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जबान संभाल के

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कर्नाटक हाईकोर्ट के एक जज की ओर से हाल में एक सुनवाई के दौरान की गई अशोभनीय और आपत्तिजनक टिप्पणियों से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जो सख्त हिदायत दी, वह जूडिशरी के साथ ही शासन और समाज के अन्य हिस्सों पर भी लागू होती है। संबंधित जज की ओर से माफी मांग लिए जाने के बाद इस केस को ठीक ही बंद कर दिया गया, लेकिन चीफ जस्टिस की अगुआई वाली पांच सदस्यीय बेंच के इस दौरान दिए गए ऑब्जर्वेशन खास तौर पर गौर करने लायक हैं। टिप्पणी में पूर्वाग्रह : यह मामला महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि हाईकोर्ट के जज की जो टिप्पणियां सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, उनमें दिखने वाला पूर्वाग्रह समाज के व्यापक दायरे में प्रचलित है। रोजमर्रा की जिंदगी में आम तौर पर लोग शहर के किसी खास हिस्से का पाकिस्तान या मिनी पाकिस्तान के रूप में जिक्र करते पाए जाते हैं। महिला विरोधी पूर्वाग्रह भी हमारे समाज की एक पुरानी और गहरी बीमारी है। ऐसे में जब हाईकोर्ट का जज किसी महिला वकील पर अशोभनीय टिप्पणी करता या शहर के किसी खास क्षेत्र को पाकिस्तान बताता दिखेगा तो उसके दुष्प्रभावों की सहज ही कल्पना की जा सकती है। तत्पर कार्रवाई : निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट का इस मामले को तुरंत संज्ञान में लेते हुए इस पर कार्रवाई शुरू करना शुभ संकेत है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का यह कहना भी अहम है कि देश के किसी भी हिस्से को पाकिस्तान बताना हमारी क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रुख ने न केवल न्यायपालिका को बल्कि जिम्मेदार पदों पर बैठे सभी लोगों को यह संदेश दिया है कि उन्हें अपनी टिप्पणियों को लेकर गंभीर होना चाहिए। पारदर्शिता जरूरी : इस मामले का एक और अहम पहलू है पारदर्शिता। चूंकि यह मामला हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान आई टिप्पणी के सोशल मीडिया पर वायरल होने का था और जज का कहना था कि उनकी टिप्पणी को संदर्भों से काटकर पेश किया गया है, इसलिए कुछ हलकों में यह बात भी होने लगी थी कि हाईकोर्ट की कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग बंद होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अस्पष्टता की कोई गुंजाइश न रखते हुए साफ कर दिया कि अगर पारदर्शिता से कोई समस्या आती है तो उसका एकमात्र जवाब है और ज्यादा पारदर्शिता। सोशल मीडिया का दौर : सुप्रीम कोर्ट के रुख से साफ है कि सोशल मीडिया आज के दौर की हकीकत है और इससे बचने का प्रयास करने के बजाय इसकी मौजूदगी को स्वीकार करते हुए बेहतर तैयारी के साथ इससे पेश आने की जरूरत है।
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