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जैविक मां से जुड़ी पहचान रखना है मौलिक अधिकार, जानिए दिल्ली HC ने किस मामले में सुनाया ऐतिहासिक फैसला

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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीएसई बोर्ड से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को अपने जैविक यानी की बायोलॉजिकल माता-पिता से जुड़ी पहचान रखना एक मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने श्वेता बनाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के मामले पर फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ता को अनुमति दी कि वो सीबीएसई रिकॉर्ड में अपनी सौतेली मां का नाम बदलकर अपनी जैविक मां का नाम दर्ज करा सकती है। क्या है पूरा मामलादरअसल श्वेता ने अपनी पहचान को अपनी जैविक मां से जोड़ने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि कक्षा दस सीबीएसई परीक्षा के लिए पंजीकरण करवाते वक्त उनकी सौतेली मां का नाम दर्ज किया गया था। उसके बाद जब साल 2008 में श्वेता में अपनी जैविक मां से मिलने के बाद अपने स्कूल रिकॉर्ड को सही करवाने की कोशिश की तो अधिकारियों ने उनकी कोशिश को नजरअंदाज कर दिया। जिसके बाद ये मामला कोर्ट में पहुंचा। कोर्ट में CBSE की तरफ से तर्क दिया गया कि श्वेता ने दसवीं पास करने के एक दशक के बाद बोर्ड से परिवर्तन की मांग की थी। जो संभव नहीं है। हालांकि अब कोर्ट ने श्वेता को नाम बदलवाने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने श्वेता की मांग का ठहराया जायजदिल्ली हाई कोर्ट की जाज स्वर्ण कांता शर्मा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की मां उसके जीवन का अहम हिस्सा रहीं हैं। ऐसे में उसे आधिकारिक रकॉर्ड में उनकी सौतेली मां का नाम से पहचानने जाने के लिए मजबूर करना अन्याय होगा। एक महीने के भीतर दस्तावेजों में हो सुधारश्वेता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सीबीएसई को एक महीने के भीतर श्वेता के दसवीं कक्षा के प्रमाणपत्र में सुधार करने होंगे। कोर्ट ने विशेष तौर पर कहा कि श्वेता का नाम श्वेता सांगवान से केवल श्वेता में बदला जाए। इसके साथ ही कमलेश के नाम को हटाकर संतोष कुमार का नाम उनकी मां के रूप में दर्ज किया जाए।
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