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Jharkhand Election: पीएम नरेंद्र मोदी के बाएं चंपाई सोरेन तो दाएं अर्जुन मुंडा, BJP की इस रणनीति के पीछे का सच जानिए

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रांचीः झारखंड में विधानसभा चुनाव दो चरणों में हो रहे हैं। पहले चरण में 13 नवंबर को कुल 81 में 43 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। इनमें विधानसभा की अनुसूचित जनजाति की कुल 28 में से 20 सीटें शामिल हैं। भाजपा ने अपने हेवीवेट नेताओं को मैदान में उतार दिया है। दो दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह चुनाव प्रचार के लिए झारखंड आए थे। अगले दिन यानी सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे। भाजपा नेताओं ने हेमंत सोरेन सरकार को निशाने पर रखा। भाजपा ने उठाए जमीनी मुद्देभाजपा ने झारखंड के माटी-बेटी और रोजगार का मुद्दा उठाया है। युवाओं के साथ सरकार के छल की बात को रेखांकित किया। बांग्लादेशी घुसपैठ पर चिंता जताई। घुसपैठियों द्वारा झारखंड की बेटियों को प्रेम जाल में फंसा कर उनसे शादी और धर्मांतरण कराने को झारखंड की बेटियों का अपमान बताया। झारखंड की जमीन पर बसते जा रहे घुसपैठियों को राज्य से भगाने का वादा किया। इस बीच पार्टी ने 150 वादों के साथ अपना घोषणापत्र भी जारी किया। पीएम मोदी ने इसे झारखंड के विकास का खाका बताया। पहला चरण भाजपा के लिए खासपहले चरण का चुनाव सत्ताधारी इंडिया ब्लाक और विपक्ष में बैठे एनडीए की पार्टियों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सत्ताधारी गठबंधन के लिए अपनी सीटें बचाना चुनौती है तो विपक्ष के लिए इन सीटों पर जीतना मजबूरी है। पिछली बार एसटी आरक्षित 28 सीटों में भाजपा को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी, जबकि जेएमएम के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लाक की पार्टियों ने 26 पर कब्जा जमा लिया था। वर्ष 2019 में इंडिया ब्लाक ने अगर भाजपा से सत्ता झटक ली तो इसके पीछे इन्हीं एसटी सीटों की ही भूमिका थी। आदिवासी सीटें जीतना चुनौतीभाजपा की इस बार पूरी कोशिश है कि एसटी सीटों पर पहले का परिदृश्य बदल जाए। इसके लिए भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछली बार इंडिया ब्लाक द्वारा जीतीं 26 एसटी सीटों में अकेले जेएमएम ने 19 पर कब्जा जमा लिया था। जबकि झारखंड गठन के वक्त वर्ष 2000 में भाजपा के पास 12 एसटी सीटें थीं। 2014 में भी भाजपा ने 11 सीटें जीतीं और सूबे की सत्ता पा ली थी। पर, 2019 में जेएमएम ने अकेले ऐसी 19 सीटें जीत कर 2014 में मिलीं कुल 19 सीटों को 30 तक पहुंचा दिया। भाजपा के लिए यह सर्वाधिक चिंता का कारण है। एसटी सीटें ही हैं सत्ता की सीढ़ीभाजपा को भी पता है कि आदिवासी सीटों पर कब्जा जमाए बगैर सत्ता पाना संभव नहीं। यही वजह रही कि भाजपा ने आदिवासी नेताओं को आगे किया है। सीता सोरेन, गीता कोड़ा, चंपाई सोरेन, लोबिन हेम्ब्रम जैसे जेएमएम के आदिवासी नेताओं को भाजपा ने पहले अपने पाले में किया। आदिवासी समाज से भावनात्मक जुड़ाव के लिए भाजपा ने अपने घोषणापत्र में 150 संकल्प इसलिए लिए हैं, क्योंकि बिरसा मुंडा की इस साल 150वीं जयंती है। भाजपा के आदिवासी प्रेम की झलक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के झारखंड दौरे में भी दिखी। चाईबासा की सभा में पीएम के बाएं चंपाई सोरेन थे तो दाएं अर्जुन मुंडा थे।
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