प्रयागराज के संगम तट पर माघ के महीने में कल्पवास का विशेष महत्व है, 2025 महाकुंभ के दौरान कल्पवास करने से व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है, इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व प्रमाणित है। मान्यताओं के अनुसार कल्पवास महर्षि भारद्वाज द्वारा चलाई गई वो पद्धति है जिससे सांसारिक जीवन में रहकर मनुष्य पूरे साल के पापों को धो सकता है। इतना ही नहीं मनुष्य कल्पवास के माध्यम से ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उसका वंश अनेक पीड़ियों तक फलता-फूलता है। कहा गया है कि कुंभ कल्पवास के दौरान दान आदि कर्मों द्वारा असीम पुण्य अर्जित होता है, जिसके फलस्वरूप इस देह का अंत होने पर साधन मुक्ति प्राप्त करता है। महाकुम्भ कल्पवास ब्रह्मचारियों के लिए तपस्थली, संन्यासियों के लिए तपोभूमि, गृहस्थियों के लिए सांस्कृतिक जीवन जीने का एकमात्र अध्याय और वानप्रस्थ के लिए मुक्ति का साधन है। महाकुम्भ अद्भुत आयोजन है जिसके कुछ विशेष नियम हैं, जैसे हमें क्या खाना चाहिए, कब और क्या करना चाहिए, हमें लोगों के लिए कैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, संत के सानिध्य में कैसे बैठना चाहिए, कथाओं और यज्ञों में कैसे भागीदार बनना चाहिए। यह सारी बातें कुम्भ कल्पवास से पहले जानने योग्य है। कुंभ कल्पवास की विधि
- प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें और बिना तेल और साबुन लगाए संगम स्नान करें।
- संगम की रेती से पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर पूजन करें।
- प्रभात काल में उगते सूर्य भगवान को अर्घ्य दें।
- अल्पाहार करें तथा तामसिक भोजन और मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- एक समय भोजन करें तथा भोजन खुद पकाएं।
- जमीन पर सोएं।
- संध्या का समय संतों के दर्शन और कथाओं को सुनने में बिताएं।
- भागवत चर्चा करते हुए महाकुंभ में दिन बिताएं।
- महाकुम्भ कल्पवास के दौरान किसी के लिए भी बुरे विचार मन में न लाएं तथा बुरा न सोचें।
- शरीर स्वस्थ है तो दूसरों की मदद करें।
- प्रतिदिन अन्न या वस्त्रों का दान करें क्योंकि तीर्थराज प्रयागराज में संगम तट पर दान की विशेष महिमा शास्त्रों में वर्णित है।
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