश जी ने पर्दापण करते ही साहूकार का घर सुख-सम्पत्तियों से भर गया। हे महालक्ष्मी जी जिस प्रकार आपने साहूकार का घर धन-सम्पत्ति से भर दिया था उसी प्रकार सभी के घरों में धन-संपत्ति से भरकर सभी को कृतार्थ कर दो।
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