नई दिल्ली : भारत में हर घंटे 52 सड़क हादसों में 20 लोग जान गंवाते हैं। सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, हर साल सड़क हादसों की संख्या और इनमें होने वाली मौतें लगातार बढ़ रही हैं। हालिया देहरादून कार हादसे में 6 युवाओं की मौत ने सड़क हादसों पर गंभीरता से काम करने की जरूरत को मजबूती से उठाया है। सड़क हादसों में मारे गए 50% से अधिक लोग 18 से 35 साल की उम्र के होते हैं। इन हादसों की स्टडी ने यह साफ किया है कि हादसों की सबसे बड़ी वजह तेज गति है। 70 फीसदी हादसों में रफ्तार है वजहताजा आंकड़े बताते हैं कि करीब 70% हादसों में तेज रफ्तार के कारण जान चली जाती है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि तेज रफ्तार हादसों की एक वजह जरूर हो सकती है, लेकिन मौत की वजह सिर्फ गति नहीं। सड़क हादसों में हर साल का ट्रेंड यही कहता है कि मरने वालों में ज्यादातर 18 से 45 साल के लोग हैं। इनमें भी टूवीलर चलाने वाले और पैदल चलने वाले ज्यादा हैं। रोड सेफ्टी विशेषज्ञों का कहना है कि यह सरकारों, सभी विभागों और लोगों के लिए अलर्ट करने वाले आंकड़े हैं। हादसे में जान गंवाने वाले टॉप 20 देशों में भारत सबसे ऊपरवर्ल्ड रोड स्टैटिस्टिक्स की रिपोर्ट कहती है कि हादसों में मरने वाले लोगों की टॉप 20 लिस्ट के देशों में भारत सबसे ऊपर है। ऐसे में रोड इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजाइनिंग से लेकर कानून को लागू करवाने और हादसों को स्टडी करते हुए नई-नई पॉलिसी पर काम करने की सख्त जरूरत है। 2022 का डेटा बताता है कि देशभर में 4.62 लाख सड़क हादसे रिकॉर्ड किए गए, जिनमें 1.68 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। वहीं, 4.44 लाख घायल हुए। 2019 से 2022 तक का डेटा बताता है कि सड़क हादसों, मरने वालों और घायलों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। एक्सीडेंट का बड़ा कारण ओवरस्पीडपिछले कुछ सालों की डेटा स्टडी बताती है कि सड़क हादसों की बड़ी वजह ओवरस्पीड (70%) है। मरने वालों में 44% से ज्यादा लोग टूवीलर चलाने वाले हैं। स्पीडिंग के अलावा गलत साइड में ड्राइविंग, नशा, मोबाइल फोन का इस्तेमाल, रेड लाइट जंप ऐसी वजहें हैं, जिनसे हादसे की आशंका बढ़ जाती है। सबसे ज्यादा यानी 60% हादसे नैशनल हाइवे और स्टेट हाइवे में होते हैं। हैरानी की बात यह है कि ये दोनों टोटल रोड नेटवर्क का सिर्फ 4.9% हिस्सा हैं। क्या कहते हैं एक्सपर्ट सड़क दुर्घटनाओं की कई वजहें: पीयूष तिवारीसेव रोड फाउंडेशन के फाउंडर और सीईओ, पीयूष तिवारी का कहना है कि हमें सड़क हादसों के अलग-अलग पहलुओं को समझने की जरूरत है। पहला है, हादसे की वजह और उसमें लगने वाली चोटों का कारण। सड़क दुर्घटनाओं की कई वजहें हो सकती हैं, जैसे ड्राइवर का नशे में होना या ओवरस्पीड। सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए गंभीरता से काम करने की जरूरत है।दूसरा पहलू है, इंफ्रास्ट्रक्चर। जैसे शार्प कर्व, क्रैश बैरियर्स या पर्याप्त रोशनी की कमी। तीसरा है, वीकल से जुड़ी समस्याएं, जैसे कार या बस में कोलिज़न वॉर्निंग सिस्टम का न होना, ए-वीलर सुरक्षा आदि। इन सभी क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। इसके अलावा, दुर्घटना के बाद की स्थिति भी उतनी ही अहम है। हमें यह स्टडी की जरूरत है कि चोटें कहां और कैसे लग रही हैं, क्योंकि यही डेटा इंजरी प्रिवेंशन प्रोग्राम बनाने में मदद करेगा, चाहे वह गाड़ियों के डिजाइन में हो या फिर ट्रॉमा केयर सिस्टम को मजबूत करने में। बचपन से ही कंट्रोल ज़रूरी: प्रीति श्रीवास्तवयंगस्टर्स का ड्रंकन ड्राइविंग और स्पीडिंग के मामलों में जिस तरह से तेजी आ रही है, वो पैरंट्स के लिए भी चुनौती है। पैरंटिंग एक्सपर्ट और साइकोलॉजिस्ट प्रीति श्रीवास्तव कहती हैं, हाल-फिलहाल हमने देशभर ऐसे कई मामले सुने हैं, जहां यंगस्टर्स नशे में गाड़ी चला रहे थे या फिर तेज रफ्तार में कार चला रहे थे। एक सीमा तक पैरंट्स का कंट्रोल बचपन से ही बच्चों पर जरूरी है। क्या सही है, क्या गलत, यह बच्चों को समझाना पैरंट्स की जिम्मेदारी है।कानूनी उम्र में ही उन्हें कार या टूवीलर देना, हेलमेट लगाने के लिए सख्ती, स्पीडिंग के लिए टोकना, उनकी जिम्मेदारी है। कई बार चीजें पैरंट्स के हाथ में नहीं होती हैं, खासतौर पर एक उम्र के बाद बच्चों पर उनका कंट्रोल कम हो जाता है। मगर बचपन से चीजें हाथ में होंगी, तो मुश्किल नहीं होगी। चुनौती है मगर लेनी होगी। अगर बच्चे के बिहेवियर में दिक्कत है, तो काउंसलिंग भी जरूरी है। स्कूल एजुकेशन में भी रोड सेफ्टी दिलचस्प अंदाज में रखी जानी चाहिए। कानूनी सख्ती होगी, तो मामले कम भी होंगे।
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